UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 16 भारत-विभाजन एवं स्वतन्त्रता-प्राप्ति (अनुभाग – एक)

UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 16 भारत-विभाजन एवं स्वतन्त्रता-प्राप्ति (अनुभाग – एक)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 16 भारत-विभाजन एवं स्वतन्त्रता-प्राप्ति (अनुभाग – एक)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत-विभाजन एवं स्वतन्त्रता-प्राप्ति की प्रक्रिया को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :

भारत-विभाजन एवं स्वतन्त्रता-प्राप्ति

अगस्त, 1946 ई० में वायसराय ने पं० जवाहरलाल नेहरू को अन्तरिम सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित किया। इससे नाराज होकर मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान निर्माण के लिए 16 अगस्त, 1946 ई० को सीधी कार्यवाही (Direct Action) करने का निश्चय किया। मुस्लिम लीग का नारा था—-‘मारेंगे या मरेंगे, पाकिस्तान बनाएँगे।” इससे कलकत्ता (कोलकाता) व नोआखाली में दंगे भड़क उठे। भयंकर रक्तपात । हुआ। अनेक हिन्दू व मुसलमान इन दंगों में मारे गये। ये दंगे धीरे-धीरे सम्पूर्ण भारत में शुरू हो गये। 2 सितम्बर, 1946 को पं० जवाहरलाल नेहरू पाँच राष्ट्रवादी मुसलमानों को साथ लेकर अन्तरिम सरकार बनाने में सफल हुए, परन्तु आन्तरिक झगड़ों के कारण यह अन्तरिम सरकार असफल हो समाप्त हो गयी।

ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री एटली ने घोषणा की कि ब्रिटेन जून, 1948 ई० तक भारत का शासन छोड़ देगा। लेकिन मिलने वाली स्वाधीनता की खुशियों पर अगस्त, 1946 ई० के बाद भड़कने वाले व्यापक साम्प्रदायिक दंगों ने पानी फेर दिया। हिन्दू और मुस्लिम सम्प्रदायवादियों ने इस जघन्य संघर्ष का दोषी एक-दूसरे को ठहराया। मानव मूल्यों का इस तरह उल्लंघन होते और सत्य-अहिंसा का गला घोंटे जाते देखकर महात्मा गांधी दु:ख से द्रवित हो उठे। साम्प्रदायिकता की आग को बुझाने में दूसरे अनेक हिन्दू-मुसलमानों ने भी प्राणों से हाथ धोये लेकिन साम्प्रदायिक तत्त्वों ने इसके बीज विदेशी सरकार की सहायता से बहुत गहरे बोये थे जिन्हें उखाड़ फेंकना आसान नहीं था।

मार्च, 1947 ई० को माउण्टबेटन ने भारत के वायसराय के पद को ग्रहण किया। उसे इस बात का पता था कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग में समझौता होना अत्यन्त कठिन है। माउण्टबेटन को ज्ञात था कि पाकिस्तान बनाने की योजना उचित नहीं है और न ही इससे साम्प्रदायिकता की समस्या को दूर किया जा सकता है परन्तु फिर भी उसने भारत को विभाजित करने का निर्णय लिया।

गांधी जी व कांग्रेस के अन्य नेता किसी भी शर्त पर भारत के विभाजन को मानने के लिए तैयार नहीं थे। माउण्टबेटन ने पं० जवाहरलाल नेहरू व सरदार वल्लभभाई पटेल को पाकिस्तान बनाने की आवश्यकता के विषय में समझाने का प्रयास किया। हालाँकि प्रारम्भिक दौर में उन्होंने इस बात को मानने से इन्कार कर दिया लेकिन साम्प्रदायिकता की आग को रोकने के लिए कांग्रेस के नेताओं ने इस योजना को अनमने मन से स्वीकार कर लिया। सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा कि “यदि हम एक पाकिस्तान स्वीकार नहीं करते हैं। तो भारत में सैकड़ों पाकिस्तान होंगे।”

इस प्रकार माउण्टबेटन ने कूटनीति का परिचय देते हुए कांग्रेस के नेताओं को मानसिक रूप से भारत के विभाजन के लिए तैयार कर लिया। उन्होंने एक योजना बनायी जिसे वे शीघ्र लागू करना चाहते थे। इस नयी योजना के विषय में माउण्टबेटन, नेहरू, मुहम्मद अली जिन्ना एवं बलदेवसिंह ने आकाशवाणी से घोषणा की।

प्रश्न 2.
भारत-विभाजन के कारणों पर प्रकाश डालिए। [2017]
उत्तर :

भारत-विभाजन के कारण

भारत-विभाजन के निम्नलिखित कारण थे –

1. ब्रिटिश शासकों की नीति – भारत-विभाजन के लिए ब्रिटिश शासकों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति मुख्य रूप से उत्तरदायी थी। इस नीति का अनुसरण करके उन्होंने भारत के हिन्दुओं और मुसलमानों में साम्प्रदायिकता का विष घोल दिया था। इसके अतिरिक्त ब्रिटिश शासकों की सहानुभूति भी पाकिस्तान के साथ थी। शायद इसीलिए वायसराय लॉर्ड वेवेल के संवैधानिक परामर्शदाता वी०पी० मेनन ने सरदार पटेल से कहा था कि “गृह-युद्ध की ओर बढ़ने के बजाय देश का विभाजन स्वीकार कर लेना अच्छा है।” लॉर्ड वेवेल ने अन्तरिम सरकार में भी मुस्लिम लीग को कांग्रेस के विरुद्ध कर दिया था।

