UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 आर्थिक विकास हेतु राजस्व की आवश्यकता (अनुभाग – चार)

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 आर्थिक विकास हेतु राजस्व की आवश्यकता (अनुभाग – चार)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजस्व किसे कहते हैं ? इसके महत्त्व को लिखिए।
उत्तर :

राजस्व

राजस्व सार्वजनिक वित्त अथवा लोक-सत्ताओं के आय-व्यय से सम्बन्धित बातों का अध्ययन है। डाल्टन के अनुसार, “राजस्व के अन्तर्गत लोक-सत्ताओं के आय-व्यय तथा उनके पारस्परिक समायोजन । और समन्वय का अध्ययन किया जाता है।”

राजस्व का महत्त्व

आज के युग में राज्यों एवं सरकारों के कार्यों में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है; अतः सार्वजनिक राजस्व का महत्त्व भी बढ़ रहा है। सार्वजनिक राजस्व के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है –

1. आर्थिक विषमता को दूर करना – प्रत्येक देश की सरकार करों के माध्यम से देश की आर्थिक विषमता को कम करने का प्रयास करती है। सरकार धनी वर्ग पर अधिक कर लगाकर तथा करों से प्राप्त आय को निर्धनों के कल्याण के कार्यों पर व्यय करके राष्ट्रीय आय का समान वितरण करती है, जिससे समाज में धनी व निर्धन वर्ग में गहरी खाई न बन सके।

2. देश की आर्थिक विकास – आर्थिक नियोजन के माध्यम से देश का आर्थिक विकास किया जाता है। आर्थिक नियोजन को सफल बनाने के लिए ही राजस्व की आवश्यकता होती है। यदि सरकार के आय के स्रोत अधिक हैं और सरकार को आय निश्चित समय पर उचित मात्रा में प्राप्त होती रहती है तब सरकार आर्थिक नियोजन के द्वारा देश का आर्थिक विकास तीव्र गति से कर सकती है; अत: देश के आर्थिक विकास में राजस्व की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

3. अधिकतम सामाजिक कल्याण – वह सरकार देश के नागरिकों का अधिक कल्याण कर सकती है, जिस देश की सरकार के आय के स्रोत अधिक होंगे तथा सरकार की आय अधिक होगी। सरकार सार्वजनिक राजस्व से प्राप्त आय को जनता के सामाजिक कल्याण पर व्यय करती है; अतः शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, मनोरंजन आदि की व्यवस्था के लिए सार्वजनिक आय का अधिक होना आवश्यक

4. उपभोग की हानिकारक वस्तुओं पर नियन्त्रण – सरकार करों की मात्रा में वृद्धि करके इस प्रकार की उपभोग की वस्तुओं के प्रयोग को हतोत्साहित कर सकती है, जिनका समाज पर कुप्रभाव पड़ता है; जैसे-शराब, गाँजा, अफीम आदि मादक पदार्थों पर अधिक कर लगाकर इनके उपभोग को कम किया जा सकता है।

5. आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन को प्रोत्साहन – आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार उद्योगों को संरक्षण प्रदान करती है, उनके करों को समाप्त करती है। तथा उन्हें आर्थिक सहायता भी देती है। इससे उत्पादन तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।

6. देश में आर्थिक स्थिरता – सरकार राजस्व के द्वारा मन्दी और तेजी की अवस्था में देश को आर्थिक स्थिरता प्रदान करती है। सरकार तेजी के समय अधिकं कर लगाकर या ऋण लेकर मूल्यों में स्थिरता लाने का प्रयास करती है तथा मन्दी के समय सार्वजनिक व्यय में वृद्धि करके क्रय-विक्रय को बढ़ाती है।

7. सामरिक क्षेत्र में महत्त्व – आज विश्व में अशान्ति के बादल मँडरा रहे हैं। प्रत्येक देश युद्ध के लिए नये-नये वैज्ञानिक अस्त्र-शस्त्र तैयार करने में लगा हुआ है। बाह्य आक्रमणों से देश की सुरक्षा के लिए सैन्य शक्ति व हथियारों पर व्यय करना आवश्यक है। आज वही सरकार सामरिक क्षेत्र में सबल है, जिसकी सार्वजनिक आय अधिक है; अतः राजस्व का महत्त्व आज और भी बढ़ गया है।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय सरकार की आय के स्रोतों का वर्णन कीजिए। [2014]
          या
केन्द्र सरकार द्वारा लगाये जाने वाले किन्हीं तीन करों का वर्णन कीजिए। [2013, 17, 18]
उत्तर :

केन्द्रीय सरकार की आय के स्रोत

केन्द्रीय सरकार की आय के स्रोतों को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है – (i) कर राजस्व अर्थात् कर क्षेत्र से प्राप्त आय तथा (ii) कर भिन्न राजस्व अर्थात् गैर-कर क्षेत्र से प्राप्त आय। इसके अतिरिक्त केन्द्र सरकार की आय के स्रोतों में पूँजी प्राप्तियाँ भी हैं। पूँजी प्राप्तियों के अन्तर्गत ऋणों की वसूलियाँ, अन्य प्राप्तियाँ (विदेशी सहायता), उधार व अन्य देयताएँ, हुण्डियाँ आदि सम्मिलित रहती हैं। प्रस्तुत प्रश्न के अन्तर्गत कर व गैर-कर से प्राप्त आय का ही वर्णन किया जाएगा –

कर राजस्व से प्राप्त आय कर राजस्व के अन्तर्गत आने वाले प्रमुख करों का विवरण निम्नलिखित है –

1. आयकर – आयकर केन्द्र सरकार की आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत है, परन्तु वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार इसका एक निश्चित भाग राज्य सरकारों में वितरित किया जाता है। भारत में सर्वप्रथम 1950 ई० में आयकर लगाया गया था। कर की छूट सीमा उस समय र 2,000 वार्षिक थी। वर्ष 2012-13 के बजट में है 2,00,000.00 तक की वार्षिक आय को कर-मुक्त रखा गया है।

2. निगम कर – कम्पनियों पर लगे आयकर को ‘निगम कर’ कहते हैं। निगम कर में आय की भाँति छूट की कोई सीमा नहीं होती। इसके अतिरिक्त इसकी दरें प्रायः समानुपातिक होती हैं। वर्ष 2012-13 के लिए यह दर 30% है तथा इस पर 10 प्रतिशत अधिभार भी देय होगा।

3. केन्द्रीय उत्पादन कर – ये कर केन्द्र सरकार द्वारा देश में उत्पादित वस्तुओं पर लगाये जाते हैं। यह सीमेण्ट, कपड़ा, बिजली का सामान, मिट्टी का तेल, पेट्रोल, डीजल, रेफ्रीजरेटर, टेलीविजन, तम्बाकू, चाय, कॉफी, जूट व रेशम के सामान आदि के उत्पादन पर लगाया जाता है। वर्तमान समय में यह केन्द्रीय सरकार की आय का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। इस कर-प्रणाली के अन्तर्गत पहले केवल 15 वस्तुओं पर कर लगाया जाता था, परन्तु वर्तमान समय में 1,300 से अधिक वस्तुओं को इस करे-व्यवस्था के अन्तर्गत लाया गया है।

4. सीमा-शुल्क – सीमा शुल्क में आयात-कर व निर्यात-कर आते हैं। आयात-कर विदेशों से मँगाये गये माल पर तथा निर्यात-कर अपने देश से बाहर वस्तु को भेजने पर लगाया जाता है। सीमा-शुल्क केन्द्र सरकार की आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत होता है।

5. सम्पत्ति कर – भारत में यह कर प्रो० कॉल्डर की सिफारिश पर 1 अप्रैल, 1957 ई० में लगाया गया था। सम्पत्ति कर का प्रशासन आयकर विभाग द्वारा ही चलाया जाता है। यह कर व्यक्तियों की है 10 लाख से अधिक की सम्पत्ति पर लगाया जाता है। इस कर से कृषि भूमि, धार्मिक स्थानों की सम्पत्ति, बीमा व विकास बॉण्ड, प्रॉविडेण्ट फण्ड आदि को मुक्त रखा गया है।

6. सेवा कर – यह कर विभिन्न प्रकार की प्रत्त सेवाओं पर लगाया जाता है। इसकी दर 12% है। वर्ष 2006-07 के बजट में चार लाख रुपये तक के वार्षिक टर्न ओवर को इससे मुक्त रखा गया है। उपर्युक्त मुख्य करों के अतिरिक्त केन्द्रीय सरकार को –

  1. ब्याज कर
  2. व्यय कर
  3. आस्ति कर या मृत्यु कर (सन् 1953 में आरोपित और 1985-86 ई० में समाप्त)
  4. उपहार कर (सन् 1958 में आरोपित और 1999-2000 ई० में समाप्त, वर्तमान में प्राप्तकर्ता की आय में सम्मिलित)
  5. अन्य कर और शुल्क
  6. संघ-राज्य क्षेत्रों के कर से भी आय प्राप्त होती है।

गैर – कर राजस्व से प्राप्त आय – इनके अन्तर्गत आने वाले प्रमुख करों का विवरण निम्नलिखित है –

