UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 8 तुमुल (खण्डकाव्य)

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प्रश्न 1
तुमुल’ खण्डकाव्य का कथानक या सारांश संक्षेप में लिखिए। [2010, 11, 12, 13, 14, 17, 18]
या
‘तुमुल’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए। (2016)
उत्तर
श्री श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘तुमुल’ खण्डकाव्य का कथानक पौराणिक आख्यान के आधार पर लिखा गया है। इसमें लक्ष्मण-मेघनाद के युद्ध का वर्णन है, जिसे पन्द्रह सर्गों में विभक्त किया गया है। कथानक का सर्गानुसार संक्षेप निम्नलिखित है-

प्रथम सर्ग ( ईश-स्तवन) में कवि ने मंगलाचरण के रूप में ईश्वर की स्तुति की है, जिसमें निराकार, निर्गुण और सर्वशक्तिमान ईश्वर की सर्वव्यापकता पर प्रकाश डाला गया है।

द्वितीय सर्ग ( दशरथ-पुत्रों का जन्म एवं बाल्यकाल ) में कवि ने राजा दशरथ के चार पुत्रों के जन्म एवं बाल्यकाल का वर्णन किया है। राजा दशरथ के राम्, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न चार पुत्र उत्पन्न हुए। इन भाइयों में परस्पर प्रगाढ़ प्रेम था। इनके बचपन की लीलाएँ राजमहल की शोभा को द्विगुणित कर देती हैं। राम एवं लक्ष्मण का जन्म राक्षसों के विनाश एवं साधु-सन्तों को अभयदान देने के लिए ही हुआ था। राजा दशरथ नीतिज्ञ, सुख-शान्ति में विश्वास रखने वाले तथा सच्चरित्र थे।

तृतीय सर्ग ( मेघनाद) में रावण के पराक्रमी पुत्र मेघनाद के व्यक्तित्व का वर्णन किया गया है। वह अत्यन्त संयमी, धीर, पराक्रमी, उदार और शीलवान् था। युद्ध में उसके सामने टिकने का किसी में साहस न था।

चतुर्थ सर्ग (मकराक्ष-वध) में ‘मकराक्ष के वध’ की कथा और रावण द्वारा मेघनाद की शौर्य-गाथा वर्णित है। राम से संग्राम में मकराक्ष मारा गया था। इससे रावण बहुत भयभीत और चिन्तित हुआ। उसी समय उसे महाबली मेघनाद का स्मरण आता है; क्योंकि मेघनाद भी उसके समान ही पराक्रमी और वीर था।

पञ्चम सर्ग ( रावण का आदेश ) में रावण मेघनाद को बुलाकर मकराक्ष की मृत्यु का बदला लेने का आदेश देता है तथा मेघनाद के अतुल शौर्य का वर्णन करता है। उसके तेज से सारा सदन प्रकाशित हो रहा है। रावण बड़ी कठिनता से मेघनाद के सम्मुख अपनी व्यथा प्रकट करता हुआ कहता है कि हे पुत्र! राम से बदला न लेने में हमारी कायरता है। इसलिए मेरा आदेश है कि तुम युद्ध में लक्ष्मण को मृत्यु की गोद में सुला दो और राम को अपना बल दिखा दो तथा वानर-सेना को बाणों से बींध दो।

षष्ठ सर्ग ( मेघनाद-प्रतिज्ञा ) में मेघनाद सिंहनाद करता हुआ युद्ध में विजयी होने की प्रतिज्ञा करता है। मेघनाद के गर्जन से पूरा स्वर्ण-महल हिल उठता है। वह अपने पिता को आश्वस्त करता हुआ कहता है। कि हे पिता! मेरे होते हुए आप किसी प्रकार का शोक न करें। मैं अधिक न कहकर केवल इतना कहता हूँ कि यदि मैं आपके कष्ट को दूर न कर सकें तो मैं कभी धनुष को हाथ भी नहीं लगाऊँगा। यदि मैं युद्ध में विजयी न हुआ तो कभी जीवन में युद्ध का नाम न लूंगा।

सप्तम सर्ग ( मेघनाद का अभियान) में मेघनाद के युद्ध के लिए प्रस्थान करने का वर्णन है। रावण के सम्मुख प्रतिज्ञा करके मेघनाद जब युद्धक्षेत्र की ओर चलने लगा तो देवलोक के सभी देवता भय से काँपने लगे। मेघनाद ने युद्ध का रथ सजवाया तो पवन भयभीत हो गया, पर्वत काँपने लगा, पृथ्वी शोकाकुल हो गयी और सूर्य त्रस्त हो गया। युद्ध हेतु प्रस्थान करने से पूर्व मेघनाद ने यज्ञ किया और उसके बाद रथ पर बैठकर शत्रुओं से लोहा लेने चल पड़ा और रणभूमि में पहुँचकर सिंह की तरह गर्जना की।

अष्टम सर्ग (युद्धासन्न सौमित्र) में युद्ध के लिए प्रस्तुत लक्ष्मण का चित्रण है। मेघनाद की रण-गर्जना सुनकर शत्रु सेना भी भयंकर नाद करने लगी। राम की आज्ञा लेकर लक्ष्मण भी युद्ध के लिए तैयार होने लगे। युद्धातुर लक्ष्मण को देखकर हनुमान आदि वीर भी युद्ध हेतु तत्पर हो गये। लक्ष्मण ने क्षण भर में ही मेघनाद के सम्मुख मोर्चा ले लिया। शत्रु को सम्मुख देखकर मेघनाद युद्ध करने की ठानता है।

नवम सर्ग (लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध तथा लक्ष्मण की मूच्र्छा ) में लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध और लक्ष्मण के मूर्च्छित होने का वर्णन है। मेघनाद ने नम्र भाव से लक्ष्मण से कहा कि तुम्हारी अवस्था देखकर मैं तुमसे युद्ध करना नहीं चाहता, फिर भी आज मैं विवश हूँ; क्योंकि मैं अपने पिता से यह प्रतिज्ञा करके आया हूँ कि युद्ध में समस्त शत्रुओं का संहार करूंगा; अतः युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। यह सुनकर लक्ष्मण क्रुद्ध हो गये। उनके क्रोधयुक्त वचनों को सुनकर मेघनाद हँस पड़ा। मेघनाद के हँसने पर मानो लक्ष्मण के क्रोध की अग्नि में घी पड़ गया। दोनों ओर से भयंकर युद्ध होने लगा। लक्ष्मण के भीषण प्रहारों से मेघनाद की सेना के छक्के छूट गये। इसके बाद मेघनाद ने भीषण युद्ध किया और लक्ष्मण के द्वारा छोड़े गये सभी बाणों को नष्ट कर दिया। दोनों वीर सिंह के समान लड़ रहे थे। लक्ष्मण को कुछ शिथिल देखकर मेघनाद ने उन पर ‘शक्ति-बाण’ का प्रयोग कर दिया, जिससे लक्ष्मण मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े।

