UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा
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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1
भारत में खाद्य सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर:
(क) प्रत्येक व्यक्ति के लिए खाद्य उपलब्ध रहे।
(ख) लोगों के पास अपनी भोजन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त और पौष्टिक भोजन खरीदने के लिए धन उपलब्ध हो।
(ग) प्रत्येक व्यक्ति की पहुँच में खाद्य रहे।
प्रश्न 2.
कौन लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं?
उत्तर:
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के अन्य क्षेत्र जो या तो भूमि के आधार पर गरीब हैं या जिनके पास बहुत कम भूमि है, क्रमशः खाद्य असुरक्षा के शिकार हैं। प्राकृतिक प्रकोपों से प्रभावित लोग जो शहरों में पलायन करते हैं, वह भी खाद्य असुरक्षा के शिकार होते हैं। गर्भवती महिलाएँ एवं नर्सिंग माँ भी कुपोषण एवं खाद्य असुरक्षा स्तर का शिकार होती है।
उक्त के अलावा भूमिहीन अर्थात् थोड़ी या नाम मात्र की भूमि पर निर्भर लोगों को खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त लोगों की श्रेणी में हम शामिल कर सकते हैं जिनका विवरण इस प्रकार हैं
- शहरी कामकाजी मजदूर ।
- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के कुछ वर्गों के लोग
- प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोग
- गर्भवती तथा दूध पिला रही महिलाएँ तथा पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चे
- पारम्परिक दस्तकार
- पारम्परिक सेवाएँ प्रदान करने वाले लोग
- अपना छोटा-मोटा काम करने वाले कामगार
- भिखारी
प्रश्न 3.
भारत में कौन-से राज्य खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हैं?
उत्तर:
भारत में ओडिशा, बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं महाराष्ट्र आदि राज्य खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हैं।
प्रश्न 4.
क्या आप मानते हैं कि हरित क्रान्ति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया है? कैसे?
उत्तर:
भारत में सरकार ने स्वतन्त्रता के पश्चात् खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर बनने का यथासम्भव प्रयास किया है। भारत में कृषि क्षेत्र में एक नयी रणनीति अपनायी गयी, जैसे-हरित क्रान्ति के कारण गेहूँ उत्पादन में वृद्धि हुई। गेहूँ की सफलता के बाद चावल के क्षेत्र में इस सफलता की पुनरावृत्ति हुई।
पंजाब और हरियाणा में सर्वाधिक वृद्धि दर दर्ज की गयी, जहाँ अनाजों का उत्पादन 1964-65 के 72.3 लाख टन की तुलना में बढ़कर 1995-96 में 3.03 करोड़ टन पर पहुँच गया, जो अब तक का सर्वाधिक ऊँचा रिकार्ड था। दूसरी तरफ, तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश में चावल के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। अतः हरित क्रान्ति ने भारत को काफी हद तक खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया है।
प्रश्न 5.
भारत में लोगों का एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि भारत में लोगों का एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है। आज भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर देश बन चुका है। ऐसे में देश का कोई नागरिक खाद्य से वंचित नहीं होना चाहिए। वास्तविक अभ्यास एवं वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं है। लोगों को एक वर्ग अब भी खाद्य से वंचित है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनके पास खाद्य खरीदने के लिए आवश्यक राशि नहीं है। यह लोग दीर्घकालिक गरीब हैं जो कोई क्रय शक्ति नहीं रखते। इस वर्ग में भूमिहीन एवं बेरोज़गार लोग शामिल हैं।
खाद्य से वंचित सर्वाधिक प्रभावित वर्गों में है-ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन परिवार जो थोड़ी बहुत अथवा नगण्य भूमि पर निर्भर हैं, कम वेतन पाने वाले लोग, शहरों में मौसमी रोजगार पाने वाले लोग। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के कुछ वर्गों (इनमें से निचली जातियाँ) को या तो भूमि का आधार कमजोर होता है। वे लोग भी खाद्य की दृष्टि से सर्वाधिक असुरक्षित होते हैं, जो प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हैं और जिन्हें काम की तलाश में दूसरी जगह जाना पड़ता है। खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त आबादी का बड़ा भाग गर्भवती तथा दूध पिला रही महिलाओं तथा पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों का है।
प्रश्न 6.
