UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 7 ऊर्जा संसाधन (अनुभाग – तीन)
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विस्तृत उतरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में कोयले का वितरण एवं उपयोग का वर्णन कीजिए।
या
कोयले का महत्त्व स्पष्ट करते हुए भारत में इसके उत्पादन का वर्णन कीजिए। [2013]
या
भारत में कोयले का उत्पादन एवं वितरण का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
या
भारत में कोयला उत्पादन के किन्हीं दो प्रमुख राज्यों का वर्णन कीजिए। [2016]
या
भारत में कोयले के उत्पादन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए। [2016]
या
कोयले का संरक्षण क्यों आवश्यक है? तीन कारक बताइए। [2018]
उतर :
कोयले का उपयोग या महत्त्व
कोयला शक्ति का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन तथा ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। इसका उत्पादन एवं उपयोग किसी देश की प्रगति का सूचक माना जाता है। यह अपनी तीन विशेषताओं; यथा—भाप बनाने, ताप प्रदान करने तथा कठोर धातुओं के पिघलाने के कारण वर्तमान औद्योगिक सभ्यता का आधार-स्तम्भ बन गया है। कोयले से प्राप्त शक्ति खनिज तेल से प्राप्त की गयी शक्ति से दोगुनी, प्राकृतिक गैस से पाँच गुनी तथा जल-विद्युत शक्ति से आठ गुना अधिक होती है। इससे स्टीम कोक अर्थात् ताप ऊर्जा प्राप्त की जाती है। भारत के कोयला उत्पादन का लगभग तीन-चौथाई भाग उद्योग-धन्धों व विद्युत उत्पादन, एक-चौथाई रेलों के संचालन व अन्य कार्यों में प्रयुक्त किया जाता है। कोयले के इस महत्त्व को देखते हुए इसे ‘काला हीरा’ के नाम से पुकारा जाता है।
संचित मात्रा- कोयले के भण्डारों की दृष्टि से भारत का विश्व में छठा स्थान है। भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग ने कोयले की संचित राशि 250 अरब टन ऑकी है। लिग्नाइट का भण्डार 24 अरब टन अनुमानित किया गया है। सम्पूर्ण कोयला भण्डारों का 78.3% भाग दामोदर घाटी में स्थित है।
उत्पादन एवं वितरण
भारत में निम्नलिखित दो क्षेत्र कोयले के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं
(1) गोण्डवाना कोयला क्षेत्र- भारत में कुल 113 कोयला क्षेत्र हैं, जिनमें से 80 कोयला क्षेत्र गोण्डवाना काल की शैलों से सम्बन्धित हैं। इन शैलों में 96% कोयला संचित है तथा 98% उत्पादन इन्हीं से प्राप्त होता है। इसका क्षेत्रफल 90,650 वर्ग किमी है। कोयला उत्पादन में निम्नलिखित क्षेत्र प्रमुख हैं
- गोदावरी घाटी क्षेत्र- आन्ध्र प्रदेश का कोयला उत्पादन में चौथा स्थान है, जहाँ देश का 10% कोयला निकाला जाता है। यहाँ गोदावरी नदी की घाटी में सिंगरेनी, तन्दूर तथा सस्ती नामक खदानों से कोयला निकाला जाता है। अदिलाबाद, पश्चिमी गोदावरी, करीम नगर, खम्माम एवं वारंगल प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र हैं।
- महानदी घाटी क्षेत्र- इस कोयला क्षेत्र का विस्तार ओडिशा राज्य में है। वेंकानाल, सुन्दरगढ़ एवं सम्भलपुर प्रमुख कोयला उत्पादक जिले हैं।
- उत्तरी दामोदर घाटी क्षेत्र- यह झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल राज्यों में विस्तृत है। यहाँ राजमहल की पहाड़ियों में सबसे अधिक कोयले के भण्डार पाये जाते हैं।
- दामोदर घाटी क्षेत्र- यह देश का सबसे विशाल कोयला क्षेत्र है। इसका विस्तार झारखण्ड एवं पश्चिमी बंगाल राज्यों तक है।
- झारखण्ड- भारत के लगभग 36% कोयले का उत्पादन करके यह राज्य देश में प्रथम स्थान प्राप्त किये हुए है। यहाँ झरिया, बोकारो, राजमहल, उत्तरी-दक्षिणी कर्णपुरा, डाल्टनगंज तथा गिरिडीह जैसी प्रमुख कोयले की खदानें हैं। झरिया यहाँ की सबसे बड़ी खान है, जो 436 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली हुई है।
- पश्चिम बंगाल- पश्चिम बंगाल देश का 13% कोयला उत्पन्न कर तीसरे स्थान पर है। यहाँ पर रानीगंज कोयले की प्रमुख खान है, जो 1,536 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली हुई है।
- छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश – इस क्षेत्र का कोयला उत्पादन में दूसरा स्थान है। छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश राज्यों से संयुक्त रूप से 28% कोयला निकाला जाता है। यहाँ पेंच घाटी, सोहागपुर, उमरिया, सिंगरौली, रामगढ़, रामकोला, तातापानी, कोरबा तथा बिलासपुर में कोयले की खाने हैं।
- सोन एवं उसकी सहायक नदी- घाटियों का क्षेत्र मध्य प्रदेश राज्य में इस कोयला क्षेत्र का विस्तार है। यह क्षेत्र उमरिया, सोहागपुर एवं सिंगरौली में विस्तृत है।
- सतपुड़ा कोयला क्षेत्र- सतपुड़ा कोयला क्षेत्र का विस्तार मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र राज्यों में है। नरसिंहपुर जिले में मोहपानी, कान्हन घाटी, पेंच घाटी तथा बैतूल जिले में पाथरखेड़ा क्षेत्र उल्लेखनीय हैं।
- गोदावरी-वर्धा घाटी क्षेत्र- इस क्षेत्र के अन्तर्गत महाराष्ट्र में चन्द्रपुर, बलारपुर, बरोरा, यवतमाल, नागपुर आदि जिले तथा आन्ध्र प्रदेश के सिंगरेनी, सस्ती एवं तन्दूर क्षेत्र सम्मिलित हैं। देश के 3% भण्डार यहाँ सुरक्षित हैं।
(2) टर्शियरी कोयला क्षेत्र
यह कोयला प्रायद्वीप के बाह्य भागों में पाया जाता है। सम्पूर्ण भारत का 2% कोयला टर्शियरी काल की चट्टानों से प्राप्त होता है। यह लिग्नाइट प्रकार का है, जिसमें कार्बन की मात्रा 30 से 50% तक पायी जाती है। इसका उपयोग ताप-विद्युत, कृत्रिम तेल तथा ब्रिकेट बनाने में किया जाता है। देश में इस कोयले के 23.1 करोड़ टन के सुरक्षित भण्डार अनुमानित किये गये हैं। इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं
- राजस्थान- राजस्थान में कोयला बीकानेर के दक्षिण-पश्चिम में 20 किमी की दूरी पर पालना नामक स्थान और उसके आस-पास के क्षेत्र मढ़, चनेरी, गंगा-सरोवर एवं खारी क्षेत्रों में मिलता है।
- असोम- यहाँ पर कोयला पूर्वी नागा पर्वत के उत्तर-पश्चिमी ढाल पर लखीमपुर तथा शिवसागर जिलों में पाया जाता है। यहाँ माकूम सबसे बड़ा कोयला उत्पादक क्षेत्र है।
- मेघालय- मेघालय में मिकिर की पहाड़ियों में 1 से 2 मीटर मोटी परत वाला हल्की श्रेणी का कोयला पाया जाता है। यहाँ पर गारो, खासी एवं जयन्तिया पहाड़ियों में कोयला मिलता है।
- जम्मू-कश्मीर- दक्षिण-पश्चिमी कश्मीर में करेवा चट्टानों में कोयला मिलता है, जो घटिया किस्म का होता है।
प्रश्न 2.