दशम सर्ग ( हनुमान द्वारा उपदेश) में हनुमान द्वारा दु:खी वानरों को समझाने का वर्णन है। लक्ष्मण के शक्ति-बाण लगने और उनके मूर्च्छित होने से देवताओं में खलबली मच गयी। वानर सेना अत्यधिक व्याकुल हो विलाप करने लगी। हनुमान ने वानरों को समझाया कि लक्ष्मण अंचेत हुए हैं। वीरों का विलाप करना उचित नहीं होता। हनुमान के उपदेश को सभी पर प्रभाव पड़ा और वे शोकरहित हो गये। दूसरी ओर कुटी में बैठे हुए श्रीराम का मन कुछ उदास था। उसी समय कुछ अपशकुन होने लगे, जिससे राम चिन्तित हो गये।

एकादश सर्ग ( उन्मन राम ) में राम की व्याकुलता का चित्रण है। कुटिया में बैठे श्रीराम विचार कर रहे हैं कि आज व्यर्थ ही मन में व्यथा क्यों जन्म ले रही है। उसी समय अंगद-हनुमान-सुग्रीव आदि मूच्छित लक्ष्मण को लेकर वहाँ आते हैं। लक्ष्मण को देखते ही राम पछाड़ खाकर गिर पड़ते हैं।

द्वादश सर्ग ( राम-विलाप और सौमित्र का उपचार) में राम के विलाप और लक्ष्मण के उपचार का वर्णन है। लक्ष्मण की दशा को देखकर राम विलाप करने लगे। उन्होंने कहा-हे लक्ष्मण! मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता।

राम की दु:खी दशा देखकर जांबवन्त जी ने बताया कि लंका में सुषेण नाम के कुशल वैद्य हैं, आप उन्हें सादर बुला लें। हनुमान क्षण भर में ही सुषेण वैद्य को लेकर आते हैं। सुषेण वैद्य कहते हैं कि संजीवनी बूटी के बिना लक्ष्मण की चिकित्सा नहीं हो सकती। हनुमान वायु के वेग से संजीवनी बूटी लाने के लिए चल पड़ते हैं और बूटी की पहचान न होने से हनुमान पूरे पर्वत को ही उठा लाते हैं। वैद्य के उपचार से लक्ष्मण पुनः सचेत होकर मुस्कराते हुए उठ जाते हैं।

त्रयोदशसर्ग( विभीषण की मन्त्रणा ) में विभीषण द्वारा राम को दिये गये परामर्श का वर्णन है। वह आकर राम को सूचना देता है कि मेघनाद निकुम्भिला पर्वत पर यज्ञ कर रहा है। यदि यज्ञ पूर्ण हो गया तो वह युद्ध में अजेय हो जाएगा। इसलिए लक्ष्मण को यज्ञ करते हुए मेघनाद पर तुरन्त आक्रमण कर देना चाहिए। राम के चरण छूकर लक्ष्मण ने मेघनाद का वध करने की प्रतिज्ञा की और ससैन्य युद्ध के लिए प्रस्थान किया।

चतुर्दशसर्ग ( यज्ञ-विध्वंस और मेघनाद-वध) में यज्ञ-विध्वंस और मेघनाद के वध का वर्णन है। लक्ष्मण ने ससैन्य यज्ञ-स्थल पर पहुँचकर मेघनाद पर बाण-वर्षा कर दी। लक्ष्मण के तीव्र बाण प्रहार से मेघनाद का रुधिर यज्ञ-भूमि में बहने लगा। उसके शरीर से इतना रक्त बहा कि यज्ञ की अग्नि भी बुझती प्रतीत हुई। लक्ष्मण को बाणों की वर्षा करता देखकर मेघनाद कहने लगा कि इस प्रकार छल-कपट से युद्ध करना वीरता का लक्षण नहीं है। मुझसे सम्मुख युद्ध में एक बार पराजित होने पर तुमने जो घृणित कार्य किया है, वह सर्वथा निन्दनीय है।

मेघनाद की यह धिक्कार सुनकर एक बार प्रत्यंचा पर आया हुआ लक्ष्मण का बाण रुक गया और सिर झुक गया, परन्तु विभीषण के उकसाने पर लक्ष्मण के तीक्ष्ण प्रहार से मेघनाद यज्ञ-भूमि में मारा गया।

पंचदश सर्ग ( राम की वन्दना ) में राम की वन्दना की गयी है। मेघनाद के शव को यज्ञ-भूमि में ही छोड़कर वानर सेना राम की ओर चली। युद्ध में लक्ष्मण की विजय का समाचार विभीषण ने राम को दिया।

लक्ष्मण अपनी प्रशंसा सुनकर राम की वन्दना करते हुए कहते हैं कि हे राम! जिस पर आपकी कृपा हो जाती है वह तो जग-विजेता हो ही जाता है।

इस प्रकार खण्डकाव्य की कथा पन्द्रह सर्गों में विभक्त होकर समाप्त होती है।

प्रश्न 2
‘तुमुल’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए। [2012, 15]
उत्तर
प्रथम सर्ग (ईश-स्तवन) इस सर्ग में कवि ने मंगलाचरण के रूप में ईश्वर की स्तुति की है, जिसमें निराकार, निर्गुण और सर्वशक्तिमान ईश्वर की सर्वव्यापकता पर प्रकाश डाला गया है।

प्रश्न 3
‘तुमुलखण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए। [2013, 15, 17]
उत्तर
द्वितीय सर्ग (दशरथ-पुत्रों का जन्म एवं बाल्यकाल)