जब कोई आपदा आती है तो खाद्य पूर्ति पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
किसी प्राकृतिक आपदा जैसे—सूखा, बाढ़ आदि के कारण खाद्यान्न की कुल उपज में गिरावट दर्ज की जाती है जिससे क्षेत्र विशेष में खाद्यान्न की कमी हो जाती है जिसकी वजह से खाद्यान्नों की कीमतें बढ़ जाती हैं। समाज के निर्धन वर्ग के लोग ऊँची कीमतों पर खाद्यान्न नहीं खरीद पाते हैं। यदि यह आपदा अधिक लंबे समय तक बनी रहती है तो भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जो अकाल की स्थिति बन सकती है।
प्रश्न 7
मौसमी भुखमरी और दीर्घकालिक भुखमरी में भेद कीजिए।
उत्तर:
दीर्घकालिक भुखमरी यह मात्रा एवं/या गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है। गरीब लोग अपनी अत्यन्त निम्न आय और जीवित रहने के लिए खाद्य पदार्थ खरीदने में अक्षमता के कारण दीर्घकालिक भुखमरी से ग्रस्त होते हैं।
मौसमी भुखमरी-यह फसल उपजाने और काटने के चक्र से सम्बन्धित हैं। यह ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि क्रियाओं की मौसमी प्रकृति के कारण तथा नगरीय क्षेत्रों में अनियमित श्रम के कारण होती है। जैसे—बरसात के मौसम में अनियमित निर्माण के कारण श्रमिक को कम काम रहता है।
प्रश्न 8.
गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने क्या किया? सरकार की ओर से शुरू की गई किन्हीं दो योजनाओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारत सरकार ने लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर खाद्य सुरक्षा प्रणाली अपनायी है। इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली और अन्त्योदय अन्न योजना के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है।
(क) सार्वजनिक वितरण प्रणाली–केन्द्र सरकार, भारतीय खाद्य निगम के द्वारा किसानों से अधिप्राप्त अनाज को विनियमित कर राशन की दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है। इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहते हैं। वर्तमान में देश के ज्यादातर क्षेत्रों, गाँवों, कस्बों और शहरों में राशन की दुकानें हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली खाद्य सुरक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा उठाया गया महत्त्वपूर्ण कदम है। राशन की दुकानों को उचित मूल्य की दुकानें कहते हैं। यहाँ चीनी, खाद्यान्न और खाना पकाने के लिए मिट्टी के तेल का भण्डारण और वितरण किया जाता है।
संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (आर.पी.डी.एस.) को 1992 में देश के 1700 ब्लॉकों में संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली शुरू की गई। इसका लक्ष्य दूर-दराज और पिछड़े क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लाभ पहुँचाना था। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी.पी.डी.एस.) को जून 1997 से सभी क्षेत्रों में गरीबों को लक्षित करने के सिद्धान्त को अपनाने के लिए प्रारम्भ की गई। यह पहला मौका था जब निर्धनों और गैर-निर्धनों के लिए विभेदक कीमत नीति अपनाई गई।
(ख) अन्त्योदय अन्न योजना (ए.ए.वाई.) और अन्नपूर्णा योजना (ए.ए.एस.)-ये योजनाएँ क्रमशः ‘गरीबों में भी सर्वाधिक गरीब’ और ‘दीन वरिष्ठ नागरिक समूहों पर लक्षित हैं। इस योजना का क्रियान्वयन पी.डी.एस. के पहले से ही मौजूद नेटवर्क के साथ जोड़ा गया।
प्रश्न 9.
सरकार बफर स्टॉक क्यों बनाती है?
उत्तर:
सरकार बफर स्टॉक को कुछ निश्चित कृषि फसलों जैसे–गेहूँ, गन्ना आदि के लिए नियमित करता है। बफर स्टॉक भारतीय खाद्य निगम (एफ.सी.आई.) के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूँ और चावल को भण्डार है। भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों से गेहूँ और चावल खरीदता है।
किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती हैं। इस मूल्य को न्यूनतम समर्थित मूल्य कहा जाता है। इन फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बुआई के मौसम से पहले सरकार न्यूनतम समर्थित मूल्य की घोषणा करती है। खरीदे हुए अनाज खाद्य भंडारों में रखे जाते हैं। ऐसा कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के गरीब वर्गों में बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज के वितरण के लिए किया जाता है। इस कीमत को निर्गम कीमत भी कहते हैं।
प्रश्न 10.
