UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ

UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ (सुमित्रानन्दन पन्त) are part of UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ (सुमित्रानन्दन पन्त).

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ (सुमित्रानन्दन पन्त)

प्रश्न 1.
‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु (कथानक) संक्षेप में लिखिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के आधार पर भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम की विशिष्ट (प्रमुख) घटनाओं का वर्णन कीजिए। [2012, 13]
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के आधार पर स्वतन्त्रता-संग्राम का विवरण प्रस्तुत कीजिए। [2017]
या
“‘मुक्तियज्ञ’ सन् 1921 से लेकर सन् 1947 तक के स्वतन्त्रता संग्राम की कहानी है। इस उक्ति पर प्रकाश डालिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के कथानक का सार प्रस्तुत कीजिए। [2016]
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के आधार पर स्वाधीनता संग्राम की घटनाओं का विवरण प्रस्तुत कीजिए। [2016]
उत्तर
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा विरचित ‘लोकायतन’ महाकाव्य का एक अंश है। इस अंश में भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन की गाथा है। ‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु संक्षेप में निम्नवत् है|
गाँधी जी साबरमती आश्रम से अंग्रेजों के नमक-कानून को तोड़ने के लिए चौबीस दिनों की यात्रा पूर्ण करके डाण्डी गाँव पहुँचे और सागरतट पर नमक बनाकर ‘नमक कानून तोड़ा

वह प्रसिद्ध डाण्डी यात्रा थी, जन के राम गये थे फिर वन।
सिन्धु तीर पर लक्ष्य विश्व का, डाण्डी ग्राम बना बलि प्रांगण ॥

गाँधी जी का उद्देश्य नमक बनाना नहीं था, वरन् इसके माध्यम से वे अंग्रेजों के इस कानून का विरोध करना और जनता में चेतना उत्पन्न करना चाहते थे। यद्यपि उनके इस विरोध के आधार सत्य और अहिंसा थे, किन्तु अंग्रेजों का दमन-चक्र पहले की भाँति ही चलने लगा। गाँधी जी तथा अन्य नेताओं को अंग्रेजों ने कारागार में डाल दिया। जैसे-जैसे दमने-चक्र बढ़ता गया, वैसे-वैसे ही मुक्तियज्ञ भी तीव्र होता गया। गाँधी जी ने भारतीयों को स्वदेशी वस्तु के प्रयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए प्रोत्साहित किया। सम्पूर्ण देश में यह आन्दोलन फैल गया। समस्त देशवासी स्वतन्त्रता आन्दोलन में एकजुट होकर गाँधी जी के पीछे हो गये। इस प्रकार गाँधी जी ने भारतीयों में एक अपूर्व उत्साह एवं जागृति उत्पन्न कर दी।

गाँधी जी ने अछूतों को समाज में सम्मानपूर्ण स्थान दिलवाने के लिए आमरण अनशन आरम्भ किया। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीयों ने अंग्रेजों से संघर्ष का निर्णय किया। सन् 1927 ई० में साइमन कमीशन भारत आया। भारतीयों द्वारा इस कमीशन का पूर्ण बहिष्कार किया गया। मैक्डॉनल्ड एवार्ड के द्वारा केन्द्र एवं प्रान्त की सीमाओं से सम्पूर्ण भारतवर्ष को विभिन्न साम्प्रदायिक टुकड़ों में विभक्त कर दिया गया। इससे असन्तोष और भी ज्यादा बढ़ गया। काँग्रेस ने विभिन्न प्रान्तों में कुछ नेताओं के समर्थन से मन्त्रिमण्डल बनानी स्वीकार किया। शीघ्र ही विश्वयुद्ध छिड़ गया। काँग्रेस के सहयोग की शर्ते ब्रिटिश सरकार को मान्य नहीं थीं। फलत: गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू कर दिया। जापान के विश्वयुद्ध में सम्मिलित हो जाने से भारत में भी खतरे की सम्भावनाएँ उत्पन्न होने लगीं। ऐसी स्थिति में ब्रिटिश सरकार ने भारत की समस्याओं पर विचार करने के लिए ‘क्रिप्स मिशन’ भेजा, जिसका भारतीय जनता ने विरोध किया। सन् 1942 ई० में गाँधी जी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नारा लगा दिया। उसी रात्रि में गाँधी जी व अन्य नेतागण बन्दी बना लिये गये और अंग्रेजों ने बालकों, वृद्धों और स्त्रियों तक पर भीषण अत्याचार आरम्भ कर दिये। इन अत्याचारों के कारण भारतीयों में और अधिक आक्रोश उत्पन्न हो उठा। चारों ओर हड़ताल और तालाबन्दी हो गयी। अंग्रेजी शासन इस आन्दोलन से हिल गया। कारागार में ही गाँधी जी की पत्नी कस्तूरबा का देहान्त हो गया। पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध प्रबल आक्रोश एवं हिंसा भड़क उठी थी।