2. मुस्लिम लीग को प्रोत्साहन – ब्रिटिश सरकार आरम्भ से ही कांग्रेस के विरुद्ध रही, क्योंकि कांग्रेस ने अपनी स्थापना के बाद से ही सरकार की आलोचना करनी शुरू कर दी थी और सरकार के सामने ऐसी माँगें रख दी थीं, जिन्हें सरकार स्वीकार करने के लिए तत्पर नहीं थी। इसीलिए सरकार ने मुस्लिम लीग को प्रोत्साहन देने के लिए सन् 1909 ई० के अधिनियम में मुसलमानों को साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया और आगे भी वह मुसलमानों को कांग्रेस के विरुद्ध भड़काती रही।

3. जिन्ना की जिद – जिन्ना प्रारम्भ से ही द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के समर्थक थे। पहले वे बंगाल और सम्पूर्ण असम (असोम) को पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे तथा पश्चिमी पाकिस्तान में समस्त पंजाब, उत्तर-पश्चिमी सीमा-प्रान्त, सिन्ध और बलूचिस्तान को मिलाना चाहते थे। अपनी जिद के कारण जिन्ना ने निरन्तर गतिरोध बनाये रखा और समस्या के निराकरण के लिए बनायी गयी सभी योजनाओं को अस्वीकार कर दिया। परन्तु 3 जून, 1947 ई० की योजना में उन्हें दिया गया पाकिस्तान उस पाकिस्तान से अच्छा नहीं था, जिसे उन्होंने सन् 1944 ई० में अपूर्ण, अंगहीन तथा दीमक लगा कहकर अस्वीकार कर दिया था। अब जो पाकिस्तान उनको दिया गया, वह उनकी आशाओं से बहुत छोटा था, जिसे जिन्ना ने लॉर्ड माउण्टबेटन के दबाव के कारण स्वीकार कर लिया था।

4. साम्प्रदायिक दंगे – जिन्ना की प्रत्यक्ष कार्यवाही की नीति के कारण भारत के कई भागों में हिन्दू-मुस्लिमों के बीच दंगे-फसाद हो रहे थे, जिनमें हजारों की संख्या में निर्दोष लोग मारे जा रहे थे और अपार धन-सम्पत्ति नष्ट हो रही थी। कांग्रेसी नेताओं ने इन दंगों को रोकने के लिए भारत का विभाजन स्वीकार करना ही उचित समझा।

5. भारत को शक्तिशाली बनाने की इच्छा – कांग्रेसी नेता इस बात का अनुभव कर रहे थे कि विभाजन के बाद भारत बिना किसी बाधा के चहुंमुखी.उन्नति कर सकेगा, अन्यथा भारत सदैव गृह-संघर्ष में ही फँसा रहेगा। 3 जून, 1947 ई० को पं० जवाहरलाल नेहरू ने विभाजन को स्वीकार करने के लिए जनता से अपील करते हुए कहा था कि “कई पीढ़ियों से हमने स्वतन्त्रता व संयुक्त भारत के लिए संघर्ष किया तथा स्वप्न देखे हैं, इसलिए उस देश के विभाजन का विचार भी बहुत कष्टदायक है, परन्तु फिर भी मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमारा.वर्तमान निर्णय सही है। यह समझना आवश्यक है कि तलवारों द्वारा भी अनैच्छिक प्रान्तों को भारतीय संघ राज्य में रख सकना सम्भव नहीं है। यदि उन्हें जबरन भारतीय संघ में रखा भी जा सके तो कोई प्रगति और नियोजन सम्भव न होंगे। राष्ट्र में संघर्ष और परस्पर झगड़ों के जारी रहने से देश की प्रगति रुक जाएगी। भोली-भाली जनता के कत्ल से तो विभाजन ही अच्छा है।

6. हिन्दू महासभा का प्रभाव – प्रारम्भ में हिन्दू महासभा ने कांग्रेस को हर प्रकार का सहयोग दिया, किन्तु सन् 1930 ई० के उपरान्त हिन्दू महासभा पर प्रतिक्रियावादी तत्त्वों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। हिन्दू महासभा के अधिवेशन में भाषण देते हुए श्री सावरकर ने स्पष्ट रूप से कहा कि “भारत एक और एक सूत्र में बँधा राष्ट्र नहीं माना जा सकता, अपितु यहाँ दो राष्ट्र हैं-हिन्दू और मुसलमान। भविष्य में हमारी राजनीति विशुद्ध हिन्दू राजनीति होगी। इस प्रकार हिन्दू सम्प्रदायवाद ने भी मुसलमानों को पाकिस्तान बनाने के लिए प्रेरित किया।

7. भारतीयों को सत्ता देने में सरकार का रुख – सन् 1929 ई० से 1945 ई० की अवधि में ब्रिटिश सरकार और भारतीयों के सम्बंधों में काफी कटुता आ गयी थी। ब्रिटिश सरकार यह अनुभव करने लगी थी कि भारत स्वाधीनता की प्राप्ति के बाद ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल को सदस्य कदापि नहीं रहेगा। इसलिए उसने विचार किया कि यदि स्वतन्त्र भारत अमैत्रीपूर्ण है तो उसे निर्बल बना देना ही उचित है। पाकिस्तान का निर्माण अखण्ड भारत को विभाजित कर देगा और कालान्तर में भारत उपमहाद्वीप में ये दोनों देश आपस में लड़कर अपनी शक्ति को क्षीण करते रहेंगे।

8. भारत के विभाजन के स्थायीकरण में सन्देह – अनेक राष्ट्रीय नेताओं को भारत के विभाजन के स्थायी रहने में सन्देह था, उनका कहना था कि भौगोलिक, राजनीतिक, आर्थिक और सैनिक दृष्टिकोण से पाकिस्तान एक स्थायी राज्य नहीं हो सकता और आज अलग होने वाले क्षेत्र कभी-न-कभी फिर से भारतीय संघ में सम्मिलित हो जाएँगे।