1. ब्याज प्राप्तियाँ – केन्द्र सरकार राज्यों, केन्द्रशासित प्रदेशों एवं केन्द्रीय प्रतिष्ठानों को ऋण देती है। इन ऋणों पर ब्याज की प्राप्ति होती है, जो उसकी आय का एक स्रोत है।

2. मुद्रा, सिक्का ढलाई एवं टकसाल – केन्द्र सरकार को नोट छापने एवं सिक्का ढलाई का एकाधिकार प्राप्त है। इससे भी उसको आय प्राप्त होती है।

3. लाभांश व लाभ – इसके अन्तर्गत भारतीय रिजर्व बैंक, अन्य राष्ट्रीयकृत व्यापारिक बैंक व केन्द्र सरकार के व्यावसायिक उपक्रमों से प्राप्त लाभ को सम्मिलित किया जाता है।

4. सामान्य सेवाओं से आय – इस मद के अन्तर्गत लोक सेवा आयोग, पुलिस, रेल, रक्षा-सेवाएँ आदि | मदों से प्राप्त आय सम्मिलित की जाती है।

5. सार्वजनिक उपक्रमों से आय – इसमें सार्वजनिक प्रतिष्ठानों से प्राप्त आय सम्मिलित होती हैं; जैसे–इण्डियन ऑयल, प्राकृतिक तेल एवं गैस आयोग, राज्य व्यापार निगम, डाक तार, रेल आदि से प्राप्त आय।

6. सामाजिक एवं सामुदायिक सेवाएँ – सामाजिक व सामुदायिक सेवाओं में मुख्य हैं – शिक्षा, चिकित्सा, परिवार नियोजन, सफाई व जल आपूर्ति, आवास, नगर विकास, सूचना एवं प्रसार, सामाजिक सुरक्षा व कल्याण आदि। इनसे भी केन्द्र सरकार को आय प्राप्त होती है।

7. आर्थिक सेवाएँ – इनमें मुख्य रूप से सहकारिता, कृषि, लघु सिंचाई, भू-संरक्षण, पशुपालन, डेयरी विकास, मत्स्य उद्योग, ग्रामोद्योग व लघु उद्योग, खनन व खनिज पदार्थ, बहुउद्देशीय नदी-घाटी योजनाएँ, विद्युत विकास सेवाएँ, सड़कें, पुल आदि आते हैं। इन सेवाओं से भी केन्द्र सरकार को आय प्राप्त होती है।

प्रश्न 3.
केन्द्रीय सरकार के व्यय की मुख्य मदों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

केन्द्रीय सरकार के व्यय की मदें

स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार के व्यय में पर्याप्त वृद्धि हुई है। केन्द्रीय सरकार के व्यय को मुख्यत: दो भागों में बाँटा जा सकता है –

  1. विकास व्यय तथा
  2. गैर-विकास व्यय।

1. विकास व्यय – इनमें मुख्य हैं—शिक्षा, वैधानिक सेवाएँ, अनुसन्धान, कला, संस्कृति, चिकित्सा, परिवार कल्याण तथा स्वास्थ्य, श्रम एवं रोजगार, प्रसारण, कृषि एवं सम्बद्ध सेवाएँ, उद्योग व खनिज, विदेशी व्यापार व निर्यात प्रोत्साहन, जल व शक्ति का विकास, परिवहन एवं संचार, राज्यों को विकास अनुदान, सामान्य सेवाएँ व अन्य व्यय आदि। इन्हें आयोजना व्यय भी कहा जाता है।

2. गैर-विकास व्यय – इनमें मुख्य हैं—सुरक्षा व्यय, प्रशासनिक सेवाएँ, राज्यों को गैर-विकास
अनुदान, स्थानीय संस्थाओं को क्षतिपूर्ति, अन्य देशों के साथ तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग, ऑडिट, करों व शुल्कों के एकत्रीकरण पर व्यय, करेन्सी, टकसाल एवं ब्याज भुगतान आदि। इन्हें आयोजना-भिन्न व्यय भी कहा जाता है।

संक्षेप में, केन्द्र सरकार की व्यय की मुख्य मदों का विवरण निम्नलिखित है –

1. सुरक्षा या प्रतिरक्षा व्यय – इसके अन्तर्गत जल सेना, थल सेना व वायु सेना पर किया जाने वाला व्यय सम्मिलित होता है। गत वर्षों में सुरक्षा व्यय में तेजी से वृद्धि हुई है। देश की एकता व अखण्डता को बनाये रखने के लिए सरकार इस मद में पर्याप्त राशि व्यय करती है।

2. विकास योजनाओं पर व्यय – आर्थिक विकास के विभिन्न कार्यक्रमों को चलाने के लिए केन्द्र सरकार को बहुत अधिक व्यय करना पड़ता है। व्यय की मुख्य मदें हैं—शिक्षा, कला, संस्कृति, अनुसन्धान, चिकित्सा, परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य, श्रम व रोजगार, उद्योग व खनिज, विदेशी व्यापार व निर्यात, जल व शक्ति विकास, राज्यों को अनुदान, रेलें, डाक व तार, कृषि व सम्बद्ध सेवाएँ आदि

3. प्रशासनिक सेवाएँ – प्रशासनिक व्यय के अन्तर्गत केन्द्र सरकार के प्रशासनिक कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, विभिन्न मन्त्रालयों के खर्चे, सामान्य प्रशासन, पुलिस, न्याय इत्यादि क्षेत्रों पर किये जाने वाले व्यय सम्मिलित किये जाते हैं। विभिन्न देशों में स्थित भारतीय दूतावासों के व्यय भी इसी के अन्तर्गत आते हैं। इस मद में केन्द्रीय सरकार को बड़ी राशि व्यय करनी पड़ती है।

4. ऋण सेवाएँ – केन्द्र सरकार विभिन्न देशी व विदेशी ऋणों पर ब्याज का भुगतान करती है।

5. राज्यों के अनुदान – केन्द्र सरकार राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों को विकासात्मक एवं गैर-विकासात्मक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अनुदान देती है। संघ राज्य क्षेत्रों के विकास के लिए जो योजनाएँ निर्मित की जाती हैं, उनके क्रियान्वयन के लिए भी केन्द्र सरकार ही अपने वित्तीय साधनों से व्यय करती है।

6. करों व शुल्क-संग्रह पर व्यय – केन्द्र सरकार को करों व शुल्कों की वसूली हेतु भी पर्याप्त व्यय करना पड़ता है।

7. करेन्सी व टकसाल – केन्द्र सरकार करेन्सी के छापने व सिक्कों को ढालने पर भी बहुत अधिक व्यय करती है।

8. स्थानीय निकायों की सहायता – केन्द्र सरकार स्थानीय निकायों, नगर निगम, नगर महापालिका, नगरपालिका, जिला प्रशासन आदि की सहायता हेतु भी पर्याप्त धनराशि का व्यय करती है।

9. पेंशन तथा आकस्मिक व्यय – केन्द्र सरकार अवकाश प्राप्त कर्मचारियों, अधिकारियों एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों की पेंशन पर पर्याप्त व्यय करती है। इसके अतिरिक्त सरकार को कभी-कभी ऐसे आकस्मिक व्यय भी करने पड़ते हैं, जिनका उसे पहले से पता नहीं होता। उपर्युल्लिखित मदों के अतिरिक्त केन्द्र सरकार–

  1. विज्ञान-प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण
  2. परिवहन
  3. ग्रामीण विकास
  4. राज्यों को अंशदान
  5. सरकारी उद्यमों को ऋण
  6. विदेशी सरकारों को अनुदान
  7. किसानों को ऋण-राहत
  8. आर्थिक सहायता आदि के व्यय की मदें हैं। इन मदों पर भी सरकार पर्याप्त राशि का व्यय करती है।

प्रश्न 4.
प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों को परिभाषित कीजिए एवं उनके गुण-दोष लिखिए।
          या
अप्रत्यक्ष करों के चार गुणों का वर्णन कीजिए। [2011]
          या
परोक्ष कर क्या है ? इनके तीन दोष लिखिए।
          या
प्रत्यक्ष कर को परिभाषित कीजिए तथा उसके गुण एवं दोषों की समीक्षा कीजिए। [2016]
उत्तर :
‘कर’ सरकारी अधिकारियों द्वारा वसूल किये जाने वाले वे अनिवार्य अंशदान हैं, जो सार्वजनिक व्यय को पूरा करने के लिए किये जाते हैं। ये (कर) दो प्रकार के होते हैं—

  1. प्रत्यक्ष कर तथा
  2. अप्रत्यक्ष कर।

प्रत्यक्ष कर

प्रत्यक्ष कर जिस व्यक्ति पर लगाये जाते हैं, उसका भुगतान उसी व्यक्ति द्वारा किया जाता है; अर्थात् जो कर व्यक्तियों पर सीधे लगाये जाते हैं, उन्हें प्रत्यक्ष कर कहते हैं। करदाता इसका भार दूसरों पर नहीं टाल सकता। ये परोक्ष कर भी कहलाते हैं।