टिप्पणी लिखें
(क) न्यूनतम समर्थित कीमत
(ख) बफर स्टॉक
(ग) निर्गम कीमत
(घ) उचित दर की दुकान
उत्तर:
(क) न्यूनतम समर्थित कीमत-भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों से गेहूँ और चावल खरीदता है। किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती हैं। इस मूल्य को न्यूनतम समर्थित मूल्य कहा जाता है। सरकार फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बुआई के मौसम से पहले न्यूनतम समर्थित मूल्य की घोषणा करती है। खरीदे हुए अनाज खाद्य भंडारों में रखे जाते हैं।
(ख) बफर स्टॉक-अतिरिक्त भंडार गेहूँ एवं चावल जैसे अनाजों का स्टॉक है जो सरकार द्वारा भारतीय खाद्य निगम से प्राप्त किया जाता है। इसका वितरण घाटे के क्षेत्रों एवं आवश्यक लोगों को किया जाता है।
(ग) निर्गमित कीमत-निर्गमित मूल्य पर सरकार द्वारा घाटे के क्षेत्रों में अनाज का वितरण किया जाता है, निर्गमित मूल्य कहलाती है। यह कीमत बाजार मूल्य की तुलना में कम होती है।
(घ) उचित दर वाली दुकानें भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती हैं।
राशन कि दुकानों में, जिन्हें उचित दर वाली दुकानें कहा जाता है, पर चीनी, खाद्यान्न और खाना पकाने के लिए मिट्टी के तेल का भंडार होता है। ये लोगों को सामान बाजार कीमत से कम कीमत पर देती है। अब अधिकांश क्षेत्रों, गाँवों, कस्बों और शहरों में राशन की दुकानें हैं।
प्रश्न 11.
राशन की दुकानों के संचालन में क्या समस्याएँ हैं?
उत्तर:
राशन की दुकानों के संचालन में आने वाली प्रमुख समस्यायें इस प्रकार हैं
- राशन की दुकान खोलने के लिए पर्याप्त मात्रा में उच्च कोटि की सीमित वस्तुओं का सरकार द्वारा उपलब्ध न किया जाना।
- सभी सदस्यों का राशन न लेना।।
- घटिया वस्तुओं का न खरीदा जाना।
- कुछ दुकानदारों द्वारा छल-कपट, धोखा-धड़ी, चोर बाजारी और काला बाजारी करना।
- पर्याप्त मात्रा में राशन की दुकान का उपलब्ध न होना।
- राशन की दुकानों का देहातों में दूर स्थित होना।
प्रश्न 12.
खाद्य और सम्बन्धित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में समितियों की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
देश के दक्षिणी और पश्चिमी भागों में सहकारी समितियाँ भी खाद्य सुरक्षा में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। सहकारी समितियाँ निर्धन लोगों को खाद्यान्न की बिक्री के लिए कम कीमत वाली दुकानें खोलती हैं। उदाहरणार्थ, तमिलनाडु में जितनी राशन की दुकानें हैं, उनमें से करीब 94 प्रतिशत सहकारी समितियों के माध्यम से चलाई जा रही हैं। दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित नियंत्रित दरों पर अन्य वस्तुएँ जैसे-दूध और सब्जियाँ उपलब्ध कराने में तेजी से प्रगति कर रही है।
गुजरात में दूध तथा दुग्ध उत्पादों में अमूल एक और सफल सरकारी समिति का उदाहरण है। देश के विभिन्न भागों में कार्यरत सरकारी समितियों के और अनेक उदाहरण हैं, जिन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के लिए खाद्य और सम्बन्धित वस्तुएँ उपलब्ध कराई हैं।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
महाराष्ट्र के ‘एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट साइंस’ की खाद्य सुरक्षा में भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस संस्था ने महाराष्ट्र के विभिन्न भागों में अनाज बैंकों की स्थापना के लिए गैर-सरकारी संगठनों के नेटवर्क की सहायता की। यह संस्था गैर-सरकारी संगठनों के लिए खाद्य सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम का संचालन करती है।
प्रश्न 2.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की विफलता के मुख्य कारण बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की विफलता का मुख्य कारण अखिल भारतीय स्तर पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली की खाद्यान्नों की औसत उपभोग मात्रा 1 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिमाह है। बिहार, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति उपभोग को आँकड़ा 300 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिमाह से भी कम हैं।
प्रश्न 3.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को किन आधारों पर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है?
