UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 9 जीवन-सूत्राणि (संस्कृत-खण्ड)
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अवतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी अनुवाद
प्रश्न (1-2)
किंस्विद् गुरुतरं भूमेः किंस्विदुच्चतरं च खात् ?
किंस्विद् शीघ्रतरं वातात् किंस्विद् बहुतरं तृणात् ? ॥1॥
माता गुरुतरा भूमेः खात् पितोच्चतरस्तथा ।।
मनः शीघ्रतरं वातात् चिन्ता बहुतरी तृणात् ॥2॥ [2009, 13, 15]
उत्तर
[ किंस्विद् = क्या। गुरुतरं = अधिक भारी। उच्चतरं = ऊँचा है। खात् = आकाश से। वातात् = वायु . से। तृणात् = तिनके से।।
सन्दर्भ–प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी के संस्कृत-खण्ड के जीवन-सूत्राणि पाठ से उद्धृत है।
[विशेष—इस पाठ के समस्त श्लोकों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।] | प्रसंग-इन श्लोकों में यक्ष के प्रश्नों और युधिष्ठिर के उत्तरों के माध्यम से माता-पिता इत्यादि के महत्त्व को दर्शाया गया है।
अनुवाद-(यक्ष युधिष्ठिर से पूछता है) भूमि से महान् क्या है ? आकाश से ऊँचा कौन है ? वायु से अधिक शीघ्रगामी क्या है ? तिनके से अधिक दुर्बल (क्षीण) बनाने वाली क्या है ?
(युधिष्ठिरं उत्तर देता है) पृथ्वी से अधिक भारी माता है। आकाश से अधिक ऊँचा पिता है। वायु से अधिक शीघ्रगामी मन है। तृण से अधिक दुर्बल बनाने वाली चिन्ता है।
प्रश्न (3-4)
किंस्वित् प्रवसतो मित्रं किंस्विन् मित्रं गृहे सतः? ।
आतुरस्य च किं मित्रं किंस्विन् मित्रं मरिष्यतः ?॥3॥
सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः ।
आतुरस्य भिषक् मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः ॥4॥ [2012, 17]
उत्तर
[ प्रवसतः = विदेश में रहने वाले का। सतः = होना। आतुरस्य = रोगी का। मरिष्यतः = मरते हुए का। अर्थः = धन। भिषक् = वैद्य।।
प्रसंग-इन श्लोकों में विभिन्न व्यक्तियों के मित्रों के विषय में बताया गया है।
अनुवाद (यक्ष)-प्रवास में रहने वाले का मित्र कौन है ? घर में रहने वाले का मित्र कौन है ? ” रोगी का मित्र कौन है ? मरने वाले का मित्र कौन है ?
(युधिष्ठिर)-प्रवास में रहने वाले का मित्र या साथी धन होता है। घर में रहने वाले का मित्र पत्नी होती है। रोगी का मित्र वैद्य होता है। मरने वाले का मित्र दान होता है।
प्रश्न (5-6)
किंस्विदेकपदं धर्म्य किंस्विदेकपदं यशः?
किंस्विदेकपदं स्वर्यं किंस्विदेकपदं सुखम् ? ॥ 5 ॥
दाक्ष्यमेकपदं धर्मं दानमेकपदं यशः।
सत्यमेकपदं स्वर्यं शीलमेकपदं सुखम् ॥ 6 ॥ [2012]
उत्तर
[एकपदं = एकमात्र। दाक्ष्यम् = योग्यता, चतुरता।].
प्रसंग-इन श्लोकों में धर्म और सुखादि को परिभाषित किया गया है।
अनुवाद—( यक्ष)-एकमात्र धर्म क्या है ? एकमात्र यश क्या है ? एकमात्र स्वर्ग दिलाने वाला क्या है ? एकमात्र सुख क्या है ?
( युधिष्ठिर) –दक्षता (योग्यता) एकमात्र धर्म है। दान एकमात्र यश है। सत्य एकमात्र स्वर्ग दिलाने वाला है। सदाचार एकमात्र सुख है। |
प्रश्न (7-8)
धान्यानामुत्तमं किंस्विद् धनानां स्यात् किमुत्तमम् ?