ऊर्जा या शक्ति के संसाधन से आप क्या समझते हैं? भारत में खनिज तेल के क्षेत्रीय वितरण को समझाइट। [2013]
या
खनिज तेल का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) क्षेत्र, (ख) भावी सम्भावनाएँ तथा (ग) तेलशोधक कारखाने
या
ऊर्जा संसाधन के रूप में खनिज तेल का महत्त्व बताइए। भारत में पाये जाने वाले खनिज तेल के दो क्षेत्रों पर प्रकाश डालिए। [2010, 11]
या
बॉम्बे-हाई क्यों प्रसिद्ध है ? इस पर प्रकाश डालिए।
या
भारत में खनिज तेल के उत्पादन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए। [2016]
या
भारत में खनिज तेल के वितरण एवं उपयोग का वर्णन कीजिए। [2016]
उत्तर :
ऊर्जा या शक्ति के संसाधन
जिन पदार्थों से मनुष्य को अपने विभिन्न कार्यों एवं गतिविधियों को चलाने के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है, उन्हें ऊर्जा या शक्ति के संसाधन कहा जाता है।
खनिज तेल की उपयोगिता/महत्त्व
खनिज तेल ऊर्जा का दूसरा महत्त्वपूर्ण संसाधन है। इसे पेट्रोलियम भी कहा जाता है। प्राकृतिक वनस्पति एवं जीवों के बड़ी मात्रा में कीचड़, मिट्टी, बालू आदि में दबे रहने पर उन पर ताप, दबाव, रासायनिक, जीवाणु एवं रेडियो-सक्रियता आदि क्रियाओं के फलस्वरूप करोड़ों वर्षों की अवधि में खनिज तेल की उत्पत्ति होती है। भूगर्भ से प्राप्त खनिज तेल में कई अशुद्धियाँ मिली होती हैं। अत: प्रयोग से पहले इसे तेल-शोधनशालाओं में साफ करने के लिए ले जाया जाता है। इसे साफ कर पेट्रोल, ईथर, बेंजीन, गैसोलीन, मिट्टी का तेल, मशीनों को चिकना करने का तेल, मोम, फिल्म, प्लास्टिक, वार्निश, पॉलिश, मोमबत्ती, वैसलीन आदि लगभग 5,000 पदार्थ प्राप्त होते हैं। इनका उपयोग यातायात साधनों-मोटर, वायुयान, जलयान, रेले एवं उद्योग-धन्धों आदि में ईंधन के रूप में किया जाता है।
खनिज तेल उत्पादक-क्षेत्र
1. असोम–
- डिगबोई तेल-क्षेत्र – इस तेल-क्षेत्र का विस्तार टीपम पहाड़ियों के पूर्वोत्तर में लखीमपुर जिले में है, जो 13 किमी लम्बे एवं 1 किमी चौड़े क्षेत्र में विस्तृत है। यहाँ 300 से 1,200 मीटर की गहराई के 800 तेल के कुएँ हैं। तेल निकालने का कार्य असम तेल कम्पनी द्वारा किया जाता है। प्रमुख तेल के कुएँ बप्पापाँग, हस्सापाँग, डिगबोई एवं पानीटोला हैं।
- सुरमा नदी-घाटी तेल-क्षेत्र – इस नदी-घाटी में हल्की श्रेणी का तेल दक्षिण में बदरपुर एवं पथरिला में निकाला जाता है। दूसरा प्रमुख क्षेत्र मसीमपुर में स्थित है, जहाँ लगभग 18,000 मीटर की गहराई से तेल निकाला जा रहा है।
- नाहरकटिया तेल-क्षेत्र – इस क्षेत्र में 1953 ई० से तेल का उत्पादन प्रारम्भ किया गया था। इस स्थान की स्थिति डिगबोई से 40 किमी दक्षिण-पश्चिम में दिहिंग नदी के किनारे है, यहाँ 4,000 से 5,000 मीटर की गहराई तक तेल के कुएँ खोदे गये हैं, जिनकी उत्पादन क्षमता 25 लाख टन तेल निकालने की है। इस क्षेत्र में अब तक 80 से अधिक कुएँ खोदे जा चुके हैं, जिनमें से 60 में तेल प्राप्त हुआ है तथा 4 में गैस मिली है।
- हुगरीजन-मोरेन तेल-क्षेत्र – इसकी स्थिति नाहरकटिया से 40 किमी दक्षिण-पश्चिम में है। यहाँ 29 कुओं में से 22 में तेल के साथ प्राकृतिक गैस भी प्राप्त होती है।
- रुद्रसागर एवं लकवा तेल-क्षेत्र – इस तेल-क्षेत्र का विस्तार मोरेन तेल-क्षेत्र के दक्षिण में शिवसागर जिले में है। तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग और ऑयल इण्डिया ने ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी में 1961 ई० में रुद्रसागर और 1965 ई० में लकवा नामक स्थानों पर तेल की खोज का कार्य किया। रुद्रसागर का वार्षिक उत्पादन 4 लाख टन एवं लकवा का 6 लाख टन अनुमानित किया गया है।
2. गुजरात-
- अंकलेश्वर तेल-क्षेत्र – इस तेल-क्षेत्र का पता 1958 ई० में चला। यह नर्मदा नदी पर बड़ौदा से 44 किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यहाँ तेल एवं प्राकृतिक गैस का उत्पादन लगभग 1,200 मीटर की गहराई से किया जाता है। इसका वार्षिक उत्पादन 20 लाख टन है। इसमें मिट्टी का तेल एवं गैसोलीन की अधिकता होती है।
- खम्भात या लुनेज तेल-क्षेत्र – यह तेल-क्षेत्र खम्भात की खाड़ी के ऊपरी सिरे पर बड़ोदरा से 60 किमी पश्चिम में बाडसर में स्थित है। यहाँ 1969 ई० तक 62 कुओं की खुदाई की गयी, जिनमें से 43 में तेल तथा 19 से गैस प्राप्त हुई है। इस क्षेत्र से प्रतिदिन 6 लाख़ घन मीटर प्राकृतिक, गैस प्राप्त होती है।
- अहमदाबाद-कलोल-तेल-क्षेत्र – इस तेल-क्षेत्र की स्थिति अहमदाबाद के पश्चिम में है। कलोल, नवगाँव, कोसम्बा, कोथना, मेहसाना, सानन्द, बेचराजी, बकरोल, कादी, वासना, धोलका, बावेल, ओल्पाद्, सोभासन आदि स्थानों पर तेल प्राप्त हुआ है।
3. अपतटीय क्षेत्र—
- अलियाबेट तेल-क्षेत्र – सौराष्ट्र में भावनगर से 45 किमी दूर अरब सागर में स्थित अलियाबेट द्वीप में भी नये तेल-भण्डारों का पता चला है। खम्भात के निकट गैस प्राप्त हुई है।
- बॉम्बे-हाई तेल-क्षेत्र – महाराष्ट्र राज्य में महाद्वीपीय समुद्रमग्न तटीय क्षेत्र पर मुम्बई महानगर से उत्तर-पश्चिम में 176 किमी की दूरी पर अरब सागर में यह तेल-क्षेत्र स्थित है। यहाँ 1976 ई० से तेल का व्यावसायिक उत्पादन किया जा रहा है। यहाँ ‘सागर सम्राट’ नामक जापानी जल मंच है (Platform) की सहायता से 1,415 मीटर की गहराई से तेल निकाला जाता है। यह देश का सबसे बड़ा तेल उत्पादन-क्षेत्र है, जो देश के 60% से अधिक तेल का उत्पादन करता है।
- बेसीन तेल-क्षेत्र – इसकी स्थिति बॉम्बे-हाई के दक्षिण में है। इसका पता वर्तमान में ही चला है। यहाँ पर तेल की प्राप्ति 1,900 मीटर की गहराई से हुई है।