गुण – प्रत्यक्ष करों के गुण निम्नलिखित हैं

1. न्यायपूर्ण – प्रत्यक्ष कर न्यायपूर्ण होते हैं, क्योंकि ये व्यक्तियों की करदान क्षमता के आधार पर लगाये जाते हैं। इन करों का भार धनी वर्ग पर अधिक तथा निर्धन पर कम पड़ता है।

2. मितव्ययता – प्रत्यक्ष करों में मितव्ययता पायी जाती है, क्योंकि इन करों को वसूल करने में राज्य को अधिक व्यय नहीं करना पड़ता है। करदाता इन्हें सीधे राजकोष में जमा करता है।

3. निश्चितता – प्रत्यक्ष करों में निश्चितता का गुण भी पाया जाता है, क्योंकि इन करों के सम्बन्ध में करदाता को पूर्ण जानकारी रहती है कि उसे कितनी मात्रा में कर देना है।

4. लोचता – प्रत्यक्ष कर लोचदार होते हैं। सरकार इन करों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर सकती है।

5. नागरिक चेतना – प्रत्यक्ष कर नागरिक स्वयं जमा करता है। अतः वह यह जानने का प्रयास करता है कि दिये गये कर का उपयोग सार्वजनिक हित के कार्यों में हो रहा है अथवा नहीं। इस प्रकार कर का भुगतान करने से व्यक्ति में आदर्श नागरिकता एवं कर्तव्यपरायणता की भावना जाग्रत होती है।

6. उत्पादकता – प्रत्यक्ष कर उत्पादक होते हैं। करों की मात्रा में थोड़ी-सी वृद्धि से ही अधिक आय प्राप्त हो जाती है, जिसका उपयोग देश के आर्थिक विकास में किया जा सकता है।

7. समानता – प्रत्यक्ष कर आर्थिक असमानता को दूर करने का प्रयास करते हैं।

दोष – प्रत्यक्ष करों के दोष निम्नलिखित हैं –

1. करों की चोरी – प्रत्यक्ष करों का भुगतान व्यक्ति ईमानदारी के साथ नहीं करते। समाज में अधिक आय प्राप्त करने वाले वर्ग झूठे हिसाब-किताब बनाकर व अपनी आय कम प्रदर्शित करके करों से बचने का प्रयास करते हैं।

2. असुविधाजनक – प्रत्यक्ष कर असुविधाजनक व कष्टप्रद होते हैं। करदाता को आय-व्यय का विवरण तैयार कर अधिकारी के सम्मुख प्रस्तुत करना पड़ता है तथा उसे पूर्णरूप से सन्तुष्ट करना पड़ता है।

3. बेईमानी को प्रोत्साहन – प्रत्यक्ष कर का भार सच्चे व ईमानदार व्यक्तियों पर अधिक पड़ता है, क्योंकि बेईमान व्यक्ति झूठे हिसाब-किताब व रिश्वत द्वारा इन करों से बच जाते हैं इस प्रकार इन करों से बेईमानी व भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिलता है।

4. करों की मनमानी दरें – प्रत्यक्ष करों की दरें सरकार स्वेच्छापूर्वक निर्धारित करती है। इन करों के निर्धारण में किसी प्रकार का वैधानिक आधार नहीं होता है। राज्य या सरकार द्वारा करारोपण की उच्च दरों से प्रभावित होकर लोग अपने उत्पादन-कार्य को सीमित कर देते हैं।

5. प्रत्यक्ष कर निर्धन वर्ग पर नहीं लगाये जा सकते – प्रत्यक्ष कर सभी नागरिकों के ऊपर नहीं लगाये जाते। एक निश्चित सीमा से कम आय वाले लोग इन करों से मुक्त रहते हैं  नैतिक दृष्टि से यह उचित नहीं है, क्योंकि इससे समाज धनी एवं निर्धन वर्ग में विभक्त हो जाता है।

6. सीमित क्षेत्र – प्रत्यक्ष कर कुछ व्यक्तियों से लिया जाता है। इस प्रकार आय के लिए समाज के कुछ थोड़े-से व्यक्तियों (धनी वर्ग) पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

7. अफसरशाही – प्रत्यक्ष करों के सम्बन्ध में अधिकांश निर्णय अधिकारियों द्वारा लिये जाते हैं। निर्णय करने में अधिकारीगण भ्रष्ट तरीके अपनाते हैं, जिससे समाज में भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाता है।

अप्रत्यक्ष कर

अप्रत्यक्ष कर वे कर होते हैं, जिनका कराधान एक व्यक्ति पर तथा कर भार दूसरे व्यक्ति पर पड़ता है; अर्थात् सरकार द्वारा जिस व्यक्ति पर कर लगाया जाता है, वह केर के भार को दूसरे व्यक्ति के ऊपर टाल देता है। ये अपरोक्ष कर भी कहलाते हैं।

गुण – अप्रत्यक्ष करों के गुण निम्नलिखित हैं –

1. सुविधाजनक – अप्रत्यक्ष कर सुविधाजनक होते हैं, क्योंकि करदाता को भुगतान करते समय इस बात का आभास नहीं होता कि वह कर का भुगतान कर रहा है। ये वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य में ही सम्मिलित रहते हैं। सरकार के लिए भी ये सुविधाजनक रहते हैं, क्योंकि वह इन करों को उत्पादकों या व्यापारियों से एकमुश्त सरलतापूर्वक प्राप्त कर लेती है।

2. करवंचन कठिन होता है – करदाता अप्रत्यक्ष करों की चोरी नहीं कर पाता, क्योंकि ये वस्तुओं के मूल्य में सम्मिलित होते हैं। जब कोई उपभोक्ता वस्तुएँ खरीदता है, तो उसे ये आवश्यक रूप से देने पड़ते हैं।

3. न्यायपूर्ण – ये कर न्यायपूर्ण होते हैं, क्योंकि समाज का प्रत्येक व्यक्ति इन करों का भुगतान करता है। जो व्यक्ति अधिक वस्तुओं एवं सेवाओं का उपयोग करता है, उसे अधिक तथा जो वस्तुओं एवं सेवाओं का कम प्रयोग करता है, उसे कम भुगतान करना पड़ता है।

4. सामाजिक हित की दृष्टि से उत्तम – अप्रत्यक्ष कर सामाजिक लाभ की दृष्टि से उत्तम होते हैं, क्योंकि सरकार करों की मात्रा में वृद्धि करके उस प्रकार की उपभोग वस्तुओं के प्रयोग को हतोत्साहित करे सकती है, जिनका समाज पर कुप्रभाव पड़ता है।

5. लोचदार – अप्रत्यक्ष करों की प्रकृति लोचदार होती है। आवश्यक वस्तुओं पर कर में थोड़ी-सी वृद्धि करके सरकार अपनी आय में वृद्धि कर सकती है।

6. विस्तृत आधार – अप्रत्यक्ष करों का आधार विस्तृत होता है, क्योंकि सरकार अनेक मदों पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कर लगाकर अधिक आय प्राप्त करने में सफल होती है।

दोष – अप्रत्यक्ष करों के दोष निम्नलिखित हैं

1. कर-भार परिवर्तन से हानि – अप्रत्यक्ष करों में कर का भार एक-दूसरे पर टालने का प्रयास किया जाता है, जिसके कारण अन्तिम व्यक्ति पर इन करों का भार अधिक पड़ता है उदाहरण के लिएबिक्री-कर फर्म देती है। फर्म इसका भार थोक व्यापारियों पर, थोक व्यापारी फुटकर व्यापारी पर तथा फुटकर व्यापारी मूल्य-वृद्धि करके उपभोक्ताओं पर टाल देता है।

2. मितव्ययिता का अभाव – इन करों को वसूल करने में सरकार को अधिक व्यय करना पड़ता है। इस कारण ये मितव्ययी नहीं होते।

3. न्यायसंगत नहीं – अप्रत्यक्ष कर प्रायः वस्तुओं एवं सेवाओं के उपभोग पर लगाये जाते हैं। इसलिए इनको भार निर्धन वर्ग पर अधिक पड़ता है।

4. ये कर अनिश्चित होते हैं – परोक्ष करों से होने वाली आय अनिश्चित होती है, क्योंकि अप्रत्यक्ष कर वस्तुओं की बिक्री की मात्रा पर निर्भर होते हैं। उपभोक्ताओं की माँग का पूर्वानुमान प्राय: लगाना कठिन होता है; अतः यह कहा जा सकता है कि अप्रत्यक्ष कर अनिश्चित होते हैं।

5. करों की चोरी का प्रयास – अप्रत्यक्ष करों की चोरी का प्रयास भी किया जाता है। उदाहरण के लिए–सरकार बिक्री-कर लगाती है। विक्रेता वस्तुओं की बिक्री का झूठा लेखा-जोखा रखता है तथा बिक्री-कर को राजकोष में जमा नहीं करता है, जब कि उपभोक्ताओं से यह वसूल कर लिया जाता है।

6. नागरिकता की भावना का अभाव – करदाताओं को अप्रत्यक्ष करों का भुगतान करते समय कर-भार अनुभव नहीं होता है। इसलिए उन्हें इस विषय में किसी प्रकार की रुचि नहीं होती है कि कर का उपभोग जनहित की दृष्टि से हो रहा है या नहीं।

