UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 3 संविधान निर्माण

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 3 संविधान निर्माण

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
नीचे कुछ गलत वाक्य हैं। हर एक में की गई गलती पहचानें और इस अध्याय के आधार पर उसको ठीक करके लिखें।
(क) स्वतन्त्रता के बाद देश लोकतांत्रिक हो या नहीं, इस विषय पर स्वतन्त्रता आन्दोलन के नेताओं ने अपना दिमाग खुला रखा था।
(ख) भारतीय संविधान सभा के सभी सदस्य संविधान में कही गई हरेक बात पर सहमत थे।
(ग) जिन देशों में संविधान है वहाँ लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था ही होगी।
(घ) संविधान देश का सर्वोच्च कानून होता है इसलिए इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता।
उत्तर:
(क) अंग्रेजी शासन से स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को एक लंबा और कठिन संघर्ष
करना पड़ा था। स्वतन्त्रता के पश्चात् वे देश में लोकतंत्र की स्थापना के लिए वचनबद्ध थे। सन् 1936 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के फैजपुर अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय भाषण में जवाहरलाल नेहरू ने लोकतन्त्र के प्रति अपनी वचनबद्धता को दोहराते हुए कहा था-“कांग्रेस भारत में पूर्ण लोकतन्त्र का समर्थन करती है और एक लोकतंत्रीय राज्य के लिए संघर्ष कर रही है।”

(ख) भारतीय संविधान सभा के सभी सदस्य संविधान की सभी व्यवस्थाओं के बारे में समान विचार नहीं रखते थे।
इनमें से कई सदस्य देश में एकात्मक शासन प्रणाली का समर्थन करते थे जबकि अन्य संघीय व्यवस्था के पक्ष में थे। संविधान सभा में सभी विषयों पर खुलकर विचार-विमर्श किया जाता था और निर्णय प्रायः बहुमत या पारस्परिक सहमति से लिए जाते थे।

(ग) यह आवश्यक नहीं है कि जिस देश में संविधान है- वहाँ पर लोकतंत्रीय व्यवस्था ही होगी। संविधान में तानाशाही अथवा सैनिक शासन व्यवस्था भी की जा सकती है।

(घ) विश्व में कोई भी ऐसा संविधान नहीं है जिसमें परिवर्तन न किया जा सके। प्रत्येक देश में परिवर्तित होती हुई सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक परिस्थितियों के अनुसार संविधान में संशोधन करना आवश्यक होता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में भी संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। सन् 1950 में भारत के संविधान के लागू होने के बाद से इसमें लगभग 100 से अधिक बार संशोधन किया जा चुका है।

प्रश्न 2.
दक्षिण अफ्रीका का लोकतांत्रिक संविधान बनाने में, इनमें से कौन-सा टकराव सबसे महत्त्वपूर्ण था
(क) दक्षिण अफ्रीका और उसके पड़ोसी देशों का
(ख) स्त्रियों और पुरुषों का ।
(ग) गोरे अल्पसंख्यक और अश्वेत बहुसंख्यकों का
(घ) रंगीन चमड़ी वाले बहुसंख्यकों और अश्वेत अल्पसंख्यकों का
उत्तर:
(घ) रंगीन चमड़ी वाले बहुसंख्यकों और अश्वेत अल्पसंख्यकों का

प्रश्न 3.
लोकतांत्रिक संविधान में इनमें से कौन-सा प्रावधान नहीं रहता?
(क) शासन प्रमुख के अधिकार
(ख) शासन प्रमुख का नाम
(ग) विधायिका के अधिकार
(घ) देश का नाम
उत्तर:
(ख) शासन प्रमुख का नाम।

प्रश्न 4.
संविधान निर्माण में इन नेताओं और उनकी भूमिका में मेल बैठाएँ
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 3 संविधान निर्माण
उत्तर:
(क) मोतीलाल नेहरू- 1928 में भारत का संविधान बनाया।।
(ख) बी. आर. अम्बेडकर- प्रारूप समिति के अध्यक्ष।
(ग) राजेंद्र प्रसाद- संविधान सभा के अध्यक्ष।
(घ) सरोजिनी नायडू- संविधान सभा की सदस्या।

प्रश्न 5.
जवाहरलाल नेहरू के नियति के साथ साक्षात्कार वाले भाषण के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों का जवाब दें

(क) नेहरू ने क्यों कहा कि भारत का भविष्य सुस्ताने और आराम,करने का नहीं है?
(ख) नए भारत के सपने किस तरह विश्व से जुड़े हैं?
(ग) वे संविधान निर्माताओं से क्या शपथ चाहते थे?
(घ) “हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की कामना हर आँख के आँसू पोंछने की है। वे इस कथन में किसका जिक्र कर रहे थे? .

उत्तर:
(क) ये शब्द जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि के समय संविधान सभा में दिए गए अपने प्रसिद्ध भाषण में कहे थे। उन्होंने कहा था कि भारत का भविष्य, जब भारत स्वतन्त्र हो रहा है, आराम करने या सुस्ताने का समय नहीं है बल्कि उन वायदों को पूरा करने के लिए निरंतर प्रयास करने का है जिन्हें हमने अक्सर किया है। भारत की सेवा करने का अर्थ है, दुःख और परेशानियों में पड़े लाखों-करोड़ों लोगों की सेवा करना। इसका अर्थ है दरिद्रता का, अज्ञान और बीमारियों का, अवसर की असमानता का अन्त। हमारे युग के महानतम आदमी की कामना हर आँख से आँसू पोंछने की है। संभव है..
संभव है यह काम हमारे अकेले से पूरा न हो पर जब तक लोगों की आँखों में आँसू हैं, कष्ट है तब तक हमारा काम खत्म नहीं होगा।

(ख) भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपने भाषण में कहा था कि ऐसे पवित्र क्षण में (जब भारत स्वतन्त्र हो रही है। हम अपने आपको, भारत और उसके लोगों तथा उससे भी अधिक मानवता की सेवा में । समर्पित करें, यही हमारे लिए उचित है।

(ग) जवाहरलाल नेहरू संविधान निर्माताओं से यह शपथ चाहते थे कि हम अपने आपको भारत और उसके लोगों तथा मानवता की सेवा के लिए समर्पित करें।

(घ) वे इस कथन में महात्मा गाँधी का जिक्र कर रहे थे।

प्रश्न 6.
हमारे संविधान को दिशा देने वाले ये कुछ मूल्य और उनके अर्थ हैं। इन्हें आपस में मिलाकर दोबारा लिखिए।
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 3 संविधान निर्माण 1
उत्तर:
(क) संप्रभु– फैसले लेने का सर्वोच्च अधिकार लोगों के पास है।
(ख) गणतंत्र– शासन प्रमुख एक चुना हुआ व्यक्ति है।
(ग) बंधुत्व- लोगों को आपस में परिवार की तरह रहना चाहिए।
(घ) धर्मनिरपेक्ष- सरकार किसी धर्म के निर्देशों के अनुसार काम नहीं करेगी।