9. कांग्रेसी नेताओं का सत्ता के प्रति आकर्षण – माइकल ब्रेचर ने लिखा है कि कांग्रेसी नेताओं के सभक्ष सत्ता के प्रति आकर्षण भी था। इन नेताओं ने अपने राजनैतिक जीवन का अधिकांश भाग ब्रिटिश शासन के विरोध में ही बिताया था और अब वे स्वाभाविक रूप से सत्ता के प्रति आकर्षित हो रहे थे। कांग्रेसी नेता सत्ता का रसास्वादन कर चुके थे और विजय की घड़ी में इससे अलग होने के इच्छुक नहीं थे।

10. लॉर्ड माउण्टबेटन का प्रभाव – भारत-विभाजन के लिए लॉर्ड माउण्टबेटन का व्यक्तिगत प्रभाव भी उत्तरदायी था। उन्होंने कांग्रेसी नेताओं को भारत-विभाजन के प्रति तटस्थ कर दिया था। मौलाना आजाद ने लिखा है कि “लॉर्ड माउण्टबेटन के भारत आने के एक माह के अन्दर पाकिस्तान के प्रबल विरोधी नेहरू विभाजन के समर्थक नहीं तो कम-से-कम इसके प्रति तटस्थ अवश्य हो गये।

प्रश्न 3.
भारत का विभाजन किन परिस्थितियों में हुआ? नव-स्वतंत्र भारत को नि समस्याओं का सामना करना पड़ा? किन्हीं दो को समझाकर लिखिए। [2014]
             या
स्वतन्त्र भारत के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं ? उनमें से किन्हीं दो के निराकरण के उपाय बताइए। [2013]
             या
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा ? (2013)
             या
साम्प्रदायिकता की भावना किस प्रकार लोकतन्त्र के सिद्धान्तों के विपरीत है ? इस भावना को दूर करने के कोई दो उपाय लिखिए। [2013]
उत्तर :
[संकेत – भारत का विभाजन किन परिस्थितियों में हुआ ? प्रश्न के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 2 का उत्तर देखें।]

आतंकवाद

वर्तमान में आतंकवाद विश्व की एक गम्भीर और अत्यन्त भयावहं समस्या है। यह गुमराह और भटके हुए व्यक्तियों द्वारा आम जनता को भयभीत करने के लिए तथा सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं आर्थिक तनाव उत्पन्न करने हेतु संचालित किया जाता है। शान्ति एवं सद्भाव भंग करने की दृष्टि से गोलाबारी, बन्दूक; आत्मघाती हमले, सार्वजनिक स्थलों पर बम विस्फोट आदि माध्यमों को अपनाया जाता है। विगत तीन-चार दशकों में भारत निरन्तर आतंकवाद से ग्रसित है। 1980 ई० के दशक में पंजाब आतंकवाद का शिकार रहा। इसके बाद इसकी आग जम्मू-कश्मीर में फैल गयी और आज तक भारत आतंकवाद की इस ज्वाला में झुलस रहा है। भारत के 220 जनपदों में देश की कुल भूमि का लगभग 45 प्रतिशत भाग आन्तरिक विद्रोह, अशान्ति एवं आतंकवाद से ग्रस्त है। गत कुछ वर्षों में ही हजारों की संख्या में लोग आतंकवाद की भेट चढ़ चुके हैं। नक्सलवादियों से देश को खतरा लगातार बढ़ती जा रहा है। देश के किसी-न-किसी भाग में आतंकवाद की छिटपुट घटनाएँ प्रायः होती ही रहती हैं। मुम्बई में बम विस्फोट, गुजरात में अक्षरधाम पर आक्रमण और गोधरा काण्ड इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। यहाँ तक कि संसद भवन भी आतंकवाद के निशाने पर रह चुका है। अयोध्या के विवादित राम मन्दिर के परिसर में आतंकवादियों का प्रवेश उनके दुस्साहस का अनूठा उदाहरण है। जम्मू-कश्मीर, असोम, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, झारखण्ड जैसे उत्तरी-पूर्वी राज्यों में आतंकवाद एवं नक्सलवाद का प्रभाव अधिक है। विश्व के अन्य देश भी इससे अछूते नहीं हैं। 11 सितम्बर, 2011 ई० को न्यूयार्क में विश्व व्यापार केन्द्र तथा वाशिंगटन में पेंटागन पर हुआ आतंकवादी हमला अत्यन्त भयावह था। भारत की पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गाँधी, उनके पुत्र राजीव गाँधी आतंकवाद के ही शिकार बने। कहने का तात्पर्य यह है कि आतंकवाद देश के लिए एक गम्भीर खतरा तथा समस्या बन चुका है, अत: प्रत्येक नागरिक को इससे सावधान रहने की आवश्यकता है।

साम्प्रदायिकता

साम्प्रदायिकता की प्रवृत्ति लोकतन्त्र के आधारभूत सिद्धान्तों के विपरीत है। यह प्रवृत्ति समाज में घृणा, तनाव तथा संघर्ष को जन्म देती है। लोकतन्त्र तो धार्मिक सद्भाव अथवा धर्मनिरपेक्षता पर आधारित होता है। धार्मिक सम्प्रदायवाद समाज में विघटन उत्पन्न करके समाज को विभिन्न वर्गों में विभाजित कर देता है। यह विकृत स्थिति भारत में सदियों से व्याप्त है तथा यह लोकतन्त्र के लिए एक चुनौती है।