7. प्रभावपूर्ण माँग में कमी – अप्रत्यक्ष करों की दरों में वृद्धि करने से वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिनके कारण वस्तुओं की माँग में कमी आती है। माँग में कमी का प्रभाव उत्पादन एवं राष्ट्रीय आय दोनों पर पड़ता है, जिससे राष्ट्र के विकास में बाधा पड़ती है।

प्रश्न 5.
राज्य सरकार की आय के मुख्य स्रोत क्या हैं ? [2014, 15, 17, 18]
उत्तर :
राज्य सरकार को विभिन्न मदों से प्राप्त होने वाली आय को मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त किया जा सकता है –

  1. कर-राजस्व तथा
  2. गैर-कर राजस्व। प्रदेश की आय में गैर-करे राजस्व की अपेक्षा कर राजस्व का अधिक योगदान है।

राज्य सरकार की आय की मदों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है –

1. भू-राजस्व या मालगुजारी – यह एक अति प्राचीन कर है। सन् 1948 ई० तक कुल आय का लगभग आधा भाग भू-राजस्व या मालगुजारी से प्राप्त होता था। जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद इस मद से प्राप्त होने वाली आय में धीरे-धीरे कमी होने लगी। इसका भुगतान फसल के समय किया जाता है। सूखा, बाढ़ या अन्य प्राकृतिक विपदा से फसल नष्ट होने पर भू-राजस्व में उदारतापूर्वक छूट भी दी जाती है। वर्तमान में 6.5 एकड़ से अधिक भूमि पर भू-राजस्व लिया जाता है।

2. व्यापारकर या बिक्री कर – ‘बिक्री कर’ या व्यापार कर राज्य सरकार की आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। यह एक अप्रत्यक्ष कर है, जिसे 1948 ई० में उत्तर प्रदेश में लागू किया गया था। यह विभिन्न वस्तुओं की बिक्री पर लगाया जाता है, किन्तु विक्रेता इसके भार को मूल्य में वृद्धि करके क्रेताओं पर टाल देते हैं।

3. राज्य उत्पादन शुल्क – ‘राज्य उत्पादन शुल्क राज्य की आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। यह एक परोक्ष कर है, जिसे सामान्यतः ऊँची दरों में मादक वस्तुओं; जैसे-शराब, गाँजा, अफीम, चरस, ताड़ी आदि पर लगाया जाता है। प्रदेश सरकार को इस मद से पर्याप्त आय प्राप्त होती है।

4. स्टाम्प व पंजीयन शुल्क – ‘स्टाम्प शुल्क’ प्राय: दो प्रकार का होता है –

  • न्यायिक स्टाम्प एवं
  • व्यापारिक स्टाम्प।

न्यायिक स्टाम्प न्यायालय में मुकदमा या अन्य कार्यवाही के लिए लगाया जाता है, जब कि व्यापारिक स्टाम्प सम्पत्ति के हस्तान्तरण, उपहार अथवा व्यापारिक सौदों पर लगाया जाता, है इसी प्रकार पंजीयन शुल्क (रजिस्ट्री शुल्क) भी राज्य सरकार की आय का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।

5. कृषि आयकर – कृषि आयकर राज्य सरकार की आय का प्रमुख स्रोत है। भारत के अनेक राज्यों में कृषि को आयकर से मुक्त रखा गया है, किन्तु उत्तर प्रदेश सरकार कृषि क्षेत्र पर कर लगाती है। जमींदारी उन्मूलन के बाद से कृषि आयकर से प्राप्त आय में पर्याप्त कमी हुई है और अब यह नाममात्र का स्रोत रह गया है। जिन व्यक्तियों की आय आयकर अधिनियम के अन्तर्गत न्यूनतम सीमा से कम होती है, उन्हें कृषि-आय पर कर नहीं देना पड़ता, परन्तु जिनकी आय अधिक होती है उन्हें कृषि आयकर देना पड़ता है।

6. केन्द्र सरकार से अनुदान या सहायता – केन्द्र सरकार आयकर, केन्द्रीय उत्पाद कर, सम्पदा शुल्क आदि से प्राप्त आय का कुछ भाग वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्यों में वितरित करती है। केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों को आर्थिक विकास कार्यों के लिए भी सहायता दी जाती है। इसके अतिरिक्त राज्यों को कभी-कभी बाढ़, सूखा या अन्य प्राकृतिक विपदाओं से निपटने के लिए भी केन्द्र द्वारा विशेष सहायता प्रदान की जाती है। ये राज्य सरकार की आय के प्रमुख स्रोत होते हैं।

7. वाहन कर – मोटर, ट्रकों इत्यादि परिवहन वाहनों पर राज्य सरकार द्वारा कर लगाया जाता है। यह राज्य सरकारों विशेषकर उत्तर प्रदेश सरकार की आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

8. मनोरंजन कर – राज्य सरकार द्वारा मनोरंजन स्थलों, सिनेमाघर आदि पर मनोरंजन कर लगाया जाता | है। यह भी राज्य सरकारों विशेषकर उत्तर प्रदेश सरकार की आय का एक अच्छा स्रोत है। उपर्युक्त करों के अतिरिक्त राज्य सरकार को माल एवं यात्रियों पर कर, विद्युत कर और शुल्क आदि से भी पर्याप्त आय प्राप्त होती है। ये सभी राज्य सरकार की कर राजस्व की मदे हैं। निम्नलिखित मदें राज्य सरकार की गैर-कर राजस्व प्राप्ति की मदें हैं

9. सरकारी उपक्रमों से आय – राज्य सरकारों (उत्तर प्रदेश सरकार) को सरकारी उपक्रमों; जैसे—वन, सिंचाई, बिजली, सार्वजनिक निर्माण, सार्वजनिक उद्योगों से भी आय प्राप्त होती है। सड़क परिवहन व जल परिवहन भी राज्य की आय के मुख्य स्रोत हैं।

10. सामान्य प्रशासन – सामान्य प्रशासन के अन्तर्गत न्यायालय, जेल, पुलिस, शिक्षा, चिकित्सा, कृषि, सहकारिता इत्यादि क्षेत्र आते हैं। इनसे भी राज्य सरकार को आय प्राप्त होती है।

11. ब्याज प्राप्तियाँ, लाभांश और लाभ – प्रदेश सरकार को अपने द्वारा दिये गये ऋणों पर ब्याज तथा सरकारी क्षेत्र के उद्यमों से लाभांश व लाभ प्राप्त होता है। इस प्रकार ब्याज प्राप्तियाँ, लाभांश और लाभ द्वारा भी प्रदेश सरकार को आय होती है।

12. मूल्य संवद्धित कर – यह वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान के प्रत्येक बिन्दु पर प्राथमिक उत्पादन से लेकर अन्तिम उपभोग पर लगाया जाता है। यह उत्पाद की बिक्री और उनमें प्रयुक्त आदाओं की लागतों के अन्तर पर लगाया जाता है। इक्कीस राज्य एवं सभी केन्द्रशासित प्रदेश 1 अप्रैल, 2005 ई० से इसे लागू करने पर सहमत हुए। उत्तर प्रदेश में इसे कुछ समय पहले ही लागू किया गया है।

प्रश्न 6.
उत्तर प्रदेश सरकार की व्यय की मदों का उल्लेख कीजिए।
          या
राज्य सरकार की व्यय की किन्हीं तीन मदों का उल्लेख कीजिए। [2013]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व व्यय को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है

(अ) आयोजनागत व्यय – इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से करों की वसूली का व्यय, प्रशासनिक सेवाओं पर व्यय एवं सामाजिक, सामुदायिक तथा आर्थिक सेवाओं पर हुए व्यय सम्मिलित किये जाते हैं।
(ब) आयोजनेतर व्यय – इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से करों की वसूली, ब्याज को भुगतान, ऋण सेवा, सामान्य प्रशासनिक सेवाएँ एवं सामाजिक, सामुदायिक तथा आर्थिक सेवाओं पर किये जाने वाले व्यय सम्मिलित किये जाते हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार की व्यय की मुख्य मदें निम्नलिखित हैं –

1. कर-शुल्क व अन्य राजस्वों की वसूली – इस मद के अन्तर्गत कृषि आयकर, भू-राजस्व, राज्य उत्पादन कर, वाहन कर, बिक्री कर, स्टाम्प, रजिस्ट्री शुल्क, मनोरंजन कर इत्यादि की वसूली में होने वाले व्ययं सम्मिलित किये जाते हैं। सरकार को इन्हें वसूल करने में पर्याप्त व्यय.करना पड़ता है।

2. सार्वजनिक या सामान्य प्रशासन पर व्यय – सार्वजनिक प्रशासन के अन्तर्गत न्याय, जेल, पुलिस, चिकित्सा इत्यादि विभागों के प्रशासनिक व्यय सम्मिलित होते हैं। सामान्य प्रशासन में विधानमण्डल, राज्यपाल, मन्त्रिपरिषद् के निर्वाचन एवं वेतन-भत्ते के व्यय, सचिवालय, लोक सेवा आयोग, जिला प्रशासन, कोषागार, सार्वजनिक निर्माण कार्य पर होने वाले मदों को सम्मिलित किया जाता है। पेंशन तथा प्रकीर्ण सेवाओं पर होने वाले व्ययों को भी इसी मद में रखा जाता है।