इस सर्ग में कवि ने राजा दशरथ के चार पुत्रों के जन्म एवं बाल्यकाल का वर्णन किया है। राजा दशरथ के राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न चार पुत्र उत्पन्न हुए। इन भाइयों में परस्पर प्रगाढ़ प्रेम था। इनके बचपन की लीलाएँ राजमहल की शोभा को द्विगुणित कर देती हैं। राम एवं लक्ष्मण का जन्म राक्षसों के विनाश एवं साधु-सन्तों को अभयदान देने के लिए ही हुआ था। राम के छोटे भाई लक्ष्मण, नीतिज्ञ, ज्ञानी, गुणवान्, सच्चरित्र और उदार थे। वे शेषनाग के अवतार एवं पृथ्वी के आधार थे। इक्ष्वाकु वंश के महाराज दशरथ का यश संसार के कोने-कोने में फैला है। वे कर्तव्यपरायण, दानवीर तथा युद्ध विद्या में पारंगत हैं। युद्ध विद्या में उनकी समानता करने वाला कोई नहीं था। राजा दशरथ नीतिज्ञ, सुख-शान्ति में विश्वास रखने वाले तथा सच्चरित्र थे।

प्रश्न 4
‘तुमुल’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग को कथानक लिखिए। [2012]
उत्तर
तृतीय सर्ग (मेघनाद)

इस सर्ग में रावण के पराक्रमी पुत्र मेघनाद के व्यक्तित्व का वर्णन किया गया है। वह अत्यन्त संयमी, धीर, पराक्रमी, उदार और शीलवान था। उसने इन्द्र के पुत्र जयन्त को पराजित कर दिया था। युद्ध में उसके सामने टिकने का किसी में साहस न था।

प्रश्न 5
‘तुमुल’ के आधार पर ‘मकराक्ष-वध’ नामक चतुर्थ सर्ग के कथानक का सारांश लिखिए। [2010]
उत्तर
चतुर्थ सर्ग (मकराक्ष-वध) इस सर्ग में ‘मकराक्ष के वध’ की कथा और रावण द्वारा मेघनाद की शौर्य-गाथा वर्णित है। राम से युद्ध करते हुए संग्राम में मकराक्ष मारा गया था। उसके मारे जाने के बाद अन्य राक्षस युद्ध-स्थल छोड़कर भाग खड़े हुए। इससे रावण बहुत भयभीत और चिन्तित हुआ। उसी समय उसे महाबली मेघनाद का स्मरण आता है; क्योंकि मेघनाद भी उसके समान ही पराक्रमी और वीर था तथा युद्ध में राम और लक्ष्मण से निपटने में समर्थ था।

प्रश्न 6
‘तुमुल’ के आधार पर रावण का आदेश’ नामक पञ्चम सर्ग का सारांश लिखिए। [2009,14]
उत्तर
पञ्चम सर्ग (रावण का आदेश)। इस सर्ग में रावण मेघनाद को बुलाकर मकराक्ष की मृत्यु का बदला लेने का आदेश देता है। इसी सर्ग में रावण मेघनाद के अतुल शौर्य का वर्णन करता है तथा उसकी अजेय शक्ति के सम्मुख वह मकराक्ष की मृत्यु की भी भूल जाता है। रावण को अत्यधिक चिन्तित जानकर मेघनाद उसके पास आता है और उसके चरण-स्पर्श कर विनम्रभाव से बैठ जाता है। उसके तेज से सारा सदन प्रकाशित हो रहा है। रावण बड़ी कठिनता से मेघनाद के सम्मुख अपनी व्यथा प्रकट करता हुआ कहता है कि हे पुत्र! सम्पूर्ण राज्य में युद्ध के भय से हलचल मची हुई है। हमें युद्ध से किसी प्रकार भी भयभीत नहीं होना है। राम से बदला न लेने में हमारी कायरता है। इसलिए मेरा आदेश है कि तुम युद्ध में लक्ष्मण को मृत्यु की गोद में सुला दो और राम को अपना बल दिखा दो। इसके पश्चात् रावण मेघनाद के शौर्य की प्रशंसा करते हुए उसे युद्ध के लिए भेज देता है और कहता है कि मकराक्ष का बदला युद्ध में जीत के साथ लेना चाहिए और वानर-सेना को बाणों से बांध देना चाहिए।

प्रश्न 7
‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘मेघनाद-प्रतिज्ञा’ नामक षष्ठ सर्ग का सारांश लिखिए। [2010, 13, 18] |
या
‘तुमुल’ खण्डकाव्य के ‘मेघनाद-प्रतिज्ञा’ सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए। [2016]
उत्तर
षष्ठ सर्ग (मेघनाद-प्रतिज्ञा) इस सर्ग में मेघनाद सिंहनाद करता हुआ युद्ध में विजयी होने की प्रतिज्ञा करता है। मेघनाद के गर्जन से पूरा स्वर्ण-महल हिल उठता है। वह अपने पिता को आश्वस्त करता हुआ कहता है कि हे पिता! मेरे होते हुए आप किसी भी प्रकार का शोक न करें। मैं अधिक न कहकर केवल इतना कहता हूँ कि यदि मैं आपके कष्ट को दूर न कर सकें तो मैं कभी धनुष को हाथ भी नहीं लगाऊँगा। मैं राम के सम्मुख होकर युद्ध करूंगा और लक्ष्मण की शक्ति को भी देख लूंगा। यदि शत्रु आकाश में भी वास करने लगे अथवा पाताल में भी जाकर छिप जाये. तो भी उसके प्राणों की रक्षा न हो सकेगी। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं अवश्य ही विजयश्री को प्राप्त करूंगा। यदि मैं युद्ध में विजयी न हुआ तो कभी जीवन में युद्ध का नाम न लूंगा।

प्रश्न 8
‘तुमुल’ खण्डकाव्य के ‘मेघनाद-अभियान’ सर्ग का सारांश लिखिए। [2018]
उत्तर

सप्तम सर्ग (मेघनाद का अभियान)