लाभानामुत्तमं किं स्यात् सुखानां स्यात् किमुत्तमम् ? ॥7॥
धान्यानामुत्तमं दाक्ष्यं धनानामुत्तमं श्रुतम् ।
लाभानां श्रेयमारोग्यं सुखानां तुष्टिरुत्तमा ॥8॥ [2010, 11, 18]
उत्तर
[ धान्यानाम् = अन्नों में। दाक्ष्यं = चतुरता, निपुणता। श्रुतम् = शास्त्र-ज्ञान। श्रेय = श्रेष्ठ। तुष्टिः = सन्तोष।]
प्रसंग-इन श्लोकों में अन्न, धन और सुखादि की उत्तमता पर प्रकाश डाला गया है।
अनुवाद–( यक्ष)–अन्नों में उत्तम क्या है ? धनों में उत्तम क्या है ? लाभों में उत्तम क्या है ? सुखों में उत्तम क्या है ?
( युधिष्ठिर)–अन्नों में उत्तम निपुणता है। धनों में श्रेष्ठ शास्त्र-ज्ञान है। लाभों में श्रेष्ठ नीरोगिता है। सुखों में श्रेष्ठ सन्तोष है।
प्रश्न (9-10)
किं नु हित्वा प्रियो भवति किन्नु हित्वा न शोचति ?
किं नु हित्वार्थवान् भवति किन्नु हित्वा सुखी भवेत्? ॥9॥
मानं हित्वा प्रियो भवति क्रोधं हित्वा ने शोचति।
कामं हित्वार्थवान् भवति लोभं हित्वा सुखी भवेत् ॥10॥ [2009, 12, 16, 17, 18]
उत्तर
[ मानं = अहंकार। हित्वा = त्यागकर। शोचति = शोक करता है। कामं = इच्छा को।]
प्रसंग-इन श्लोकों में विभिन्न त्यागों के महत्त्व को दर्शाया गया है।
अनुवाद-( यक्ष )-मनुष्य क्या छोड़कर प्रिय हो जाता है ? मनुष्य क्या छोड़कर शोक नहीं करता है ? मनुष्य क्या छोड़कर धनवान् हो जाता है ? मनुष्य क्या छोड़कर सुखी होता है ?
( युधिष्ठिर)–मनुष्य अहंकार को छोड़कर प्रिय हो जाता है। मनुष्य क्रोध को छोड़कर शोक नहीं करता है। मनुष्य इच्छा (कामना) को छोड़कर धनवान् हो जाता है। मनुष्य लोभ को छोड़कर सुखी हो जाता है।
अतिलघु-उतरीय संस्कृत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1
भूमेः गुरुतरं किम् अस्ति ? [2011, 12, 15]
उत्तर
माता गुरुतरा भूमेः।
प्रश्न 2
खात् (आकाशात्) उच्चतरं किम् अस्ति ? [2014, 17]
या
पिता कस्मात् उच्चतरः भवति ? [2010]
उत्तर
खात् (आकाशात्) उच्चतरः पिता अस्ति।
प्रश्न 3
वातात् शीघ्रतरं किम् अस्ति ? [2009, 10, 12, 14, 15, 16]
उत्तर
वातात् शीघ्रतरं मनः अस्ति।।
प्रश्न 4
तृणात् बहुतरं किम् अस्ति ?
या
तृणात् का बहुतरी अस्ति ?
उत्तर
तृणात् चिन्ता बहुतरी अस्ति।
प्रश्न 5
प्रवसतो (विदेशे) मित्रं किम् अस्ति ?
उत्तर
प्रवसतो (विदेशे) मित्रम् धनम् अस्ति।
प्रश्न 6
गृहे सतः मित्रम् किं अस्ति ? [2012, 14]
उत्तर
भार्या गृहे सर्त: मित्रम् अस्ति।
प्रश्न 7
मरिष्यतः मित्रं किम् अस्ति ?
उतर
मरिष्यत: मित्रं दानम् अस्ति।
प्रश्न 8
धनानाम् उत्तमं धनं किम् अस्ति ? [2011, 12]
उत्तर
धनानाम् उत्तमं श्रुतम् (विद्या) अस्ति।
प्रश्न 9
लाभानाम् उत्तमं किम् अस्ति ?