प्रश्न 7.
कुछ दिन पहले नेपाल से आपके एक मित्र ने वहाँ की राजनैतिक स्थिति के बारे में आपको पत्र लिखा था। वहाँ अनेक राजनैतिक पार्टियाँ राजा के शासन का विरोध कर रही थीं। उनमें से कुछ का कहना था कि राजा द्वारा दिए गए मौजूदा संविधान में ही संशोधन करके चुने हुए प्रतिनिधियों को ज्यादा अधिकार दिए जा सकते हैं। अन्य पार्टियाँ नया गणतांत्रिक संविधान बनाने के लिए नई संविधान सभा गठित करने की माँग कर रही थी। इस विषय में अपनी राय बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें।
उत्तर:
प्रिय मित्र ।
नेपाल की राजनीतिक स्थिति के सम्बन्ध में आपने मुझे जो पत्र लिखा था, उसके सम्बन्ध में मेरा विचार यह है कि लोगों को एक नई संविधान सभा की स्थापना की माँग करनी चाहिए जो नेपाल के लिए गणतंत्रीय संविधान का निर्माण करें और वहाँ पर राजतंत्रीय शासन व्यवस्था को समाप्त कर दें। सन् 2005 में नेपाल • के सम्राट ने जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर दिया था और लोगों से समस्त अधिकार एवं स्वतंत्रताएँ छीन ली थीं, जो उन्हें एक दशक पहले प्राप्त हुए थे।
[नोट : वर्तमान में नेपाल में राजतन्त्र पूरी तरह समाप्त हो गया है। नेपाल अब एक लोकतांत्रिक गणतन्त्र । है, जिसका एक स्वतन्त्र संविधान है। देश में लोगों को सारे लोकतांत्रिक मानवाधिकार प्राप्त हैं।

प्रश्न 8.
भारत के लोकतन्त्र के स्वरूप में विकास के प्रमुख कारणों के बारे में कुछ अलग-अलग विचार इस प्रकार हैं। आप इनमें से हर कथन को भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कितना महत्त्वपूर्ण कारण मानते हैं?
(क) अंग्रेज शासकों ने भारत को उपहार के रूप में लोकतांत्रिक व्यवस्था दी। हमने ब्रिटिश हुकूमत के समय बनी प्रांतीय असेंबलियों के जरिए लोकतांत्रिक व्यवस्था में काम करने का प्रशिक्षण पाया।
(ख) हमारे स्वतन्त्रता संग्राम ने औपनिवेशिक शोषण और भारतीय लोगों को तरह-तरह की आजादी न दिए जाने का विरोध किया। ऐसे में स्वतन्त्र भारत को लोकतांत्रिक होना ही था।
(ग) हमारे राष्ट्रवादी नेताओं की आस्था लोकतन्त्र में थी। अनेक नव स्वतन्त्र राष्ट्रों में लोकतन्त्र का न आना हमारे नेताओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
उत्तर:
(क) भारत में प्रतिनिधि संस्थाओं की स्थापना ब्रिटिश शासनकाल की ही देन है। केन्द्र और अब प्रांतों में द्विसदनीय विधानमण्डल की स्थापना की थी। धीरे-धीरे अधिक लोगों को मतदान का अधिकार भी दिया गया। भारतीय नेताओं को इन संस्थाओं से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ।
(ख) भारतीय नेताओं ने स्वतन्त्रता संग्राम में अनेक आन्दोलन चलाए और राजनीतिक स्वतन्त्रताओं की माँग की,
अत्याचारी व शोषणकारी कानूनों का विरोध किया। अतः भारत के लिए लोकतन्त्र की स्थापना करनी ही थी।
(ग) भारत में लोकतन्त्र की स्थापना में निःसन्देह भारतीय नेताओं ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। सन् 1928 में ही मोतीलाल नेहरू तथा कई अन्य नेताओं ने भारत के लिए एक संविधान का मसौदा तैयार किया था। सन् 1931 में कांग्रेस के कराची में हुए अधिवेशन में भी इस बात पर विचार किया गया था कि स्वतन्त्र भारत का नया संविधान कैसा होगा। यह दोनों दस्तावेजों में वयस्क मताधिकार, स्वतंत्रता तथा समानता के अधिकारों के प्रति वचनबद्धता जाहिर की गई थी। भावी संविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुरक्षित करने की भी बाते की गई थी।

प्रश्न 9.
1912 में प्रकाशित ‘विवाहित महिलाओं के लिए आचरण पुस्तक के निम्नलिखित अंश को पढ़ें
“ईश्वर ने औरत जाति को शारीरिक और भावनात्मक, दोनों ही तरह से ज्यादा नाजुक बनाया है, उन्हें आत्म रक्षा के भी योग्य नहीं बनाया है। इसलिए ईश्वर ने ही उन्हें जीवन भर पुरुषों के संरक्षण में रहने का भाग्य दिया है-कभी पिता के, कभी पति के और कभी पुत्र के। इसलिए महिलाओं को निराश होने की जगह इस बात से अनुगृहीत होना चाहिए कि वे अपने आपको पुरुषों की सेवा में समर्पित कर सकती हैं।”
क्या इस अनुच्छेद में व्यक्त मूल्य संविधान के दर्शन से मेल खाते हैं या वे संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ हैं?
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में दिए गए सामाजिक मूल्य हमारे संविधान में निहित दर्शन एवं मूल्यों से मेल नहीं खाते हैं। भारत को संविधान समानता, स्वतन्त्रता एवं बंधुत्व की भावना पर जोर देता है। संविधान का प्रथम मौलिक अधिकार समानता का अधिकार है। पुरुषों एवं महिलाओं को समान अधिकार दिए गए हैं। महिलाओं को वोट डालने और चुनाव लड़ने का अधिकार उसी तरह प्राप्त है, जिस प्रकार पुरुषों को। स्त्रियाँ पुरुषों के अधीन नहीं हैं। भारत की राजनीति, समाज, | संस्कृति, उद्योग-धन्धे, पुलिस, सेना आदि सभी क्षेत्रों में महिलाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। देश की प्रथम महिला
प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की ख्याति एक सशक्त प्रधानमंत्री के रूप में है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। क्या आप उनसे सहमत हैं? अपने कारण भी बताइए।
(क) संविधान के नियमों की हैसियत किसी भी अन्य कानून के बराबर है।
(ख) संविधान बताता है कि शासन व्यवस्था के विविध अंगों का गठन किस तरह होगा।
(ग) नागरिकों के अधिकार और सरकार की सत्ता की सीमाओं का उल्लेख भी संविधान में स्पष्ट रूप में है।
(घ) संविधान संस्थाओं की चर्चा करती है, उसका मूल्यों से कुछ लेना-देना नहीं है।
उत्तर:
(क) यह कथन सत्य ठीक नहीं है, एक साधारण कानून संसद द्वारा पास किया जाता है और संसद जब चाहे उसमें अपनी इच्छानुसार परिवर्तन कर सकती है। इसके विपरीत संविधान के नियमों का महत्त्व अधिक होता है जिन्हें संसद को भी मानना पड़ता है। इन नियमों में परिवर्तन करने के लिए एक विशेष प्रक्रिया को अपनाना पड़ता है।

(ख) यह कथन सत्य है। संविधान में उन नियमों का वर्णन किया गया है जिनके अनुसार, संसद, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की स्थापना की जाएगी। संविधान में राष्ट्रपति के चुनाव की विधि, अवधि व शक्तियों का वर्णन संविधान में किया गया है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति व शक्तियों को वर्णन संविधान में किया गया है। संसद की रचना व शक्तियों का वर्णन संविधान में किया गया है।

(ग) यह कथन सत्य है। संविधान के तीसरे भाग में 6 मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। सरकार मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कानून नहीं बना सकती है और यदि बनाती है तो सर्वोच्च न्यायालय उसे रद्द
कर सकता है।