3. ब्याज भुगतान व ऋण सेवा – सरकार समय-समय पर अपने अतिरिक्त व्ययों की पूर्ति के लिए ऋण लेती है। इन ऋणों के भुगतान एवं ब्याज के भुगतान पर भी सरकार को प्रति वर्ष व्यय करना पड़ता है। उपर्युक्त व्यय प्रदेश सरकार द्वारा गैर-योजनागत मद के अन्तर्गत किये जाते हैं। प्रदेश सरकार द्वारा किये गये अग्रलिखित व्यय योजनागत मदों के अन्तर्गत किये जाते हैं –

4. सामाजिक, सामुदायिक एवं आर्थिक सेवाएँ तथा सहायक अनुदान – इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से शिक्षा, कला, संस्कृति, चिकित्सा, सार्वजनिक स्वास्थ्य व परिवार कल्याण, श्रम और सेवायोजन, सहकारिता, कृषि, सिंचाई, भू-संरक्षण, क्षेत्र विकास, पशुपालन, वन, सामुदायिक विकास, उद्योग व खनिज, जलविद्युत, परिवहन एवं संचार, विशेष व पिछड़े हुए क्षेत्र आदि मदें सम्मिलित की जाती हैं। इन मदों पर सरकार द्वारा पर्याप्त व्यय किया जाता है।

5. शिक्षा, कला एवं संस्कृति – शिक्षा के अन्तर्गत प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा, तकनीकी, प्रावैगिक व चिकित्सा शिक्षा आते हैं। इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक विकास पर भी सरकार पर्याप्त व्यय करती है।

6. कृषि-सम्बन्धी विकास – कृषि विकास कार्यक्रमों के अन्तर्गत मुख्य रूप से कृषि, पशुपालन, सहकारिता, लघु सिंचाई, भू-संरक्षण, मत्स्यपालन, डेयरी उद्योग इत्यादि मदों को सम्मिलित करते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार इन मदों पर प्रति वर्ष अरबों रुपये व्यय करती है।

7. चिकित्सा, सार्वजनिक स्वच्छता, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण – उत्तर प्रदेश सरकार चिकित्सा, परिवार नियोजन व सार्वजनिक स्वच्छता एवं स्वास्थ्य व परिवार कल्याण पर प्रति वर्ष पर्याप्त धनराशि व्यय करती है।

8. सामुदायिक विकास सेवाएँ – राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर सामाजिक व आर्थिक असमानताओं को कम करने के लिए अनेक कल्याणकारी कार्यक्रम संचालित किये जाते हैं, जिन पर उसे अत्यधिक धनराशि का व्यय करना पड़ता है।

9. उद्योग व खनिज – उद्योग व खनिज विकास पर उत्तर प्रदेश सरकार प्रति वर्ष करोड़ों रुपये व्यय करती है।

10. जल-विद्युत एवं विकास – राज्य द्वारा ग्रामीण विद्युतीकरण की नीति को लागू करने हेतु तथा पेयजल समस्या को दूर करने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाये गये हैं। नदी-घाटी योजनाएँ, नलकूप निर्माण, ताप बिजलीघरों की स्थापना आदि विकास-कार्यक्रमों पर सरकार द्वारा अत्यधिक व्यय किया जाता है।

11. परिवहन व संचार – तार, वायरलेस, राजकीय परिवहन व संचार की मदों पर भी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पर्याप्त व्यय किया जाता है।

12. विशेष एवं पिछड़े हुए क्षेत्र – प्रदेश के विशेष रूप से पिछड़े या विशेष क्षेत्रों पर भी सरकार अत्यधिक व्यय करती है। इन क्षेत्रों के विभिन्न विकास-कार्यक्रमों पर राज्य सरकार द्वारा अतिरिक्त धनराशि का व्यय किया जाता है।

प्रश्न 7.
उत्तर प्रदेश में जिला परिषदों की आय के स्रोतों एवं व्यय की प्रमुख मदों का वर्णन कीजिए।
          या
जिला परिषदों के व्यय की तीन मदें लिखिए।
उत्तर :
जिला परिषदों के कार्य-क्षेत्र के अन्तर्गत जिले का सम्पूर्ण ग्रामीण क्षेत्र आता है। इन परिषदों के मुख्य कार्य सड़कों का निर्माण व मरम्मत, शिक्षा की व्यवस्था, मानव, व पशु चिकित्सालयों की व्यवस्था, दुर्भिक्ष निवारण कार्य, विश्रामगृहों की स्थापना, प्रशिक्षण व्यवस्था, मेलों पर नियन्त्रण, बाजार आदि की व्यवस्था, सफाई आदि हैं।

जिला परिषद् की आय के स्रोत

जिला परिषद् की आय के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं –

1. भूमि उप-कर – जिला परिषदों की आय का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत भूमि उप-कर है। यह मालगुजारी पर अधिभार होता है, जिसको राज्य सरकारें स्थानीय संस्थाओं के लिए एकत्रित करती हैं। उत्तर प्रदेश में इस उप-कर को मालगुजारी में विलीन कर दिया गया है और इसके बदले में राज्य सरकार जिला परिषदों को क्षतिपूर्ति अनुदान देती है।

2. सम्पत्ति कर – यह मनुष्य की कुल सम्पत्ति अथवा आय के आधार पर लगाया जाता है। इस कर की प्रकृति प्रगतिशील होती है।

3. महसूल या मार्ग शुल्क – जिला परिषद् नदी के घाट, पुल, सड़क एवं तालाबों पर कर (महसूल) | लेती है। जो व्यक्ति अपने पशु अथवा वाहन से इन पुलों, सड़कों या घाटों से आते-जाते हैं, उन्हें यह मार्ग शुल्क देना पड़ता है।

4. काँजी हाउस – आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए जिला परिषद् कॉजी हाउस की व्यवस्था करती | है। इसमें आवारा घूमने वाले पशुओं को बन्द कर दिया जाता है और पशु मालिकों से जुर्माना लेकर ही पशुओं को छोड़ा जाता है।

5. किराया व शुल्क – जिला परिषद् सराय, हाट, डाक बंगले, मकान, दुकान आदि से किराये के रूप में तथा संस्थाओं व चिकित्सालयों से फीस के रूप में आय प्राप्त करती है।

6. अनुज्ञा-पत्र शुल्क – जिला परिषद् कसाइयों से, गोश्त की दुकानों से, वनस्पति घी की दुकानों से, आटे की चक्की आदि से अनुज्ञा-पत्र जारी करके शुल्क प्राप्त करती है।

7. मेलों, प्रदर्शनियों व बाजारों से आय – जिला पंचायतों के क्षेत्र में जिन प्रमुख मेलों व प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है, उसका प्रबन्धन जिला पंचायत को करना पड़ता है। इसके आयोजन से जो आय प्राप्त होती है, वह जिला परिषद् को मिल जाती है।

8. कृषि उपकरणों की बिक्री से आय – जिला परिषद् खाद, बीज, कृषि-यन्त्र आदि की बिक्री की भी व्यवस्था करती है। इनकी बिक्री से भी लाभ के रूप में उसे कुछ आय प्राप्त होती है।

9. सरकारी अनुदान – राज्य सरकार जिला परिषदों को पर्याप्त मात्रा में आर्थिक अनुदान (Grant) शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा आदि के विकास के लिए देती है। यह जिला परिषदों की कुल आय का40% तक होता है।

जिला परिषद की व्ययं की मदें

जिला परिषदों के व्यय की प्रमुख मदें निम्नलिखित हैं –

1. शिक्षा – जिला परिष0द् ग्रामीण क्षेत्रों में प्राइमरी तथा जूनियर हाईस्कूल तथा वाचनालयों की व्यवस्था करती है। इस मद पर जिला परिषद् की आय का एक बड़ा भाग व्यय हो जाता है।

2. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य पर व्यय – जिला परिषद् ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सालयों एवं जच्चा- बच्चा गृहों की व्यवस्था करती है तथा संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए नि:शुल्क टीके लगवाती है।

3. पशु चिकित्सालय – जिला परिषद् पशुओं की चिकित्सा के लिए पशु चिकित्सालयों की स्थापना | करती है।

4. सार्वजनिक निर्माण कार्य – जिला परिषद् घाटे व गाँवों में सड़कें बनवाने, तालाब व कुएँ खुदवाने, वृक्ष लगवाने, पुलों का निर्माण करने तथा इन सबकी मरम्मत कराने में पर्याप्त व्यय करती है।

5. प्रशासन व कर वसूली – जिला परिषद् अपने कार्यालय की व्यवस्था करने, अपने कर्मचारियों को वेतन देने व कर वसूलने में पर्याप्त व्यय करती है।

6. पंचायतों को सहायता – जिला परिषद् अपने क्षेत्र की ग्राम पंचायतों तथा क्षेत्रीय समितियों के कार्यों का निरीक्षण करती है तथा उनके विकास के लिए आर्थिक अनुदान देती है।