4. नवीन तेल-क्षेत्र- सन् 1980 ई० के दशक में तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ONGC) तथा ऑयल इण्डिया लि० (OIL) के सम्मिलित प्रयासों से तेल की खोज सर्वेक्षण द्वारा कावेरी तथा कृष्णागोदावरी बेसिनों तथा अपतटीय क्षेत्रों में तेल की प्राप्ति हुई। गुजरात के गान्धार तेल-क्षेत्र तथा मुम्बई अपतटीय क्षेत्रों में हीरा, पन्ना, ताप्ती, दमन अपतटीय, दक्षिणी बेसिन तथा नीलम क्षेत्रों में भी तेल प्राप्त हुआ। 1987-89 ई० के दौरान असोम में बोरबिल, दिरोई तथा हपजन में तेल तथा अरुणाचल प्रदेश | में कुमचई में तेल तथा गैस प्राप्त हुए हैं।
भावी सम्भावनाएँ
ऊर्जा के संसाधनों में खनिज तेल का व्यापक महत्त्व है, क्योंकि इसमें कोयले की अपेक्षा ताप-शक्ति कई गुना अधिक होती है। वर्तमान में कारखानों में इंजनों को चलाने में, भट्टियों को ताप-शक्ति देने, मोटरगाड़ियों, रेलगाड़ियों, जलयानों एवं वायुयानों को चलाने के लिए खनिज तेल की संसाधन के रूप में उपयोगिता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। यद्यपि ओ०एन०जी०सी० और ओ०आई०एल० की स्थापना के बाद इनके अलग-अलग और संयुक्त प्रयासों से असोम, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, बॉम्बे हाई, खम्भात की खाड़ी आदि के अतिरिक्त अनेक तेल के भण्डारों की खोज की गयी, तथापि देश की माँग को देखते हुए देश को एक बड़े रूप में तेल का आयात प्रति वर्ष करना पड़ रहा है। भारत के आयात व्यापार के कुल मूल्य का लगभग 40% खनिज तेल ही होता है। देश में तेल की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए नवीन तेल-क्षेत्रों की खोज चल रही है। अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूहों, राजस्थान तथा गांगेय घाटी में सुदूर संवेदी तकनीक का प्रयोग करते हुए तेल की खोज जारी है।
तेलशोधक कारखाने
पृथ्वी से जो खनिज तेल प्राप्त होता है, वह अशुद्ध होता है। इसे तेलशोधनशालाओं में साफ किया जाता है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पूर्व देश में एकमात्र तेलशोधनशाला डिगबोई में थी। वर्तमान समय में देश में 18 तेलशोधनशालाएँ हैं, जो देश में प्राप्त तथा विदेशों से आयातित अशुद्ध तेल का शोधन करती हैं। इनमें 17 तेलशोधनशालाएँ सार्वजनिक क्षेत्र में तथा 1 रिलायन्स इण्डस्ट्रीज लि० निजी क्षेत्र में है। ये डिगबोई (असोम), गुवाहाटी (गौहाटी), बोंगई गाँव (असोम), ट्रॉम्बे-I एवं II (महाराष्ट्र), विशाखापत्तनम् (आन्ध्र प्रदेश), चेन्नई (तमिलनाडु), बरौनी (बिहार), कोयली (गुजरात), कोच्चि (केरल), नूनामती (असोम), नुमालीगढ़ (असोम), कावेरी (तमिलनाडु), हल्दिया (प० बंगाल), मथुरा (उत्तर प्रदेश), करनाल (हरियाणा) तथा मंगलौर (कर्नाटक) में स्थापित हैं। बरौनी, नूनामती, बोंगई गाँव, कोयली, डिगबोई एवं ट्रॉम्बे की तेलशोधनशालाएँ देश में उत्पादित तेल का शोधन करती हैं तथा शेष विदेशों से आयातित तेल का।
प्रश्न 3.
भारत में परमाणु शक्ति के उत्पादन का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) उत्पादन केन्द्र तथा (ख) महत्त्व।
या
भारत के किन्हीं पाँच परमाणु ऊर्जा केन्द्रों का वर्णन कीजिए। [2010, 11]
या
भारत में परमाणु ऊर्जा केन्द्र कहाँ-कहाँ स्थापित हैं ? [2011]
उत्तर :
(क) उत्पादन केन्द्र – भारत में प्रथम परमाणु रिएक्टर अप्सरा 4 अगस्त, 1956 ई० को कार्यान्वित कर लिया गया था। दूसरा रिएक्टर कनाडा-भारत रिएक्टर नाम से जून, 1959 ई० से कार्य करने लगा था। इसकी उत्पादन क्षमता 40 मेगावाट शक्ति की थी। ध्रुव नामक एक अन्य रिएक्टर 100 मेगावाट की उत्पादन क्षमता को अगस्त, 1985 ई० में पूर्ण कर लिया गया था। भारत में परमाणु शक्ति विद्युत उत्पादन में निम्नलिखित राज्यों का महत्त्वपूर्ण योगदान है
-
- महाराष्ट्र – सन् 1960 ई० में मुम्बई के निकट तारापुर नामक स्थान पर एक परमाणु शक्ति-गृह स्थापित किया गया। यहाँ 2 X 160 मेगावाट क्षमता के विद्युत शक्ति-गृह स्थापित हैं।
- राजस्थान – इस राज्य में कोटा में रावतभाटा स्थान पर एक रिएक्टर की दो इकाइयाँ 440 मेगावाट शक्ति की लगायी गयी हैं। इनमें यूरेनियम तथा हल्के जल का उपयोग किया जाता है।
- महाराष्ट्र – सन् 1960 ई० में मुम्बई के निकट तारापुर नामक स्थान पर एक परमाणु शक्ति-गृह स्थापित किया गया। यहाँ 2 X 160 मेगावाट क्षमता के विद्युत शक्ति-गृह स्थापित हैं।
- तमिलनाडु – तमिलनाडु राज्य में चेन्नई के निकट कलपक्कम नामक स्थान पर एक परमाणु केन्द्र स्थापित किया गया है। इसमें दो इकाइयाँ हैं, जिनकी उत्पादन क्षमता 470 मेगावाट है।
- उत्तर प्रदेश – इस राज्य में बुलन्दशहर जिले के नरौरा नामक स्थान पर 470 मेगावाट क्षमता के दो रिएक्टर लगाये गये हैं।
- एक अन्य रिएक्टर के निर्माण का कार्य गुजरात में काकरापारा में किया गया। इसकी उत्पादन क्षमता 470 मेगावाट शक्ति की है, जिसमें दो रिएक्टरों ने कार्य प्रारम्भ कर दिया है। इसके अतिरिक्त कर्नाटक में कैगा स्थान पर 470 मेगावाट क्षमता का परमाणु शक्ति-गृह स्थापित किया गया है। वर्तमान समय में देश में कुल 14 परमाणु ऊर्जा रिएक्टर काम कर रहे हैं, जिनकी कुल उत्पादन-क्षमता 2,720 मेगावाट है।
(ख) महत्त्व – भारत में उत्तमकोटि के कोयले और खनिज तेल की कमी है। अत: परमाणु शक्ति द्वारा इस कमी को पूरा किया जा सकता है। परमाणु शक्ति एक आदर्श विकल्प है, जिसका उत्पादन प्रदूषण की समस्या भी पैदा नहीं करता है। भारत कुछ परमाणु-खनिजों में धनी है। बिहार के सिंहभूम और राजस्थान के कुछ भागों में यूरेनियम की खाने हैं। केरल के तट पर पाया जाने वाला मोनोजाइट बालू, परमाणु ऊर्जा का साधन है। भारत में परमाणु विद्युत उत्पादन की प्रतिशत वृद्धि सन्तोषप्रद है। देश की कुल विद्युत उत्पादनक्षमता में अभी नाभिकीय ऊर्जा का अंश मात्र 3% है, परन्तु इसकी भावी सम्भावनाएँ बहुत अधिक हैं। कुल विद्युत उत्पादन संयन्त्रों में नाभिकीय संयन्त्रों का हिस्सा 4% है। परमाणु ऊर्जा केन्द्र ऐसे स्थानों पर भी सरलता से स्थापित किये जा सकते हैं, जहाँ शक्ति के दूसरे संसाधन या तो हैं ही नहीं या उनकी अत्यधिक कमी है। भारत परमाणु ऊर्जा के शान्तिपूर्ण उपयोगों; जैसे—चिकित्सा और कृषि के लिए। प्रतिबद्ध है।
प्रश्न 4.