साम्प्रदायिकता को दूर करने के उपाय

  1. साम्प्रदायिक सद्भाव विकसित करके विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों के व्यक्तियों को एक-साथ रहने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए तथा इसके लिए कोई राष्ट्रीय नीति बनायी जानी चाहिए।
  2. गिरते हुए नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की पुनस्र्थापना का प्रयास किया जाना चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार से परिवर्तन किया जाना चाहिए कि नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों को प्रोत्साहन मिले।
  3. सभी त्योहारों को राष्ट्रीय स्तर पर मनाने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए, ताकि विभिन्न सम्प्रदाय एक साथ मिलकर इनमें सम्मिलित हो सकें।
  4. धर्मनिरपेक्षता (लौकिकता) को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  5. भाषा के सम्बन्ध में एक स्पष्ट व सर्वमान्य राष्ट्रीय नीति बनायी जानी चाहिए।
  6. शिक्षा के माध्यम से धार्मिक कट्टरवाद के दोषों को दूर करके लौकिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  7. सार्वजनिक शान्ति-समितियों व प्रार्थना सभाओं का गठन व आयोजन किया जाना चाहिए तथा इनमें | सभी धर्मों के व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  8. साम्प्रदायिक तत्त्वों पर कड़ी नजर रखी जानी चाहिए।
  9. गुप्तचर एजेन्सियों को और अधिक चुस्त बनाया जाना चाहिए, ताकि वे कूटरचित साम्प्रदायिक गुप्त-मन्त्रणाओं की सूचना पहले से ही दे सकें।
  10. समाज-विरोधी तत्त्वों और साम्प्रदायिक तत्त्वों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए।

क्षेत्रवाद

राष्ट्रीय एकीकरण की समस्या पिछले दशकों में चिन्तनीय बन पड़ी है। संकीर्ण क्षेत्रीयता न सिर्फ हिंसक टकरावों में अभिव्यक्त हुई है, बल्कि पृथक्तावादी आन्दोलनों के रूप में भी सामने आयी है। अति महत्त्वाकांक्षी राजनेताओं ने भी कई बार धर्म, जाति, भाषा जैसे विघटनकारी तत्त्वों का सहारा लेकर क्षेत्रीय भावनाएँ भड़काई हैं। तो क्या क्षेत्रवाद की इस नकारात्मक प्रवृत्ति पर किसी प्रकार का नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है। यह नियन्त्रण संभव तो है, लेकिन आसान बिल्कुल नहीं है। इसके लिए निष्पक्ष कर्मछता और ‘बहुजन-सुखाय’ की मानसिकता की दरकार है।

यदि सरकारी नीतियों के माध्यम से विशिष्ट जातीय एवं उप-सांस्कृतिक क्षेत्रों की संस्कृति और अस्मिता को ध्यान में रखते हुए संतुलित (क्षेत्रीय व आर्थिक) विकास को प्रोत्साहन दिया जा सके, तो क्षेत्रवाद को बल नहीं मिल सकेगा। विशेषत: पिछड़े क्षेत्रों के आर्थिक विकास का अधिक ख्याल रखना होगा (दुर्भाग्यवश निजीकरण के दौर में इन क्षेत्रों की उपेक्षा की जा रही है)। यदि केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच सौहार्दपूर्ण सामंजस्य रह सके और भिन्न-भिन्न क्षेत्रीय भाषाओं को उचित सम्मान दिया जा सके, तो क्षेत्रवाद भड़काने के प्रयासों को निरुत्साहित किया जा सकता है। इसी प्रकार सक्षम प्रशासन के माध्यम से संकीर्ण क्षेत्रवादी आन्दोलनों की हिंसक प्रवृत्ति को दृढ़पूर्वक दबाया जाना आवश्यक है।

भाषावाद

भाषा के आधार पर पृथक् राजनीतिक पहचान ने भाषावादी राजनीति को जन्म दिया। इसके कारण उग्र राजनीतिक आन्दोलन हुए। किन्हीं समर्थकों व हिन्दी विरोधियों के बीच दूरियाँ बढ़ीं और रोष उत्पन्न हुआ। हिंसात्मक व तोड़-फोड़ की गतिविधियों ने अव्यवस्था फैलायी। राष्ट्र की उन्नति व विकास के प्रयास व ऊर्जा , में बाधा पहुँची। यहाँ तक कि छात्रों ने भी भाषायी राजनीति में खुलकर भाग लिया। 1967 में चेन्नई में छात्रों ने हिन्दी विरोधी आन्दोलन किया, जिसकी आग कर्नाटक व आन्ध्र प्रदेश तक फैल गयी।

देश की आन्तरिक सुरक्षा को कायम रखने के लिए निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है –

  1. आतंकवाद को खत्म करने के लिए कड़ाई से निपटा जाए।
  2. आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले को कठोर दण्ड की व्यवस्था की जाए।
  3. क्षेत्रवाद एवं सम्प्रदायवाद की राजनीति करने वाले लोगों को दण्डित किया जाए।
  4. सी०आर०पी०एफ० एवं आर०ए०एफ० को सदैव सतर्क रहना चाहिए।
  5. प्रत्येक राज्य की पुलिस व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त होनी चाहिए।
  6. भाषा के नाम पर यदि कोई विवाद हो तो उसे आपसी बातचीत से हल करना चाहिए।

मूल्यांकन – यदि देश की आन्तरिक सुरक्षा ठीक नहीं है तो यह देश के लिए खतरनाक सिद्ध होगा। देश की राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा उत्पन्न हो जायेगा। देश टुकड़ों में विभाजित हो जायेगा। देश की एकता एवं अखण्डता कायम नहीं रह पायेगी। इसके लिए आवश्यक है कि देश की सुरक्षा-व्यवस्था सुदृढ़ हो।