इस सर्ग में मेघनाद के युद्ध के लिए प्रस्थान करने का वर्णन है। रावण के सम्मुख प्रतिज्ञा करके मेघनाद जब युद्धक्षेत्र की ओर चलने लगा तो देवलोक के सभी देवता भय से काँपने लगे। उस समय मेघनाद का मुख क्रोध से लाल हो गया था। उसकी हुंकार से बड़े-बड़े धैर्यशाली वीरों का साहस छूटने लगा। सेनापति मेघनाद के क्रोध का कारण पूछने लगे। मेघनाद ने युद्ध का रथ सजवाया तथा युद्ध के वाद्य बजाने का आदेश दिया तो पवन भयभीत हो गया, पर्वत काँपने लगा, पृथ्वी शोकाकुल हो गयी और सूर्य त्रस्त हो गया। युद्ध हेतु प्रस्थान करने से पूर्व मेघनाद ने यज्ञ किया और उसके बाद रथ पर बैठकर शत्रुओं से लोहा लेने चल पड़ा। उसकी शक्ति का अनुमान करके देवता आपस में विचार करने लगे कि अब मेघनाद के सम्मुख राम-लक्ष्मण के प्राण कैसे बच सकेंगे? देवता चिन्तित होकर बातचीत कर ही रहे थे कि मेघनाद ने रणभूमि में पहुँचकर सिंह की तरह गर्जना की।

प्रश्न 9
‘तुमुल’ के ‘युद्धासन्न सौमित्र’ नामक अष्टम सर्ग का सारांश लिखिए। [2017]
उत्तर

अष्टम सर्ग (युद्धासन्न सौमित्र)

इस सर्ग में युद्ध के लिए प्रस्तुते लक्ष्मण का चित्रण है। मेघनाद की रण-गर्जना सुनकर शत्रु सेना भी भयंकर नाद करने लगी। राम की आज्ञा लेकर लक्ष्मण भी युद्ध के लिए तैयार होने लगे। युद्धातुर लक्ष्मण को देखकर हनुमान आदि वीर भी युद्ध हेतु तत्पर हो गये। लक्ष्मण ने क्षण भर में ही मेघनाद के सम्मुख मोर्चा ले लिया। दोनों वीरों में से कौन विजयी होगा, इसका अनुमान नहीं किया जा सकता था। मेघनाद के उन्नत ललाट, लम्बी भुजाओं और वीरवेश को देखकर स्वयं लक्ष्मण उसकी प्रशंसा करने लगे। लक्ष्मण ने कहा कि तुम्हें अपने सामने देखकर भी युद्ध करने की इच्छा नहीं होती। मुझे चिन्ता है कि मैं अपने बाणों से तेरी छाती को कैसे छलनी करूंगा? मेघनाद लक्ष्मण के मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर उंनकी उदारता के विषय में विचार करने लगा। यद्यपि वह लक्ष्मण के ज्ञान की गरिमा को समझता है, फिर भी शत्रु समझकर उनकी मधुर वाणी के जाल में उलझना नहीं चाहता और युद्ध करने की ठानता है।

प्रश्न 10
तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर मेघनाद-लक्ष्मण युद्ध का वर्णन कीजिए। [2010, 13, 15, 16]
या
‘तुमुल’ खण्डकाव्य के ‘लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध’ तथा ‘लक्ष्मण की मूच्र्छा’ नामक नवम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए। [2009, 11, 12, 13, 14]
या
‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर मेघनाद की वीरता का वर्णन कीजिए।
या
‘तुमुल’ खण्डकाव्य के किसी एक सर्ग की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए। [2009, 13]
या
‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नवम् सर्ग का सारांश लिखिए। [2017, 18]
उत्तर
नवम सर्ग (लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध तथा लक्ष्मण की मूच्र्छा) | इस सर्ग में लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध और लक्ष्मण के मूर्च्छित होने का वर्णन है। मेघनाद ने नम्र भाव से लक्ष्मण से कहा कि जो कुछ भी तुमने कहा है, मैं उसे सत्य ही मानता हूँ; क्योंकि तुम नीतिज्ञ हो तथा सर्वज्ञ भी हो। तुम्हारी अवस्था देखकर मैं भी तुमसे युद्ध करना नहीं चाहता, फिर भी आज मैं विवश हूँ; क्योंकि मैं अपने पिता से यह प्रतिज्ञा करके आया हूँ कि युद्ध में समस्त शत्रुओं का संहार करूंगा। तुम्हारी इच्छा लड़ने । की हो या न हो, तुम मेरी प्रतिज्ञा को सफल करने में मेरी सहायता करो। मैं बिना लड़े यहाँ से नहीं जाऊँगा, अतः युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। यह सुनकर लक्ष्मण क्रुद्ध हो गये। उनके क्रोध को देखकर सम्पूर्ण संसार थर्राने लगी। उन्होंने मेघनाद से कहा-अरे अधम! मैंने तुमसे अपने मन का भाव न जाने क्यों कह दिया। जिस प्रकार दूध पीने पर भी सर्प अपना विष नहीं त्यागते, उसी प्रकार यह सत्य ही है कि मधुर वाणी से दुष्टजन कभी नहीं सुधरते। उनके क्रोधयुक्त वचनों को सुनकर मेघनाद हँस पड़ा। मेघनाद के हँसने पर मानो लक्ष्मण के क्रोध की अग्नि में घी पड़ गया। दोनों ओर से भयंकर युद्ध होने लगा। लक्ष्मण के भीषण प्रहारों से मेघनाद की सेना के छक्के छूट गये। भागते हुए सैनिकों को रोककर उनका उत्साह बढ़ाते हुए मेघनाद ने कहा कि मेरे युद्ध-कौशल को भी देखो। मैं शीघ्र ही इनको परास्त कर दूंगा। मैंने पिता के सम्मुख जो प्रतिज्ञा की है, उसे पूरा करूंगा।’ इसके बाद मेघनाद ने भीषण युद्ध किया और लक्ष्मण के द्वारा छोड़े गये सभी बाणों को नष्ट कर दिया। दोनों वीर सिंह के समान लड़ रहे थे। दोनों के शरीर रक्त से लथपथ थे। लक्ष्मण को कुछ शिथिल देखकर मेघनाद ने उन पर ‘शक्ति-बाण’ का प्रयोग कर दिया, जिससे लक्ष्मण मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। पृथ्वी पर मूर्च्छित पड़े लक्ष्मण को देखकर मेघनाद सिंह-गर्जना करता हुआ और भागती हुई कपि सेना को मारता हुआ लंका की ओर चल पड़ा।