7. मेले व प्रदर्शनियाँ – जिला परिषद् अपने क्षेत्र में मेले व प्रदर्शनियों की व्यवस्था पर पर्याप्त व्यय करती है।

8. अन्य मदें – जिला परिषद् दीन-दु:खियों तथा अपाहिजों की सहायता करती है, जन्म-मृत्यु का विवरण रखती है, कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करती है तथा पशुओं के रोगों की रोकथाम की व्यवस्था करती है। जिला परिषद् कभी-कभी जिले के आर्थिक विकास के लिए ऋण भी ले लेती है, जिस पर उसे ब्याज भी देना पड़ता है।

प्रश्न 8.
उत्तर प्रदेश के नगर निगम या नगरपालिका की आय के स्रोतों तथा व्यय की प्रमुख मदों का वर्णन कीजिए।
          या
नगरपालिका की आय के स्रोत लिखिए।
          या
नगरपालिकाओं के व्यय की तीन मुख्य मदें लिखिए।
          या
नगरनिगमों की आय के स्रोत लिखिए।
उत्तर :
नगर निगम उत्तर प्रदेश के महानगरों (जैसे-लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, आगरा, इलाहाबाद, गोरखपुर, मुरादाबाद, बरेली व मेरठ) की व्यवस्था करते हैं। ये प्राय: वही कार्य करते हैं, जो पूर्व में नगर महापालिकाएँ किया करती थीं; अन्तर केवल इतना ही है कि ये अधिक शक्तिशाली होते हैं, इनका कार्य-क्षेत्र अधिकं विस्तृत होता है, इन्हें कर लगाने तथा वसूल करने के अधिक अधिकार प्राप्त होते हैं तथा इन पर राज्य सरकार का उतना नियन्त्रण नहीं होता जितना नगर महापालिकाओं पर होता है।

नगर निगम या नगरपालिका की आय के स्रोत

नगर निगम या नगरपालिका की आय के दो प्रमुख साधन हैं –

  • (अ) कर आगम एवं
  • (ब) गैर-कर आगम।

(अ) कर आगम – नगर निगम को निम्नलिखित करों से आय प्राप्त होती है

1. सम्पत्ति कर – यह नगर निगम की आय का प्रमुख स्रोत है। यह कर उसकी सीमा में स्थित भूमि, मकान तथा सम्पत्तियों के स्वामियों पर लगाया जाता है। ये निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं

  1. गृह व भूमि-कर – यह कर मकान व भूमि की वार्षिक आय पर लगाया जाता है और उसके स्वामी से वसूल किया जाता है।
  2. सुधार कर – यह कर नगर सुधार योजनाओं के कारण शहरी भूमि के मूल्य में होने वाली वृद्धि पर लगाया जाता है।
  3. सेवा कर – नगर निगम सेवाओं पर भी कर लगाते हैं; जैसे-जल-कर, माल-वाहन कर, विद्युत व अग्नि कर आदि।

2. चुंगी – नगर निगमों की सीमा में प्रवेश करने वाले माल पर जो कर लगाया जाता है, उसे चुंगी कहते हैं। नगर निगम की आय का यह सबसे बड़ा स्रोत है। चुंगी वस्तुओं की तोल पर या मूल्यानुसार लगायी जाती है। उत्तर प्रदेश में चुंगी समाप्त कर दी गयी है।

3. सीमा कर – यह कर रेल द्वारा किसी स्थानीय क्षेत्र में आने वाले पदार्थों पर लगाया जाता है।

4. मार्ग-कर – यह कर किसी स्थान, पुल या सड़क पर से गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति, पशु, घोड़ागाड़ी आदि वाहनों से निश्चित दर (भार अथवा संख्या) पर वसूल किया जाता है।

5. तहबाजारी – यह कर अस्थायी अर्थात् ऐसे दुकानदारों से वसूल किया जाता है, जो सड़क की पटरियों पर रखकर अपना सामान बेचते हैं; जैसे-खोमचेवाले, फेरीवाले, हॉकर्स आदि।

6. शुल्क या अनुज्ञा-पत्र – इसके अन्तर्गत निम्नलिखित प्रकार के शुल्क सम्मिलित हैं

  1. नगर निगमों द्वारा प्रदान की गयी विशेष सेवाओं का शुल्क; जैसे-नोटिस शुल्क, नकल लेने का शुल्क आदि।
  2. विलासिता की सामग्री पर लगाये गये शुल्क; जैसे—मोटरगाड़ियों तथा कुत्ते रखने पर अनुज्ञा-पत्र शुल्क, ताँगा, इक्का, बैलगाड़ी, ठेली-रिक्शा आदि पर अनुज्ञा-पत्र शुल्क।
  3. अन्य मदों पर अनुज्ञा-पत्र।

(ब) गैर-कर आगम – नगर निगम की गैर-कर आगम से प्राप्त आय के प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं

  1. भूमि का लगान तथा मकानों, विश्रामगृहों एवं डाक बँगलों का किराया।
  2. भूमि-कंर तथा भूमि की उपज से प्राप्त आय।
  3. बाजारों तथा बूचड़खानों से प्राप्त आय।
  4. विनियोगों पर प्राप्त आय।
  5. वाणिज्य व्यवसायों (जैसे—ट्राम सेवाओं, मोटरगाड़ियों, बिजली व गैस पदार्थों, जल-आपूर्ति सेवाओं आदि) से प्राप्त आय।
  6. राज्य सरकारों से प्राप्त अनुदान। ये दो प्रकार के होते हैं-
    (i) आवर्ती अनुदान, जो प्रति वर्ष दिये जाते हैं तथा
    (ii) अनावर्ती अनुदान, जो किसी विशेष कार्य को सम्पन्न करने के लिए दिये जाते हैं।

नगर निगम या नगरपालिका की व्यय की प्रमुख मदें

नगर निगम या नगरपालिका की व्यय की प्रमुख मदों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है –

1. शिक्षा – नगर निगम प्राथमिक शिक्षा, जूनियर शिक्षा व कभी-कभी माध्यमिक शिक्षा का भी प्रबन्ध करती है। स्कूलों का निर्माण करना, उनके संचालन के लिए आवश्यक सामग्री जुटाना, अध्यापकों को वेतन देना आदि व्यय इस मद में सम्मिलित होते हैं।

2. जन-स्वास्थ्य सेवाएँ – इस मद में ये व्यय सम्मिलित होते हैं-शुद्ध जल की व्यवस्था करना, गन्दे पानी की निकासी की व्यवस्था करना, सफाई का प्रबन्ध करना, महामारियों की रोकथाम करना, टीका लगवाना, खाद्य पदार्थों में मिलावट को रोकना, चिकित्सालयों की व्यवस्था करना आदि। नगर निगमों का पर्याप्त धन इन मदों पर व्यय होता है।

3. सार्वजनिक सुरक्षा – इस मद में ये व्यय आते हैं—आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड का प्रबन्ध करना, गलियों में प्रकाश की व्यवस्था करना, हानिकारक पशुओं से रक्षा करना, सड़कों के चौराहों पर पुलिस के खड़े होने के लिए चबूतरे बनवाना, सार्वजनिक स्थानों पर बिजली व प्रकाश का प्रबन्ध करना आदि।

4. जनसाधारण की सुविधा – इस मद में ये व्यय सम्मिलित किये जाते हैं-सड़क, पुल व नाली बनवाना; पुस्तकालय या वाचनालय का प्रबन्ध करना; सड़कों पर पानी छिड़कवाना; सड़कों के दोनों ओर छायादार वृक्ष लगवाना; बाजार, मेले व प्रदर्शनियों आदि का आयोजन करना।

5. प्रशासन और कर-संग्रह पर व्यय – इन्हें अपने प्रशासन हेतु कार्यालयों की व्यवस्था करनी होती है। अत: कार्यालयों के कर्मचारियों के वेतन तथा सामग्री पर व्यय करना पड़ता है। करों को वसूल करने में भी आय का पर्याप्त भाग व्यय हो जाता है।

6. सार्वजनिक निर्माण-कार्य – नगरपालिकाओं को उद्यानों व पार्को की व्यवस्था करनी पड़ती है, खेल के मैदान एवं व्यायामशालाओं आदि का निर्माण भी करना पड़ता है तथा अपने क्षेत्र की टूटी-फूटी सड़कों का निर्माण एवं मरम्मत भी करानी पड़ती है। इन सभी कार्यों को सम्पादित करने में उसे प्रति वर्ष पर्याप्त धन व्यय करना पड़ता है।

7. पेयजल की व्यवस्था पर व्यय – नागरिकों के पीने के लिए शुद्ध जल की व्यवस्था करने के लिए नगरपालिकाएँ नलकूपों का निर्माण कराकर टंकियों के माध्यम से पेयजल की व्यवस्था करती हैं तथा सार्वजनिक स्थानों पर नल भी लगवाती हैं। इस मद पर भी इन्हें धन व्यय करना पड़ता है।