परम्परागत ऊर्जा संसाधन से आप क्या समझते हैं ? परम्परागत ऊर्जा संसाधनों के स्रोतों का वर्णन कीजिए।
या
परम्परागत ऊर्जा के संसाधन क्या हैं? इनके दो प्रमुख संसाधनों का वर्णन भी कीजिए।
उत्तर :
परम्परागत ऊर्जा संसाधन
परम्परागत स्रोत ऊर्जा के वे स्रोत हैं, जो प्रयोग के पश्चात् समाप्त हो जाते हैं। इसलिए इन्हें अनव्यकरणीय, समापनीय या क्षयशील स्रोत भी कहा जाता है।
परम्परागत ऊर्जा संसाधन के स्रोत
ऊर्जा के परम्परागत साधनों अथवा स्रोतों में से प्रमुख का विवरण निम्नलिखित है
1. कोयला – भारत विश्व के कोयला उत्पादक देशों में छठा स्थान रखता है। अनुमानतः भारत में 250 अरब टन कोयले के सुरक्षित भण्डार हैं। क्षेत्र–भारत का समस्त कोयला गोण्डवाना क्षेत्र (पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा और मध्य प्रदेश) तथा टर्शियरी क्षेत्र (कच्छ, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु और राजस्थान) में पाया जाता है।
2. खनिज तेल ( पेट्रोलियम) – आज के भौतिक युग की मुख्य संचालन-शक्ति पेट्रोलियम ही है। क्षेत्र–खनिज तेल के उत्पादन में भारत का विश्व में बारहवाँ स्थान है। यहाँ संसार का केवल 0.5% खनिज तेल ही उत्पन्न किया जाता है। भारत में मुख्य रूप से असोम, गुजरात तथा बॉम्बे-हाई में तेल-क्षेत्र स्थित हैं। वर्तमान समय में भारत में तेल की 18 तेलशोधक इकाइयाँ (रिफाइनरी) कार्यरत,
3. जल-विद्युत शक्ति – भारत में शक्ति के साधनों में जल-विद्युत का विशेष महत्त्व है। यहाँ जल-शक्ति का असीमित भण्डार उपलब्ध है। अनुमान है कि जल-शक्ति के द्वारा भारत में 4 करोड़ किलोवाट से भी अधिक विद्युत शक्ति उत्पन्न की जा सकती है।
क्षेत्र – भारत में जल-विद्युत शक्ति उत्पादक क्षेत्रों का विवरण निम्नलिखित है
- महाराष्ट्र – यह जल-विद्युत उत्पादन में अग्रणी है। टाटा जलविद्युत (तीन शक्ति-गृह), भिवपुरी, खोपोली, मीरा, कोयना, पूर्णा, वैतरणा, भटनगर-बीड़ आदि मुख्य जल-विद्युत केन्द्र हैं।
- कर्नाटक – विद्युत शक्ति का उत्पादन सर्वप्रथम इसी राज्य में हुआ था। कावेरी पर शिवसमुद्रम्, शिमला, जोग, तुंगभद्रा, शरावती आदि प्रमुख जल-विद्युत योजनाएँ हैं।
- तमिलनाडु – पायकारा, कावेरी पर मैटूर, ताम्रपर्णी पर पापानासम्, मोयार, कुण्डा, पेरियार, परम्बिकुलम्, अलियार प्रमुख परियोजनाएँ हैं।
- पंजाब व हिमाचल प्रदेश – मण्डी, गंगुछाल, कोटला, भाखड़ा तथा II, बैरासिडल, चमेरा आदि।
- केरल – पल्लीवासल, सेंगुलम्, शोलयार, पोरिंगलकुथु, नेरियामंगलम्, पोन्नियार, शबरीगिरि, इडुक्की, कट्टियाडी आदि प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएँ हैं।
- उत्तर प्रदेश – ऊपरी गंग नहर पर ‘गंगा इलेक्ट्रिक ग्रिड’ महत्त्वपूर्ण है, जिसके अन्तर्गत पथरी, मुहम्मदपुर, निरगाजनी, चितौरा, सलावा, भोला, पल्हेड़, सुमेरा आदि स्थानों पर कृत्रिम बाँध बनाकर जल- विद्युत का विकास किया गया है। रिहन्द, माताटीला, यमुना हाइडिल, रामगंगा जल विद्युत परियोजनाएँ भी उल्लेखनीय हैं।
- जम्मू-कश्मीर – सिन्ध, झेलम, सलाल, चेनानी, दुलहस्री आदि मुख्य जल-विद्युत परियोजनाएँ हैं।
4. अणु शक्ति या परमाणु बिजली – जिन खनिजों में रेडियोधर्मी तत्त्व पाये जाते हैं, उन्हें ‘परमाणु खनिज’ कहते हैं; जैसे-यूरेनियम, थोरियम, प्लूटोनियम, रेडियम आदि। इन खनिजों में परमाणुओं तथा अणुओं के विघटन से एक प्रकार का ताप या शक्ति उत्पन्न होती है, जिसे ‘परमाणु शक्ति’ कहा जाता है।
क्षेत्र – भारत में अणु शक्ति केन्द्र निम्नलिखित हैं—
- ट्रॉम्बे अणु शक्ति केन्द्र,
- तारापुर परमाणु शक्ति केन्द्र,
- कोटा परमाणु शक्तिगृह,
- इन्दिरा गांधी अणु शक्ति केन्द्र, कलपक्कम (चेन्नई),
- नरौरा परमाणु शक्ति केन्द्र,
- काकरापारा परमाणु शक्ति केन्द्र (गुजरात)।
प्रश्न 5.
