UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 4 आलोकवृत्त
UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 4 आलोकवृत्त (गुलाब खण्डेलवाल) are part of UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 4 आलोकवृत्त (गुलाब खण्डेलवाल).
UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 4 आलोकवृत्त (गुलाब खण्डेलवाल)
प्रश्न 1.
‘आलोकवृत्त’ की कथावस्तु (कथानक अथवा सारांश) पर संक्षेप में प्रकाश डालिए। [2009, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। [2016]
या
‘आलोकवृत्त’ के आधार पर द्वितीय सर्ग की कथावस्तु का निरूपण कीजिए। [2011, 12, 13]
या
‘आलोकवृत्त’ के आधार पर सन् 1942 ई० की जनक्रान्ति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ काव्य में वर्णित स्वतन्त्रता-प्राप्ति की प्रमुख घटनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए। [2013]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर चतुर्थ सर्ग का सारांश लिखिए। [2011, 14, 15, 18]
या
‘आलोकवृत्त’ के आधार पर गाँधी जी के अफ्रीका-प्रवास के जीवन पर प्रकाश डालिए। [2010, 12, 13]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटना का वर्णन कीजिए। [2016]
या
“‘आलोकवृत्त’ काव्य भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का संक्षिप्त इतिहास है।” विवेचन कीजिए। [2013]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के सप्तम सर्ग में कथित ‘भारत छोड़ो आन्दोलन पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के ‘सप्तम सर्ग’ के कथानक पर प्रकाश डालिए। [2015]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के प्रथम एवं द्वितीय सर्ग की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए। [2016, 18]
या
‘आलोकवृत्त’ के दूसरे एवं तीसरे सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए। [2015]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग’ की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए। [2016]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग के आधार पर ‘असहयोग आन्दोलन’ की भूमिका पर सोदाहरण प्रकाश डालिए। [2011]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के अन्तर्गत प्रथम तथा द्वितीय सर्ग में वर्णित घटनाओं का उल्लेख कीजिए। [2012]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के षष्ठ सर्ग में वर्णित नमक सत्याग्रह के सन्दर्भ में गाँधी जी की दांडी यात्रा का वर्णन कीजिए। [2009, 11, 12]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के सप्तम सर्ग में निरूपित सन् 1942 ई० की जनक्रान्ति का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। [2010, 14]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के सप्तम सर्ग का कथानक अपनी भाषा में लिखिए। [2016, 17, 18]
या
‘आलोकवृत्त’ के अष्टम सर्ग की कथावस्तु प्रस्तुत कीजिए। [2013, 14]
या
‘आलोकवृत्त’ के अन्तिम सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए। [2015]
उत्तर
‘आलोकवृत्त’ के कथानक में आठ सर्ग हैं, जिनकी कथावस्तु संक्षेप में निम्नलिखित है-
प्रथम सर्ग : भारत का स्वर्णिम अतीत