उत्तर:
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अनेक आधारों पर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है। अनाजों से साढ़स भरे अन्न भंडारों के बावजूद भुखमरी की घटनाएँ हो रही है। भारतीय खाद्य निगम के भंडार अनाज से भी हैं। कहीं अनाज सड़ रहा है तो कुछ स्थानों पर चूहे अनाज खा रहे हैं।
प्रश्न 4.
सहायिकी (सब्सिडी) क्या है?
उत्तर:
सहायिकी (सब्सिडी) वह भुगतान है जो सरकार द्वारा किसी उत्पादक को बाजार कीमत की अनुपूर्ति के लिए किया जाता है। सहायिकी से घरेलू उत्पादकों के लिए ऊँची आय कायम रखते हुए, उपभोक्ता कीमतों को कम किया जा सकता है।
प्रश्न 5.
न्यूनतम समर्थित कीमत में वृद्धि से किसानों तथा फसलों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
न्यूनतम समर्थित कीमत में वृद्धि से विशेषतया खाद्यान्नों के अधिशेष वाले राज्यों के किसानों को अपनी भूमि पर मोटे अनाजों की खेती समाप्त कर धान और गेहूं उपजाने के लिए प्रेरित किया जाता है जबकि मोटे अनाज गरीबों का प्रमुख भोजन है। धान की खेती के लिए सघन सिंचाई से पर्यावरण और जल स्तर में गिरावट आई है।
प्रश्न 6.
भारत में राशन व्यवस्था की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
भारत में राशन व्यवस्था की शुरुआत बंगाल के अकाल की पृष्ठभूमि में 1940 ई. के दशक में हुई। इस अकाल में 30 लाख से अधिक लोग मारे गए थे। हरित क्रान्ति से पहले खाद्य संकट से उबरने के लिए 1960 ई. के दशक के दौरान राशन प्रणाली पुनः जीवित की गयी।
प्रश्न 7.
अकाल से आप क्या समझते है?
उत्तर:
अकाल फसलों के उत्पादन कम होने से लोगों में भुखमरी उत्पन्न हो जाती है जिससे बड़े पैमाने पर मौतें होती हैं। जो लोग भुखमरी तथा विवश होकर होकर दूषित जल या सड़े भोजन के प्रयोग से फैलने वाली महामारियों तथा भुखमरी से उत्पन्न कमजोरी से रोगी के प्रति शरीर की प्रतिरोधी क्षमता में कमी उत्पन्न होती है।
प्रश्न 8.
उचित दर वाली दुकानों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
राशन की दुकानों में जिन्हें उचित दर वाली दुकानें कहा जाता है, जहाँ चीनी, खाद्यान्न और खाना पकाने के लिए मिट्टी के तेल का भंडार होता है, ये सामान लोगों को बाजार कीमत से कम कीमत पर वितरण किया जाता है।
प्रश्न 9.
राशन कार्ड रखने वाले परिवार को लगभग कितना सामान प्रतिमाह मिलता है?
उत्तर:
राशन कार्ड रखने वाले कोई भी परिवार प्रतिमाह इनकी एक अनुबंधित मात्रा (जैसे 35 किलोग्राम अनाज, 5 लीटर मिट्टी का तेल, 5 किलोग्राम चीनी आदि) निकटवर्ती राशन की दुकान से खरीद सकता है।
प्रश्न 10.
सोमालिया में अकाल का क्या कारण है?
उत्तर:
सोमालिया (अफ्रीकी देश) में अकाल-नागरिक अशान्ति का परिणाम है। देश में खाद्य वितरण प्रणाली पूरी तरह टूट गयी है।
प्रश्न 11.
राशन कार्ड के प्रकार बताइए।
उत्तर:
राशन कार्ड के निम्नलिखित तीन प्रकार होते हैं
- गरीबों में सबसे गरीब के लिए (अंत्योदय) कार्ड।
- गरीबी रेखा से नीचे बी. पी. एल. कार्ड उनके लिए हैं जो गरीबी रेखा से नीचे हैं।
- गरीबी रेखा से ऊपर ए. पी. एल. कार्ड सभी अन्य लोगों के लिए।
प्रश्न 12.
अकाल के विपक्ष में तीन आधुनिक हथियारों को बताइए।
उत्तर:
अकाल के विरुद्ध आधुनिक हथियार
- नाइट्रोजन उर्वरकों का उपयोग
- रेगिस्तानी कृषि
- आधुनिक कृषि तकनीक का उपयोग।
प्रश्न 13.