प्रश्न 9.
ग्राम पंचायतों की आय के स्रोत एवं व्यय की प्रमुख मदों का वर्णन कीजिए।
          या
ग्राम पंचायत के किन्हीं दो आय के साधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
भारत की शासन-प्रणाली प्रजातान्त्रिक है। प्रजातन्त्र को गाँवों तक पहुँचाने के उद्देश्य से हमारे संविधान में पंचायती राज की व्यवस्था की गयी है। इस दृष्टि से उत्तर प्रदेश सरकार ने सन् 1947 ई० में पंचायती राज अधिनियम पारित करके ग्रामों में तीन प्रकार की संस्थाओं की स्थापना की-

  1. ग्राम सभा
  2. ग्राम पंचायत तथा
  3. न्याय पंचायत।

इस प्रकार ग्राम पंचायत ग्रामीण स्वशासन की दूसरी इकाई है। ग्राम पंचायत ग्राम सभा द्वारा निर्धारित नीतियों को लागू करती है।

ग्राम पंचायत की आय के स्रोत

ग्राम पंचायतों की आय के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं –

1. अनिवार्य कर –

  1. सम्पत्ति हस्तान्तरण पर चुंगी
  2. सवारी कर
  3. भूमि कर
  4. पेशा (उद्यम) कर।

2. महसूल –

  1. व्यापारिक फसलों के क्रय-विक्रय पर शुल्क
  2. भूमि उपकर एवं
  3. कृषि योग्य भूमि पर कर।

3. अन्य शुल्क –

  1. बाजारों पर शुल्क
  2. जमीन पर रोजगार शुल्क
  3. दलालों व एजेण्टों पर लाइसेन्स शुल्क
  4. अन्य कार्यों की स्वीकृति पर शुल्क
  5. बूचड़खानों पर शुल्क
  6. बैलगाड़ी ठहरने के स्थानों पर शुल्क
  7. सड़क व सार्वजनिक स्थानों पर शुल्क।

4. जिला बोर्ड से सहायता –

  1. प्राथमिक विद्यालय के व्यय के एक भाग की पूर्ति करना
  2. ग्रामीण बाजारों की व्यवस्था हेतु धनराशि प्राप्त करना
  3. घाटे की व्यवस्था करने पर आय-व्यय का अन्त।

ग्राम पंचायत की व्यय की मदें

ग्राम पंचायतों की व्यय की मुख्य मदें निम्नलिखित हैं –

  1. सफाई एवं प्रकाश की व्यवस्था पर व्यय।
  2. चिकित्सालय की व्यवस्था एवं संक्रामक रोगों की रोकथाम पर किये जाने वाले व्यय।
  3. शवों के दाह-संस्कार की व्यवस्था पर व्यय।
  4. शिक्षा व्यवस्था पर व्यय।
  5. सार्वजनिक सुविधाएँ; जैसे-तालाब, पोखर, कुओं आदि उपलब्ध करने पर व्यय।
  6. शुद्ध पेयजल की व्यवस्था पर व्यय।
  7. खेल-कूद व्यवस्था पर व्यय।
  8. बाजार, हाट व मेलों आदि के प्रबन्धं पर व्यय।
  9. पुस्तकालयों एवं वाचनालयों की व्यवस्था पर व्यय।
  10. बंजर एवं चरागाह भूमि के विकास पर व्यय।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कर किसे कहते हैं ? एक अच्छी कर-प्रणाली के लक्षण लिखिए।
उत्तर :

कर

कर एक अनिवार्य अंशदान है, जो करदाता को देना होता है। करदाता को इसके बदले में प्रत्यक्ष लाभ का कोई आश्वासन नहीं दिया जाता, करों का उपयोग सार्वजनिक हित में किया जाता है। डाल्टन के अनुसार, “कर किसी सार्वजनिक सत्ता द्वारा प्राप्त किया हुआ एक अनिवार्य अंशदान है, चाहे करदाता को बदले में उतनी राशि की सेवा प्राप्त हो या न हो और न यह किसी कानूनी अपराध के लिए दण्डस्वरूप लगाया जाता है।”

अच्छी कर-प्रणाली के लक्षण (विशेषताएँ)

एक अच्छी कर-प्रणाली में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए –

  1. कर-प्रणाली सरल एवं सुविधाजनक होनी चाहिए जिससे करदाता को कर का भुगतान करने में मानसिक कष्ट न हो।
  2. एक अच्छी कर-प्रणाली अधिकतम सामाजिक लाभ के सिद्धान्त पर आधारित होती है।
  3. कर-प्रणाली प्रगतिशील होनी चाहिए अर्थात् कर-प्रणाली ऐसी हो जिससे कर या भार धनी वर्ग पर अधिक व निर्धन वर्ग पर कम पड़े।
  4. एक अच्छी कर-प्रणाली में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों करों का समावेश होता है।
  5. एक अच्छी कर-प्रणाली में लोच का गुण पाया जाता है, जिससे आवश्यकतानुसार करों की मात्रा में वृद्धि व कमी की जा सके।
  6. कर-प्रणाली मितव्ययी होनी चाहिए।
  7. एक अच्छी कर-प्रणाली विलासिता एवं मादक वस्तुओं के उपभोग को हतोत्साहित करती है।
  8. बचत एवं पूँजी निर्माण को प्रोत्साहित करना अच्छी कर-प्रणाली का गुण है।
  9. अच्छी कर-प्रणाली आर्थिक विकास को गति प्रदान करती है।
  10. अच्छी कर-प्रणाली में उत्पादकता का गुण होता है।
  11. अच्छी कर-प्रणाली में करों का भार समाज पर कम पड़ता है।
  12. कर-प्रणाली में निश्चितता का गुण होना चाहिए।

प्रश्न 2.
सार्वजनिक वित्त और निजी वित्त में अन्तर लिखिए।
उत्तर :
सार्वजनिक वित्त और निजी वित्त में निम्नलिखित तीन अन्तर हैं –

  1. व्यक्ति अपना व्यय अपनी आय के अनुसार निर्धारित करता है, जबकि सरकार अपने व्यय के अनुसार आय-प्राप्ति के साधन खोजती है।
  2. व्यक्ति की आय के साधन सीमित होते हैं, जब कि सरकार के पास आय के साधनों की प्रचुरता होती है।
  3. व्यक्ति अपनी आय-व्यय के हिसाब को प्राय: गुप्त रखता है, जबकि सार्वजनिक वित्त का विस्तृत विवरण प्रकाशित किया जाता है।

प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष कर वे अप्रत्यक्ष कर में अन्तर स्पष्ट कीजिए। या प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों का अन्तर बताइए। प्रत्यक्ष कर के तीन स्रोत बताइट। [2015]
उत्तर :
प्रत्यक्ष कर वह कर है, जिसका भुगतान करदाता प्रत्यक्ष रूप से नकद रूप में कर अधिकारी को करता है। ऐसे करों का भार उन व्यक्तियों द्वारा ही वहन किया जाता है, जिन पर ये लगाये जाते हैं; जैसे-आयकर, निगम कर, मृत्यु कर आदि। इसके विपरीत अप्रत्यक्ष कर वे कर हैं, जिनके भार को करदाता दुसरों पर टालने में सफल हो जाते हैं। इन करों का तात्कालिक एवं अन्तिम भार अलग-अलग व्यक्तियों पर पड़ता है; जैसे–बिक्री कर, उत्पादन कर, सीमा,कर आदि।

प्रश्न 4.
कर के अर्थ एवं महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। या ‘कर’ क्या है ? [2010]
उत्तर :
अर्थ – कर एक अनिवार्य अंशदान है, जो करदाता को देना होता है। करदाता को कर के बदले में प्रत्यक्ष लाभ का कोई आश्वासन नहीं दिया जाता। करों का उपयोग सार्वजनिक हित में किया जाता है। महत्त्व-प्रत्येक देश की सरकार करों के माध्यम से देश की आर्थिक विषमता को कम करने का प्रयास करती है। सरकार धनी वर्ग पर अधिक कर लगाकर तथा करों से प्राप्त आय को निर्धनों के कल्याण-कार्यों पर व्यय करके राष्ट्रीय आय को समान वितरण करती है, जिससे समाज में धनी व निर्धन वर्ग में गहरी खाई न बन सके।

प्रश्न 5.
आर्थिक विकास हेतु सरकार को कर लगाने चाहिए।’ इसके पक्ष में कोई दो तर्क लिखिए।
उत्तर :
वर्तमान युग लोकतन्त्रीय युग है। आज विश्व के अधिकांश देशों में प्रजातन्त्रीय शासन है। प्रजातन्त्रीय शासन में सरकार देश की रक्षा, शान्ति-व्यवस्था की स्थापना, न्याय प्रदानार्थ एवं देश के विकास के अनेक कार्य करती है, जिसके लिए उसे बड़ी मात्रा में धन की आवश्यकता होती है। धन एकत्र करने का एक स्रोत कर है। आर्थिक विकास के लिए सरकार को कर लगाने चाहिए, इसके पक्ष में दो तर्क निम्नलिखित हैं