देश की आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के उपाय –

  1. भारतीयों में राष्ट्रीय सुरक्षा की भावना होना अनिवार्य है। भारतीय नागरिक विभिन्न प्रकार के आपसी मतभेदों और राष्ट्र पर किसी प्रकार के संकट का सामना करने के लिए तैयार रहें।
  2. आन्तरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए नागरिकों को प्रशिक्षण देना अनिवार्य है, इसके लिए सरकार ने नागरिक सुरक्षा संगठन का भी गठन किया है। =
  3. देश में उत्पन्न संकट का सामना करने के लिए सुरक्षाकर्मियों को उचित प्रशिक्षण देना अनिवार्य है, जिससे किसी संकट का सामना आसानी से किया जा सके।
  4. रक्षा बजट में सरकार प्रतिवर्ष वृद्धि करती है जिससे सुरक्षाकर्मियों एवं सेना को चुस्त-दुरुस्त रखा जा सके।
  5. सरकार को चाहिए कि जो राष्ट्र की सुरक्षा में लगे हैं, उन्हें आधुनिक तकनीक तथा अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित रखना चाहिए।

प्रश्न 4.
लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन क्यों किया ? भारतीयों ने इसका विरोध कैसे व्यक्त किया ? [2012]
उत्तर :
एक ओर राष्ट्रीय आन्दोलन ने भारतीयों में एकता लाने के प्रयास पर बल दिया, परन्तु सम्प्रदायवाद ने इस प्रयास को दुष्कर बना दिया। यह 20वीं शताब्दी का एक ऐसा परिवर्तन था जिसने लोगों को ‘धार्मिक समुदायों और धार्मिक राष्ट्रों के झूठे अवरोधों के आधार पर बाँटने का प्रयास किया। इस प्रवृत्ति को आधुनिक काल के राजनीतिक तथा आर्थिक घटनाक्रम, ब्रिटिश शासन के सामाजिक व सांस्कृतिक प्रभाव और 19वीं शताब्दी के समाज तथा राजनीति में उभरते रुझानों के सन्दर्भ में समझा जाना चाहिए।

कर्जन की साम्राज्यवादी तथा ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का सबसे बड़ा परिणाम बंगाल विभाजन के रूप में सामने आया। इस नीति ने साम्प्रदायिक समस्या को कई गुना बढ़ा दिया था। सामान्यत: तत्कालीन सरकार द्वारा बंगाल-विभाजन का कारण शासकीय आवश्यकता’ बताया गया, परन्तु यथार्थ में विभाजन का मुख्य कारण शासकीय न होकर राजनीतिज्ञ था। बंगाल राष्ट्रीय गतिविधियों का केन्द्र बनता जा रहा था। कर्जन कलकत्ता (कोलकाता) और अन्य राजनीतिक षड्यन्त्रों के केन्द्रों को नष्ट करना चाहता था। कलकत्ता केवल ब्रिटिश भारत की राजधानी ही नहीं, बल्कि व्यापार-वाणिज्य का स्थल और न्याय का प्रमुख केन्द्र भी था। यहीं से अधिकतर समाचार-पत्र निकलते थे, जिससे लोगों में विशेषकर शिक्षित वर्ग में राष्ट्रीय भावना उदित हो रही थी। विभाजन का उद्देश्य बंगाल में राष्ट्रवाद को दुर्बल करना तथा इसके विरुद्ध एक मुस्लिम गुट खड़ा करना था। जैसा कि कर्जन ने कहा, “इस विभाजन से पूर्वी बंगाल के मुसलमानों को ऐसी एकता प्राप्त होगी जिसकी अनुभूति उन्हें पूर्व के मुसलमान राजाओं और वायसरायों के काल के पश्चात् कभी नहीं हुई।

कर्जन अपने भारतीय कार्यकाल के दौरान अप्रैल, 1904 में कुछ समय के लिए इंग्लैण्ड चला गया। वापस लौटने पर 19 जुलाई, 2004 को भारत सरकार ने बंगाल के दो टुकड़े करने का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव के अनुसार पूर्वी बंगाल और असम को नया प्रान्त बनाना तय किया गया। जिसमें चटगाँव, ढाका और राजेशाही के डिवीजन शामिल थे। नए प्रान्त का क्षेत्रफल एक लाख छ: हजार पाँच सौ चालीस वर्ग मील निर्धारित किया गया, जिसकी आबादी तीन करोड़ दस लाख थी, जिसमें एक करोड़ अस्सी लाख मुसलमान और एक करोड़ बीस लाख हिन्दू थे। नए प्रान्त में एक विधानसभा और बोर्ड ऑफ रेवेन्यू की व्यवस्था थी और इसकी राजधानी ढाका निर्धारित की गई। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा (ओडिशा) थे। इसका क्षेत्रफल एक लाख इकतालीस हजार पाँच सौ अस्सी वर्ग मील था और इसकी आबादी पाँच करोड़ चालीस लाख, जिसमें चार करोड़ बीस लाख हिन्दू और नब्बे लाख मुसलमान थे। भारतीय मन्त्री ब्रॉडरिक ने उपर्युक्त प्रस्ताव में मामूली संशोधन करके इसकी स्वीकृति दे दी। भारत सरकार ने इस सारी योजना को ‘प्रशासकीय सीमाओं का निर्धारण मात्र’ कहा। परिणामस्वरूप कर्जन ने 16 अक्टूबर, 1905 को बंगाल विभाजन की घोषणा कर दी। वस्तुत: यह कर्जन का सर्वाधिक प्रतिक्रियावादी कानून था, जिसका सर्वत्र विरोध हुआ और जिसने शीघ्र ही एक आन्दोलन का रूप ले लिया।