अकाल को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अकाल उस परिस्थिति को कहते हैं जिसमें किसी क्षेत्र या देश की जनसंख्या का बड़ा भाग अल्प भोजन और कुपोषण से ग्रस्त होता है, जिसके कारण भुखमरी, जीवन का साधारण अंग बन जाती है।
प्रश्न 14.
स्वतन्त्रता से पूर्व अकाल के पड़ने के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
अकाल के लिए उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं
- खाद्य की अधिक कमी,
- विनाश, चाहे प्राकृतिक हो या मानव निर्मित,
- ब्रिटिश सरकार की दमन नीतियाँ।
प्रश्न 15.
राशनिंग क्या है? इसका उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
राशनिंग उस मात्रा पर प्रतिबंध को दर्शाती है जो उपभोक्ताओं द्वारा क्रय एवं उपभोग की जा सकती है। राशनिंग उन गरीब उपभोक्ताओं के लिए वस्तुओं की उपलब्धि को सुनिश्चित करती है जो कि स्वतन्त्र बाजार में वस्तुएँ प्राप्त नहीं कर पाते। सीमित वस्तुएँ जैसे—मिट्टी का तेल, सीमेंट, वनस्पति घी आदि वस्तुएँ भी राशन कार्ड द्वारा बेची जाती हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
खाद्य सुरक्षा में किसे शामिल किया जा सकता है?
उत्तर:
खाद्य सुरक्षा में निम्नलिखित शामिल हैं
- खाद्य की उपलब्धता यहाँ पर सभी के लिए भोजन उपलब्ध होना चाहिए।
- खाद्य की अधिकता-सभी व्यक्तियों के पास खाद्य (भोजन) होना चाहिए। यह सभी तक पहुँचना चाहिए।
- खाद्य की प्राप्ति-सभी व्यक्तियों के पास पर्याप्त, सुरक्षित एवं पोषण खाद्य खरीदने के लिए पर्याप्त क्रय शक्ति होनी चाहिए।
प्रश्न 2.
खाद्यान्न के गोदामों में आवश्यकता से अधिक अनाज का होना फिर भी लोगों के पास खाने के लिए भोजन नहीं है। इस विडम्बना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अतिरिक्त भंडार (Buffer Stock) की पर्याप्तता के बावजूद हमारे देश की 26% जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे रह रही है। इसका अर्थ यह हुआ कि प्रतिदिन उनके पास भोजन खरीदने के साधन भी नहीं हैं। हालांकि यह प्रतिशत 19992000 में कम हुआ जो 1993-94 में 36% था; इन गरीबों की सम्पूर्ण संख्या 26 करोड़ है।
यह प्रदर्शित करता है कि यहाँ पर कुछ लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है, जबकि सरकार के गोदामों में खाद्यान्न रखने की जगह नहीं है। उपरोक्त परिस्थितियों में हमारे कृषि वैज्ञानिकों को उत्पादन में वृद्धि के लिए कई अन्य उपाय खोजने पड़ेंगे जिससे हमारी जनसंख्या के कई लाख लोगों को भोजन प्रदान किया जा सके।
प्रश्न 3.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सरकार द्वारा विनियमित बिन्दु पर आवश्यक वस्तुओं के वितरण को सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहते हैं। हमारे देश में लगभग 4,60,000 राशन एवं उचित कीमत की दुकानें हैं जो सम्पूर्ण देश में फैली हुई हैं। मिट्टी का तेल, गन्ना, कोयला आदि भी सरकारी उचित कीमत की दुकानों के द्वारा बेची जाती है। उपभोक्ता सहकारी समितियाँ (co-operatives) भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ऐजेंट के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन सहकारी समितियों द्वारा विनियमित कपड़े एवं अन्य वस्तुएँ बेची जाती हैं।
कभी-कभी व्यापारिक एजेंसी द्वारा राशन कार्ड के आधार पर वनस्पति तेल भी बेचा जाता है।
सुपर बाज़ार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली की एजेंसी के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दिल्ली में विभिन्न गतिशील मोटर वाहन (vans) को भी दिल्ली प्रशासन एवं सुपर बाजार द्वारा प्रारम्भ किया गया है। जिससे शहर के प्रत्येक हिस्से में आवश्यक वस्तुओं का प्रवाह किया जा सके।
दिल्ली दृध योजना एवं मदर डेयरी भी दूध की आपूर्ति उचित दर (fair price) पर करती है। जनजातियों के क्षेत्रों (tribal areas) में भी विशेष सहायता योजना (special subsidied scheme) के अन्तर्गत अनाज को रियायती दरों पर उपलब्ध कराया जाता है।
प्रश्न 4.