गैर-परम्परागत ऊर्जा से आप क्या समझते हैं? भारत में गैर-परम्परागत ऊर्जा के संसाधनों का वर्णन कीजिए। [2014, 17]
उत्तर :
गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का क्या अभिप्राय है? इन स्रोतों के दो महत्त्व लिखिए।
या
किन्हीं दो गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
या
ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों का महत्त्व लिखिए।
या
गैर-परम्परागत ऊर्जा के दो स्रोत बताइए। [2016, 17]
उत्तर :
गैरपरम्परागत ऊर्जा संसाधन
गैर-परम्परागत स्रोत ऊर्जा के वे स्रोत हैं जिनका प्रयोग बार-बार किया जा सकता है। इसलिए इन्हें नव्यकरणीय या असमापनीय स्रोत भी कहा जाता है।
गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाधन के स्रोत
ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों अथवा स्रोतों में से प्रमुख का विवरण निम्नलिखित है
1. सौर ऊर्जा – यह प्रदूषण मुक्त है। इसमें सूर्य के प्रकाश को ऊर्जा में बदला जाता है। सौर ऊर्जा का प्रयोग खाना बनाने, पानी गर्म करने, फसल सुखाने व गाँवों में विद्युतीकरण करने में किया जाता है। 31 मार्च, 1998 ई० तक 3.80 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र में सौर ऊर्जा उपलब्ध करायी जा चुकी थी। सौर ऊर्जा के उपयोग से प्रति वर्ष 15 करोड़ किलोवाट घण्टे ऊर्जा की बचत हो रही है।
2. पवन ऊर्जा – भारत में पवन ऊर्जा की अनुमानित क्षमता 2 हजार मेगावाट है। ऊर्जा मन्त्रालय की । रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च, 1999 ई० तक देश में पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता 1,025 मेगावाट थी। पवन ऊर्जा के उत्पादन में भारत का विश्व में चौथा स्थान है। गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा एवं तमिलनाडु राज्य इस ऊर्जा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं।
3. बायो गैस – देश में मार्च, 1999 ई० तक 2,850 लाख बायो गैस संयन्त्र स्थापित किये जा चुके थे, जो प्रत्येक वर्ष 410 लाख टन जैविक खाद का निर्माण कर रहे हैं। बायो गैस उत्पादन की तकनीक का प्रशिक्षण देने के लिए कोयम्बटूर, पूसा आदि में प्रशिक्षण केन्द्र खोले गये हैं।
4. भूतापीय ऊर्जा – भूतापीय ऊर्जा प्राकृतिक गर्म पानी के झरने या तालाब से संयन्त्र लगाकर प्राप्त की जाती है। हिमाचल प्रदेश में कुल्लू जिले के मणिकर्ण नामक स्थान पर भूतापीय ऊर्जा की पायलट परियोजना सफल सिद्ध हुई है।
5. नगरीय तथा औद्योगिक कूड़े-कचरे से ऊर्जा – नगरीय तथा औद्योगिक कूड़ा-कचरा पर्यावरण को दूषित करता है। इससे दिल्ली तथा मुम्बई जैसे महानगरों में ऊर्जा तैयार की जाती है।
6. ज्वारीय ऊर्जा – अनुमान है कि देश में ज्वारीय शक्ति से 8,000 से 9,000 मेगावाट क्षमता की ऊर्जा प्राप्त हो सकती है। खम्भात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी तथा सुन्दरवन इसके सम्भावित ऊर्जा क्षेत्र हैं।
7. लहर ऊर्जा – समुद्री लहरों से देश में 40,000 मेगावाट क्षमता की ऊर्जा प्राप्त करने की सम्भावना का आकलन किया गया है। केरल में तिरुवनन्तपुरम के निकट विजिंगम स्थान पर 150 मेगावाट क्षमता का संयन्त्र (प्लाण्ट) लगाया गया है।
महत्त्व
ऊर्जा के गैर-परम्परागत संसाधनों का महत्त्व निम्नलिखित कारणों से है–
- भारत एक उष्ण कटिबन्धीय देश है। यहाँ वर्ष के अधिकांश भाग में उच्च तापमान रहते हैं। अतः सौर ऊर्जा के विकास की अच्छी सम्भावनाएँ विद्यमान हैं। इसका प्रयोग घरों तथा सड़कों पर | प्रकाश-व्यवस्था, पानी गर्म करने, खाना पकाने, फसलें सुखाने आदि में किया जा सकता है।
- भारत की तटरेखा विस्तृत है। यहाँ ज्वारीय तथा लहर ऊर्जा का विकास सम्भव है। तटीय भागों में इस ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है।
- कृषि उत्पादन अधिक होने से बायो गैस ऊर्जा का विकास सम्भव है। गन्ने की खोई तथा चावल के भूसे | को ऊर्जा-स्रोत के रूप में परिणत किया जा सकता है।
- सघन एवं जनसंख्या होने के कारण देश में गोबर, मलमूत्र, कूड़े-कचरे आदि की अधिकता है। महानगरों में इसका व्यापक प्रयोग सम्भव है।
प्रश्न 6.
परमाणु ऊर्जा से आप क्या समझते हैं? इसकी किन्हीं पाँच विशेषताओं की विवेचना | कीजिए। [2013, 17]
उत्तर :
परमाणु ऊर्जा
भारत में कोयला और पेट्रोलियम के सीमित भण्डार हैं। इसलिए देश में इस बात की आवश्यकता हुई कि आणविक खनिजों की खोज करके ऊर्जा की प्राप्ति के नये साधने तलाशे जाएँ। जिन पदार्थों में रेडियोधर्मी तत्त्व पाये जाते हैं उन्हें परमाणु खनिज (Atomic Mineral) कहते हैं। जैसे-यूरेनियम, थोरियम, बेरीलियम, जिरकान, ग्रेफाइट, एण्टीमनी, प्लूटोनियम, चेरलाइट, जिरकोनियम, इल्मेनाइट आदि। इन खनिज पदार्थों में अणुओं और परमाणुओं के विघटन से एक प्रकार की ऊर्जा निकलती है जिसे ‘परमाणु ऊर्जा (Atomic Energy) कहते हैं। एक पौंड यूरेनियम से जितनी ऊर्जा मिलती है उतनी 12 किग्रा कोयले से प्राप्त होती है। देश में ऊर्जा की बढ़ती हुई खपत के कारण परमाणु शक्ति बोर्ड ने विभिन्न स्थानों पर परमाणु ऊर्जा केन्द्रों की स्थापना की है।
परमाणु ऊर्जा का महत्त्व
परमाणु ऊर्जा की निम्न विशेषताओं के कारण इसका महत्त्व बढ़ गया है
- परमाणु ऊर्जा में अपार क्षमता एवं शक्ति होती है।
- परमाणु ऊर्जा के केन्द्र उन स्थानों पर बनाये जाते हैं जहाँ परमाणु ऊर्जा का ईंधन उपलब्ध नहीं है।
- परमाणु ऊर्जा का सर्वव्यापी उपयोग सम्भव है।
- ऊर्जा के अन्य साधनों की कमी को परमाणु ऊर्जा से पूरा किया जा सकता है।
- चिकित्सा और कृषि के क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा के शान्तिपूर्ण उपयोग में भारत का अग्रणी स्थान है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
शक्ति के संसाधन के रूप में खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस का संक्षिप्त विवरण लिखिए।
उत्तर :
खनिज तेल (पेट्रोलियम)
शक्ति के संसाधन के रूप में खनिज तेल का अत्यधिक महत्त्व है। कोयले द्वारा उत्पन्न ऊर्जा का प्रयोग केवल कारखानों तथा घरों में सम्भव है, किन्तु चालक शक्ति के रूप में परिवहन के साधनों में खनिज तेल ही अधिक उपयोगी है।
पेट्रोलियम का शाब्दिक अर्थ है-चट्टानी तेल। यह भूगर्भीय चट्टानों से निकाला जाता है। इसकी उत्पत्ति भूगर्भ में दबी हुई वनस्पति तथा जल-जीवों के रासायनिक परिवर्तन के फलस्वरूप हुई है। यह अवसादी शैलों में पाया जाता है। भूगर्भ से निकले कच्चे तेल में अनेक अशुद्धियाँ मिली होती हैं। इन अशुद्धियों का तेलशोधनशालाओं में रासायनिक क्रियाओं द्वारा शोधन किया जाता है। भारत में खनिज तेल के भण्डार सीमित ही हैं। भारत प्रति वर्ष लगभग 30 मिलियन मी टन अशुद्ध खनिज तेल का उत्पादन करता है, जो उसकी कुल आवश्यकता को मात्र 60% पूरा कर पाता है। अतएव भारत को प्रति वर्ष खनिज तेल के आयात पर विदेशी मुद्रा का व्यय करना पड़ता है।
प्राकृतिक गैस
प्राकृतिक गैस के भण्डार सामान्यत: तेल-क्षेत्रों के साथ ही पाये जाते हैं। इस प्रकार गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश तथा ओडिशा के तटों से दूर तेल-क्षेत्रों में भी प्राकृतिक गैस के भण्डार मिले हैं। लेकिन तेल-क्षेत्रों से अलग केवल प्राकृतिक गैस के भण्डार त्रिपुरा और राजस्थान में खोजे गये हैं। इसका प्रयोग कुकिंग गैस के रूप में, उर्वरक उद्योग तथा विद्युत उत्पादन में किया जाता है। 2006-07 में देश में 30792 मिलियन घन मीटर प्राकृतिक गैस का उत्पादन हुआ। ऊर्जा संसाधनों की कमी वाले देशों के लिए प्राकृतिक गैस की उपलब्धि एक अमूल्य उपहार है।
प्रश्न 2.
