UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 8 भारतीय संस्कृतिः (संस्कृत-खण्ड)
These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 8 भारतीय संस्कृतिः (संस्कृत-खण्ड).
अवतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी अनुवाद
प्रश्न 1.
मानव-जीवनस्य संस्करणं संस्कृतिः।अस्माकं पूर्वजाः मानवजीवनं संस्कर्तुं महान्तं प्रयत्नम् अकुर्वन्। ते अस्माकं जीवनस्य संस्करणाय यान् आचारान् विचारान् च अदर्शयन् तत् सर्वम् अस्माकं संस्कृतिः। [2011, 15]
उत्तर
[संस्करणं = दोषों को दूर करना। संस्कर्तुं = शुद्ध करने के लिए। संस्करणाय = सँवारने के लिए। अदर्शयन् = दिखाया।]
सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘संस्कृत-खण्ड’ के ‘भारतीया संस्कृतिः पाठ से उद्धृत है।
[ विशेष—इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।] प्रसंग-इसमें भारतीय संस्कृति के स्वरूप और महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।
अनुवाद-मानव-जीवन को सँवारना (दोषादि को दूर करना) संस्कृति है। हमारे पूर्वजों ने मानव-जीवन को शुद्ध करने के लिए महान् प्रयत्न किये। उन्होंने हमारे जीवन के संस्कारों के लिए जिन आचारों और विचारों को दिखाया, वह सब हमारी संस्कृति है।
प्रश्न 2.
“विश्वस्य स्रष्टा ईश्वरः एक एव” इति भारतीय-संस्कृतेः मूलम्। विभिन्नमतावलम्बिनः विविधैः नामभिः एकम् एव ईश्वरं भजन्ते।अग्निः, इन्द्रः, कृष्णः,करीमः, रामः, रहीमः,जिनः, बुद्धः, ख्रिस्तः, अल्लाहः इत्यादीनि नामानि एकस्य एव परमात्मनः सन्ति। तम् एव ईश्वरं जनाः गुरुः इत्यपि मन्यन्ते। अतः सर्वेषां मतानां समभावः सम्मानश्च अस्माकं संस्कृतेः सन्देशः। [2011, 14]
उत्तर
[ स्रष्टा = रचने वाला। विभिन्नमतावलम्बिनः (विभिन्नमत + अवलम्बिन:) = विभिन्न मतों को मानने वाले। समभावः = समान भाव।।
प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण में भारतीय संस्कृति के मूल तत्त्व को बताया गया है।
अनुवाद--“विश्व को रचने वाला ईश्वर एक ही है, यह भारतीय संस्कृति का मूल है। अनेक मतों को मानने वाले अनेक नामों से एक ही ईश्वर का भजन करते हैं। अग्नि, इन्द्र, कृष्ण, करीम, राम, रहीम, जिन, बुद्ध, ख्रिस्त, अल्लाह इत्यादि नाम एक ही परमात्मा के हैं। उसी ईश्वर को लोग ‘गुरु’ भी मानते हैं। अत: सब मतों के प्रति समान भाव और सम्मान हमारी संस्कृति का सन्देश है।
प्रश्न 3.
भारतीय संस्कृतिः तु सर्वेषां मतावलम्बिन सङ्गमस्थली। काले-काले विविधाः विचाराः भारतीय-संस्कृतौ समाहिताः। एषा संस्कृतिः सामासिकी संस्कृतिः यस्याः विकासे विविधानां जातीनां, सम्प्रदायानां, विश्वासानाञ्च योगदानं दृश्यते।अतएव अस्माकं भारतीयानाम्एका संस्कृतिः एका च राष्ट्रियता। सर्वेऽपि वयं एकस्याः संस्कृतेः समुपासकाः, एकस्य राष्ट्रस्य च राष्ट्रियाः। यथा भ्रातरः परस्परं मिलित्वा सहयोगेन सौहार्देन च परिवारस्य उन्नतिं कुर्वन्ति, तथैव अस्माभिः अपि सहयोगेन सौहार्देन च राष्ट्रस्य उन्नतिः कर्त्तव्या। [2012]
उत्तर
[सङ्गमस्थली = मिलने का स्थान। काले-काले = समय-समय पर। समाहिताः = मिल गये हैं। सामासिकी = मिली-जुली। समुपासकाः = उपासक। सौहार्देन = मित्रभाव से।]
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में यह बताया गया है कि भारत की संस्कृति समन्वयात्मक है।
अनुवाद-भारतीय संस्कृति तो सभी मतों के मानने वालों का मिलन-स्थल है। समय-समय पर अनेक प्रकार के विचार भारतीय संस्कृति में मिल गये। यह संस्कृति मिली-जुली संस्कृति है, जिसके विकास में अनेक जातियों, सम्प्रदायों और विश्वासों का योगदान दिखाई पड़ता है। इसलिए हम भारतवासियों की एक संस्कृति और एक राष्ट्रीयता है। हम सभी एक संस्कृति की उपासना करने वाले और एक राष्ट्र के नागरिक हैं। जैसे सब भाई आपस में मिलकर सहयोग और प्रेमभाव से परिवार की उन्नति करते हैं, उसी प्रकार हमें भी सहयोग और मित्रभाव से राष्ट्र की उन्नति करनी चाहिए।
प्रश्न 4.