सहकारी समितियाँ किस प्रकार खाद्य सुरक्षा में सहायक होती हैं?
उत्तर:
सहकारी समितियाँ भारत में खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सहकारी समितियों ने गरीब लोगों को कम मूल्य पर वस्तुएँ बेचने के लिए दुकानों का निर्माण किया है। उदाहरण के लिए तमिलनाडु में चलाई जाने वाली सभी उचित कीमत की दुकानों में से 94 प्रतिशत दुकानें सहायक समितियों द्वारा चलाई जाती हैं। दिल्ली में, मदर डेयरी ने दिल्ली सरकार द्वारा निश्चित नियंत्रित कीमत पर उपभोक्ताओं के लिए दूध एवं सब्जियों के संचय का प्रयास किया है। अमूल भी सहकारी समितियों की सफलता की एक कहानी है। यह देश में श्वेत क्रान्ति लाया था। यहाँ सहकारी समितियों के कई और अन्य उदाहरण है जो खाद्य सुरक्षा को भारत के विभिन्न भागों के विभिन्न वर्गों में सुनिश्चित करता है।
इसी प्रकार महाराष्ट्र में Academy of Development Science ने गैर-सरकारी संगठनों द्वारा अनाज बैंक बनाने की सुविधा उपलब्ध की। ADS प्रशिक्षण की व्यवस्था करता है। यह भोजन सुरक्षा के उद्देश्य से संगठित गैर-सरकारी संगठनों के लिये भवन की व्यवस्था करता है। महराष्ट्र के विभिन्न भागों में अनाज बैंकों का धीरे-धीरे विकास हो रहा है।
प्रश्न 5.
अन्त्योदय अन्न योजना एवं अन्नपूर्णा योजना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अन्त्योदय अन्न योजना (AAY) दिसम्बर 2000 ई. में प्रारम्भ हुई। इस योजना के अन्तर्गत गरीबी रेखा से नीचे पाए जाने वाले परिवारों की पहचान की गयी। गरीब परिवारों की प्रदेश सरकार के ग्रामीण विकास विभाग ने गरीबी रेखा के आधार पर पता लगाया। प्रत्येक पहचान किए गए परिवार को 25 किलोग्राम अनाज अत्यधिक रियायती मूल्य पर प्रदान किया गया। गेहूं का मूल्य 2 रुपये प्रति किलो और चावल 3 रुपये प्रति किलो दर पर प्रदान किए गए। अप्रैल 2002 ई. से खाद्यान्न की मात्रा 25 किलो से बढ़ाकर 35 किलो कर दी गई।
इसके पश्चात् इस योजना का प्रसार गरीबी रेखा के नीचे दिए जाने वाले 50 लाख अन्य परिवारों में किया गया! यह वृद्धि जून 2003 ई. एवं अप्रैल 2004 ई. में की गई। इस वृद्धि से दो करोड़ परिवारों की सहायता प्रदान की जाती है।
अन्नपूर्णा योजना (APS)–यह वर्ष 2000 में सीनियर नागरिकों को 10 किलोग्राम मुफ्त अनाज प्रदान करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के रूप में आरम्भ की गई।
प्रश्न 6.