पवन ऊर्जा से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पवन ऊर्जा उन्हीं क्षेत्रों में प्राप्त की जा सकती है, जहाँ पवन की गति तीव्र हो तथा इसका प्रवाह सतत रूप से हो, अन्यथा पवन पंखों की गति में अवरोध आ सकता है। पवन-पंखों से विद्युत उत्पादन किया। जा सकता है, पवन-चक्कियाँ चलायी जा सकती हैं, जल खींचा जा सकता है तथा खेतों की सिंचाई भी की जा सकती है।
भारत में गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा एवं तमिलनाडु राज्य पवन-ऊर्जा उत्पादन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त एवं महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। भारत में लगभग 2,000 पवन-चक्कियाँ लगायी जा चुकी हैं और इस समय 3.63 मेगावाट विद्युत की संस्थापित क्षमता वाले 5 पवन-क्षेत्र कार्य कर रहे हैं। इनसे अब तक 5 लाख यूनिट विद्युत का उत्पादन किया जा चुका है।
प्रश्न 3.
सौर ऊर्जा के विषय में आप क्या जानते हैं ? इसके किन्हीं दो लाभों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
या
सौर ऊर्जा क्या है ? इसके विकास पर अधिक बल क्यों दिया जा रहा है ?
उत्तर :
सौर ऊर्जा, ऊर्जा का व्यापक रूप से उपलब्ध एवं नवीकरण योग्य स्रोत है। यह एक विशाल सम्भावनाओं वाला साधन है। इस सन्दर्भ में सौर चूल्हों का विकास एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। इनसे लगभग बिना किसी खर्च के भोजन बनाया जा सकता है। लाखों सौर चूल्हे देश भर में प्रयोग में लाये जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए छोटे और मध्यम दर्जे के सौर बिजलीघरों की भी योजना बनायी जा रही है। यह भविष्य की ऊर्जा का स्रोत है, क्योंकि खनिज तेल जैसे जीवाश्म ईंधन समाप्त तो होने ही हैं। सौर ऊर्जा के दो लाभ निम्नलिखित हैं
- सौर ऊर्जा का प्रयोग खाना पकाने, पानी गर्म करने, फसल सुखाने, घरों में प्रकाश करने आदि कार्यों में किया जाता है।
- यह ऊर्जा का नवीकरण योग्य, अक्षय तथा प्रदूषण-मुक्त स्रोत है। इन्हीं कारणों से सौर ऊर्जा के विकास पर अत्यधिक बल दिया जा रहा है।
प्रश्न 4.
शक्ति के संसाधनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ?
या
हमारे देश में खनिज संसाधनों के संरक्षण की क्या आवश्यकता है ? इनके संरक्षण के क्या-क्या उपाय हैं ?
या
ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण भारत में क्यों आवश्यक है? कोई तीन कारण बताइट। [2017]
उत्तर :
देश के औद्योगीकरण के लिए खनिज तथा ऊर्जा के संसाधनों की आवश्यकता होती है।
औद्योगीकरण के प्रसार के कारण खनिज तथा ऊर्जा के संसाधनों को तेजी से दोहन किया जा रहा है। निस्सन्देह खनिज हमारी राष्ट्रीय सम्पदा हैं। देश के आर्थिक विकास के लिए उनका दोहन आवश्यक है, किन्तु ये सभी साधन क्षयशील होते हैं। यदि उनको दोहन और प्रयोग इसी प्रकार जारी रहा तो वे हमेशा के लिए समाप्त हो जाएँगे। ऐसी स्थिति में खनिज संसाधनों के अन्धाधुन्ध शोषण को रोकना चाहिए तथा इस प्रकार उनको प्रयोग करना चाहिए, जिससे वे अधिकाधिक समय तक उपलब्ध होते रहे। इसी प्रक्रिया को संरक्षण कहते हैं।
देश में शक्ति संसाधनों की उपलब्धता, संचित भण्डार एवं भविष्य की सम्भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उनका संरक्षण करना अति आवश्यक है। इस संरक्षण के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे हैं|
- भारत में शक्ति संसाधनों के भण्डार अत्यन्त सीमित हैं। अत: इनका प्रयोग आवश्यक कार्यों में ही किया जाना चाहिए। कल-पुर्जा की नियमित ग्रीसिंग करते रहने से तेल की खपत कम होती है। यदि आवश्यक हो, तो पुरानी मशीनें बदलकर नई मशीनें लगाई जानी चाहिए।
- शक्ति संसाधनों; कोयला, खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस; की निरन्तर खोज करते रहना चाहिए।
- शक्ति संसाधन अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ होते हैं; इन्हें आग से बचाने के उपाय किए जाने चाहिए।
- ‘कोयले की खुदाई करते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि चूरा कम-से-कम हो। चूरे की टिकलियाँ बनाकर उन्हें उपयोग में लाया जाना चाहिए।
- कृषि, उद्योग एवं परिवहन साधनों तथा घरेलू कार्यों में शक्ति संसाधनों की माँग निरन्तर तेजी से बढ़ती जा रही है। अत: वैज्ञानिकों को वैकल्पिक शक्ति संसाधनों की खोज करने के प्रयास निरन्तर करते रहना चाहिए।
- पेट्रोलियम पदार्थ ढोने वाले टैंकरों एवं पाइप लाइन की नियमित जाँच कराते रहना चाहिए। अनुमान लगाया गया है कि एक-एक बूंद का रिसाव होते रहने से एक वर्ष में 500 लीटर तक तेल नष्ट हो जाता है।
- कोयला खदानों में स्तम्भों के रूप में पर्याप्त कोयला व्यर्थ ही छोड़ दिया जाता है; अतः खदानों से सम्पूर्ण कोयले की खुदाई की जानी चाहिए। यदि आवश्यक रूप में कोयला बचता भी है तो उसकी टिकली बना देनी चाहिए।
- खाना पकाने की गैस (L.PG.), मिट्टी के तेल तथा विद्युत का ही अधिकाधिक उपयोग किया जाना चाहिए क्योंकि पेट्रोलियम के भण्डार सीमित हैं। इससे 15% तक पेट्रोल की बचत की जा सकती है।
- कोयला एवं पेट्रोलियम के भण्डार के उन्नत तरीकों को अपनाकर 15% तक ऊर्जा की बचत की जा सकती है। ऊर्जा संसाधनों के प्रयोग की प्रौद्योगिकी में सुधार कर उपभोग को सीमित किया जा सकता है।
- यद्यपि ऊर्जा के वैकल्पिक एवं स्थानापन्न संसाधनों के खोजने के वैज्ञानिक प्रयास किए गए हैं; परन्तु अभी तक कोई कारगर उपाय नहीं खोजा जा सका है। अत: इस ओर खोज एवं अनुसन्धानों को निरन्तर जारी रखने की आवश्यकता है।
प्रश्न 5.