प्रथम सर्ग में कवि ने भारत के अतीत के गौरव तथा तत्कालीन पराधीनता का वर्णन किया है। कवि ने बताया है कि भारत वेदों की भूमि रहा है। भारतवर्ष ने ही संसार को सर्वप्रथम ज्ञान की ज्योति दी थी, किन्तु दुर्भाग्यवश एक समय ऐसा आया कि भारतवासी यह भूल गये कि हम कितने गौरवमण्डित थे ? इसका परिणाम यह हुआ कि भारतवर्ष सैकड़ों वर्ष तक दासता की बेड़ियों में जकड़ा रहा। सन् 1857 ई० की क्रान्ति के पश्चात् गुजरात के पोरबन्दर’ नामक स्थान पर एक दिव्य ज्योतिर्मय विभूति मोहनदास करमचन्द गाँधी के रूप में प्रकट हुई, जिसने हमें विदेशियों की दासता से मुक्त करवाया।
द्वितीय सर्ग : गाँधी जी का प्रारम्भिक जीवन
द्वितीय सर्ग में गाँधी जी के जीवन के क्रमिक विकास पर प्रकाश डाला गया है। वे बचपन में कुसंगति में फँस गये थे, किन्तु शीघ्र ही उन्होंने अपने पिता के समक्ष अपनी त्रुटियों पर पश्चात्ताप किया और दुर्गुणों को सदैव के लिए छोड़ने की प्रतिज्ञा की और आजीवन उसका निर्वाह किया। इसके बाद कस्तूरबा के साथ गाँधी जी का विवाह हुआ। इसके कुछ समय बाद उनके पिताजी का देहान्त हो गया। वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड गये। उनकी माँ ने विदेश में रहकर मांस-मदिरा का प्रयोग न करने के लिए समझाया–
मद्य-मांस-मदिराक्षी से बचने की शपथ दिलाकर।
माँ ने तो दी विदा पुत्र को मंगल तिलक लगाकर ।।
इंग्लैण्ड में सात्त्विक जीवन व्यतीत करते हुए भी वे एक दिन एक कलुषित स्थान पर पहुँच गये, लेकिन उन्होंने अपने चरित्र को कलुषित होने से बचा लिया। वहाँ से वे बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। भारत आने पर उन्हें उनकी माता के देहान्त का दु:खद समाचार मिला। यहीं पर द्वितीय सर्ग की कथा समाप्त हो जाती है।
तृतीय सर्ग : गाँधी जी का अफ्रीका-प्रवास
तृतीय सर्ग में गाँधी जी के अफ्रीका में निवास का वर्णन है। एक बार रेलगाड़ी में यात्रा करते समय एक गोरे अंग्रेज ने उन्हें काला होने के कारण अपमानित करके रेलगाड़ी से नीचे उतार दिया। रंगभेद की इस कुटिल नीति से गाँधी जी के हृदय को बहुत दुःख पहुँचा। वे भारतीयों की दुर्दशा से चिन्तित हो उठे। यहाँ पर कवि ने गाँधी जी के मन में उत्पन्न अन्तर्द्वन्द्व का बड़ा सुन्दर चित्रण किया है। गाँधी जी ने सत्य और अहिंसा का सहारा लेकर असत्य और हिंसा का सामना करने का दृढ़ निश्चय किया। अपनी जन्मभूमि से दूर विदेश की भूमि पर उन्होंने मानवता के उद्धार का प्रण लिया-
पशु-बल के सम्मुख आत्मा की शक्ति जगानी होगी।
मुझे अहिंसा से हिंसा की आग बुझानी होगी।
सत्य और अहिंसा के इस मार्ग को उन्होंने सत्याग्रह का नाम दिया। गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में सैकड़ों सत्याग्रहियों का नेतृत्व किया। दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष-समाप्ति के साथ ही तृतीय सर्ग समाप्त हो जाता है।
चतुर्थ सर्ग : गाँधी जी का भारत आगमन
चतुर्थ सर्ग में गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आते हैं। भारत आकर गाँधी जी ने लोगों को स्वतन्त्रता प्राप्त करने हेतु जाग्रत किया। उन्होंने साबरमती नदी के तट पर अपना आश्रम बनाया। अनेक लोग गाँधी जी के अनुयायी हो गये, जिनमें डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, विनोबा भावे, ‘राजगोपालाचारी’, सरोजिनी नायडू, ‘दीनबन्धु’, मदनमोहन मालवीय, सुभाषचन्द्र बोस आदि प्रमुख थे। अंग्रेज देश की जनता पर भारी अत्याचार कर रहे थे। गाँधी जी ने चम्पारन में नील की खेती को लेकर आन्दोलन आरम्भ किया; जिसमें वे सफल हुए। एक अंग्रेज द्वारा अपनी पत्नी के हाथों गाँधी जी को विष देने तक का प्रयास किया गया, परन्तु वह स्त्री गाँधी जी के दर्शन कर ऐसा न कर सकी। इसके विपरीत उन दोनों का हृदय-परिवर्तन हो गया। इसी सर्ग में खेड़ा-सत्याग्रह का वर्णन भी हुआ है। कवि ने इस सत्याग्रह में सरदार वल्लभभाई पटेल का चरित्र-चित्रण विशेष रूप से किया है।
