UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य गरिमा Chapter 6 हम और हमारा आदर्श

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य गरिमा Chapter 6 हम और हमारा आदर्श

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य गरिमा Chapter 6 हम और हमारा आदर्श (डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम)

लेखक का साहित्यिक परिचय और कृतिया

प्रश्न 1.
डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम की साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख कीजिए।
या
डॉ० ए०पी०जे० का साहित्यिक परिचय दीजिए एवं प्रमुख कृतियों का उल्लेख कीजिए।
या
डॉ० ए०पी०जे० का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परिचय–डॉ० ए०पी० जे० अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम् में एक मुसलमान परिवार में हुआ। उनके पिता जैनुलअबिदीन एक नाविक थे और उनकी माता अशिअम्मा एक गृहणी थीं, उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उन्हें छोटी उम्र से ही काम करना पड़ा। अपने पिता की आर्थिक मदद के लिए बालक कलाम स्कूल के बाद समाचार-पत्र वितरण का कार्य करते थे। अपने स्कूल के दिनों में कलाम पढ़ाई-लिखाई में सामान्य थे, पर नयी चीज सीखने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। उनके अन्दर सीखने की भूख थी और वो पढ़ाई पर घंटों ध्यान देते थे। उन्होंने अपनी स्कूल की पढ़ाई रामनाथपुरम स्वार्ज मैट्रिकुलेशन स्कूल से पूरी की और उसके बाद तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने सन् 1954 में भौतिक विज्ञान में स्नातक किया। वर्ष 1960 में कलाम ने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद कलाम ने रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में वैज्ञानिक के तौर पर भर्ती हुए। कलाम ने अपने कैरियर की शुरुआत भारतीय सेना के लिए एक छोटे हेलीकॉप्टर का डिजाइन बनाकर किया।

वर्ष 1969 में उनका स्थानान्तरण भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) में हुआ। यहाँ वो भारत के सैटेलाइट लांच ह्वीकल परियोजना के निदेशक के तौर पर नियुक्त किये गये थे। इसरो में शामिल होना कलाम के कैरियर का सबसे अहम मोड़ था और जब उन्होंने सैटेलाइट लांच ह्रीकल परियोजना पर कार्य आरम्भ किया तब उन्हें लगा जैसे वो वही कार्य कर रहे हैं जिसमें उनका मन लगता है।

1963-64 के दौरान उन्होंने अमेरिका के अन्तरिक्ष संगठन नासा की भी यात्रा की। परमाणु वैज्ञानिक राजा रमन्ना, जिनके देख-रेख में भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया, ने कलाम को वर्ष 1974 में पोखरण में परमाणु परीक्षण देखने के लिए भी बुलाया था। भारत सरकार ने महत्त्वाकांक्षी ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ का प्रारम्भ डॉ० कलाम के देख-रेख में किया। वह इस परियोजना के मुख्य कार्यकारी थे। इस परियोजना ने देश को अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें दी हैं। जुलाई, 1992 से लेकर दिसम्बर, 1999 तक डॉ० कलाम प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार और रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के सचिव थे। भारत ने पहला दूसरा परमाणु परीक्षण इसी दौरान किया था। इसमें एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आर० चिदम्बरम के साथ डॉ० कलाम इस परियोजना के समन्वयक थे। इस दौरान मिले मीडिया कवरेज ने उन्हें देश का सबसे बड़ा परमाणु वैज्ञानिक बना दिया।

एक रक्षा वैज्ञानिक के तौर पर उनकी उपलब्धियों और प्रसिद्धि के मद्देनजर एन०डी०ए० की गठबंधन सरकार ने उन्हें वर्ष 2002 में राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया तथा 25 जुलाई, 2002 को उन्होंने भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। डॉ० कलाम देश के ऐसे तीसरे राष्ट्रपति थे जिन्हें राष्ट्रपति बनने से पहले ही भारतरत्न से नवाजा जा चुका था।

कलाम हमेशा से देश के युवाओं और उनके भविष्य को बेहतर बनाने के बारे में बातें करते थे। इसी सम्बन्ध में उन्होंने देश के युवाओं के लिए “ह्वाइट कैन आई गिव’ पहल की शुरुआत भी की जिसका उद्देश्य भ्रष्टाचार का सफाया है। देश के युवाओं में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें 2 बार (2003 और 2004) ‘एम०टी०वी० यूथ आइकॉन ऑप द इयर अवार्ड’ के लिए मनोनीत भी किया गया था। शिक्षण के अलावा डॉ० कलाम ने कई पुस्तकें भी लिखीं जिनमें प्रमुख हैं–‘इंडिया 2020 : अ विजन फॉर द न्यू मिलेनियम, ‘विंग्स ऑफ फायर : ऐन ऑटोबायोग्राफी’, ‘इग्नाइटेड माइंड्स : अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया’, ‘मिशन इंडिया’, ‘इंडोमिटेबल स्पिरिट’ आदि।

देश और समाज के लिए किये गये उनके कार्यों के लिए डॉ० कलाम को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। लगभग 40 विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद की डॉक्टरेट की उपाधि दी और भारत सरकार ने उन्हें पदम्भूषण, पदविभूषण और भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से अलंकृत किया। 26 जुलाई, 2015 को भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिलाँग, में अध्यापन कार्य के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा जिसके बाद करोड़ों लोगों के प्रिय और चहेते डॉ० अब्दुल कलाम परलोक सिधार गये।

गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोए

प्रश्न–दिए गए गद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
मैं खासतौर से युवा छात्रों से ही क्यों मिलता हूँ? इस सवाल का जवाब तलाशते हुए मैं अपने छात्र जीवन के दिनों के बारे में सोचने लगा। रामेश्वरम् के द्वीप से बाहर निकलकर यह कितनी लम्बी यात्रा रही। पीछे मुड़कर देखता हूँ तो विश्वास नहीं होता। आखिर वह क्या था जिसके कारण यह सम्भव हो सका? महत्त्वाकांक्षा? कई बातें मेरे दिमाग में आती हैं। मेरा ख्याल है कि सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि मैंने अपने योगदान के मुताबिक ही अपना मूल्य आँका। बुनियादी बात जो आपको समझनी चाहिए वह यह है कि आप जीवन की अच्छी चीजों को पाने का हक रखते हैं, उनका जो ईश्वर की दी हुई हैं। जब तक हमारे विद्यार्थियों और युवाओं को यह भरोसा नहीं होगा कि वे विकसित भारत के नागरिक बनने के योग्य हैं तब तक वे जिम्मेदार और ज्ञानवान् नागरिक भी कैसे बन सकेंगे।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम खासतौर से किससे मिलते थे?
(iv) डॉ० अब्दुल कलाम की कामयाबी के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात क्या रही?
(v) व्यक्ति किन चीजों को पाने का हक रखता है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित’डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम’ के तेजस्वी मन से “हम और हमारा आदर्श” का सम्पादित अंश है।
अथवा
पाठ का नाम– हम और हमारा आदर्श।
लेखक का नाम-डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–अनेकानेक उपलब्धियों एवं प्रसिद्धियों के धनी डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम ने प्रस्तुत अंश के माध्यम से भारतीय युवाओं को यह बताना चाहा है कि जब तक उन्हें यह विश्वास नहीं होगा कि वे देश के नागरिक बनने की सम्पूर्ण योग्यता स्वयं में रखते हैं तब तक वे एक | जिम्मेदार और ज्ञानवान नागरिक नहीं बन सकते अर्थात् जब तक व्यक्ति को अपनी कीमत का आकलन नहीं होगा तब तक वह महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं कर सकता।
(iii) डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम खासतौर से देश के युवा छात्रों से मिलते थे।
(iv) डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम की कामयाबी के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि उन्होंने अपने योगदान के मुताबिक ही अपने मूल्य का आकलन किया।
(v) व्यक्ति उन सभी अच्छी चीजों को पाने का हक रखता है जो ईश्वर की दी हुई हैं।

प्रश्न 2.
मैं यह नहीं मानता की समृद्धि और अध्यात्म एक-दूसरे के विरोधी हैं या भौतिक वस्तुओं की इच्छा रखना कोई गलत सोच है। उदाहरण के तौर पर, मैं खुद न्यूनतम वस्तुओं का भाग करते हुए जीवन बिता रहा हूं लेकिन मैं सर्वत्र समृद्धि की कद्र करता हूँ, क्योंकि समृद्धि अपने साथ सुरक्षा तथा विश्वास लाती है, जो अंतत: हमारी आजादी को बनाए रखने में सहायक हैं। आप अपने आस-पास देखेंगे तो पाएँगे कि खुद प्रकृति भी कोई काम आधे-अधूरे मन से नहीं करती। किसी बगीचे में जाइए। मौसम में आपको फूलों की बहार देखने को मिलेगी। अथवा ऊपर की तरफ ही देखें, यह ब्रह्माण्ड आपके अनंत तक फैला दिखाई देगा, आपके यकीन से भी परे।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) लेखक किनको एक-दूसरे का विरोधी नहीं मानता?
(iv) डॉ० कलाम संवृद्धि की कद्र क्यों करते हैं?
(v) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने छात्रों को क्या संदेश दिया है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित ‘डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम’ के तेजस्वी मन से “हम और हमारा आदर्श” का सम्पादित अंश है।।
अथवा
पाठ का नाम- हम और हमारा आदर्श।
लेखक का नाम-डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से अब्दुल कलाम जी समृद्धि की कद्र करते हुए कहते हैं कि व्यक्ति को कामयाब होने के लिए वह सभी हरसम्भव प्रयास करने चाहिए जो वह कर सकता है। किसी भी कार्य को अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए अर्थात् काम करते हुए उससे ऊबकर उसे बीच में नहीं छोड़ देना चाहिए। इसके लिए प्रकृति का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए वे कहते हैं कि यदि आप अपने आस-पास देखें तो आपको ऐसे प्रकृति के बहुत-से उदाहरण मिल जाएँगे जो कि पूर्ण होते दिखेंगे यानी प्रकृति अपने किसी भी काम को अधूरे मन से नहीं करती। आप किसी फूलों के बाग में ही पहुँच जाइए; वहाँ मौसम में आपको फूलों की बहार देखने को मिलेगी, क्योंकि मौसम ने अपने काम को अधूरा नहीं छोड़ा। या फिर आप अपने ऊपर की ओर ही देखें तो आपको यह ब्रह्माण्ड इस तरह विस्तृत दिखाई देगा जिसका कोई अन्त नहीं है, जहाँ तक आप सोच भी नहीं सकते अर्थात् यह नभ भी हमें विस्तृत होने का यानी पूर्णता का सन्देश देता है।
(iii) लेखक संवृद्धि और अध्यात्म को एक-दूसरे का विरोधी नहीं मानता।
(iv) डॉ० कलाम सम्वृद्धि की कद्र इसलिए करते हैं, क्योकि संवृद्धि अपने साथ सुरक्षा तथा विश्वास लाती है, जो अन्तत: हमारी आजादी को बनाए रखने में सहायक है।
(v) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक ने छात्रों को प्रगति करने के लिए किसी भी कार्य को पूर्ण करके ही चैन लेने का सन्देश दिया है।

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