प्रश्न 11
तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर हनुमान द्वारा दिये गयें उपदेश का वर्णन कीजिए। [2010]
उत्तर
दशम सर्ग (हनुमान द्वारा उपदेश) इस सर्ग में हनुमान द्वारा दु:खी वानरों को समझाने का वर्णन है। लक्ष्मण के शक्ति-बाण लगने और उनके मूर्च्छित होने से देवताओं में खलबली मच गयी। वानर सेना अत्यधिक व्याकुल हो विलाप करने लगी। हनुमान ने वानरों को समझाया कि लक्ष्मण अचेत हुए हैं। वीरों को विलाप करना उचित नहीं होता। शोक को त्यागकर बदला लेने के लिए तैयार हो जाओ। जिसके रक्षक राम हैं उसका संसार में कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। तुम्हारी व्याकुल दशा को देखकर शत्रु तुम्हारा उपहास करेंगे। हनुमान के उपदेश का सभी पर प्रभाव पड़ा और वे शोकरहित हो गये। दूसरी ओर कुटी में बैठे हुए श्रीराम का मन कुछ उदास था। उसी समय कुछ अपशकुन होने लगे, जिससे राम चिन्तित हो गये।

प्रश्न 12
‘तुमुल’ खण्डकाव्य के एकादश सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
एकादशे सर्ग (उन्मन राम)। | इस सर्ग में राम की व्याकुलता का चित्रण है। कुटिया में बैठे श्रीराम विचार कर रहे हैं कि आज व्यर्थ ही मन में व्यथा क्यों जन्म ले रही है। मैंने ऐसा कौन-सा पाप किया है जो मेरा मन सशंकित हो रहा है और मेरे पैर काँप रहे हैं। सोचते-सोचते राम का मन व्यथित होने लगा, नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी तथा हृदय कम्पित होने लगा। उसी समय अंगद-हनुमान-सुग्रीव आदि मूर्च्छित लक्ष्मण को लेकर वहाँ आते हैं। लक्ष्मण को देखते ही राम पछाड़ खाकर गिर पड़ते हैं।।

प्रश्न 13
‘तुमुल’ के ‘राम-विलाप और सौमित्र का उपचार’ जामवः द्वादश सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए। [2014]
या
‘तुमुल’ के आधार पर युद्ध में लक्ष्मण के ‘मूर्च्छित होने पर राम-विलाप का वर्णन कीजिए।
उत्तर

द्वादश सर्ग (राम-विलाप और सौमित्र का उपचार)

इस सर्ग में राम के विलाप और लक्ष्मण के उपचार का वर्णन है। लक्ष्मण की दशा को देखकर राम विलाप करने लगे। उन्होंने कहा-हे लक्ष्मण! तुम्हारी इस दशा से मैं अत्यधिक दुःखी हूँ। हे धनुर्धर! तुम धनुष हाथ में लेकर उठ खड़े हो। मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता-

मैं जी न सकता तुम बिना, तुम बाल भक्त अनन्य हो।
हे उर्मिलेश उठो, उठो खोलो नयन चैतन्य हो ।

राम की दु:खी दशा देखकर जामवन्त जी ने बताया कि लंका में सुषेण नाम के कुशल वैद्य हैं, आप उन्हें सादर बुला लें। हनुमान क्षणभर में ही सुषेण वैद्य को लेकर आते हैं। सुषेण वैद्य कहते हैं कि संजीवनी बूटी के बिना लक्ष्मण की चिकित्सा नहीं हो सकती। हनुमान वायु के वेग से संजीवनी बूटी लाने के लिए चल पड़ते हैं और मार्ग में कालनेमि राक्षस का वध करते हुए उस पर्वत पर पहुँचते हैं, जिस पर संजीवनी बूटी है। . बूटी की पहचान न होने से हनुमान पूरे पर्वत को ही उठी लाते हैं। वैद्य के उपचार से लक्ष्मण पुनः सचेत होकर मुस्कराते हुए उठ गये, जिससे वानर-सेना में प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी।

प्रश्न 14
‘तुमुल’ के ‘विभीषण की मन्त्रणा सर्ग का सारांश लिखिए।
या
विभीषण ने मेघनाद के वध के लिए राम को कौन-सी मन्त्रणा दी ? ‘तुमुल खण्डकाव्य के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

त्रयोदश सर्ग (विभीषण की मन्त्रणा)

इस सर्ग में विभीषण द्वारा राम को दिये गये परामर्श का वर्णन है। राम-लक्ष्मण के निकट सभी वानर और रीछ बैठे हैं, तभी विभीषण आकर राम को सूचना देता है कि मेघनाद निकुम्भिला पर्वत पर यज्ञ कर रहा है। यदि यज्ञ पूर्ण हो गया तो वह युद्ध में अजेय हो जाएगा और आप सीता को कभी भी प्राप्त नहीं कर सकेंगे। इसलिए लक्ष्मण को यज्ञ करते हुए मेघनाद पर तुरन्त आक्रमण कर देना चाहिए। विभीषण के बार-बार आग्रह करने पर और विचार करके राम ने लक्ष्मण और अन्य वीरों को यज्ञ-विध्वंस करने का आदेश दे दिया और हनुमान, नील, नल, अंगद, जामवन्त आदि से कहा कि तुम सभी लोग युद्ध में लक्ष्मण के साथ ही रहना; क्योंकि रावण का यह पुत्र बहुत ही दुर्धर्ष योद्धा है। राम के चरण छूकर लक्ष्मण ने मेघनाद का वध करने की प्रतिज्ञा की और ससैन्य युद्ध के लिए प्रस्थान किया।

प्रश्न 15
‘तुमुल’ के ‘मख (यज्ञ) विध्वंस’ और ‘मेघनाद-वध’ सर्ग का सारांश लिखिए। [2010, 11]
या
‘तुमुल’ का जो सर्ग आपको बहुत रुचिकर लगा हो, उसकी कथा संक्षेप में लिखिए।
या
‘तुमुल खण्डकाव्य की किसी मुख्य घटना का वर्णन कीजिए। [2012]
उत्तर

चतुर्दश सर्ग (यज्ञ-विध्वंस और मेघनाद-वध)