स्वदेशी व बहिष्कार आन्दोलन

लॉर्ड कर्जन के बंगाल विभाजन (बंग-भंग) के बहुत दूरगामी परिणाम हुए। इसने भारतीयों में एक नई राष्ट्रीय चेतना भर दी और विभाजन विरोधी व स्वदेशी आन्दोलन को जन्म दिया। यह, आन्दोलन तब तक चलाया रहा, जब तक भारत सरकार ने 1911 ई० में बंगाल का एकीकरण नहीं कर दिया।

बंगाल विभाजन की घटनाओं से भारतीयों ने जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई। भारत के सभी जन-नेताओं ने एक स्वंर में इसकी कटु आलोचना की। इसे राष्ट्रीय एकता पर कुठराघात कहा गया। इसे हिन्दू-मुसलमानों को आपस में लड़ाने का षड्यन्त्रं कहा गया। इसका उद्देश्य पूर्वी बंगाल को जो सरकारी गुप्त दस्तावेजों में षड्यन्त्रकारियों का अड्डा था, नष्ट करना बताया गया। इस बंग विभाजन को चुनौती के रूप में लिया गया। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने विभाजन की घोषणा को एक बम विस्फोट की भाँति बताया और कहा कि इसके द्वारा हमें अपमानित किया गया है। साथ ही इससे बंगाली परम्पराओं, इतिहास और भाषा पर सुनियोजित आक्रमण किया गया है। गोपालकृष्ण गोखले ने एक ही वाक्य द्वारा बंगाल को शान्त करने की कोशिश की। गोखले ने इसे स्वीकार किया कि नवयुवके यह पूछने लगे हैं कि संवैधानिक उपायों को क्या लाभ है ? क्या इसका परिणाम बंगाल का विभाजन है ? भारत के प्रमुख समाचार-पत्रों ‘स्टेट्समैन’ और ‘इंग्लिशमैन’ ने भी बंग विभाजन का विरोध किया। स्टेट्समैन ने लिखा, “ब्रिटिश भारत के इतिहास में कभी भी ऐसा समय नहीं आया जबकि सुप्रीम सरकार ने जन-भावनाओं और जनमत को इतना कम महत्त्व दिया हो जैसा कि वर्तमान शासन ने।”

अरविन्द घोष जो स्वदेशी आन्दोलन के प्रमुख प्रणेता थे, ने शान्तिपूर्ण प्रतिरोध अथवा प्रतिरक्षात्मक विरोध का एक व्यापक कार्यक्रम तैयार किया। इस कार्यक्रम का सम्बन्ध सभी प्रकार के सरकारी कार्यों से था; जैसे- भारतीय शिक्षण संस्थाओं की स्थापना, प्रशासन, न्याय व्यवस्था तथा समाज सुधार की योजना आदि। इस कार्यक्रम में रचनात्मक पहलू पर बल दिया गया। इसका उद्देश्य था कि जब सरकारी व्यवस्था भारतीयों के असहयोग से गिर जाये तब उसकी वैकल्पिक व्यवस्था की जा सके।

16 अक्टूबर, 1905 को बंगाल का विभाजन किया गया। इस दिन से ही इसका प्रतिक्रियावादी स्वरूप दिखाई देने लगा था। इस दिन को सम्पूर्ण भारत में शोक दिवस के रूप में मनाया गया। लोगों ने व्रत रखा, गंगा स्नान किया, एक-दूसरे के हाथों में एकता का सूत्र राखी बाँधी, जूलूस और प्रभात फेरियाँ निकालीं। समस्त बंगाल वन्देमातरम् के उद्घोष से गूंज उठा। सभी ने स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करने का प्रण लिया, साथ ही विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार भी किया। अत: बंग-भंग विरोधी शीघ्र ही स्वदेशी आन्दोलन और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आन्दोलन बन गया। इस आन्दोलन में सभी वर्गों और सम्प्रदायों ने भाग लिया। नवयुवक, स्त्री-पुरुष, शिक्षित-अशिक्षित सभी इससे प्रेरित हुए। यह आन्दोलन केवल बंगाल तक ही सीमित न रहा, बल्कि बंगाल की सीमाओं को लाँघकर अन्य प्रान्तों में भी फैला। उदाहरणत: पंजाब में रावलपिण्डी और अमृतसर जैसे स्थानों पर स्वेदेशी व विशेषकर ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार के लिए अनेक सभाएँ हुईं। लाजपत राय ने स्वदेशी आन्दोलन के बारे में लिखा कि “जब सैकड़ों वर्षों के कोरे शाब्दिक आन्दोलन और कागजी आन्दोलन फेल हो गए तो इस छ: महीने या बौरह महीने के सही काम ने सफलता प्राप्त की।”

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कैबिनेट मिशन का मुख्य उद्देश्य क्या था ? इसमें कौन-कौन से सदस्य सम्मिलित थे ?
             या
कैबिनेट मिशन क्या था ? क्या इसने पाकिस्तान बनाये जाने की सिफारिश की थी ?
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् इंग्लैण्ड में लेबर पार्टी की सरकार बनी। उधर अमेरिका एवं मित्रराष्ट्र भारत को स्वतन्त्र करने के लिए इंग्लैण्ड पर जोर डाल रहे थे। अत: 24 मार्च, 1946 ई० में ब्रिटिश सरकार द्वारा भेजा हुआ तीन सदस्यीय कैबिनेट मिशन भारत आया। इस मिशन के तीन सदस्य थे-लॉर्ड पेथिक लॉरेन्स, सर स्टेफर्ड क्रिप्स तथा ए०वी० एलेक्जेण्डर। इस समय ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री क्लीमेण्ट एटली थे। इस मिशन ने भारतीयों के समक्ष दो योजनाएँ प्रस्तुत की। एक योजना (मई 16) के अनुसार भारत के समस्त प्रान्तों को तीन भागों में बाँटा गया तथा सम्पूर्ण देश के लिए एक संविधान सभा बनायी गयी।