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम को लागू करने के उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
14 नवम्बर, 2004 ई. को यह कार्यक्रम पूरक श्रम रोजगार के सृजन को तीव्र करने के उद्देश्य से देश के 150 पिछड़े जिलों में शुरू किया गया। यह कार्यक्रम उन समस्त ग्रामीण गरीबों के लिए है, जिन्हें वेतन रोजगार की आवश्यकता है।
और जो अकुशल शारीरिक श्रम करने के इच्छुक हैं। इसे शत-प्रतिशत केन्द्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम के रूप में लागू किया गया और राज्यों को निःशुल्क अनाज मुहैया कराया जाता रहा है। जिला स्तर पर कलेक्टर शीर्ष अधिकारी है और उन पर इस कार्यक्रम की योजना बनाने, कार्यान्वयन, समन्वयन और पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी है। वर्ष 2004-05 में इस कार्यक्रम के लिए 20 लाख टन अनाज के अतिरिक्त 2,020 करोड़ रुपये नियत किए गए हैं।
प्रश्न 7
अन्त्योदय अन्न योजना से आप क्या समझते हैं? टिप्पणी करें।
उत्तर:
अन्त्योदय अन्न योजना दिसम्बर, 2000 में शुरू की गई थी। इस योजना के अन्तर्गत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आने वाले निर्धनता रेखा से नीचे के परिवारों में से एक करोड़ लोगों की पहचान की गई। सम्बन्धित राज्य के ग्रामीण विकास विभागों ने गरीबी रेखा से नीचे के गरीब परिवारों को सर्वेक्षण के द्वारा चुना। 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ और 3 रुपये प्रति किलोग्राम की अत्यधिक आर्थिक सहायता प्राप्त दर पर प्रत्येक परिवार को 25 किलोग्राम अनाज उपलब्ध कराया गया। अनाज की यह मात्रा अप्रैल 2002 में 25 किलोग्राम से बढ़ा कर 35 किलोग्राम कर दी गई। जून 2003 और अगस्त 2004 में इसमें 50-50 लाख अतिरिक्त बी.पी.एल. परिवार दो बार जोड़े गए। इससे इस योजना में आने वाले परिवारों की संख्या 2 करोड़ हो गई।
प्रश्न 8.
भुखमरी से आप क्या समझते हैं? भारत में भुखमरी के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
भुखमरी खाद्य की दृष्टि से असुरक्षा को इंगित करने वाला एक दूसरा पहलू है। भुखमरी गरीबी की एक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, यह गरीबी लाती है। इस तरह खाद्य की दृष्टि से सुरक्षित होने से वर्तमान में भुखमरी समाप्त हो जाती है और भविष्य में भुखमरी का खतरा कम हो जाता है।
भुखमरी के प्रकार
(क) दीर्घकालिक भुखमरी–यह मात्रा या गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है। गरीब लोग अपनी अत्यन्त निम्न आय और जीवित रहने के लिए खाद्य पदार्थ खरीदने में अक्षमता के कारण दीर्घकालिक भुखमरी से ग्रस्त होते हैं।
(ख) मौसमी भुखमरी-यह फसल उपजाने और काटने के चक्र से सम्बन्धित हैं। यह ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि क्रियाओं की मौसमी प्रकृति के कारण ना नारी क्षेत्रों में अनियमित श्रम के कारण होती है। जैसे-बरसात के मौसम में अनियत निर्माण श्रमिक को कम काम रहता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
खाद्य और खाद्य से सम्बन्धित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में सहकारी समितियों और गैर सरकारी संगठनों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
- गुजरात में दूध तथा दुग्ध उत्पादों में अमूल एक और सफल सहकारी समिति का उदाहरण है। इसने देश में श्वेत क्रान्ति ला दी है।
- भारत में सहकारी समितियों के कई उदाहरण हैं जो समाज के विभिन्न वर्गों की खाद्य सुरक्षा के लिए अच्छा काम कर रहे हैं।
- भारत में गैर-सरकारी संगठन की खाद्य सुरक्षा के लिए अच्छा काम कर रहे हैं।
- इसी तरह, महाराष्ट्र में एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट साइंस (ए.डी.एस.) ने विभिन्न क्षेत्रों में अनाज बैंकों की स्थापना के लिए गैर-सरकारी संगठनों के नेटवर्क में सहायता की है।
- ए.डी.एस. गैर-सरकारी संगठनों के लिए खाद्य सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम संचालित करती है।
- अनाज बैंक अब धीरे-धीरे महाराष्ट्र के विभिन्न भागों में खुलते जा रहे हैं।
- अनाज बैंकों की स्थापना, गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से उन्हें फैलाने और खाद्य सुरक्षा पर सरकार की नीति को प्रभावित करने में ए.डी.एस. की कोशिश रंग ला रही है।
- ए.डी.एस. अनाज बैंक कार्यक्रम को एक सफल और नए प्रकार के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के रूप में स्वीकृति मिली। हैं।
- भारत में विशेषकर देश के दक्षिणी और पश्चिमी भागों में सहकारी समितियाँ भी खाद्य सुरक्षा में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
- सहकारी समितियाँ निर्धन लोगों को खाद्यान्न की बिक्री के लिए कम कीमत वाली दुकानें खोलती हैं।
- दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित नियंत्रित दरों पर दूध और सब्जियाँ उपलब्ध कराने में तेजी से प्रगति कर रही है।
प्रश्न 2.