(घ) यह कथन गलत है। संविधान में केवल संस्थाओं का ही वर्णन नहीं किया जाता है बल्कि मूल्यों पर भी जोर दिया जाता है। भारत के संविधान की प्रस्तावना में संविधान के दर्शन व मूल्यों का वर्णन किया गया है। प्रस्तावना में भारत को प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया है। प्रस्तावना में न्याय, स्वतन्त्रता, समानता, बंधुता, व्यक्ति के गौरव, राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता आदि मूल्यों पर जोर दिया गया है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संविधान देश का सर्वोच्च कानून होता है। संविधान में किसी देश की शासन, राजनीति और समाज को चलाने वाले मौलिक कानून होते हैं। वह सरकार के साथ नागरिकों के सम्बन्ध भी निश्चित करता है, ऐसा कोई भी कानून नहीं बनाया जा सकता है जो संविधान के अनुकूल न हो।

प्रश्न 2.
भारत के संविधान का निर्माण किसके द्वारा किया गया और यह कब लागू किया गया?
उत्तर:
भारत के संविधान का निर्माण एक संविधान सभा द्वारा किया गया जिसकी स्थापना सन् 1946 में की गयी थी। संविधान सभा द्वारा संविधान को 26 नवम्बर, 1949 को पास किया गया था। यह 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ।

प्रश्न 3.
संविधान सभा के अध्यक्ष एवं सदस्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन दिसम्बर, 1946 को हुआ। इसके लिए डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा जो संविधान सभा के सदस्यों में सबसे अधिक (82 वर्ष) आयु के थे, को संविधान सभा का अस्थाई अध्यक्ष बनाया गया। 11 दिसम्बर, 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष चुन लिया गया। संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों का विवरण इस प्रकार है-

  1. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद,
  2. जवाहरलाल नेहरू,
  3. डॉ. बी. आर. अम्बेडकर,
  4.  सरदार बल्लभ भाई पटेल,
  5.  के. एम. मुंशी।

प्रश्न 4.
रंगभेद से क्या आशय है?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने 1948 से 1989 के बीच काले लोगों के साथ नस्ली अलगाव और खराब व्यवहार करने की नीति अपनायी जिसे रंगभेद कहते हैं।

प्रश्न 5.
भारत का संविधान 26 जनवरी को ही क्यों लागू किया गया?
उत्तर:
हमारे देश का संविधान, संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर, 1949 को पारित किया गया था लेकिन यह 26 जनवरी, 1950 से प्रभावी हुआ। इसे 26 जनवरी, 1950 को ही लागू किया गया। प्रश्न उत्पन्न होता है कि इसी तिथि को क्यों चुना गया? इस तिथि के चयन के पीछे भी देश का इतिहास है। दिसंबर 1929 को लाहौर अधिवेशने । में भारतीय नेशनल कांग्रेस (पार्टी) ने पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने का संकल्प लिया था और 26 जनवरी, 1930 को पहली बार तथा उसके उपरान्त हर वर्ष स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। यही कारण है कि हमारे नेताओं ने भारतीय संविधान लागू करने के लिए 26 जनवरी, 1950 की तिथि निश्चित की, जो भारतीय स्वतंत्रता का प्रतीक है।

प्रश्न 6.
प्रस्तावना का अर्थ बताएँ।।
उत्तर:
संविधान का वह प्रथम कथन जिसमें कोई देश अपने संविधान के आधारभूत मूल्यों और अवधारणाओं को स्पष्ट ढंग से कहता है, प्रस्तावना कहलाता है।

प्रश्न 7.
‘संविधान सभा’ से क्या आशय है?
उत्तर:
संविधान सभा से आशय किसी देश के लिए संविधान का निर्माण करने वाली सभा से लिया जाता है। एनसाइक्लोपीडिया ऑफ सोशल साइंसेज (Encyclopaedia of Social Sciences) के अनुसार संविधान सभा एक ऐसी प्रतिनिधि सभा होती है जिससे नवीन संविधान पर विचार करने और अपनाने या मौजूदा संविधान में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करने के लिए चुना जाए। भारत के संविधान का निर्माण करने के लिए संविधान सभा की स्थापना सन् 1946 में की गई थी।

प्रश्न 8.:
भारतीय संविधान के निर्माण में कितना समय लगा? संविधान में कितने अनुच्छेद एवं अनुसूचियाँ हैं?
उत्तर:
भारत के संविधान के निर्माण में 2 वर्ष, 11 माह तथा 18 दिन का समय लगा। संविधान सभा द्वारा संविधान को 26 नवम्बर, 1949 को पारित किया गया। भारत के संविधान में 395 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियाँ हैं।

प्रश्न 9.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में शामिल ‘समाजवाद’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
समाजवाद का अर्थ है भारत में शासन-व्यवस्था इस प्रकार चलाई जाए जिससे सभी वर्गों को, विशेष रूप से पिछड़े वर्गों को, अपने विकास के लिए उचित वातावरण तथा परिस्थितियाँ मिलें, आर्थिक असमानता कम हो और देश के विकास का फल थोड़े से लोगों के हाथों में न होकर समाज के सभी लोगों को मिले। इसका उद्देश्य सभी प्रकार के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक शोषण से छुटकारा है।
समाजवादी शब्द संविधान की प्रस्तावना में सन् 1976 में 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया था।

प्रश्न 10.
भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत की संविधान-सभा द्वारा भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया। इसका आशय यह है कि राज्य का कोई धर्म नहीं है और प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को मानने तथा उसका प्रचार करने की पूरी स्वतन्त्रता है। धर्म के आधार पर राज्य द्वारा नागरिकों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता।
राज्य द्वारा नागरिकों को किसी एक धर्म को मानने तथा उसके लिए दान अथवा चन्दा देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता। भारत में हिन्दू समुदाय बहुसंख्यक हैं किन्तु यहाँ तीन बार मुस्लिम एवं एक बार सिक्ख राष्ट्रपति
बन चुके हैं। इस उदाहरण से भारत की धर्मनिरपेक्षता प्रमाणित होती है।

प्रश्न 11.
‘यंग इण्डिया’ में गांधीजी ने 1931 में संविधान से अपनी क्या अपेक्षा प्रस्तुत की थी?
उत्तर:
मैं भारत के लिए ऐसा संविधान चाहता हूँ जो उसे गुलामी और अधीनता से मुक्त करे। मैं ऐसे भारत के लिए प्रयास करूंगा जिसे सबसे गरीब व्यक्ति भी अपना मानें और उसे लगे कि देश को बनाने में उसकी भी भागीदारी है। ऐसा भारत जिसमें लोगों का उच्च वर्ग और निम्न वर्ग न रहे, ऐसा भारत जिसमें सभी समुदाय के लोग पूरे मेल जोल से रहें।
ऐसे भारत में छुआछूत या शराब और नशीली चीजों के लिए कोई जगह न हो। औरतों को भी मर्दो जैसे अधिकार हो। मैं इससे कम पर संतुष्ट नहीं होगा।

प्रश्न 12.
भारत के संविधान निर्माता किन आदर्शों से प्रभावित थे?
उत्तर:
भारत के संविधान निर्माता फ्रांसीसी क्रांति के आदर्शों, ब्रिटेन के संसदीय लोकतंत्र के कामकाज और अमेरिका के अधिकारों की सूची से काफी प्रभावित थे। रूस में हुई समाजवादी क्रांति ने भी अनेक भारतीयों को प्रभावित किया और वे सामाजिक और आर्थिक समता पर आधारित व्यवस्था बनाने की कल्पना करने लगे थे।

प्रश्न 13.
भारतीय संविधान के आधारभूत मूल्य कौन-से हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान के आधारभूत मूल्य या दर्शन में भारत को प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय, स्वतन्त्रता, समानता, व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता को बढ़ावा दिया गया है।