आजाद हिन्द सेना के संगठनकर्ता सुभाषचन्द्र बोस ने भी भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने की योजना बनायी। सन् 1945 ई० में सारे बन्दी बनाये गये नेता छोड़ दिये गये। इससे जनता में उत्साह की लहर पुनः उमड़ने लगी। इसी समय सुभाषचन्द्र बोस का वायुयान दुर्घटना में निधन हो गया।

सन् 1942 ई० में ही भारत की पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की गयी थी। अंग्रेजों के प्रोत्साहन पर मुस्लिम लीग ने भारत विभाजन की माँग की। अन्ततः 15 अगस्त, 1947 ई० को अंग्रेजों ने भारत को मुक्त कर दिया। अंग्रेजों ने भारत और पाकिस्तान के रूप में देश का विभाजन करवा दिया। एक ओर तो देश में स्वतन्त्रता का उत्सव मनाया जा रहा था, दूसरी ओर नोआखाली में हिन्दू और मुसलमानों के बीच संघर्ष हो गया। गाँधी जी ने इससे दु:खी होकर आमरण उपवास रखने का निश्चय किया।

30 जनवरी, 1948 ई० को नाथूराम गोडसे ने गाँधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी। इस दुःखान्त घटना के पश्चात् कवि द्वारा भारत की एकता की कामना के साथ इस काव्य का अन्त हो जाता है।

इस प्रकार इस खण्डकाव्य का आधार-फलक बहुत विराट् है और उस पर कवि पन्त द्वारा बहुत सुन्दर और प्रभावशाली चित्र खींचे गये हैं। इसमें उस युग का इतिहास अंकित है, जब भारत में एक हलचल मची हुई थी और सम्पूर्ण देश में क्रान्ति की आग सुलग रही थी। इसमें व्यक्त राष्ट्रीयता और देशभक्ति संकुचित नहीं है। निष्कर्ष रूप में मुक्तियज्ञ गाँधी-युग के स्वर्णिम इतिहास का काव्यात्मक आलेख है।

प्रश्न 2.
‘मुक्तियज्ञ’ के नायक (प्रमुख पात्र) का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2009, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘मुक्तियज्ञ’ के आधार पर गाँधी जी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। [2011, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के आधार पर उसके किसी एक प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2014, 15]
या
” ‘मुक्तियज्ञ’ में महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व का वही अंश उभारा गया है, जो भारतीय जनता को शक्ति और प्रेरणा देता है।” स-तर्क प्रमाणित कीजिए। [2009]
या
राष्ट्रपिता और राष्ट्रनायक गाँधी ही ‘मुक्तियज्ञ’ के पुरोधा हैं, खण्डकाव्य की कथावस्तु के आधार पर इस कथन की समीक्षा कीजिए और उनका चरित्र-चित्रण कीजिए। [2010, 14]
या
‘मुक्तियज्ञ’ में कथित उन सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए जिनके आधार पर गाँधी जी ने देश की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष किया।
उत्तर
‘मुक्तियज्ञ’ काव्य के आधार पर गाँधी जी की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नवत् हैं—

(1) प्रभावशाली व्यक्तित्व-गाँधी जी का आन्तरिक व्यक्तित्व बहुत अधिक प्रभावशाली है। उनकी वाणी में अद्भुत चुम्बकीय प्रभाव था। उनकी डाण्डी यात्रा के सम्बन्ध में कवि ने लिखा है

वह प्रसिद्ध डाण्डी यात्रा थी, जन के राम गये थे फिर वन ।
सिन्धु तीर पर लक्ष्य विश्व का, डाण्डी ग्राम बना बलि प्रांगण ॥