अस्माकं संस्कृतिः सदा गतिशीला वर्तते। मानवजीवनं संस्कर्तुम् एषा यथासमयं नवां नवां विचारधारा स्वीकरोति, नवां शक्ति च प्राप्नोति। अत्र दुराग्रहः नास्ति, यत् युक्तियुक्तं कल्याणकारि च तदत्र सहर्ष गृहीतं भवति। एतस्याः गतिशीलतायाः रहस्यं मानवजीवनस्य शाश्वतमूल्येषु निहितम्, तद् यथा सत्यस्य प्रतिष्ठा, सर्वभूतेषु समभावः विचारेषु औदार्यम्, आचारे दृढता चेति। [2010, 11, 14, 17]
उत्तर
[ गतिशीला = वेगवती। संस्कर्तुम् = शुद्ध करने के लिए। नवां = नयी। दुराग्रहः = हठ। युक्तियुक्तं = ठीक-ठीक, उचित। एतस्याः = इसकी। शाश्वतमूल्येषु = सदा रहने वाले मूल्यों में निहितम् = स्थित है। औदार्यम् = उदारता।]
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में भारतीय संस्कृति की गतिशीलता और उसके लचीलेपन के बारे में बताया गया है।
अनुवाद-हमारी संस्कृति सदा गतिशील रही है। मानव-जीवन को शुद्ध करने के लिए यह समयानुसार नयी-नयी विचारधारा को स्वीकार कर लेती है और नयी शक्ति को प्राप्त करती है। इसमें दुराग्रह (हठधर्मिता) नहीं है, जो युक्तिसंगत और कल्याण करने वाला है, वह इसमें हर्षसहित ग्रहण किया जाता है। इसकी गतिशीलता का रहस्य मानव-जीवन में सदा रहने वाले मूल्यों में स्थित है; जैसे कि सत्य का सम्मान, सभी प्राणियों के प्रति समान भाव, विचारों में उदारता और आचरण में दृढ़ता।
प्रश्न 5.
एषा कर्मवीराणां संस्कृतिः “कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः’ इति अस्याः उद्घोषः।पूर्वं कर्म, तदनन्तरं फलम् इति अस्माकं संस्कृते नियमः।इदानीं यदा वयं राष्ट्रस्य नवनिर्माणे संलग्नाः स्मः निरन्तरं कर्मकरणम् अस्माकं मुख्यं कर्त्तव्यम्। निजस्य श्रमस्य फलं भोग्यं, अन्यस्य श्रमस्य शोषणं सर्वथा वर्जनीयम् यदि वयं विपरीतम् आचरामः तदा न वयं सत्यं भारतीय-संस्कृतेः उपासकाः। वयं तदैव यथार्थं भारतीया यदास्माकम् आचारे विचारे चे अस्माकं संस्कृतिः लक्षिता भवेत्। अभिलषामः वयं यत् विश्वस्य अभ्युदयाय भारतीयसंस्कृतेः एषः दिव्यः सन्देशः लोके सर्वत्र प्रसरेत्- [2009, 16]
पूर्व कर्म, तदनन्तरं …………………. फलं भोग्यम्। [2013]
एषा कर्मवीराणां ……………………… संस्कृतेः नियमः। [2014]
उत्तर
[कर्मवीराणां = कर्म में संलग्न रहने वालों की। कुर्वन्नेवेह (कुर्वन् + एव + इह) = यहाँ करते हुए ही। जिजीविषेच्छतं (जिजीविषेत् + शतम्) समाः = सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करनी चाहिए। उद्घोषः = घोषणा। कर्मकरणम् = कर्म करना। वर्जनीयम् = त्यागने योग्य। विपरीतम् = विरुद्ध आचरामः = आचरण करते हैं। लक्षिता भवेत् = दिखाई दे। अभिलषामः = चाहते हैं। अभ्युदयाय = उन्नति के लिए।प्रसरेत् = प्रसारित हो।]
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में हमारी संस्कृति को कर्मवीरों की संस्कृति बताया गया है।
अनुवाद—यह कर्म में संलग्न रहने वालों (कर्मवीरों) की संस्कृति है। “यहाँ कर्म करते हुए ही सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करनी चाहिए। यह इसकी घोषणा है। पहले कर्म, बाद में फल–यह हमारी संस्कृति का नियम है। इस समय जब हम लोग राष्ट्र के नव-निर्माण में लगे हुए हैं, निरन्तर काम करना ही हमारा प्रधान कर्तव्य है। अपने परिश्रम का फल भोगने योग्य है, दूसरे के श्रम का शोषण त्यागने योग्य है। यदि हम विपरीत आचरण करते हैं तो हम भारतीय संस्कृति के सच्चे उपासक नहीं हैं। हम तभी वास्तविक रूप में भारतीय हैं, जब हमारे आचार और विचार में हमारी संस्कृति दिखाई दे। हम सब चाहते हैं कि संसार की उन्नति के लिए भारतीय संस्कृति का यह दिव्य सन्देश संसार में सब जगह फैले।
प्रश्न 6.