प्रश्न 14.
भारतीय संविधान निर्माण की प्रक्रियाओं के बारे में वर्णन करें।
उत्तर:
जुलाई, 1946 में भारतीय संविधान सभा के लिए चुनाव हुए थे। संविधान सभा की प्रथम बैठक दिसम्बर, 1946 में हुई थी।
भारतीय संविधान सभा में 299 सदस्य थे। संविधान निर्माण के लिए 166 बैठकें हुईं और 114 दिनों तक इस पर चर्चा हुई। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान बनकर तैयार हो गया। इस निर्माण प्रक्रिया में 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन लगें। संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू कर दिया गया।

प्रश्न 15.
भारत के प्रमुख संविधान निर्माताओं के बारे में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भारत के संविधान सभा की अध्यक्षता की थी। संविधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए एक प्रारूप समिति का गठन किया गया था। प्रारूप समिति के सात सदस्य थे। प्रारूप समिति का अध्यक्ष डॉ. भीम राव अम्बेडकर को बनाया गया था। संविधान सभा के लिए 299 सदस्यों का चुनाव किया गया था।
संविधान के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेताओं में अबुल कलाम आजाद, टी.टी. कृष्णमचारी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जयपाल सिंह, एच. सी. मुखर्जी, जी. दुर्गाबाई देशमुख, बलदेव सिंह, कन्हैया मानिक लाल मुंशी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, भीम राव अम्बेडकर, जवाहर लाल नेहरू, सोमनाथ लाहिड़ी, सरदार बल्लभभाई पटेल, सरोजनी नायडू प्रमुख थीं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘भारतीय संविधान’ के आधारभूत ढाँचे से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
‘भारतीय संविधान संविधान के आधारभूत ढाँचे को स्पष्ट नहीं करता, परन्तु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘केशवानन्द भारती मुकदमे का निर्णय सुनाते हुए यह कहा था कि संविधान की प्रत्येक धारा में संशोधन किया जा सकता है। यद्यपि संविधान के मूल ढाँचे में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए। संविधान के मूल ढाँचे में निम्नलिखित बातों को शामिल किया जा सकता है

  1. विधानमण्डल, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के बीच शक्तियों का पृथक्करण।
  2.  संविधान का संघीय स्वरूप।
  3. संविधान की सर्वोच्चता।
  4. सरकार का गणतंत्रात्मक और लोकतंत्रीय स्वरूप।
  5. संविधान का धर्म-निरपेक्ष स्वरूप।

प्रश्न 2.
लचीले अथवा कठोर संविधान में अन्तर स्पष्ट कीजिए। भारत का संविधान लचीला है अथवा कठोर? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उस संविधान को लचीला संविधान कहते हैं जिसमें संविधान संशोधन उसी प्रक्रिया से किया जा सके जो एक साधारण कानून को पास करने के लिए अपनाई जाती है। जबकि कठोर संविधान उस संविधान को कहते हैं जिसमें संशोधन करने के लिए किसी विशेष प्रक्रिया को अपनाना पड़ता है। उसमें संशोधन साधारण कानून को पास करने की प्रक्रिया से नहीं किया जा सकता।
भारत का संविधान न तो पूरी तरह से लचीला है और न ही कठोर। यह अंशतः लचीला और अंशतः कठोर है। इसका कारण यह है कि संशोधन के कार्य के लिए भारत के संविधान को तीन भागों में बाँटा गया है

  1. संविधान की कुछ धाराओं में संसद अपने साधारण बहुमत से संशोधन कर सकती है।
  2.  कुछ धाराओं में संशोधन संसद के दोनों सदनों के दो-तिहाई बहुमत तथा आधे राज्यों की स्वीकृति से किया जा सकता है।
  3.  शेष धाराओं में संशोधन संसद के दोनों सदनों के दो-तिहाई बहुमत से किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
“26 जनवरी, 1950 को हम विरोधाभास से भरे जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं।” डॉ. अम्बेडकर उक्त पंक्तियों में क्या कहना चाह रहे हैं?
उत्तर:
26 जनवरी, 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ। इसी दिन संविधान निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने संविधान सभा में एक भाषण दिया। अपने निष्कर्ष भाषण में उन्होंने दलितों के समाज में असमान स्थान पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि राजनीति में दलित समानता का दर्जा पाएँगे किन्तु सामाजिक एवं आर्थिक स्तर पर 299 असमान रहेंगे।
उन्होंने कहा कि राजनीति में वे एक व्यक्ति एक वोट एक मूल्य के सिद्धान्त का पालन करेंगे। दूसरी ओर, उनके सामाजिक व आर्थिक जीवन में, वे एक व्यक्ति एक मूल्य के सिद्धान्त से वंचित रहेंगे और इस प्रकार वे विरोधाभास से भरे जीवन को जीते रहेंगे।

प्रश्न 4.
संविधान निर्माताओं ने संविधान संशोधन के लिए क्या प्रावधान किए हैं?
उत्तर:
भारत का संविधान एक विस्तृत दस्तावेज है। इसे वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक बनाए रखने के लिए इसमें अनेक बार संशोधन करने पड़ते हैं। भारत के संविधान निर्माताओं ने अनुभव किया कि इसे लोगों की आकांक्षाओं एवं समाज के बदलाव के अनुरूप होना चाहिए। उन्होंने इसे एक पवित्र, स्थाई एवं अपरिवर्तनीय कानून की नजर से नहीं देखा। इसलिए उन्होंने समय-समय पर इसमें बदलाव समाहित करने के लिए प्रावधान किया। इस बदलाव को संविधान संशोधन कहा जाता है।

प्रश्न 5.
हमारे लिए संविधान क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी भी देश के नागरिकों के लिए उस देश का संविधान महत्त्वपूर्ण होता है। संविधान सरकार की शक्तियों को निश्चित करता है तथा उन पर नियंत्रण लगाता है। संविधान सरकार के विभिन्न अंगों की शक्तियों को भी निश्चित करता है जिससे उनमें झगड़े की संभावना नहीं रहती। यह नागरिकों के अधिकारों तथा सरकार के साथ नागरिकों के सम्बन्ध भी निश्चित करता है।
संविधान के द्वारा लोग अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं तथा सरकार पर अंकुश लगा सकते हैं। संविधान के अभाव में शासन के सभी कार्य शासकों की इच्छानुसार ही चलाए जाएँगे, जिससे नागरिकों पर अत्याचार होने की संभावना बनी। रहेगी। ऐसे शासक से छुटकारा पाने के लिए नागरिकों को विद्रोह का सहारा लेना पड़ेगा जिससे देश में अशांति और अव्यवस्था का वातावरण बना रहेगा।