पंचम सर्ग : असहयोग आन्दोलन
इस सर्ग में कवि ने यह चित्रित किया है कि गाँधी जी के नेतृत्व में स्वाधीनता आन्दोलन निरन्तर बढ़ता गया। अंग्रेजों की दमन-नीति भी बढ़ती गयी। गाँधी जी के नेतृत्व में स्वतन्त्रता-प्रेमियों का समूह नागपुर पहुँचता है। नागपुर के कांग्रेस-अधिवेशन में गाँधी जी के ओजस्वी भाषण ने भारतवर्ष के लोगों में नयी स्फूर्ति भर दी, किन्तु अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति ने हिन्दुओं-मुसलमानों में साम्प्रदायिक दंगे करवा दिये। गाँधी जी को बन्दी बना लिया गया। उन्होंने सत्याग्रह का कार्यक्रम स्थगित कर दिया। कारागार से छूटने के बाद उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता, शराब-मुक्ति, हरिजनोत्थान, खादी-प्रचार आदि रचनात्मक कार्यों में अपना सम्पूर्ण समय लगाना आरम्भ कर दिया। हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए गाँधी जी ने इक्कीस दिनों का उपवास रखा-
आत्मशुद्धि का यज्ञ कठिन यह पूरा होने को जब आया।
बापू ने इक्कीस दिनों के अनशन का संकल्प सुनाया।
फिर लाहौर में पूर्ण स्वतन्त्रता के प्रस्ताव के साथ ही पाँचवाँ सर्ग समाप्त हो जाता है।
षष्ठ सर्ग : नमक सत्याग्रह
इस सर्ग में गाँधी जी द्वारा चलाये गये नमक-सत्याग्रह का वर्णन हुआ है। गाँधी जी ने समुद्रतट पर बसे ‘डाण्डी’ नामक स्थान की पैदल यात्रा 24 दिनों में पूरी की। नमक आन्दोलन में हजारों लोगों को बन्दी बनाया गया। अंग्रेज सरकार ने लन्दन में ‘गोलमेज सम्मेलन बुलाया, जिसमें गाँधी जी को आमन्त्रित किया गया। इसके परिणामस्वरूप सन् 1937 ई० में ‘प्रान्तीय स्वराज्य की स्थापना हुई। इसके साथ ही षष्ठ सर्ग समाप्त हो जाता है।
सप्तम सर्ग : सन् 1942 की जनक्रान्ति
द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ हो गया। अंग्रेज सरकार भारतीयों को सहयोग तो चाहती थी, किन्तु उन्हें पूर्ण अधिकार देना नहीं चाहती थी। क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद 1942 ई० में गाँधी जी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नारा दिया। सम्पूर्ण देश में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। इसका वर्णन कवि ने बड़े ही सजीव रूप से किया है–
थे महाराष्ट्र-गुजरात उठे, पंजाब-उड़ीसा साथ उठे।
बंगाल इधर, मद्रास उधर, मरुथल में थी ज्वाला घर-घर ॥
कवि ने इस आन्दोलन का वर्णन अत्यधिक ओजस्वी भाषा में किया है। बम्बई अधिवेशन के बाद गाँधी जी सहित सभी भारतीय नेता जेल में डाल दिये जाते हैं। पूरे देश में इसकी विद्रोही प्रतिक्रिया होती है। कवि के शब्दों में,
जब क्रान्ति लहर चल पड़ती है, हिमगिरि की चूल उखड़ती है।
साम्राज्य उलटने लगते हैं, इतिहास पलटने लगते हैं ।
इस सर्ग में कवि ने गाँधी जी एवं कस्तूरबा के मध्य हुए एक वार्तालाप का भी भावपूर्ण चित्रण किया है। जिसमें गाँधी जी के मानवीय स्वभाव और कस्तूरबा की सेवा-भावना, मूक त्याग और बलिदान का सम्यक् निरूपण किया है।
अष्टम सर्ग : भारतीय स्वतन्त्रता का अरुणोदय
अष्टम सर्ग का आरम्भ भारत की स्वतन्त्रता से किया गया है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् देशभर में हिन्दू-मुस्लिम-साम्प्रदायिक दंगे हो जाते हैं। गाँधी जी को इससे बहुत दु:ख हुआ। वे ईश्वर से प्रार्थना करते है-
प्रभो ! इस देश को सत्पथ दिखाओ, लगी जो आग भारत में बुझाओ ।
मुझे दो शक्ति इसको शान्त कर दें, लपट में रोष की निज शीश धर हूँ॥
इस कल्याण-कामना के साथ ही यह खण्डकाव्य समाप्त हो जाता है।
प्रश्न 2.