कुछ पोषक भोजन कार्यक्रमों को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
- दोपहर के भोजन की योजना-यह वर्ष 1962-63 में शुरू किया गया था। इसका लक्ष्य 6 से 11 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रोटीन युक्त पौष्टिक भोजन प्रदान करना है। वर्ष 1983 तक इसने 18 लाख बच्चों को इस कार्यक्रम में शामिल किया।
- विशेष पोषण योजना-यह वर्ष 1970-71 में प्रारम्भ किया गया। इसका लक्ष्य 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रोटीन युक्त 300 कैलोरी प्रदान करना है और गर्भवती को वर्ष में 300 दिन 500 कैलोरी प्रोटीन के साथ प्रदान करना है। वर्ष 1983 तक इस कार्यक्रम में 9 लाख लोग शामिल थे। इस कार्यक्रम में पौष्टिक एवं शक्तिवर्धक खाद्य का उत्पादन भी शामिल है।
- विशेष पौष्टिक भोजन कार्यक्रम-वर्ष 1960 में विशेष पौष्टिकता की कमी को दूर करने के लिए निम्न विशेष पौष्टिक भोजन कार्यक्रम जारी किए गए।
- व्यवहारिक संतुलित पौष्टिक आहार योजना-यह वर्ष 1960 में दो राज्यों में प्रारम्भ हुआ। वर्ष 1973 तक यह सभी राज्यों में फैल गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य संतुलित आहार, सुरक्षित खाद्य का उपभोग एवं पकाने की उचित तकनीकी के विचार को फैलाना था।
प्रश्न 3.
अनाज प्रबन्ध का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
द्वितीय (II) विश्व युद्ध के दौरान अनाज की कमी को पूरा करने के लिए इसे प्रारम्भ किया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध से अनाज प्रबंध निरंतर उसी एवं अन्य रूप में चल रहा है। अनाज प्रबंध के आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित हैं-
(क) सार्वजनिक वितरण प्रणाली का रख-रखाव।
(ख) अनाज के अतिरिक्त भंडार का रख-रखाव।
(ग) सरकारी एजेंसी द्वारा बाजार में उपलब्ध अतिरिक्त खाद्यान्नों की सार्वजनिक वितरण के रूप में प्राप्ति करना एवं उसका भंडार बनाना।
(घ) अनाज के प्रबंध में आवश्यक एवं न्यायोचित प्रतिबन्ध लगाना।
(ङ) निजी व्यापार का नियमन जिससे खाद्यान्नों की जमाखोरी एवं उनमें सट्टेबाज़ी रोकी जा सकें।
(च) जब कभी आवश्यक हो, तो घरेलू उत्पादन की सहायता के लिए विदेशों से खाद्यान्न का आयात करना।
प्रश्न 4.
अकाल के लिए उत्तरदायी कारणों को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
अकाल के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं-
- युद्ध एवं जान बूझकर राजनीतिक हस्तक्षेप भी अकाल को कारण हो सकता है-इन दिनों क्षेत्रों में विनाशकारी युद्ध एवं कुछ राजनैतिक मतभेद अकाल की स्थिति पैदा करते हैं।
- नागरिक उथल-पुथल (अशान्ति) और भोजन वितरण प्रणाली की दुर्व्यवस्था-समूहों के मध्य टकराव एवं मुठभेड़ कभी-कभी खाद्य वितरण प्रणाली को तोड़ देते हैं और अकाल को बढ़ावा देते हैं।
- अधिक खाद्य कमी-अकाल की प्रधान विशेषता खाद्य की अधिक कमी होना है। खाद्य (भोजन) अनुपलब्ध है। चाहे यह उपलब्ध हो लेकिन इसके मूल्य के अधिक होने के कारण यह सामान्य लोगों की पहुँच तक नहीं होता।
- फसल की असफलता या स्थिति में परिवर्तन जैसे सूखा-हार्वेस्ट के बाढ़, सूखा एवं प्राकृतिक आपदाओं के कारण निरन्तर असफल होने के परिणामस्वरूप खाद्य स्तर में कमी होती है और यह आकाल की स्थिति लाता है।
- विनाश चाहे प्राकृतिक या मानव निर्मित किसी भी प्रकार का विनाश चाहे प्राकृतिक हो या मानव द्वारा निर्मित आर्थिक स्थिति को नुकसान पहुंचाता है और अकाल को पैदा करता है।