खनिज तेल संरक्षण किस प्रकार किया जा सकता है ?
या
खनिज तेल के संसाधनों के संरक्षण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
खनिज तेल के संरक्षण के उपाय
खनिज तेल के संरक्षण के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं
- दोहन के ऐसे उपाय तथा तकनीक अपनानी चाहिए, जिससे खनन तथा परिष्करण के दौरान खनिजों की न्यूनतम हानि हो।
- जहाँ तक हो सके क्षयशील संसाधनों के विकल्पों का प्रयोग करना चाहिए।
- खनिज तेल और कोयले के विकल्प के रूप में जल-विद्युत तथा परमाणु ऊर्जा का उपयोग करना चाहिए।
- खनिज तेल के प्रयोग की प्रौद्योगिकी में सुधार कर तेल के प्रयोग करने की ऐसी विधि विकसित की जानी चाहिए, जिससे इसकी प्रयोग-क्षमता बढ़ जाए; अर्थात् उतने ही खनिज तेल की ऊर्जा से वर्तमान की अपेक्षा अधिक कार्य सम्पन्न किये जाएँ।
- पेट्रोलियम जैसे ऊर्जा के स्रोतों के भण्डारण के उन्नत तरीकों को अपनाकर 15% तक ऊर्जा बचायी जा सकती है। अमेरिका, इंग्लैण्ड, जापान आदि देशों ने इसमें सफलता प्राप्त की है।
- भूगर्भ से तथा समुद्र तल से खनिज तेल को निकालने के समय होने वाली इसकी बर्बादी को रोका जा सकता है। तेल के शोधन में उन्नत तकनीकी को अपनाकर भी तेल की बरबादी को रोका जा सकता है।
- तेल के टैंकों तथा तेल की पाइप लाइनों को नियमित रूप से चैक करना चाहिए कि कहीं से तेल रिसाव तो नहीं हो रहा है, क्योकि बूंद-बूंद तेल के रिसाव से भी एक वर्ष में 500 लिटर तेल बरबाद हो जाता है। तेल के विकल्पों की खोज करने के भी प्रयास होने चाहिए। यदि तेल का अभिपूरक प्राप्त हो जाए तो तेल का संरक्षण स्वतः हो जाएगा।
प्रश्न 6.
भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास का विवरण दीजिए।
उत्तर :
भारत में परमाणु ऊर्जा के प्रणेता डॉ० होमी जहाँगीर भाभा थे। सन् 1948 ई० में देश में परमाणु ऊर्जा आयोग का गठन किया गया। सन् 1954 ई० में ट्रॉम्बे (महाराष्ट्र) में भाभा परमाणु शोध संस्थान की स्थापना की गयी।
भारत में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के विकास के तीन चरण हैं
प्रथम चरण (1948-56 ई०) में ‘अप्सरा’ नामक रियेक्टर की स्थापना की गयी।
द्वितीय चरण (1956-66 ई०) में अनेक तकनीकी सुविधाएँ विकसित की गयीं।
तृतीय चरण (1966 ई० के बाद) में देश में विविध स्थलों पर परमाणु शक्ति केन्द्र स्थापित किये गये। देश का प्रथम परमाणु शक्ति केन्द्र मुम्बई के निकट तारापुर (महाराष्ट्र) में 1969 ई० में स्थापित किया गया। द्वितीय परमाणु शक्ति केन्द्र कोटा के निकट रावतभाटा (राजस्थान) में स्थापित किया गया। तीसरा केन्द्र चेन्नई के निकट कलपक्कम (तमिलनाडु) में और चौथा केन्द्र बुलन्दशहर के निकट नरौरा (उत्तर प्रदेश) में स्थापित किया गया। काकरापारा (गुजरात) तथा कैगा (कर्नाटक) में भी परमाणु शक्ति केन्द्र कार्य कर रहे हैं। वर्तमान समय में देश में कुल चौदह परमाणु ऊर्जा रियेक्टर काम कर रहे हैं, जिनकी कुल उत्पादन-क्षमता 2,720 मेगावाट है।
प्रश्न 7.
शक्ति के प्राचीन संसाधन’कोयले के संरक्षण के लिए क्या उपाय अपनाये जाने चाहिए?
उत्तर :
ऊर्जा के संसाधनों में कोयला अत्यन्त पुराना संसाधन है। सैकड़ों वर्षों से कोयले का उपयोग ऊर्जा के स्रोत के रूप में किया जा रहा है, जबकि विश्व में इसके भण्डार सीमित हैं। अत: इसके संरक्षण के . लिए निम्नलिखित उपाय अपनाये जाने चाहिए
- कोयले की खानों में आग लगने, खान की छत गिरने अथवा खान में पानी भरने से कोयले के भण्डारों को भारी हानि पहुँचती है। अत: खनन-तकनीकी में सुधार कर इन हानियों को रोका जा सकता है।
- कोयले से ताप व ऊर्जा प्राप्त करने की तकनीकी को भी अधिक विकसित करके इसका संरक्षण किया जा सकता है।
- कभी-कभी कोयले की खानों में गैसें भरने के कारण विस्फोट हो जाते हैं। यदि इन विस्फोटों से खानों को बचाने के उपाय विकसित किये जाएँ तो कोयले के भण्डार सुरक्षित रहेंगे।
- जल-विद्युत कभी न समाप्त होने वाला ऊर्जा संसाधन है। अतः इसका उपयोग बढ़ाकर कोयले का उपयोग सीमित किया जाए। उदाहरण के लिए पहले रेलें कोयले व डीजल से ही चलती थीं, किन्तु अब अनेक मार्गों पर जल-विद्युत से रेनें चलायी जाती हैं।
- ईंधन के रूप में भी कोयले का प्रयोग घटाकर उसके स्थान पर सौर ऊर्जा, प्राकृतिक गैस तथा गोबर गैस का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए।
- कोयले की खुदाई करते समय ऐसा प्रयास करना चाहिए कि चूरा कम-से-कम हो। कोयले के चूरे को भी उपयोग में लाना चाहिए।
- खदानों में कोयला स्तम्भों के रूप में पर्याप्त मात्रा में छोड़ दिया जाता है। खदानों से कोयले की अधिकाधिक मात्रा का खनन कर लेना चाहिए।
- कोयले की दहन-भट्टियाँ खुली नहीं होनी चाहिए तथा उनकी चिमनियाँ ऊँची होनी चाहिए। कोयले से तापीय ऊर्जा प्राप्त करने की तकनीकी को भी अधिक उन्नत करके कोयले का संरक्षण किया जा सकता है।
प्रश्न 8.
ऊर्जा के परम्परागत तथा गैर-परम्परागत साधनों की तुलना कीजिए।
उत्तर :
परम्परागत तथा गैर-परम्परागत साधनों की तुलना निम्नवत् है
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
ऊर्जा संसाधन का क्या महत्त्व है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जिन पदार्थों से मनुष्य को अपने विभिन्न कार्यों एवं गतिविधियों को चलाने के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है, उन्हें ऊर्जा संसाधन कहते हैं। मनुष्य का कोई भी कार्य ऊर्जा संसाधनों के बिना पूरा नहीं हो सकता।
प्रश्न 2.