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधी जी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। [2010, 11, 13, 14, 15, 16, 18]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण (चरित्रांकन) कीजिए। [2016,18]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के नायक (प्रमुख पात्र) गाँधी जी का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2009, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 18]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के नायक की (चारित्रिक) विशेषताएँ लिखिए। [2015, 16, 17]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर महात्मा गाँधी के जीवन व राष्ट्रीय आदर्शों पर प्रकाश डालिए। [2015]
या
“‘आलोकवृत्त’ में गाँधी जी का कृतित्व ही नहीं उनका जीवन-दर्शन और चिन्तन भी अभिव्यक्त हुआ है।” इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए। [2012]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधी जी के व्यक्तित्व की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2011]
उत्तर
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधी जी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार है।
(1) सामान्य मानवीय दुर्बलताएँ–गाँधी जी का आरम्भिक जीवन एक साधारण मनुष्य की भाँति मानवीय दुर्बलताओं वाला रहा है। उन्होंने एक बार अपने गुरु से छुपकर मांस-भक्षण किया था; उदाहरणार्थ–
करने लगे मांस-भक्षण, गुरुजन की आँख बचाकर।
किन्तु बाद में उन्होंने अपनी इन दुर्बलताओं पर अपनी आत्मिक शक्ति के बल पर पूर्ण विजय पा ली।
(2) देश-प्रेमी-‘आलोकवृत्त’ में गाँधी जी के चरित्र की सर्वप्रथम विशेषता उनका देशप्रेम है। वे देशप्रेम के कारण अनेक बार कारागार जाते हैं, जहाँ उन्हें अंग्रेजों के अपमान-अत्याचार सहने पड़ते हैं। उन्होंने अपना सर्वस्व देश के लिए न्यौछावर कर दिया। भारत के लिए उनका कहना था–
तू चिर प्रशान्त, तू चिर अजेय
सुर-मुनि-वन्दित, स्थित, अप्रमेय
हे सगुण ब्रह्म, वेदादि-गेय
हे चिर अनादि, हे चिर अशेष
मेरे भारत, मेरे स्वदेश ।
(3) सत्य और अहिंसा के प्रबल समर्थक–गाँधी जी देश की स्वतन्त्रता केवल सत्य और अहिंसा के द्वारा ही प्राप्त करना चाहते हैं। असत्य और हिंसा का मार्ग उन्हें अच्छा नहीं लगता। वे कहते हैं-
पशुबल के सम्मुख आत्मा की, शक्ति जगानी होगी।
मुझे अहिंसा से हिंसा की, आग बुझानी होगी।
अहिंसा व्रत का पूर्ण रूप से पालन उनके जैसी कोई बिरला व्यक्ति ही कर सकता है।
(4) दृढ़ आस्तिक-गाँधी जी पुरुषार्थी हैं तो भी वे ईश्वर की सत्ता में अटूट विश्वास रखते हैं। उनका मानना है कि साधन पवित्र होने चाहिए और परिणाम ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। वे प्रत्येक कार्य ईश्वर को साक्षी मानकर करते हैं। यही कारण है कि वे मात्र पवित्र साधनों को प्रयोग ही उचित समझते हैं-
क्या होगा परिणाम सोच लें, पर क्यों सोचूं, वह तो।
मेरा क्षेत्र नहीं, स्रष्टा का, जो प्रभु करे वही हो ।
(5) स्वतन्त्रता-प्रेमी-गाँधी जी के जीवन का मूल उद्देश्य भारत को स्वतन्त्र करवाना है। वे भारतमाता की स्वतन्त्रता के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। देशवासियों को परतन्त्रता की बेड़ियाँ काटने के लिए प्रेरित करते हुए वे कहते हैं-
जाग तुझे तेरी अतीत, स्मृतियाँ धिक्कार रही हैं।
जाग-जाग तुझे भावी, पीढ़ियाँ पुकार रही हैं ।
(6) मानवतावादी-गाँधी जी मानव-मानव में अन्तर नहीं मानते। वे सबके लिए समानता के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं। उन्होंने जीवन-भर ऊँच-नीच, जाति-पाँति और रंग-भेद का डटकर विरोध किया। अछूत कहे जाने वाले भारतीयों के उद्धार के लिए वे सतत प्रयत्नशील रहे। इस भेदभाव से उन्हें बहुत दु:ख होता था-