संविधान सभा में कुल 389 सीटें रखने का निश्चय किया गया, जिसमें 296 सीटों प्रान्तों की व 93 रियासतों की थीं। जुलाई, 1996 ई० में संविधान सभा के लिए चुनाव हुए। प्रान्तों की कुल 296 सीटों में से कांग्रेस को 205, मुस्लिम लीग को 73 और स्वतन्त्र उम्मीदवारों को 18 सीटें प्राप्त हुईं। कैबिनेट मिशन की दूसरी योजना (जून 16) के अनुसार भारत का विभाजन–हिन्दू बहुल भारत व मुस्लिम बहुल पाकिस्तान के रूप में—होना था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को प्रथम योजना भी कुछ शर्तों के साथ स्वीकार थी, दूसरी तो थी ही नहीं।

मुस्लिम लीग ने इसका विरोध किया, क्योंकि उसका कहना था कि अलग-अलग दो राष्ट्र बनेंगे तो उनकी संविधान सभा भी अलग-अलग होनी चाहिए। ब्रिटिश सरकार ने भी मुस्लिम लीग को प्रोत्साहन दिया और कहा कि संविधान तभी लागू किया जाएगा; जब सभी दलों को मान्य होगा। अगस्त, 1946 ई० में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने पण्डित जवाहरलाल नेहरू को अन्तरिम सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित किया।

2 सितम्बर, 1946 ई० को अन्तरिम सरकार भी बन गयी। लॉर्ड वेवेल के आग्रह पर मुस्लिम लीग इस अन्तरिम सरकार में प्रतिनिधि भेजने के लिए तैयार हुई; परन्तु निरन्तर इस माँग पर अडिग रही कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के संविधान के निर्माण के लिए, पृथक्-पृथक् संविधान सभाओं का गठन होना चाहिए। आन्तरिक झगड़ों के कारण शीघ्र ही यह अन्तरिम सरकार असफल होकर समाप्त हो गयी।

सन् 1947 ई० में लॉर्ड वेवेल के उत्तराधिकारी लॉर्ड माउण्टबेटन भारत आये। उन्होंने भारतीय कांग्रेसी नेताओं और लीग के नेताओं से वार्तालाप किया और एक योजना उनके समक्ष रखी। इस माउण्टबेटन योजना में देश के विभाजन एवं देश की स्वतन्त्रता की घोषणा की गयी थी। देश का विभाजन भारत के दुर्भाग्य के कारण होना निश्चित ही हो चुका था, इसलिए कांग्रेस ने इसे न चाहते हुए भी स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 2.
माउण्टबेटन योजना क्या थी ?
उत्तर :
24 मार्च, 1947 ई० को लॉर्ड माउण्टबेटन भारत के वायसराय नियुक्त किये गये और ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि वह अधिक-से अधिक जून, 1948 ई० तक भारतीयों को सत्ता सौंप देगी।

3 जून, 1947 ई० को लॉर्ड माउण्टबेटन ने प्रस्ताव रखा कि भारत को दो भागों में विभाजित करके भारतीय संघ व पाकिस्तान नामक अलग-अलग राज्य बनाये जाएँ। भारतीय नरेशों के सामने यह विकल्प रखा गया कि वे अपना-अपना भविष्य स्वयं तय करें। कश्मीर के तत्कालीन महाराज हरिसिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 ई० को भारत सरकार से प्रार्थना की कि वह कश्मीर के भारत में विलय को स्वीकार कर लें।

प्रश्न 3.
माउण्टबेटन योजना के तीन सिद्धान्त लिखिए। (2017)
उत्तर :
माउण्टबेटन योजना के तीन सिद्धान्त निम्नांकित थे –

1. पाकिस्तान की माँग अस्वीकार – जिन्ना सारा बंगाल और असम पूर्वी पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे। इसी तरह सारे पंजाब और पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त तथा सिन्ध और बलूचिस्तान को पश्चिम पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे। लॉर्ड माउण्टबेटन तथा कांग्रेसी नेता इस बात के लिए बिल्कुल भी सहमत नहीं थे। वे पंजाब और बंगाल के हिन्दू-बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान से निकालना चाहते थे। इसलिए माउण्टबेटन योजना के अनुसार असम को पाकिस्तान से बाहर निकाल दिया गया और पंजाब तथा बंगाल के बँटवारे की व्यवस्था की गई। इस हेतु प्रत्येक हिन्दू-बहुल जिले को भारत में और प्रत्येक मुस्लिम बहुल जिले को पाकिस्तान में शामिल किया जाना था।

2, असेम्बलियों में बैठक व्यवस्था का विभाजन – पंजाब और बंगाल की असेम्बलियों के सदस्य अलग-अलग हिन्दू-बहुल और मुस्लिम-बहुल जिलों के हिसाब से बैठने की व्यवस्था करेंगे। यदि पंजाब के हिन्दू-बहुल जिलों के सदस्य पंजाब के बँटवारे के लिए प्रस्ताव पारित कर देंगे, तो पंजाब का बँटवारा कर दिया जाएगा। इसी प्रकार की व्यवस्था बंगाल में भी की गई थी।

3. सिलहट में जनमत संग्रह – चूँकि असम के सिलहट में मुसलमानों की जनसंख्या अधिक थी, इसलिए यह व्यवस्था की गई कि वहाँ जनमत द्वारा यह निर्णय किया जाएगा कि वहाँ के नागरिक भारत में शामिल होना चाहते हैं अथवा पूर्वी पाकिस्तान में।