इस सर्ग में यज्ञ-विध्वंस और मेघनाद के वध का वर्णन है। लक्ष्मण ने ससैन्य यज्ञ-स्थल पर पहुँचकर मेघनाद पर बाण-वर्षा कर दी। लक्ष्मण के तीव्र बाण-प्रहार से मेघनाद का रुधिर यज्ञ-भूमि में बहने लगा। उसके शरीर से इतना रक्त बहा कि यज्ञ की अग्नि भी बुझती प्रतीत हुई। रीछ और वानरों के हाथों से वहाँ उपस्थित सभी यज्ञकर्ता मारे गये। केवल मेघनाद नाम का वह वीर अपने स्थान पर दृढ़ आहुतियाँ डालता रहा। अन्य यज्ञकर्ताओं का संहार करके वानर सेना यज्ञ-विध्वंस करने लगी। लक्ष्मण को बाणों की वर्षा करता देखकर मेघनाद कहने लगा कि इस प्रकार छल-कपट से युद्ध करना वीरता को लक्षण नहीं है। मुझसे सम्मुख युद्ध में एक बार पराजित होने के बाद तुमने जो घृणित कार्य किया है, वह सर्वथा निन्दनीय है। जब तुम्हें मेरे बल का पता लग गया तब यह युद्ध अधर्म से जीतने की राय क्या तुमको विभीषण ने दी है ? यह कहता हुआ मेघनाद लक्ष्मण की वीरता को धिक्कारने लगा–

जीते मुझे, पर आपकी इस जीत में ही हार है।
रघुवंश की रणनीति पर, धिक्कार सौ-सौ बार है॥
इस कार्य से रघुवंश में जो, कालिमा है लग रही।
उसको न घन भी धो सकेगा, भार नत होगी मही॥

मेघनाद की यह धिक्कार सुनकर एक बार प्रत्यंचा पर आया हुआ लक्ष्मण का बाण रुक गया और सिर झुक गया, परन्तु विभीषण के उकसाने पर लक्ष्मण के तीक्ष्ण प्रहार से मेघनाद यज्ञ-भूमि में मारा गया। देवता लक्ष्मण की कीर्ति का जयगान करने लगे।

प्रश्न 16
‘तुमुल’ के आधार पर अन्तिम सर्ग ‘राम की वन्दना’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

पञ्चदश सर्ग (राम की वन्दना)

इस सर्ग में राम की वन्दना की गयी है। मेघनाद के शव को यज्ञ-भूमि में ही छोड़कर वानर सेना राम की ओर चली। युद्ध में लक्ष्मण की विजय का समाचार विभीषण ने राम को दिया। राम लक्ष्मण से कहते हैं कि-

मैं जानता था तुम्हीं, मार सकते हो मेघनाद को।
था व्यग्र सुनने के लिए, निज बन्धु जय संवाद को॥

लक्ष्मण अपनी प्रशंसा सुनकर राम के चरणों में झुक जाते हैं और भाव-विभोर होकर सर्वशक्तिमान् राम की वन्दना करते हुए कहते हैं कि हे राम! जिस पर आपकी कृपा हो जाती है वह तो जग-विजेता हो ही जाता है।

इस प्रकार खण्डकाव्य की कथा पन्द्रह सर्गों में विभक्त होकर समाप्त होती है।

प्रश्न 17
‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक अथवा प्रधान पात्र लक्ष्मण का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 17, 18]
या
‘तुमुल’ खण्डकाव्य का नायक कौन है ? उसकी चारित्रिक विशेषताएँ बताइए। [2011, 12, 13, 14, 17, 18]
या
‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर लक्ष्मण के चरित्र की किन्हीं तीन विशेषताओं; सौन्दर्य शील और शक्ति का वर्णन कीजिए।
या
“तुमूल’ खण्डकाव्य के नायक और प्रतिनायक के नाम बताइए तथा उनके चरित्र की दोदो विशेषताएँ भी लिखिए। ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
[2015]
या
‘तुमुल खण्डकाव्य के आधार पर नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2016]
[ संकेत–प्रश्न 18 से मेघनाद (प्रतिनायक) के चरित्र की विशेषताएँ लें।]
उत्तर
वीर रस के प्रसिद्ध कवि श्री श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘तुमुल’ खण्डकाव्य का नायक लक्ष्मण को माना जा सकता है। प्रस्तुत काव्य में लक्ष्मण और मेघनाद के युद्ध का वर्णन है। कवि ने लक्ष्मण के तेजस्वी चरित्र-व्यक्तित्व को अपने काव्य का केन्द्रबिन्दु बनाया है। इस खण्डकाव्य से लक्ष्मण के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं|

(1) नायक-लक्ष्मण ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नायक हैं। वे राम के छोटे भाई एवं रघुकुल के प्रदीप हैं। उनमें नायकोचित वीरता, धीरता और उदारता है। वे मेघनाद के ललकारने पर युद्ध करते हैं। यद्यपि पहले वे मेघनाद के शक्ति-प्रहार से मूर्च्छित हो जाते हैं, परन्तु अन्त में विजय उन्हीं की होती है।

(2) अद्वितीय सौन्दर्यशाली-लक्ष्मण दशरथ के पुत्र और राम के छोटे भाई हैं। उनके व्यक्तित्व में तेजस्विता, सहज कोमलता एवं स्वभाव में नम्रता है। उनके अधरों पर सहज मुस्कान खेलती है। मेघनाद भी उन्हें ‘लावण्ययुक्त ब्रह्मचारी’ कहकर सम्बोधित करता है

लावण्यधारी ब्रह्मचारी, आप बुद्धि निधान हैं।
संसार में अत्यन्त वीर, पराक्रमी महान् हैं।

सभी लक्ष्मण के सौन्दर्य को देखते ही रह जाते हैं। वे जब बोलते हैं तो अत्यन्त मधुर तथा कर्णप्रिय संगीत कानों में घोल देते हैं। कवि उनके सौन्दर्य की प्रशंसा इस प्रकार करते हैं-

थी बोल में सुन्दर सुधा, उर में दया का वास था।
था तेज में सूरज, हँसी में चाँद का उपहास था।

(3) अतुलनीय शक्तिसम्पन्न-लक्ष्मण अत्यन्त विनयशील वीर हैं। वे शत्रु के ललकारने पर युद्ध करने से पीछे नहीं हटते। वे केवल शक्तिसम्पन्न ही नहीं हैं, वरन् वीरों के प्रशंसक भी हैं। उन्होंने मेघनाद के सौन्दर्य, शौर्य एवं तेज की प्रशंसा भी की है। उन्होंने संकल्प करके जिससे भी युद्ध किया, उसे युद्ध में परास्त ही किया-

रण ठानकर जिससे भिड़े, उससे विजय पायी सदा।
संग्राम में अपनी ध्वजा, सानन्द फहरायी सदा ॥