जिसने मारा मुझे, कौन वह, हाथ नहीं क्या मेरा।
मानवता तो एक, भिन्न, बस उसका मेरा घेरा ।।
(7) भावात्मक, राष्ट्रीय और हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक–गाँधी जी ‘विश्वबन्धुत्व’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से ओत-प्रोत थे। वे सभी को सुखी व समृद्ध देखना चाहते थे। इन्होंने भारत की समग्र जनता को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए जीवन-पर्यन्त प्रयास किया और हिन्दू-मुसलमानों को भाई-भाई की तरह रहने की प्रेरणा दी। उनका कहना था–
यदि मिलकर इस राष्ट्रयज्ञ में सब कर्त्तव्य निभायें अपना,
एक वर्ष में ही पूरा हो मेरा रामराज्य का सपना ।
(8) आत्मविश्वासी-गाँधी जी आत्मविश्वास से परिपूर्ण थे, उन्होंने जो कुछ भी किया पूर्ण आत्मविश्वास के साथ किया और उसमें वे सफल भी हुए। उनका मानना था-
शासित की स्वीकृति न मिले तो शासक क्या कर लेगा
यदि आधार मिटे भय का तो एकतन्त्र ठहरेगा।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि एक श्रेष्ठ मानव में जितने भी मानवोचित गुण हो सकते हैं वे सभी महात्मा गाँधी में विद्यमान थे।
प्रश्न 3.
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की रचना के उद्देश्य (शिक्षा-संदेश) पर प्रकाश डालिए। [2010, 15]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के नामकरण की सार्थकता को स्पष्ट करते हुए इसके उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। [2009]
या
‘आलोकवृत्त’ में निसूचित जीवन के प्रमुख मूल्यों को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए। [2009]
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य में जीवन के श्रेष्ठ मूल्य वर्णित हैं। संक्षेप में लिखिए।[2017]
उत्तर
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य नामकरण (शीर्षक) की सार्थकता-कवि गुलाब खण्डेलवाल ने ‘आलोकवृत्त’ में महात्मा गाँधी के सदाचार एवं मानवता के गुणों से प्रकाशित व्यक्तित्व को चित्रित किया है। इस खण्डकाव्य का विषय उद्देश्य एवं मूलभाव यही है। महात्मा गाँधी के जीवन को हम प्रकाश स्वरूप कह सकते हैं, क्योंकि उन्होंने भारतीय संस्कृति की चेतना को अपने सद्गुणों एवं सविचारों से प्रकाशित किया है। उन्होंने विश्व में सत्य, प्रेम, अहिंसा आदि मानवीय भावनाओं का प्रकाश फैलाया। अत: हम इस जीवन वृत्त को आलोकवृत्त कह सकते हैं। इस दृष्टिकोण से यह शीर्षक उपयुक्त है। यह महात्मा गाँधी के जीवन, उनके चरित्र, उनके गुणों, सिद्धान्तों एवं दर्शन को पूर्णरूपेण परिभाषित करता हुआ एक साहित्यिक एवं दार्शनिक शीर्षक है।
आलोकवृत्त का उद्देश्य-कवि गुलाब खण्डेलवाल ने महात्मा गाँधी के जीवन व कार्यों के द्वारा हमें देश-प्रेम, भावात्मक एकता, राष्ट्रीय एकता, लोककल्याण की भावना, मानव मूल्यों की स्थापना, साधनों की पवित्रता, सत्य, अहिंसा और प्रेम की भावना आदि का सन्देश दिया है। प्रस्तुत खण्डकाव्य मनुष्य के जीवन में आशा और आलोक विकीर्ण करता हुआ, उसे मानवता के उच्चतम शिखरों की ओर उन्मुख करता हुआ, उसे मानवता और संस्कृति की चेतना के परिष्कृत रूप में प्रस्तुत करता है। अपने इस उद्देश्य को उन्होंने काव्य के नायक महात्मा गाँधी के मुख से कहलवाया है
यदि मिलकर इस राष्ट्रयज्ञ में सब कर्तव्य निभायें अपना,
एक वर्ष में ही पूरा हो मेरा रामराज्य का सपना ।
We hope the UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 4 आलोकवृत्त (गुलाब खण्डेलवाल) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 4 आलोकवृत्त (गुलाब खण्डेलवाल), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.