(2) सत्य, प्रेम और अहिंसा के प्रबल समर्थक-‘मुक्तियज्ञ’ में गाँधी जी के जीवन के सिद्धान्तों में सत्य, प्रेम और अहिंसा प्रमुख हैं। अपने इन तीन आध्यात्मिक अस्त्रों के बल पर ही गाँधी जी ने अंग्रेज सरकार की नींव हिला दी। इन सिद्धान्तों को वे अपने जीवन में भी अक्षरशः उतारते थे। उन्होंने कठिनसे-कठिन परिस्थिति में भी सत्य, अहिंसा और प्रेम का मार्ग नहीं छोड़ा।
(3) दृढ़-प्रतिज्ञ-‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गाँधी जी ने जो भी कार्य आरम्भ किया, उसे पूरा करके ही छोड़ा। वे अपने निश्चय पर अटल रहते हैं और अंग्रेजी सत्ता दमन चक्र से तनिक भी विचलित नहीं होते। उन्होंने नमक कानून तोड़ने की प्रतिज्ञा की तो उसे पूरा भी कर दिखाया

प्राण त्याग दूंगा पथ पर ही, उठा सका मैं यदि न नमक-कर।
लौट न आश्रम में आऊँगा, जो स्वराज ला सका नहीं घर ॥

(4) जातिवाद के विरोधी-गाँधी जी का मत था कि भारत जाति-पाँति के भेदभाव में पड़कर ही शक्तिहीन हो रहा है। उनकी दृष्टि में न कोई छोटा था, न अस्पृश्य और न ही तुच्छ। इसी कारण वे जातिवाद के कट्टर विरोधी थे-

भारत आत्मा एक अखण्डित, रहते हिन्दुओं में ही हरिजन।
जाति वर्ण अघ पोंछ, चाहते, वे संयुक्त रहें भू जनगण ।।

(5) जन-नेता–‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गाँधी जी सम्पूर्ण भारत में जन-जन के प्रिय नेता हैं। उनके एक संकेत मात्र पर ही लाखों नर-नारी अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर रहते हैं; यथा

मुट्ठी-भर हड्डियाँ बुलातीं, छात्र – निकल पड़ते सब बाहर।
लोग छोड़ घर-द्वार, मान, पद, हँस-हँस बन्दी-गृह देते भर ॥

भारत की जनता ने उनके नेतृत्व में ही स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ी और अंग्रेजों को भगाकर ही दम लिया।

(6) मानवता के अग्रदूत-‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गाँधी जी अपना सम्पूर्ण जीवन मानवता के कल्याण में ही लगा देते हैं। उनका दृढ़ विश्वास है कि मानव-मन में उत्पन्न घृणा, घृणा से नहीं अपितु प्रेम से मरती है। वे आपस में प्रेम उत्पन्न कर घृणा एवं हिंसा को दूर करना चाहते थे। वे हिंसा का प्रयोग करके स्वतन्त्रता भी नहीं चाहते थे; क्योंकि उनका मानना था कि हिंसा पर टिकी हुई संस्कृति मानवीयता से रहित होगी-

घृणा, घृणा से नहीं मरेगी, बल प्रयोग पशु साधन निर्दय।
हिंसा पर निर्मित भू-संस्कृति, मानवीय होगी न, मुझे भय ॥

(7) लोक-पुरुष-मुक्तियज्ञ’ में गाँधी जी एक लोक-पुरुष के रूप में पाठकों के समक्ष आते हैं। इस सम्बन्ध में कवि कहता है-

संस्कृति के नवीन त्याग की, मूर्ति, अहिंसा ज्योति, सत्यव्रत ।
लोक-पुरुष स्थितप्रज्ञ, स्नेह धन, युगनायक, निष्काम कर्मरत ।

(8) साम्प्रदायिक एकता के पक्षधर–स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय देश में हिन्दुओं और मुसलमानों में भीषण संघर्ष हुआ। इससे गाँधी जी का हृदय बहुत दु:खी हुआ। साम्प्रदायिक दंगा रोकने के लिए गाँधी जी ने आमरण अनशन कर दिया। गाँधी जी सोच रहे हैं

मर्म रुधिर पीकर ही बर्बर, भू की प्यास बुझेगी निश्चय।

(9) समद्रष्टा-गाँधी जी सबको समान दृष्टि से देखते थे। उनकी दृष्टि में न कोई बड़ा था और न ही कोई छोटा। छुआछूत को वे समाज का कलंक मानते थे। उनकी दृष्टि में कोई अछूत नहीं था—

छुआछूत का भूत भगाने, किया व्रती ने दृढ़ आन्दोलन,
हिले द्विजों के रुद्र हृदय पर, खुले मन्दिरों के जड़ प्रांगण।

इस प्रकार ‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गाँधी जी महान् लोकनायक; सत्य, अहिंसा और प्रेम के समर्थक; दृढ़-प्रतिज्ञ, निर्भीक और साहसी पुरुष के रूप में सामने आते हैं। कवि ने गाँधी जी में सभी लोककल्याणकारी गुणों का समावेश करते हुए उनके चरित्र को एक नया स्वरूप प्रदान किया है।