प्रश्न 6.
‘संविधान’ का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक देश का अपना संविधान होता है। संविधान उन मौलिक नियमों, सिद्धान्तों तथा परम्पराओं का संग्रह होता है, जिनके अनुसार राज्य की सरकार का गठन, सरकार के कार्य, नागरिकों के अधिकार तथा नागरिकों और सरकार के बीच सम्बन्ध को निश्चित किया जाता है। शासन का स्वरूप लोकतांत्रिक हो या अधिनायकवादी, कुछ ऐसे नियमों के अस्तित्व से इन्कार नहीं किया जा सकता जो राज्य में विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं तथा शासकों की भूमिका को निश्चित करते हैं। इन नियमों के संग्रह को ही संविधान कहा जाता है।
संविधान में शासन के विभिन्न अंगों तथा उसके पारस्परिक सम्बन्धों का विवरण होता है। इन सम्बन्धों को निश्चित करने हेतु कुछ नियम बनाए जाते हैं, जिनके आधार पर शासन का संचालन सुचारू रूप से संभव हो जाता है तथा शासन के विभिन्न अंगों में टकराव की संभावनाएँ कम हो जाती हैं।
संविधान के अभाव में शासन के सभी कार्य निरंकुश शासकों की इच्छानुसार ही चलाए जाएँगे जिससे नागरिकों पर अत्याचार होने की संभावना बनी रहेगी। ऐसे शासक से छुटकारा पाने के लिए नागरिकों को अवश्य ही विद्रोह का सहारा लेना पड़ेगा जिससे राज्य में अशांति तथा अव्यवस्था फैल जाएगी। इस प्रकार एक देश के नागरिकों हेतु एक सभ्य समाज एवं कुशल तथा मर्यादित सरकार का अस्तित्व एक संविधान की व्यवस्थाओं पर ही निर्भर करता है।

प्रश्न 7.
भारत में इस समय कुल कितने राज्य तथा संघीय-क्षेत्र हैं? उनके नाम बताइए। |
उत्तर:
भारत में इस समय कुल 29 राज्य तथा 7 संघीय-क्षेत्र हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं
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प्रश्न 8.
संविधान सभा में प्रस्तुत किए गए ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा की पहली बैठक में उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था। इस उद्देश्य प्रस्ताव में मुख्य रूप से निम्नलिखित बातें शामिल थीं|

  1. अल्पसंख्यक वर्गों, पिछड़ी जातियों, जनजातियों, दलित तथा अन्य पिछड़े वर्गों के हितों की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था की जाएगी।
  2. भारतीय गणतन्त्र की भौगोलिक अखण्डता तथा इसके भू-भाग, समुद्र तथा वायुमण्डल क्षेत्र पर इसकी प्रभुसत्ता की रक्षा न्यायोचित तथा सभ्य राष्ट्रों के कानूनों के अनुसार की जाएगी।
  3. यह राज्य विश्व शांति तथा मानव मात्र के कल्याण की उन्नति में अपना सम्पूर्ण तथा स्वैच्छिक योगदान करेगा। इस प्रस्ताव को संविधान सभा द्वारा सर्वसम्मति से पास कर दिया गया था।
  4. भारत एक प्रभुसत्ता-सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य होगा
  5. भारत ब्रिटिश भारत कहे जाने वाले क्षेत्र, भारतीय रियासतों के क्षेत्र और भारत के ऐसे अन्य क्षेत्र, जो इस समय ब्रिटिश भारत तथा भारतीय रियासतों के क्षेत्र से बाहर हैं और जो भारत में शामिल होना चाहते हैं, उन सबका एक संघ बनेगा।
  6.  स्वतन्त्र एवं प्रभुसत्ता-सम्पन्न भारत संघ और उसके अन्तर्गत आने वाले विभिन्न घटकों की शक्ति का स्रोत जनता होगी।
  7. भारत के सभी लोगों को सामाजिक, आर्थिक न्याय का आश्वासन, कानून के सामने समानता, विचार, विश्वास, धर्म, पूजा, व्यवसाय की स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होंगी।

प्रश्न 9.
भारत में संसदीय शासन-प्रणाली को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संसदीय शासन-प्रणाली, उस शासन प्रणाली को कहते हैं जिसमें राज्य का अध्यक्ष नाममात्र का अध्यक्ष होता है जबकि वास्तविक शासन का संचालन प्रधानमंत्री तथा मंत्रिमण्डल के अन्य सदस्यों द्वारा चलाया जाता है। मंत्रिमण्डल का निर्माण सांसदों में से किया जाता है और मंत्रिगण संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
भारत में राज्य का अध्यक्ष अर्थात् राष्ट्रपति नाममात्र का अध्यक्ष है। यद्यपि संविधान द्वारा उसे अनेक शक्तियाँ प्राप्त हैं परन्तु वह वास्तव में उनका प्रयोग नहीं करता। इसकी शक्तियों का वास्तविक प्रयोग मंत्रिमण्डल के सदस्यों द्वारा किया जाता है। यद्यपि शासन राष्ट्रपति के नाम पर चलाया जाता है, परन्तु उसका वास्तविक संचालन मंत्रिमण्डल द्वारा किया जाता है।
मंत्रिमण्डल का निर्माण संसद में से किया जाता है और इसके सदस्य संसद के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होते हैं। मंत्रिमण्डल के सदस्य उतने समय तक अपने पद पर बने रहते हैं जब तक उन्हें संसद में बहुमत का समर्थन प्राप्त रहता है।
उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि भारत में संसदीय शासन प्रणाली है।

प्रश्न 10.
भारत में संघीय शासन प्रणाली को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संघीय शासन व्यवस्था में शासन की शक्तियों का केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों के बीच विभाजन किया जाता है। भारतीय संविधान के अनुसार देश में संघीय सरकार की स्थापना की गयी है, जो इस प्रकार है

1. लिखित तथा कठोर संविधान- भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है जिसमें 395 धाराएँ हैं। इसके अतिरिक्त संविधान का एक भाग ऐसा है जिसमें संशोधन करने के लिए कम-से-कम आधे राज्यों की स्वीकृति
लेनी आवश्यक है। अतः यह एक कठोर संविधान है।

2. शक्तियों का विभाजन- संविधान द्वारा शासन की शक्तियों का तीन सूचियाँ-
1. संघीय सूची,
2. राज्य सूची तथा
3. समवर्ती सूची, में विभाजन किया गया है।

3. सर्वोच्च न्यायालय- संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करने के लिए एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गयी है।

4. द्विसदनीय विधानमण्डल- भारतीय संसद के दो सदन हैं–लोकसभा तथा राज्यसभा। लोकसभा में जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि बैठते हैं और राज्यसभा में राज्यों को प्रतिनिधित्व दिया गया है।
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि भारत में संघीय सरकार की व्यवस्था की गई है।

प्रश्न 11.
दक्षिण अफ्रीका हेतु नया संविधान बनाने में आने वाली कठिनाइयों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका में संविधान निर्माताओं को नया संविधान बनाने में निम्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ा

  1. अश्वेत बहुसंख्यक यह सुनिश्चित करने को आतुर थे कि बहुमत के लोकतंत्रात्मक सिद्धान्त के साथ कोई समझौता न किया जाए। वे मूलभूत सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों को पाना चाहते थे। गोरे अल्पसंख्यक अपने विशेषाधिकारों एवं संपत्ति की रक्षा करना चाहते थे।
  2.  दमन करने वालों एवं जिनका दमन किया गया था, दोनों समानता के आधार पर नए लोकतांत्रिक दक्षिण अफ्रीका में एक साथ रहने की योजना बना रहे थे।
  3.  गोरों एवं अश्वेतों में परस्पर विश्वास नहीं था। उन्हें अपने-अपने डर सता रहे थे। वे अपने हितों की रक्षा करना चाहते थे।

प्रश्न 12.
अफ्रीका सरकार की रंगभेद नीति का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
अफ्रीका अश्वेत लोगों के साथ निम्न रूप में रंगभेद नीति अपनायी जाती थी