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मी कश्चिद् दुःखभाग् भवेत् ॥ [2010, 11, 14, 16, 18]
उत्तर
[ निरामयाः = रोगरहित। भद्राणि = कल्याण। दुःखभाग् = दु:खी। भवेत् = होवे।]
सन्दर्भ-प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के संस्कृत खण्ड’ के ‘भारतीय संस्कृतिः’ नामक पाठ से लिया गया है।
प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक में भारतीयों की मूल भावना पर प्रकाश डाला गया है।
अनुवाद-“सब सुखी हों। सब रोगरहित हों। सब कल्याण को देखें, अर्थात् सभी का कल्याण हो। कोई भी दुःखी न हो, अर्थात् कोई भी दु:ख का भागी न बने।”
अतिलघु-उत्तरीय संस्कृत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1
संस्कृतिः शब्दस्य किं तात्पर्यम् अस्ति ? [2012]
या
संस्कृतेः अर्थः कः ?
या
संस्कृतिः का ?
या
संस्कृतेः की परिभाषा अस्ति ?
उत्तर
मानवजीवनस्य संस्करणम् संस्कृतिः इति संस्कृति शब्दस्य तात्पर्यम्।
प्रश्न 2
भारतीयः संस्कृतेः मूलं किम् अस्ति ? [2009, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
भारतीय-संस्कृतेः किं मूलम् ?
उत्तर
विश्वस्य स्रष्टा ईश्वरः एक एव इति भारतीय-संस्कृते: मूलम् अस्ति।
प्रश्न 3
अस्माकं संस्कृतेः कः सन्देशः ?
या
अस्माकं संस्कृतेः कः दिव्यः सन्देशः अस्ति ? [2010]
या
भारतीय संस्कृतेः कः दिव्यः (प्रमुखः) सन्देश अस्ति ? [2010, 18]
उत्तर
सर्वेषां मतानां समभावः सम्मानश्च अस्माकं संस्कृते: दिव्यः सन्देशः अस्ति।
प्रश्न 4
भारतीय संस्कृतिः कां सङ्गमस्थली ?
उत्तर
भारतीया संस्कृतिः सर्वेषां मतावलम्बिन सङ्गमस्थली।
प्रश्न 5
अस्माकं संस्कृतिः कीदृशी वर्तते (अस्ति) ? [2009, 12, 15, 17]
या
भारतीया संस्कृतिः कीदृशी अस्ति ?
उत्तर
अस्माकं भारतीया संस्कृतिः सदा गतिशीला वर्तते (अस्ति)।
प्रश्न 6
भारतीयसंस्कृत कः विशेषः गुणः अस्ति ?
उत्तर
भारतीयसंस्कृतौ सर्वेषां मतानां समभावः इति विशेष: गुणः अस्ति।
प्रश्न 7
अस्माकं संस्कृतेः कः नियमः ? [2014]
उत्तर
अस्माकं संस्कृते: नियमः ‘पूर्व कर्म, तदनन्तरं फलम्’ इति अस्ति।
प्रश्न 8
अस्माकं मुख्यकर्त्तव्यं किम् अस्ति ?
उत्तर
निरन्तरं कर्मकरणम् अस्माकं मुख्यकर्त्तव्यम् अस्ति।
प्रश्न 9
“मा कश्चित् दुःखभाग्भवेत्”, कस्याः अस्ति एषः दिव्यः सन्देशः ?
उत्तर
‘मा कश्चित् दु:खभाग्भवेत्,’ एष: भारतीय संस्कृतिः दिव्यः सन्देशः अस्ति।
प्रश्न 10
भारतीयसंस्कृतिः कस्य अभ्युदयाय इति ?
उत्तर
भारतीयसंस्कृतिः विश्वस्ये अभ्युदयाय इति।
प्रश्न 11
विश्वस्य स्रष्टा कः? [2012, 14, 15, 17, 18]
उत्तर
विश्वस्य स्रष्टा ईश्वरः एक एव अस्ति।
अनुवादात्मक
प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर
व्याकरणात्मक
प्रश्न 1
निम्नलिखित शब्दों के विभक्ति और वचन बताइए-
संस्कृतेः, विविधैः, संस्कृती, अस्माभिः, कर्माणि, नवनिर्माणे, उपासकाः।
उत्तर
प्रश्न 2
निम्नलिखित में सन्धि कीजिए-
इति + आदि, मतं + अवलम्बी, यथा + अर्थम्, ‘अभि + उदयः, जिजीविषेत् + शतम्।
उत्तर
प्रश्न 3
निम्नलिखित शब्दों में नियम निर्देशित करते हुए सन्धि-विच्छेद कीजिए-
दुराग्रहः, कुर्वन्नेवेह, नास्ति, मतावलम्बिनः, इत्यपि, अभ्युदयः।
उत्तर
We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 8 भारतीय संस्कृतिः (संस्कृत-खण्ड) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 8 भारतीय संस्कृतिः (संस्कृत-खण्ड), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.