जब मेघनाद उनकी बातें सुनकर हँस पड़ता है, तब उनकी क्रोधाग्नि में मानो घी पड़ जाता है। युद्ध में उनके प्रलयंकारी रूप को देखिए-

आकाश को अपने निशित नाराच से भरने लगे।
उस काल देवों के सहित देवेन्द्र भी डरने लगे।

शत्रु के मनोभावों को भली-भाँति पहचानने में लक्ष्मण अत्यन्त कुशल हैं। युद्ध में मेघनाद की गर्वोक्ति को सुनकर वे कहते हैं-

सच है सुधामय भारती से, खल सुधरते हैं नहीं।
क्या क्षीर पीने पर फणी, विष त्याग देते हैं कहीं।

(4) विनम्र और शीलवान्–बाल्यकाल से ही लक्ष्मण दयालु एवं उदार हैं। उनका अन्त:करण भी सरल, शुद्ध तथा कोमल है। वे अपने भाई राम के प्रति अटूट श्रद्धा रखते हैं। उनके चरित्र में कृत्रिमता नहीं है। वे युद्धभूमि में अपने शत्रु मेघनाद के सौन्दर्य और ओज को देखकर मुग्ध होकर दयार्द्र हो जाते हैं-

आके, आँखों से तुझे देख के तो, इच्छा होती युद्ध की ही नहीं है।
कैसे तेरे साथ में मैं लडूंगा, कैसे बाणों से तुझे मैं हतूंगा ॥

लक्ष्मण के हृदय में कोमलता है। नि:शस्त्र मेघनाद को यज्ञ करते देखकर उनका हृदय द्रवित हो जाता है।।

(5) शत्रुओं को परास्त करने वाले–लक्ष्मण अपने पराक्रम से, अपने बाहुबल से और अपने युद्धकौशल से शत्रु पर विजय प्राप्त करते हैं। यद्यपि वे यज्ञ-भूमि में नि:शस्त्र मेघनाद का वध करते हैं, परन्तु मेघनाद को मारने की शक्ति भी केवल उन्हीं में थी। राम उनकी पीठ ठोंकते हुए कहते हैं-

मैं जानता था तुम्हीं मार सकते हो मेघनाद को।

(6) मानवीय गुणों के भण्डार-लक्ष्मण के व्यक्तित्व में मानवीय गुण विशेष रूप से भरे पड़े हैं। कवि के शब्दों में-

निशि दिन क्षमा में क्षिति बसी, गम्भीरता में सिन्धु था।
था धीरता में अद्रि, यश में खेलता शरदिन्दु था॥
थी बोल में सुन्दर सुधा, उर में दया का वास था।
था तेज में सूरज, हँसी में चाँद का उपहास था।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि लक्ष्मण परम शीलवान, विनम्र, पराक्रमी, अतुल शक्तिसम्पन्न एवं अजेय योद्धा थे। वस्तुतः नायक होने के लिए जितने भी गुण किसी व्यक्ति में होने चाहिए, वे सभी गुण लक्ष्मण में मौजूद हैं। वे ‘तुमुल खण्डकाव्य के नायक एवं मानवमात्र के लिए आदर्श हैं।

प्रश्न 18
‘तुमुल खण्डकाव्य के आधार पर प्रतिनायक मेघनाद का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2009, 11, 12, 13, 14, 15 |
या
“तुमुल’ खण्डकाव्य में नायक लक्ष्मण के समान प्रबल एवं प्रभावशाली मेघनाद का चरित्र है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
या
‘तुमुल’ खण्डकाव्य में कौन-सा पात्र आपको सर्वप्रिय है? उसकी चारित्रिक विशेषताएँ संक्षेप में लिखिए। [2010, 11, 14]
या
‘तुमुल’ खण्डकाव्य में लक्ष्मण-मेघनाद की वीरता और पराक्रम को उजागर किया गया है। दोनों में से किसकी वीरता आपको सर्वाधिक प्रभावित करती है ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
या
‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर मेघनाद की चरित्रगत विशेषताएँ लिखिए। [2015]
उत्तर
श्री श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा विरचित ‘तुमुल’ नामक खण्डकाव्य में मेघनाद प्रमुख पात्र है। उसका व्यक्तित्व भी लक्ष्मण के समान ही प्रभावशाली है। वह भी लक्ष्मण के समान ही शक्ति, शील और सौन्दर्य का आगार है। वह अपने चरित्र द्वारा पाठकों को अपनी ओर आकृष्ट किये रहता है। इस खण्डकाव्य से उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं|

(1) सौन्दर्यवान् एवं प्रभावशाली-मेघनाद मेघ के समान वर्ण वाला सुन्दर एवं शक्तिसम्पन्न था। वह रावण का पुत्र था। उसके सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कवि कहता है

महारथी प्रसिद्ध था, गुणी विवेक-बद्ध था।
सुदेश था सुकेश था, नितान्त रम्य वेष था।

नीलगगन में चन्द्रमा की कान्ति के समान उसका आभामय मुकुट था। उसका उन्नत ललाट, पुष्ट वक्षस्थल और प्रलम्ब भुजाएँ उसके व्यक्तित्व की शोभा बढ़ाने वाली थीं। उसके मुख-मण्डल पर ऐसा ओज तथा कान्ति है कि बड़े-बड़े वीर पुरुष उसे देखते ही रह जाते हैं। उसके तेजवान् रूप को देखकर अन्य वीरों की दशा का वर्णन कवि ने इस प्रकार किया है–

जो वीर थे बैठे वहाँ, वे टक-टक लखने लगे।

(2) पितृ-आज्ञापालक-मकराक्ष का वध हो जाने पर रावण अत्यन्त शोकाकुल हो उठा था। उसने मेघनाद को बुलाकर उसे मकराक्ष की मृत्यु का बदला राम-लक्ष्मण से लेने का आदेश दिया। मेघनाद पिता के आदेश को सुनते ही विजय की प्रतिज्ञा करता हुआ युद्ध के लिए प्रस्थान करता है। पिता की आज्ञा का पालन करना वह अपना कर्त्तव्य मानता है तथा युद्ध में जाने से पूर्व पिता के चरण स्पर्श भी करता है।

(3) अतुल पराक्रमी रावण को अपने पुत्र मेघनाद के पराक्रम पर गर्व है। मकराक्ष की मृत्यु का बदला लेने के लिए वह केवल मेघनाद को ही उपयुक्त मानता है और कहता है