  1. श्वेत एवं अश्वेत लोगों के लिए रेलगाड़ियाँ, बसें, टैक्सियाँ, होटल, अस्पताल, स्कूल व कॉलेज, पुस्तकालय, सिनेमा हाल, थियेटर, समुद्र तट, तरण ताल, जन-शौचालय आदि अलग-अलग थे।
  2.  यहाँ तक कि गिरजाघरों में भी उनका प्रवेश वर्जित था जहाँ पर श्वेत लोग पूजा करते थे।
  3. अश्वेतों को संगठन बनाने या इस भयानक बर्ताव का विरोध करने की अनुमति नहीं थी।
  4.  रंगभेद प्रणाली अश्वेतों के प्रति दमनकारी थी।
  5.  उन्हें गोरे लोगों के लिए आरक्षित क्षेत्रों में रहने की मनाही थी।
  6. वे गोरे लोगों के लिए आरक्षित क्षेत्रों में तभी काम कर सकते थे जब उनके पास इसका अनुमतिपत्र हो।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति के विरुद्ध लोगों के संघर्ष का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका में यूरोपीय लोगों द्वारा अश्वेत लोगों के साथ रंगभेद की नीति अपनायी गयी थी। यूरोप की दक्षिण अफ्रीका में व्यापार करने वाली कम्पनियों ने 17वीं एवं 18वीं शताब्दी में बलपूर्वक इस देश पर अधिकार कर लिया और वहाँ की शासक बन गयी। रंगभेद की नीति के आधार पर दक्षिण अफ्रीकी लोगों को श्वेत और अश्वेत में बाँट दिया गया। दक्षिण अफ्रीका के मूल निवासी काले रंग के हैं। ये पूरी आबादी का तीन-चौथाई हिस्सा थे और इन्हें अश्वेत कहा जाता था। इन दो समूहों के अतिरिक्त (श्वेत एवं अश्वेत) मिश्रित नस्ल वाले लोग भी थे जिन्हें रंगीन चमड़ी वाले कहा जाता था। गोरे (श्वेत) अल्पसंख्यक लोगों ने सरकार बनाई और रंगभेद की नीति अपनाई।
वे अश्वेतों को हीन समझते थे। अश्वेतों को वोट का अधिकार नहीं दिया गया था। रंगभेद नीति अश्वेतों के लिए विशेष रूप से दमनकारी थी। उन्हें गोरों के लिए आरक्षित क्षेत्रों में रहने का अधिकार नहीं था। वे गोरों के लिए आरक्षित क्षेत्रों में तभी काम कर सकते थे यदि उनके पास उसका अनुमति-पत्र हो। श्वेत एवं अश्वेत लोगों के लिए रेलगाड़ियों, बसें, टैक्सियाँ, होटल, अस्पताल, स्कूल व कॉलेज, पुस्तकालय, सिनेमा हाल, थियेटर, समुद्र तट, तरण ताल, जन-शौचालय आदि अलग-अलग थे। यहाँ तक कि गिरजाघरों में भी उनका प्रवेश वर्जित था जहाँ पर श्वेत लोग पूजा करते थे। अश्वेतों को संगठन बनाने या इसे भयानक बर्ताव का विरोध करने की अनुमति नहीं थी।

1950 तक अश्वेत, रंगीन चमड़ी वाले लोग एवं भारतीय मूल के लोग रंगभेद नीति के विरुद्ध लड़ते रहे। उन्होंने विरोध यात्राएँ निकालीं एवं हड़तालें कीं। अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस नामक दल ने इस संघर्ष का नेतृत्व किया जिसने जल्दी ही गति पकड़ ली।
बढ़ते हुए विरोधों एवं संघर्षों से सरकार को यह अहसास हो गया कि वे अश्वेतों को और अधिक समय तक दमन करके अपने शासन के अधीन नहीं रख सकते अतः श्वेतों की हुकूमते अपनी नीतियाँ बदलने के लिए विवश हो गयीं। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद वाले कानून को समाप्त कर दिया गया। राजनैतिक दलों एवं संचार माध्यमों पर लगे प्रतिबन्ध हटा लिये गए। अश्वेतों के मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले नेता नेल्सन मण्डेला को 28 वर्ष तक जेल में बंद रखने के बाद मुक्त कर दिया गया।
26 अप्रैल, 1994 की अर्द्धरात्रि के बाद दक्षिण अफ्रीका गणराज्य में नया लाल ध्वज फहराया गया। इसने विश्व में एक नए लोकतन्त्र के जन्म को इंगित किया। इस तरह दक्षिण अफ्रीका में रंग-भेद की नीति अपनाने वाली सरकार का अन्त हो गया, जिससे वहाँ एक समान मानवाधिकार वाली लोकतांत्रिक सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ।

प्रश्न 2.
भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताओं को वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
(i) लिखित एवं विस्तृत संविधान- भारत का संविधान एक लिखित एवं विस्तृत संविधान है। इसमें 395 अनुच्छेद
और 12 अनुसूचियाँ हैं, जिन्हें 25 भागों में विभक्त किया गया है। अब तक इसमें 100 से अधिक संशोधन हो चुके हैं। भारत के संविधान को विश्व का सबसे विस्तृत संविधान कहा जाता है क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में 7, चीन के संविधान में 138, जापान के संविधान में 103 तथा कनाडा के संविधान में 197 अनुच्छेद हैं। इस संविधान के अनुसार भारत को एक प्रभुसत्ता-सम्पन्न, समाजवादी, धर्म निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य घोषित किया गया है।

(ii) इकहरी नागरिकता- अमेरिका जैसी संघात्मक शासन-व्यवस्था में नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता है। एक ओर नागरिक अपने इकाई राज्य का नागरिक है और दूसरी ओर संघ का। परन्तु भारत में ऐसा नहीं है। भारत का नागरिक संघ या केंद्र दोनों का ही नागरिक है। कश्मीरी, गुजराती, पंजाबी, मद्रासी सभी भारतीय नागरिक हैं। यह इकहरी नागरिकता भारतीय संविधान की एकात्मक भावना का प्रमाण है।

(iii) संयुक्त चुनाव प्रणाली तथा वयस्क मताधिकार- अंग्रेजी शासनकाल में भारत में सांप्रदायिक चुनाव प्रणाली को लागू किया गया था। हिन्दू मतदाता हिन्दुओं को चुनते थे, मुसलमान मतदाता मुसलमानों को लेकिन नए संविधान ने यह सांप्रदायिक चुनाव प्रणाली समाप्त कर दी है। अब किसी भी क्षेत्र में हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई कोई भी उम्मीदवार खड़ा हो सकता है। सभी सम्प्रदायों के लोग मतदान करते हैं। प्रत्येक मतदाता उस क्षेत्र में खड़े किसी भी उम्मीदवार को मत दे सकता है। वयस्क मताधिकार का अर्थ है कि एक निश्चित आयु पर पहुँचने पर हर नागरिक को मत देने का अधिकार दिया जाता है। भारत में 18 वर्ष की आयु का प्रत्येक नागरिक मत देने का अधिकार रखता है।

(iv) अंशतः कठोर तथा अंशतः लचीला संविधान- भारतीय संविधान कठोर तथा लचीले संविधान का मिला जुला रूप है। एक ओर तो उसने राज्यों के नाम बदलने, उनकी सीमाओं में परिवर्तन करने, नए राज्यों का गठन करने, भारतीय नागरिकता के नियम निश्चित करने आदि के मामलों में संसद को साधारण बहुमत से ही संशोधन करने की शक्ति दी है। दूसरी ओर राष्ट्रपति के निर्वाचन के तरीके, केन्द्र तथा राज्यों के बीच अधिकार क्षेत्र के मामले, सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की शक्तियों तथा अधिकार क्षेत्र आदि से संबंधित मामले संसद के दो-तिहाई बहुमत से संशोधन होने पर कम-से-कम आधे राज्यों के विधानमंडलों द्वारा उनका अनुमोदन होना जरूरी है। शेष मामलों में संसद के 2/3 बहुमत से संशोधन किया जा सकता है। संशोधन की यह प्रक्रिया ब्रिटेन के संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया की तरह सरल अथवा लचीला न होने पर भी संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान जितनी कठोर नहीं है।