उत्तर
लाभानाम् उत्तमम् आरोग्यम् अस्ति।
प्रश्न 10
सुखानाम् उत्तमं किं स्यात् ?
उत्तर
तुष्टि; सुखानाम् उत्तमा स्यात्।।
प्रश्न 11
किं हित्वा नरः प्रियो भवति ?
उत्तर
मानं हित्वा नरः प्रियो भवति।
प्रश्न 12
नरः किं हित्वा न शोचति ?
उत्तर
नरः क्रोधं हित्वा न शोचति।
प्रश्न 13
मनुष्यः किं हित्वा सुखी भवति ?
उत्तर
मनुष्यः लोभं हित्वा सुखी भवति।
प्रश्न 14
सर्वेषु उत्तमं धनं किम् अस्ति ?
या
धनानां उत्तमं धनं किम् अस्ति ?
उतर
श्रुतं सर्वेषु उत्तमं धनम् अस्ति।
प्रश्न 15
आतुरस्य मित्रं किं अस्ति ? [2011, 12, 13, 14, 16]
उत्तर
आतुरस्य मित्रं वैद्यः अस्ति।
प्रश्न 16
किं त्यक्त्वा न शोचति ?
या
किं हित्वा (त्यक्त्वा) नरः न शोचति ?
उत्तर
क्रोधं त्यक्त्वा न शोचति।।
प्रश्न 17
आतुरस्य मित्रं कः भवति ? [2015]
या
भिषक् कस्य मित्रं भवति ? [2009]
उत्तर
आतुरस्य मित्रं भिषक् भवति।
प्रश्न 18
किं नु हित्वा सुखी भवेत् ?
उत्तर
लोभं हित्वा सुखी भवेत्।।
प्रश्न 19
किंस्वित् शीघ्रतरं वातात किं स्विद बहुतरं तृणात ?
उत्तर
मनः शीघ्रतरं वातात् चिन्ता बहुतरी तृणात्।।
अनुवादात्मक
प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए-
उत्तर
व्याकरणत्मक
प्रश्न 1
निम्नलिखित शब्दों के विभक्ति और वचन बताइए-
तृणात्, मित्रम्, धनानाम्, प्रियः, कामम्, वातात्, भूमेः, गृहे, आतुरस्य।
उत्तर
प्रश्न 2
‘मृ’ धातु के लृट् लकार तथा ‘भू धातु के विधिलिङ् लकार के तीनों पुरुषों और वचनों के रूप लिखिए।
उत्तर
प्रश्न 3
निम्नलिखित शब्दों के धातु, लकार, पुरुष एवं वचन बताइए-
भवेत्, मरिष्यतः, स्यात्, शोचति।।
उत्तर
श्लोक-लेवन
ध्यातव्य–यहाँ पाठ्य-पुस्तक से चुनकर कुछ श्लोक दिये जा रहे हैं। छात्रों को इन्हें कण्ठस्थ कर इनके शुद्ध लेखन का अभ्यास करना चाहिए।
- रे रे चातक! सावधानमनसा मित्र! क्षणं श्रूयताम् ।
अम्भोदा बहवो वसन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः ॥ - केचिद वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसथां गर्जन्ति केचिद वृथा।
यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ॥ - त्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं,
भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजालिः।
इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे,
हा हन्त! हन्त! नलिनीं गज उज्जहार ॥ - उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ॥ - अपदो दूरगामी च साक्षरो न च पण्डितः ।
अमुखः स्फुटवक्ता च यो जानाति स पण्डितः ॥ - सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत् ॥ - माता गुरुतरा भूमेः खात् पितोच्चतरस्तथा ।
मनः शीघ्रतरं वातात् चिन्ता बहुतरी तृणात् ॥ - सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः ।
आतुरस्य भिषक् मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः ॥ - मानं हित्वा प्रियो भवति क्रोधं हित्वा न शोचति ।।
कामं हित्वार्थवान् भवति लोभं हित्वा सुखी भवेत् ॥
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