प्रश्न 4.
क्या भारत-विभाजन टाला जा सकता था ? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर :
भारत का विभाजन अनिवार्य था या इसे टाला जा सकता था, इस प्रश्न पर विद्वानों के दो विरोधी मत हैं। मौलाना आजाद का मत है कि भारत का विभाजन अनिवार्य नहीं था, वरन् पं० जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल तथा कुछ राष्ट्रवादी नेताओं ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए स्वेच्छा से विभाजन को स्वीकार किया था। दूसरे पक्ष के समर्थकों का कहना है कि उस समय की राजनीतिक परिस्थिति ऐसी बन चुकी थी कि विभाजन के अतिरिक्त कोई अन्य उपाय नहीं था। यदि कांग्रेस ने विभाजन को स्वीकार न किया होता तो देश का सर्वनाश तक हो सकता था।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि इसमें सन्देह नहीं है कि भारत का विभाजन एक सीमा तक अनुचित ही था, क्योंकि हम आज उसके दुष्परिणाम प्रत्यक्षतः देख रहे हैं। गांधी जी ने भी कहा था, “भारत का विभाजन मेरे 32 वर्ष के सत्याग्रह का लज्जाजनक परिणाम है।”

प्रश्न 5.
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के तीन प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए। [2014]
उत्तर :
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 की तीन प्रमुख प्रावधान निम्नवत् हैं –

  1. ब्रिटिश भारत का दो नये एवं सम्प्रभुत्व वाले दो देशों-भारत एवं पाकिस्तान में विभाजन जो 15 अगस्त, 1947 से प्रभावी हो।
  2. बंगाल और पंजाब रियासतों का इन दोनों नये देशों में विभाजन।
  3. दोनों नये देशों में गवर्नर जनरल के कार्यालय की स्थापना जो इंग्लैण्ड की महारानी का प्रतिनिधि होता।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लॉई वेवेल ने किस स्थान पर सम्मेलन को बुलाया ?
उत्तर :
लॉर्ड वेवेल ने शिमला में एक सम्मेलन बुलाया।

प्रश्न 2.
कैबिनेट मिशन को किस ब्रिटिश प्रधानमन्त्री ने भारत भेजा था ?
उत्तर :
कैबिनेट मिशन को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री क्लीमेण्ट ने भारत भेजा था।

प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भारत का प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल कौन था ? [2010, 17]
उत्तर :
सी० राजगोपालाचारी।

प्रश्न 4.
क्लीमेण्ट एटली ने किस बात की घोषणा की थी ?
उत्तर :
क्लीमेण्ट एटली ने घोषणा की थी कि ब्रिटिश सरकार भारत के साम्प्रदायिक एवं राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए कैबिनेट मिशन भारत भेजेगी।

प्रश्न 5.
भारत का विभाजन किस योजना के तहत हुआ ?
उत्तर :
भारत का विभाजन माउण्टबेटन योजना के तहत हुआ।

प्रश्न 6.
सम्प्रदायवाद से आप क्या समझते हैं ? इसके निराकरण का कोई एक उपाय बताइए। [2012]
उत्तर :
अन्य सम्प्रदायों और मजहबों के विरुद्ध द्वेष और भेदभाव पैदा करना सम्प्रदायवाद है। साम्प्रदायिक सद्भाव विकसित करके विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों के व्यक्तियों को एक-साथ रहने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए तथा इसके लिए कोई राष्ट्रीय नीति बनायी जानी चाहिए।

बहुविकल्पीय प्रशन

1. कांग्रेस को विधानसभा के चुनाव में कितने प्रान्तों में सफलता मिली ?

(क) 5 प्रान्तों में
(ख) 4 प्रान्तों में
(ग) 11 प्रान्तों में
(घ) 7 प्रान्तों में

2. भारत में अन्तरिम मन्त्रिमण्डल का गठन किसके नेतृत्व में किया गया ?

(क) पं० जवाहरलाल नेहरू के
(ख) सरदार वल्लभभाई पटेल के
(ग) मुहम्मद अली जिन्ना के
(घ) सुभाषचन्द्र बोस के

3. भारत किस सन् में आजाद हुआ ?

(क) 1942 ई० में
(ख) 1947 ई० में
(ग) 1948 ई० में
(घ) 1950 ई० में

4. निम्नलिखित में से किसने भारत में आर्थिक नियोजन की नीति प्रारम्भ की ? [2013]

(क) पं० जवाहरलाल नेहरू
(ख) डॉ० बी०आर० अम्बेडकर
(ग) सरदार वल्लभभाई पटेल
(घ) महात्मा गांधी

5. भारत की स्वतन्त्रता और विभाजन की घोषणा की गई [2016]
             या
भारत के विभाजन के समय भारत में वाइसराय कौन थे?

(क) माउण्टबेटन योजना द्वारा
(ख) कैबिनेट मिशन द्वारा
(ग) वेवेल द्वारा
(घ) क्रिप्स योजना द्वारा

6. भारत में लिखित संविधान कब लागू हुआ? [2016]

(क) 15 अगस्त को
(ख) 14 अगस्त को
(ग) 10 दिसम्बर को
(घ) 26 जनवरी को

7. देशी रियासतों के एकीकरण में किसने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया? [2018]

(क) महात्मा गाँधी
(ख) सरदार वल्लभभाई पटेल
(ग) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(घ) सुभाष चन्द्र बोस

उत्तरमाला 

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 16 (Section 1) 1

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 16 are helpful to complete your homework.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This is a free online math calculator together with a variety of other free math calculatorsMaths calculators
+