हे तात! तेरी शक्तियों का अन्त है मिलता नहीं।
घमसान में भी पुत्र तेरा, बाल तक हिलता नहीं।

जिस समय वह युद्ध के लिए प्रस्थान करता है, पवन और पर्वतों में कम्पन, पृथ्वी में शोक एवं सूर्य में त्रास व्याप्त हो जाता है। वृक्ष अपने-आप गिरने लगते हैं और बड़े-बड़े धैर्यशाली वीरों का कलेजा दहलने लगता है। वह रघुकुल के वंशजों की युद्ध-नीति की कटु आलोचना करता है। वह अधर्म युद्ध और लक्ष्मण की कुत्सित वीरता से घृणा करता है। मरणावस्था में पड़ा हुआ वह लक्ष्मण की वीरता को धिक्कारता हुआ कहता है|

जीते मुझे, पर आपकी इस जीत में ही हार है।
रघुवंश की रणनीति पर, धिक्कार सौ-सौ बार है।

(4) यज्ञनिष्ठ-मेघनाद की यज्ञ में महती निष्ठा है। वह शत्रु पक्ष पर विजय प्राप्त करने के लिए। केवल अपने बल का ही अभिमान नहीं करता, वरन् आशीर्वाद पाने के लिए देवताओं को प्रसन्न करना भी अत्यन्त आवश्यक मानता है। युद्ध में प्रस्थान करने से पूर्व यज्ञ करता है तथा लक्ष्मण के मूच्छित होने के बाद युद्ध में अजेय होने के लिए भी यज्ञानुष्ठान करता है। यज्ञ करते समय जब लक्ष्मण अपने तीक्ष्ण बाणों के प्रहार से उसे घायल करते हैं, तब भी वह यज्ञ से उठता नहीं है।

(5) आत्मविश्वासी तथा अभिमानी–मेघनाद को अपने पराक्रम, शौर्य तथा युद्ध-कौशल पर पूर्ण विश्वास है, तभी तो वह अपने पिता से कहता है कि वह युद्ध में लक्ष्मण को परास्त कर देगा और वह ऐसा करके दिखाता भी है। उसकी गर्व से भरी बातों को सुनकर सभी भयभीत हो जाते हैं। युद्ध में लक्ष्मण की बातों को वह बड़े ध्यान से सुनता है और फिर व्यंग्यपूर्वक हँस देता है। ऐसा करके वह अपने अभिमान को प्रकट करता है। कवि ने उसके इस भाव का चित्रण इस प्रकार किया है-

जो जो कहा उसको उन्होंने, ध्यान से तो सुन लिया।
पर गर्व से घननाद ने, सौमित्र को लख हँस दिया।

(6) शिष्ट एवं विवेकशील–युद्ध में लक्ष्मण की विनम्र वाणी से मेघनाद अत्यन्त प्रभावित होता है। वह विनम्रता से लक्ष्मण से युद्ध का दान माँगता है-

मैं माँगता हूँ भीम रण का, दान मुझको दीजिए।
चैतन्य होकर तुमुल संगर, आप मुझसे कीजिए।

यज्ञ करते समय लक्ष्मण द्वारा घायल कर दिये जाने पर वह तुरन्त आक्रमण के रहस्य को जान जाता है। और अपने विवेक से विभीषण को ही दोषी ठहराता है। अपने शील स्वभाव के कारण वह लक्ष्मण के कार्यों पर संकेत करता हुआ कहता है कि-

सम्मुख समर में हारने पर, यह नया संग्राम है।।
योद्धा न कर सकता कभी, इतना घृणास्पद काम है॥

इस प्रकार मेघनाद अत्यन्त सौन्दर्यशाली, प्रतिभावान्, पित्राज्ञापालक, अतुल पराक्रमी, यज्ञनिष्ठ, आत्मविश्वासी और विवेकशील है। वह लक्ष्मण के वीर-चरित्र की असलियत उतारता हुआ तीक्ष्ण व्यंग्य करता है, जिससे लक्ष्मण स्वयं भी अपने कार्य पर लज्जित हो शीश झुका लेते हैं। यही कारण है कि लक्ष्मण की विजय की अपेक्षा मेघनाद की पराजय अधिक प्रभावी हो गयी है। कवि की लेखनी भी यहाँ प्रतिनायक की श्रेष्ठता स्थापित हो जाने के कारण किंचित् मौन हो रही है

प्रियमाण मरता है, बहाना ढूंढ़ लेता काल है।
पाठक न कुछ सोचें, यही घननाद काल है।

प्रश्न 19
‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर राम के चरित्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर
‘तुमुल’ खण्डकाव्य में राम के चरित्र की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं’
(1) वीर योद्धा-राम अतुलित बलशाली हैं, जिससे भी वे युद्ध करते हैं अवश्य ही विजयी होते हैं। उनके द्वारा मकराक्ष युद्ध में मारा जाता है।

(2) हृदय के कोमल-लक्ष्मण जब मेघनाद की शक्ति लगने से मूर्च्छित हो जाते हैं, तब राम व्याकुल होकर आँसू बहाते हैं और करूण विलाप करते हैं मैं जी सकतुम बिना, तुम बाल भक्त अनन्य हो।

(3) बन्धुस्नेही–रम्मको लक्ष्मण से अनन्य प्रेम था। वे लक्षण का यश चाहते थे। वे लक्ष्मण की विजय का समाचार सुनने को व्यग्र थे था-अग्र सुनने के लिए, निज बन्धु जय संवाद को। वे लक्ष्मण को आशीष देते हैं और उनके लिए विलाप भी करते हैं।

(4) भक्त का हठ मानने वाले–यज्ञरत मेघनाद को नि:शस्त्र मारने का आदेश देना, निश्चित ही एक अनीतिपूर्ण कार्य था; फिर भी भक्त विभीषण के हठ की पूर्ति करने के लिए वे सौमित्र को आज्ञा देते हैं-

कुछ देर सोच-विचार कर, भगवान ने यह तय किया।
रखना उचित है भक्त का हठ, तय यही निश्चय किया।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राम वीर योद्धा, बन्धु-स्नेही, हृदय के कोमल तथा भक्त का हठ मानने वाले चरित्र के रूप में खण्डकाव्य में चित्रित होते हैं।

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