प्रश्न 3.
‘मुक्तियज्ञ’ में निरूपित आजाद हिन्द सेना की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
द्वितीय विश्वयुद्ध के काल में अपने घर में ही नजरबन्द सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेजों को चकमा । देकर जनवरी सन् 1941 में नजरबन्दी से निकल भागे तथा अफगानिस्तान, जर्मनी होते हुए जापान पहुँच गये। दिसम्बर 1941 में जापान ने विश्वयुद्ध में प्रवेश किया। उस समय मलाया में अमेरिकी, ऑस्ट्रेलियन और अंग्रेजी सैन्य विभागों के साथ लगभग 60,000 भारतीय सैनिक और उच्च पदाधिकारी भी नियुक्त थे। पराधीन देश के सैनिक होने के कारण उनके तथा अन्य देश के सैनिकों में वेतन और अन्य सुविधाओं की दृष्टि से बहुत भेदभाव रखा गया था। जापानियों ने बड़ी आसानी से मलाया पर अधिकार कर लिया। इन्हीं दिनों बंगाल के क्रान्तिकारी नेता श्री रासबिहारी बोस ने जापानी सैन्य अधिकारियों से मिलकर युद्ध में बन्दी भारतीय सिपाहियों की एक देशभक्त सेना बनायी। सितम्बर सन् 1942 में भारतीय सेनानायकों के नेतृत्व में ‘आजाद हिन्द सेना’ बनी। मलाया, बर्मा, हाँगकाँग, जावा आदि देशों के अनेक प्रवासी भारतीय भी उसमें सम्मिलित हुए। सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्व में ‘आजाद हिन्द सेना’ एक महत्त्वपूर्ण और बलशाली सैन्यसंगठन बन गया। 26 जून, सन् 1945 को भारत के प्रति रेडियो सन्देश भेजते हुए आजाद हिन्द रेडियो से उन्होंने घोषित किया था कि आजाद हिन्द सेना कोई पराधीन और शक्तिहीन सेना नहीं थी। इसके नायक धुरी राष्ट्रों की सहायता से भारत को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराने की योजना बना रहे थे।

मई, 1945 में विश्वयुद्ध समाप्त हुआ और जून में कांग्रेस के बन्दी नेता छोड़ दिये गये। सारे देश में उत्साह की लहर छा गयी। इन्हीं दिनों लाल किले में बन्दी आजाद हिन्द सेना के नायकों पर मुकदमा चलाया गया। मुकदमे के दौरान जब इन वीरों की शौर्य-गाथाएँ जनता के सामने आयीं, तब समस्त भारतीय जनता का प्यार उन पर उमड़ पड़ा। इसी समय हवाई दुर्घटना में हुई सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु के समाचार से सम्पूर्ण भारत पर अवसाद (निराशा) के बादल छा गये। उनके कठिन प्रवास की दु:खद कहानियों को सुन-सुनकर जनता का यह अवसाद क्रोध में बदल गया। इस प्रकार युद्ध समाप्त होते-होते सम्पूर्ण भारत में फिर क्रान्ति की उत्तेजना व्याप्त हो गयी।

प्रश्न 4.
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के अन्तर्गत कवि ने जिन प्रमुख राजनैतिक घटनाओं को स्थान दिया है, उनका संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के अन्तर्गत कवि ने निम्नलिखित राजनैतिक घटनाओं को स्थान दिया है—

  1. साइमन कमीशन का बहिष्कार,
  2. पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग,
  3. नमक आन्दोलन (डाण्डी यात्रा),
  4. शासन को आतंकित करने का आन्दोलन,
  5. देशभक्तों को फाँसी,
  6. मैक्डोनाल्ड पुरस्कार,
  7. काँग्रेस मन्त्रिमण्डलों की स्थापना,
  8. द्वितीय विश्व युद्ध,
  9. सविनय अवज्ञा आन्दोलन,
  10. सन् 1942 ई० की क्रान्ति (भारत छोड़ो आन्दोलन),
  11. आजाद हिन्द फौज की स्थापना,
  12. स्वतन्त्रता की प्राप्ति,
  13. देश का विभाजन तथा
  14. बापू का बलिदान।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ (सुमित्रानन्दन पन्त) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ (सुमित्रानन्दन पन्त), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This is a free online math calculator together with a variety of other free math calculatorsMaths calculators
+