(v) संसदीय शासन-प्रणाली- भारतीय संविधान की एक मुख्य विशेषता यह भी है कि यह संसदीय सरकार की।
स्थापना करता है। भारत का राष्ट्रपति केवल नाममात्र का राज्य अध्यक्ष है। शासन उसके नाम पर चलता है, परन्तु शासन का कार्य वास्तव में प्रधानमन्त्री अपने मंत्रिमण्डल की सहायता से करता है। प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमण्डल विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी होता है। यदि मंत्रिमण्डल विधानमण्डल में बहुमत का समर्थन खो बैठे तो (प्रधानमंत्री सहित सारे मंत्रिमण्डल को) त्याग-पत्र देना पड़ता है।

(vi) धर्म-निरपेक्ष राज्य- संविधान के अनुसार भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है। राज्य की दृष्टि में सब धर्म समान
हैं। नागरिकों को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को मानने और उसका प्रचार करने का अधिकार है। धर्म के नाम पर किसी भी व्यक्ति को किसी भी अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा। सरकार अपनी नीति के निर्धारण 303 में किसी धर्म-विशेष का अनुसरण नहीं करेगी। धर्म-निरपेक्षता का अर्थ धर्म-विरोध नहीं है। सरकार सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखती है, यही धर्म-निरपेक्षता है। संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है।

प्रश्न 3.
उन परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए जिसमें भारत के संविधान का निर्माण हुआ।
उत्तर:

  1. विभाजन संबंधित हिंसा में सीमा के दोनों ओर लगभग 10 लाख लोग मारे गए थे।
  2. अंग्रेजों ने रियासतों के शासकों को उनकी इच्छा पर छोड़ दिया था कि वे भारत में विलय चाहते हैं या पाकिस्तान में अथवा वे स्वतन्त्र रहना चाहते हैं। इन रियासतों का विलय कठिन एवं अनिश्चय भरा काम था।
  3.  भारत जैसे विशाल एवं विविधता भरे देश के लिए संविधान बनाना कोई आसान काम नहीं था। उस समय भारत देश के लोग प्रजा की हैसियत से नागरिक की हैसियत पाने जा रहे थे।
  4. देश ने अभी-अभी धार्मिक विविधताओं के आधार पर विभाजन झेला था। यह भारत एवं पाकिस्तान के लोगों के लिए एक डरावना अनुभव था।

प्रश्न 4.
“संविधान सभा ने एक व्यवस्थित, खुले एवं सहमतिपूर्ण तरीके से कार्य किया।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सर्वप्रथम कुछ मूलभूत सिद्धान्त निर्धारित किए गए और उन पर सहमति कायम हुई। तत्पश्चात् डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता वाली एक प्रारूप कमेटी ने परिचर्चा के लिए संविधान का मसौदा तैयार किया। संविधान के मसौदे की एक-एक धारा पर गहन चर्चा के कई दौर हुए। दो हजार से अधिक संशोधनों पर विचार किया गया। ।
सदस्यों ने 3 वर्षों के दौरान 114 दिन विचार-विमर्श किया। सभा में प्रस्तुत किए गए प्रत्येक दस्तावेज और संविधान सभा में बोले गए प्रत्येक शब्द को रिकार्ड रखा गया और सहेज कर रखा गया। इन्हें ‘कांस्टीट्युएंट असेम्बली डीबेट्स’ कहा जाता है। मुद्रण के उपरान्त ये 12 विशाल खण्डों में समाहित हैं। इन अभिभाषणों (डीबेट्स) की सहायता से प्रत्येक प्रावधान के पीछे की सोच और तर्क को समझा जा सकता है। इनका प्रयोग संविधान के अर्थ की व्याख्या करने के लिए किया जाता है।
उपरोक्त के प्रकाश में हम कह सकते हैं कि भारत की संविधान सभा ने एक व्यवस्थित, खुले एवं सहमतिपूर्ण तरीके से कार्य किया।

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की शुरुआत प्रस्तावना से होती है जिसमें संविधान के मूल आदर्शों और उद्देश्यों का वर्णन किया गया है। प्रस्तावना किसी भी संविधान का प्रारम्भिक कथन होता है जिसमें उसके निर्माण के कारणों का उल्लेख किया जाता है तथा उन उद्देश्यों एवं आकांक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन किया जाता है, जिन्हें वह प्राप्त करना चाहता है।
संविधान की प्रस्तावना एक ऐसा झरोखा होती है जिसमें संविधान के निर्माताओं की भावनाओं तथा उनकी आशाओं का दृश्य देखा जा सकता है। इसी कारण से भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान निर्माताओं के दिलों की कुंजी कहा जाता है।

यद्यपि प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं होता, क्योंकि संविधान का आरम्भ उसके बाद होता है, परन्तु कई देशों में संसद को प्रस्तावना में संशोधन करने का अधिकार प्राप्त होता है। भारतीय संसद को भी यह अधिकार प्राप्त है। सन् 1976 में भारतीय संसद ने प्रस्तावना में संशोधन करके इसमें समाजवादी’ तथा ‘धर्म-निरपेक्ष’ शब्द जोड़ दिए थे। इसके अतिरिक्त जहाँ, ‘राष्ट्र की एकता’ के शब्द का प्रयोग किया गया, वहाँ ‘एकता तथा अखण्डता’ का भी प्रयोग किया गया।
संविधान की प्रस्तावना इसलिए महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि इसमें उन उद्देश्यों-आकांक्षाओं एवं आदर्शों का वर्णन किया जाती है जिन्हें वह प्राप्त करना चाहती है। इसमें संविधान के स्रोतों को उल्लेख किया गया होता है तथा उस तिथि का भी उल्लेख किया जाता है जब संविधान को स्वीकार और अधिनियमित किया जाता है।

प्रश्न 6.
‘भारत एक प्रभुसत्ता सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतंत्रीय गणराज्य है।” व्याख्या करो।
उत्तर:
भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक प्रभुसत्ता सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतंत्रीय गणराज्य घोषित किया गया है।

(i) सम्पूर्ण प्रभुसत्ता सम्पन्न- सम्पूर्ण-प्रभुसत्ता सम्पन्न का आशय यह है कि भारत एक स्वतन्त्र देश है और इस पर आन्तरिक एवं बाह्य दृष्टि से किसी विदेशी शक्ति का अधिकार नहीं है। भारत का संयुक्त-राष्ट्र संघ तथा राष्ट्रमण्डल का सदस्य होना इसकी प्रभुसत्ता पर कोई प्रभाव नहीं डालता।
इस बात को स्पष्ट करते हुए पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “भारत एक क्षण के लिए भी राष्ट्रमण्डल में रहने के लिए बाध्य नहीं है। हम अपनी इच्छा से राष्ट्रमण्डल के सदस्य बने हैं और अपनी इच्छानुसार उसे छोड़ सकते हैं। कोई भी ताकत हमें अपनी इच्छा के विरुद्ध उसका सदस्य बने रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकती।