  • सरकार देश में आर्थिक विकास, कृषि व उद्योगों के विकास, व्यापार के विकास तथा परिवहन के साधनों के विकास के लिए योजनाएँ बनाकर करोड़ों रुपये व्यय करती है। इस आर्थिक विकास का लाभ प्रत्येक नागरिक तथा पूरे देश को प्राप्त होता है; अतः सरकार को कर लगाकर आर्थिक विकास के लिए धन एकत्र करना चाहिए।
  • देश में आर्थिक विकास के लिए धन एकत्र करने के अन्य स्रोत हैं-देश-विदेशों से ऋण प्राप्त करना। इन ऋणों पर एक तो ब्याज देना पड़ता है और दूसरे, ये ऋण कभी-कभी ऐसी शर्तों पर दिये जाते हैं। कि इन शर्तों का पालन देश-हित में नहीं होता। अत: यह तर्कसंगत होगा कि विदेशों से ऋण प्राप्त करने के स्थान पर देश के नागरिकों, व्यापारियों आदि पर ही कर लगाकर धन एकत्र किया जाए।

प्रश्न 6.
राजस्व की एक उचित परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
राजस्व राज्य के वित्तीय पक्ष का विधिवत् अध्ययन करता है। आज राजस्व के विस्तृत एवं गहन दोनों ही प्रकार के कार्यों में तेजी से वृद्धि हो रही है। इन कार्यों के संचालन के लिए धन की आवश्यकता होती है। अत: धन कैसे जुटाया जाए और इसका व्यय कैसे किया जाए-इन सभी आय और व्यय से सम्बन्धित प्रक्रियाओं एवं व्यवस्थाओं का अध्ययन राजस्व के अन्तर्गत किया जाता है। संक्षेप में, ‘‘राजस्व अर्थ-विज्ञान का वह अंग है, जिसमें सरकार की आय और व्यय तथा आय-व्यय सम्बन्धी प्रशासन का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत मात्र विधियों का अध्ययन’ ही काफी नहीं है, वरन् उन सिद्धान्तों का पर्यवेक्षण भी आवश्यक है, जिनके अनुसार ये विधियाँ अपनाई जाती हैं।”

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजस्व से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
“राजस्व अर्थशास्त्र का वह अंग है, जिसमें सरकार की आय तथा व्यय और आय-व्यय सम्बन्धी प्रशासन का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
जिला परिषद् की आय के दो साधन लिखिए।
उत्तर :
जिला परिषद् की आय के दो साधन हैं—

  1. हैसियत या सम्पत्ति कर तथा
  2. राज्य सरकार से अनुदान।

प्रश्न 3.
इस प्रदेश की जिला परिषद् की व्यय की दो प्रमुख मदों को लिखिए।
उत्तर :
उत्तर प्रदेश की जिला परिषद् की व्यय की दो प्रमुख मदें हैं—

  1. शिक्षा पर व्यय तथा
  2. करों की प्राप्ति पर व्यय।

प्रश्न 4.
जिला परिषद् के दो प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए। उत्तर जिला परिषद् के दो प्रमुख कार्य हैं –

  1. शिक्षा तथा
  2. सार्वजनिक स्वास्थ्य और चिकित्सी।

प्रश्न 5.
नगर निगम की आय के दो साधन लिखिए। [2018]
उत्तर :
नगर निगम की आय के दो साधन हैं—

  1. सम्पत्ति-कर या गृह-कर तथा
  2. जल-कर।

प्रश्न 6.
नगरपालिकाओं की व्यय की दो प्रमुख मदों को लिखिए।
उत्तर :
नगरपालिकाओं की व्यय की दो प्रमुख मदें हैं-

  1. शिक्षा तथा
  2. सार्वजनिक स्वास्थ्य व चिकित्सा।

प्रश्न 7.
राज्य सरकार कौन-कौन से कर लगाती है ?
उत्तर :
राज्य सरकार द्वारा लगाये जाने वाले करों के नाम हैं-

  1. भू-राजस्व
  2. व्यापार कर
  3. राज्य उत्पादन कर तथा
  4. मनोरंजन कर।

प्रश्न 8.
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर के दो-दो उदाहरण दीजिए। या प्रत्यक्ष कर के दो उदाहरण लिखिए। [2013]
उत्तर
प्रत्यक्ष कर के दो उदाहरण-आयकर और निगम कर। अप्रत्यक्ष कर के दो उदाहरण–बिक्री कर और उत्पादन कर।

प्रश्न 9.
प्रत्यक्ष कर से आप क्या समझते हैं ? [2010]
उत्तर :
जो कर व्यक्तियों पर सीधे लगाये जाते हैं, उन्हें प्रत्यक्ष कर कहते हैं; जैसे-आयकर व सम्पत्ति कर। प्रत्यक्ष करों का भार करदाता दूसरे व्यक्तियों पर नहीं डाल सकता।

प्रश्न 10.
आयकर किसे कहते हैं ?
उत्तर :
व्यक्तियों की आय (Income) पर जो कर लगाया जाता है, उसे आयकर कहते हैं। यह एक प्रत्यक्ष कर है।

प्रश्न 11.
नगर महापालिकाओं की आय के चार स्रोत लिखिए।
उत्तर :
नगर महापालिकाओं की आय के चार स्रोत हैं-गृह कर, सम्पत्ति कर, भूमि कर तथा जल कर।

प्रश्न 12.
ग्राम पंचायत की आय के दो स्रोत लिखिए।
उत्तर :
ग्राम पंचायत की आय के दो स्रोत हैं—

  1. अनिवार्य कर; जैसे—सवारी कर, भूमि कर, पेशा (उद्यम) कर।
  2. जिला पंचायत तथा राज्य सरकार से अनुदान।

प्रश्न 13.
ग्राम पंचायत के व्यय की दो मदें लिखिए।
उतर :
ग्राम पंचायत के व्यय की दो मुख्य मदें हैं—

  1. सफाई एवं प्रकाश की व्यवस्था तथा
  2. चिकित्सालय की व्यवस्था एवं संक्रामक रोगों की रोकथाम।

प्रश्न 14.
राज्य सरकार की आय के दो साधनों का उल्लेख कीजिए। [2014]
उत्तर :

  1. भू-राजस्व की मालगुजारी
  2. व्यापार कर।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन-सा कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाया जाता है?

(क) व्यापार कर
(ख) मनोरंजन कर
(ग) यात्री कर
(घ) निगम कर

2. आयकर सम्मिलित किया गया है [2014]

(क) संघ सूची में
(ख) राज्य सूची में
(ग) समवर्ती सूची में
(घ) इनमें से किसी में भी नहीं

3. संघीय सूची में कुल कितने विषय रखे गये हैं?

(क) 95
(ख) 96
(ग) 97
(घ) 98

4. समवर्ती सूची में कुल कितने विषय रखे गये थे?

(क) 50
(ख) 49
(ग) 52
(घ) 47

5. निम्नलिखित में से कौन-सा प्रत्यक्ष कर है? [2011, 12]

(क) व्यापार कर
(ख) उत्पादन कर
(ग) आयकर
(घ) मनोरंजन कर

6. निम्नलिखित में से कौन-सा अप्रत्यक्ष कर है? [2011]

(क) आयकर
(ख) कॉपोरेशन कर
(ग) सीमा शुल्क
(घ) उपहार कर

7. अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण है

(क) आयकर
(ख) बिक्री कर
(ग) सम्पत्ति कर
(घ) उपहार कर

8. ‘आयकर’ एक

(क) अप्रत्यक्ष कर है।
(ख) प्रत्यक्ष कर है।
(ग) प्रतिगामी कर है।
(घ) इनमें से कोई नहीं

9. कर है –

(क) अनिवार्य भुगतान
(ख) ऐच्छिक भुगतान
(ग) आर्थिक भुगतान
(घ) गैर-आर्थिक भुगतान

10. ग्राम पंचायत की स्थापना होती है

(क) महानगरों में
(ख) ग्रामीण क्षेत्रों में
(ग) ब्लॉक में
(घ) छोटे शहरों में

11. निम्नलिखित में से कौन स्थानीय निकाय की आय का स्रोत है?

(क) आयकर
(ख) उत्पादन कर
(ग) चुंगी कर
(घ) व्यापार कर

12. निम्नलिखित में से कौन-सा कर राज्य सरकार लगाती है? [2009]

(क) आयकर
(ख) सेवा कर
(ग) व्यापार कर
(घ) निगम कर

13. इनमें से कौन-सा कर नगर निगम लगाती है?

(क) निगम कर
(ख) उत्पाद कर
(ग) बिजली व पानी कर
(घ) सम्पत्ति कर

14. निम्नलिखित में से कौन-सा कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाया जाता है? [2015]

(क) आयात कर
(ख) मनोरंजन कर
(ग) यात्रा करे।
(घ) मार्ग कर

15. आयकर लगाने का अधिकार किसे है? [2015, 17]

(क) राज्य सरकार को
(ख) केन्द्र सरकार को
(ग) महापालिका को
(घ) नगरपालिका को

16. ‘बिक्रीकर’ आय का साधन है [2016]

(क) केन्द्र सरकार का
(ख) राज्य सरकार का
(ग) जिला पंचायत का
(घ) ग्राम पंचायत का

17. भू-राजस्व आय का साधन है [2017, 18]

(क) केन्द्र सरकार का
(ख) राज्य सरकार का
(ग) ग्राम पंचायतों का
(घ) नगरपालिकाओं का

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 (Section 4) 1

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