ऊर्जा या शक्ति के संसाधन से क्या अभिप्राय है ? [2009, 17]
उत्तर :
जिन पदार्थों से मनुष्य को ऊर्जा की प्राप्ति होती है; अर्थात् ऐसे पदार्थ जिनसे परिवहन व उद्योगों को चालक-शक्ति प्राप्त होती है; ऊर्जा या शक्ति के साधन कहलाते हैं।
प्रश्न 3 .
ऊर्जा के चार परम्परागत स्रोतों के नाम लिखिए।
या
ऊर्जा के किन्हीं दो संसाधनों पर प्रकाश झलिए। [2013]
उत्तर :
ऊर्जा के चार परम्परागत स्रोतों के नाम हैं—
- कोयला,
- पेट्रोलियम,
- परमाणु खनिज तथा
- जल-शक्ति।
प्रश्न 4.
ऊर्जा के चार गैर-परम्परागत स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर :
ऊर्जा के चार गैर-परम्परागत स्रोतों के नाम हैं—
- सौर ऊर्जा,
- भू-तापीय ऊर्जा,
- पवन ऊर्जा तथा
- ज्वारीय ऊर्जा।
प्रश्न 5.
सौर ऊर्जा के दो गुण लिखिए। या सौर ऊर्जा के दो महत्त्व बताइट। [2015]
उत्तर :
सौर ऊर्जा के दो गुण निम्नलिखित हैं—
- यह ऊर्जा का अक्षय स्रोत तथा नवीकरण योग्य साधन है,
- यह प्रदूषण-मुक्त है।
प्रश्न 6.
भारत के पूर्वी तट पर स्थित दो तेलशोधनशालाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारत के पूर्वी तट पर स्थित दो तेलशोधनशालाएँ हैं—
- डिगबोई (असोम) तथा
- हल्दिया (पश्चिम बंगाल)।
प्रश्न 7.
भारत के चार परमाणु शक्ति केन्द्रों के नाम बताइए। वे किन राज्यों में स्थित हैं? [2011]
या
भारत में किन्हीं दो परमाणु ऊर्जा केन्द्रों के नाम लिखिए। [20:6, 18]
उत्तर :
भारत के चार परमाणु शक्ति केन्द्र निम्नलिखित हैं
- तारापुर–महाराष्ट्र
- रावतभाटा-राजस्थान
- कलपक्कम तमिलनाडु
- नरौरा–उत्तर प्रदेश।
प्रश्न 8.
परमाणु ऊर्जा में प्रयोग होने वाले खनिजों के नाम लिखिए। भारत में वे कहाँ मिलते हैं?
उत्तर :
परमाणु ऊर्जा में प्रयुक्त होने वाले खनिज और जिन राज्यों में वे पाये जाते हैं, उनके नाम हैं
- यूरेनियम–बिहार और राजस्थान में।
- थोरियम, बेरिलियम, ग्रेफाइट, मोनोजाइट–केरल की समुद्रतटीय रेत में।
- चेरोलाइट तथा जिरकोनियम- बिहार में।
प्रश्न 9.
डिगबोई किस खनिज से सम्बन्धित है ?
उत्तर :
डिगबोई खनिज तेल पेट्रोलियम के परिष्करण से सम्बन्धित है।
प्रश्न 10.
भारत की कोई चार तेलशोधनशालाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारत की चार तेलशोधनशालाओं के नाम हैं—
- ट्रॉम्बे-! (मुम्बई के समीप महाराष्ट्र),
- विशाखापत्तनम् (आन्ध्र प्रदेश),
- बरौनी (बिहार) तथा
- मथुरा (उत्तर प्रदेश)।
प्रश्न 11.
भारत के खनिज तेल उत्पादन के दो क्षेत्रों का नाम व स्थिति सहित उल्लेख कीजिए।
या
भारत में पेट्रो-रसायन के किन्हीं दो केन्द्रों के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारत के खनिज तेल उत्पादन के दो क्षेत्रों के नाम हैं
- बॉम्बे हाई अपतटीय क्षेत्र-मुम्बई से 120 किमी दूर गहरे सागर में स्थित।
- अंकलेश्वर (गुजरात, नर्मदा नदी पर बड़ौदा से 44 किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित)।
प्रश्न 12.
‘काला सोना’ और ‘तरल सोना’ किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कोयले क़ो ‘काला सोना और खनिज तेल को ‘तरल सोना’ कहा जाता है।
प्रश्न 13.
परमाणु खनिज किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिन खनिजों से परमाणु शक्ति की उत्पत्ति होती है, उन्हें परमाणु खनिज कहते हैं।
प्रश्न 14.
दो शक्ति के संसाधनों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
- कोयला,
- पेट्रोलियम पदार्थ।
प्रश्न 15.
खनिज तेल को शोधनशालाओं में किन-किन साधनों से भेजा जाता है?
उत्तर :
खनिज तेल को शोधनशालाओं में टैंकरों व पाइप लाइनों से भेजा जाता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. ऊर्जा का नवीकरण संसाधन है,
(क) परमाणु ऊर्जा
(ख) जल विद्युत
(ग) कोयला
(घ) पेट्रोलियम
2. रानीगंज कोयले की खान किस प्रदेश में है? [2011]
(क) बिहार में
(ख) प० बंगाल में
(ग) ओडिशा में
(घ) मध्य प्रदेश में
3. जीवाश्म ईंधन का उदाहरण है
(क) कोयला
(ख) परमाणु खनिज
(ग) जल ऊर्जा
(घ) भूतापीय ऊर्जा
4. पवन ऊर्जा का उत्पादन किस राज्य में होता है?
(क) गुजरात
(ख) हरियाणा
(ग) पंजाब
(घ) उत्तर प्रदेश
5. कोटा परमाणु शक्ति केन्द्र किस प्रदेश में स्थित है?
(क) राजस्थान
(ख) तमिलनाडु
(ग) महाराष्ट्र
(घ) गुजरात
6. डिगबोई तेल क्षेत्र किस राज्य में है?
(क) त्रिपुरा
(ख) असोम
(ग) गुजरात
(घ) महाराष्ट्र
7. कलपक्कम में निम्नलिखित में से क्या स्थापित है? [2012]
(क) तेलशोधन केन्द्र
(ख) जल-विद्युत केन्द्र
(ग) परमाणु ऊर्जा केन्द्र
(घ) तापविद्युत केन्द्र
8. अंकलेश्वर प्रसिद्ध है [2012]
(क) कोयले के लिए।
(ख) खनिज तेल के लिए।
(ग) परमाणु ऊर्जा के लिए
(घ) जल-विद्युत के लिए
9. झरिया प्रसिद्ध है [2010, 16]
(क) कोयले के लिए
(ख) ताँबे के लिए।
(ग) बॉक्साइट के लिए,
(घ) लौह-अयस्क के लिए
10. निम्नलिखित में से किससे मुम्बई हाई’ सम्बन्धित है? [2013]
(क) पर्वत शिखर
(ख) बन्दरगाह
(ग) खनिज तेल
(घ) पर्यटन
11. भारत में कोयला उत्पादन में प्रथम स्थान है [2017]
(क) झारखण्ड का
(ख) बिहार का
(ग) मध्य प्रदेश का
(घ) आन्ध्र प्रदेश का
12. निम्नलिखित में से कौन ऊर्जा संसाधन नहीं है? [2017]
(क) जल
(ख) पेट्रोलियम
(ग) कोयला
(घ) मैंगनीज
उत्तरमाला
1. (ख), 2. (ख), 3. (क), 4. (क), 5. (क), 6. (ख), 7. (ग), 8. (ख), 9. (क), 10. (ग), 11. (क), 12. (घ)।
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