(ii) समाजवादी- समाजवादी शब्द प्रस्तावना में 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया है। इसका अर्थ है कि भारत में | शासन-व्यवस्था इस प्रकार चलाई जाए कि सभी वर्गों की विशेष रूप से पिछड़े वर्गों को अपने विकास के लिए उचित वातावरण तथा परिस्थितियाँ मिलें, आर्थिक असमानता कम हो और देश के विकास का फल थोड़े-से लोगों के हाथों में न होकर समाज के सभी लोगों को मिले।

(iii) धर्म-निरपेक्ष- धर्म-निरपेक्ष शब्द भी प्रस्तावना में सन् 1976 में 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया है। इसका अर्थ है कि देश के सभी नागरिकों को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को अपनाने तथा उसका प्रचार करने की स्वतन्त्रता है।
राज्य-धर्म के आधार पर नागरिकों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं कर सकता और राज्य किसी विशेष धर्म की किसी विशेष रूप से सहायता नहीं कर सकता। धर्म के आधार पर किसी भी सरकारी शिक्षा संस्था में किसी को दाखिला लेने से इंकार नहीं किया जा सकता।

(iv) लोकतंत्रीय- लोकतंत्रीय शब्द का अर्थ यह है कि शासन-शक्ति किसी एक व्यक्ति या वर्ग विशेष के हाथों में न होकर समस्त जनता के हाथों में है। शासन चलाने के लिए जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है जो अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी है।
देश के प्रत्येक नागरिक को, चाहे वह किसी धर्म, जाति अथवा स्थान से सम्बन्ध रखता हो, सभी राजनीतिक अधिकार समान रूप से प्रदान किए हैं।
गणराज्य- गणराज्य का अर्थ यह है कि भारत में राज्य के अध्यक्ष का पद वंशक्रमानुगत नहीं है, बल्कि राज्य का अध्यक्ष-राष्ट्रपति एक निश्चित काल के लिए जनता के प्रतिनिधियों द्वारा निर्वाचित किया जाता है। इंग्लैण्ड तथा जापान लोकतंत्रीय राज्य होते हुए भी गणराज्य नहीं है, क्योंकि इन देशों में राजा को पद पैतृक आधार पर चलता है और वह जनता अथवा उनके प्रतिनिधियों द्वारा निश्चित काल के लिए निर्वाचित नहीं किया जाता।

प्रश्न 7.
भारत के संविधान के प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान की प्रस्तावना से यह बात स्पष्ट होती है कि संविधान द्वारा निम्न उद्देश्यों की पूर्ति होती है

 राष्ट्र की एकता व अखण्डता- भारतीय संविधान के निर्माता अंग्रेजों की ‘फूट डालो व शासन करो’ की नीति से अच्छी प्रकार परिचित थे। इसीलिए उनके मन और मस्तिष्क में राष्ट्र की एकता का विचार बहुत प्रबल था। इसी कारण से संविधान की प्रस्तावना में राष्ट्र की एकता को बनाए रखने की घोषणा की गई है।
इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही भारत को एक धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है तथा इकहरी नागरिकता के सिद्धान्त को अपनाया गया है। समस्त देश का एक ही संविधान है और प्रमुख 22 भाषाओं को संविधान द्वारा मान्यता प्रदान की गई है। संविधान के 42वें संशोधन द्वारा राष्ट्र की ‘एकता’ के साथ ‘अखण्डता’ शब्द को जोड़ दिया गया है।

स्वतन्त्रता- भारतीय संविधान का उद्देश्य नागरिकों को केवल न्याय दिलाना ही नहीं, बल्कि उनकी स्वतंत्रता को भी सुनिश्चित करना है, जो व्यक्ति के जीवन के विकास के लिए आवश्यक मानी जाती है। संविधान की प्रस्तावना में नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास तथा उपासना की स्वतन्त्रता का अश्वासन दिया गया है। इसकी पूर्ति संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के द्वारा की गई है।

समानता- प्रस्तावना में सामाजिक स्तर तथा अवसर की समानता का उल्लेख किया गया है। स्तर की समानता का अर्थ यह है कि कानून की दृष्टि में देश के सभी नागरिक समान हैं तथा सभी को कानून की समान सुरक्षा प्राप्त है। समाज में किसी को कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है और धर्म, रंग, लिंग आदि के आधार पर नागरिकों में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।
इन बातों का स्पष्टीकरण संविधान की धाराओं 14 से 18 के द्वारा किया गया है। धारा 14 के अन्तर्गत सभी नागरिकों को कानून के सामने समानता तथा सुरक्षा प्रदान की गई है। धारा 15 में यह कहा गया है कि राज्य किसी नागरिक के साथ धर्म, रंग, जाति तथा लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। धारा 16 के द्वारा सभी नागरिकों को अवसर की समानता प्रदान की गई है। धारा 17 के द्वारा छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है तथा धारा 18 के द्वारा शिक्षा तथा सेना की उपाधियों को छोड़ अन्य सभी उपाधियों को समाप्त कर दिया गया है।

बंधुता- संविधान की प्रस्तावना में बंधुता की भावना को विकसित करने पर भी बल दिया गया है। भारत जैसे देश के लिए जिसमें दासता के लम्बे काल के कारण धर्म, जाति व भाषा आदि के आधार पर भेदभाव उत्पन्न हो गए थे, बंधुता की भावना के विकास का विशेष महत्त्व है। इसी उद्देश्य से साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली तथा छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है।
इसके साथ ही प्रस्तावना में व्यक्ति की गरिमा (Dignity of Individual) शब्दों को रखा जाना इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति का व्यक्तित्व बहुत पवित्र है। इसी धारणा से देश के सभी नागरिकों को समान मौलिक अधिकार दिए गए हैं।

सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय- संविधान का उद्देश्य यह है कि देश के सभी नागरिकों को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र–सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक क्षेत्रों में न्याय मिले। इस बहुमुखी न्याय से ही नागरिक अपने जीवन का पूर्ण विकास कर सकता है।

सामाजिक न्याय का अर्थ है कि किसी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, जन्म-स्थान, रंग तथा लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए देश के सभी नागरिकों के लिए संविधान के द्वारा समानता का अधिकार सुरक्षित किया गया है। देश के सभी नागरिक कानून के सामने समान हैं। सार्वजनिक स्थानों पर जाने के लिए नागरिकों में रंग, जाति तथा धर्म आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। सरकारी नौकरी पाने के क्षेत्र में सबको समानता के आधार पर स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है।

आर्थिक न्याय का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को अपनी आजीविका कमाने के समान तथा उचित अवसर प्राप्त हों तथा उन्हें अपने कार्य के लिए उचित वेतन मिले। आर्थिक न्याय के लिए यह आवश्यक है कि उत्पादन तथा वितरण के साधन थोड़ेसे व्यक्तियों के हाथों में न होकर समाज के हाथों में हो और उनका प्रयोग समस्त समाज के हितों को ध्यान में रखकर किया जाए। आर्थिक न्याय के इस लक्ष्य की प्राप्ति समाजवादी ढाँचे के समाज की स्थापना के आधार पर ही की जा सकती है।

राजनीतिक न्याय का अर्थ है कि राज्य के सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के सभी राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों। भारत में वयस्क मताधिकार प्रणाली को अपनाकर इस व्यवस्था को लागू किया गया है। धर्म, जाति, रंग तथा लिंग आदि के आधार पर नागरिकों को राजनीतिक अधिकार देने में कोई भेदभाव नहीं किया गया है और साम्प्रदायिक चुनाव-प्रणाली का अन्त कर दिया गया है।

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