UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 जनपदीय न्यायालय एवं लोक अदालत (अनुभाग – दो)
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विस्तृत उत्तरीय प्रशा
प्रश्न 1.
जिले के दीवानी न्यायालय का सविस्तार वर्णन कीजिए।
या
जिला स्तर की अदालतों के गठन पर प्रकाश डालिए और उनके किन्हीं दो कार्यों का उल्लेख कीजिए। [2010]
उत्तर :
दीवानी न्यायालय जनपद में दीवानी या व्यवहार के मामलों से सम्बन्धित निम्नलिखित न्यायाधीशों के न्यायालय होते हैं
1. जिला न्यायाधीश का न्यायालय – जिला न्यायाधीश दीवानी के मामले में सबसे बड़ा न्यायाधीश होता है। जिला न्यायाधीश सभी प्रकार के दीवानी के मामलों की प्रारम्भिक सुनवाई करता है तथा पाँच लाख रुपये मूल्य तक के विवादों की अपील सुनता है। इस प्रकार इस न्यायालय में मुकदमों का निर्णय भी होता है और निचली अदालतों के निर्णय के विरुद्ध अपील भी सुनी जाती है। यह जिले के न्यायालयों पर नियन्त्रण रखती है।
2. सिविल जज का न्यायालय- सिविल जज दीवानी के मामलों में जिला न्यायाधीश के नीचे का न्यायाधीश होता है। सिविल जज को एक लाख रुपये मूल्य तक के विवादों की प्रारम्भिक सुनवाई का अधिकार प्राप्त है। आवश्यकता पड़ने पर उच्च न्यायालय के निर्देशों पर यह राशि पाँच लाख रुपये तक बढ़ाई जा सकती है। सिविल जज मुन्सिफ के निर्णयों के विरुद्ध उन अपीलों को भी सुनता है, जिन्हें जिला जज सुनवाई हेतु हस्तान्तरित करके उसके पास भिजवाता है।
3. मुन्सिफ का न्यायालय- सिविल जज के नीचे मुन्सिफ की अदालत होती है। इन अदालतों में साधारणतः दस हजार रुपये तक के तथा विशेष अधिकार मिलने पर 25,000 की मिल्कियते तक के मामले सुने जाते हैं एवं उन पर निर्णय सुनाये जाते हैं। इनके फैसले के विरुद्ध जिला न्यायाधीश की अदालत में अपील की जा सकती है।
4. खफीफा जज का न्यायालय- कहीं-कहीं छोटे मामलों में जल्दी तथा कम खर्च में निर्णय सुनाने के लिए खफीफा जज के न्यायालय होते हैं। मुन्सिफ के न्यायालय के नीचे खफीफा का न्यायालय होता है। इस न्यायालय में पाँच हजार रुपये तक के धन वसूली मामलों तथा १ 25,000 तक के मकानों व दुकानों के बेदखली विवादों की सुनवाई होती है। इनके निर्णयों के विरुद्ध अपील नहीं होती है। जिला न्यायाधीश के न्यायालय में पुनर्विचार (Revision) हो सकता है। इन न्यायालयों की स्थापना इसलिए की गयी है, जिससे बड़े-बड़े नगरों में छोटे-छोटे मुकदमों का शीघ्रतापूर्वक निर्णय किया जा सके।
5. न्याय पंचायत- दीवानी विवादों में सबसे निचले स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय पंचायतें हैं। इन्हें 500 तक के धन-विवादों को सुनने को अधिकार है। इनके निर्णय के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती। इसकी एक विशेषता यह भी है कि कोई भी वकील इसमें मुकदमे की पैरवी नहीं कर सकता। ऐसा इसलिए किया गया है, जिससे ग्रामीण जनता को निष्पक्ष और सस्ता न्याय मिल सके।
प्रश्न 2.
जिले के राजस्व न्यायालय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
राजस्व न्यायालय
राजस्व न्यायालय लगान (मालगुजारी) सम्बन्धी मुकदमों की सुनवाई करते हैं। प्रदेश स्तर पर उच्च न्यायालय के अधीन इनकी निम्न व्यबस्था है
राजस्व परिषद्- प्रत्येक राज्य में मालगुजारी सम्बन्धी मुकदमों के निस्तारण हेतु उच्च न्यायालय के बाद एक राजस्व परिषद् होती है। मालगुजारी से सम्बन्धित मुकदमों की यह राज्य स्तरीय सबसे बड़ी अदालत है। इसके निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
आयुक्त- प्रशासन की सुविधा के लिए राज्य को कई कमिश्नरियों (मण्डलों) में विभक्त कर दिया जाता है और प्रत्येक कमिश्नरी का प्रधान अधिकारी कमिश्नर या आयुक्त कहलाता है। आयुक्त मालगुजारी सम्बन्धी मामलों में जिलाधीश के फैसले के विरुद्ध अपीलें सुनता है। आयुक्त के फैसले के विरुद्ध अपीलें राजस्व परिषद् में सुनी जाती हैं।
जिलाधिकारी- यह जिले में सबसे बड़ा अधिकारी होता है, जो उपजिलाधिकारी (S.D.M.) व तहसीलदार के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनता है। इसके नीचे अपर जिलाधिकारी होता है। उपजिलाधिकारी जिला कई सब-डिवीजनों में विभक्त होता है। प्रत्येक सब-डिवीजन में एक उपजिलाधिकारी की नियुक्ति होती है जो राजस्व के साथ-साथ अपने क्षेत्र में कानून और व्यवस्था को बनाये रखती है।
तहसीलदार– प्रत्येक तहसील में एक तहसीलदार होता है, जो अपने क्षेत्र में राजस्व की वसूली की व्यवस्था करता है तथा इससे सम्बन्धित वादों की सुनवाई भी करता है। नायब तहसीलदार-तहसीलदार की सहायता के लिए नायब तहसीलदारों को नियुक्त किया जाता है। ये तहसीलदार के कार्यों में सहयोग प्रदान करते हैं।
प्रश्न 3.
लोक अदालतं पर एक लेख लिखिए। [2013]
या
लोक अदालत की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2015, 16, 18]
या
लोक अदालत का क्या अभिप्राय है ? इसके किन्हीं दो कार्यों का उल्लेख कीजिए। [2012]
या
लोक अदालत क्या है? लोक अदालतों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। क्या इसके निर्णय के विरुद्ध अपील हो सकती है ? [2010, 11]
या
लोक अदालतों की स्थापना क्यों की गई थी ? [2007]
या
लोक अदालत गठित करने का उद्देश्य क्या है ? इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2015]
या
लोक अदालतों की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2015]
या
लोक अदालतों के गठन एवं उसकी कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालिए। [2016]
या
भारतीय न्याय-व्यवस्था में लोक अदालतों के महत्व का वर्णन कीजिए। [2015]
या
भारतीय न्याय-व्यवस्था में लोक अदालतों की भूमिका का परीक्षण कीजिए। [2015]
उत्तर :
लोक अदालत
आज न्यायालयों में लाखों की संख्या में विचाराधीन मुकदमे पड़े हैं। कार्य-भार के कारण दीवानी, फौजदारी और राजस्व न्यायालयों से न्याय पाने में बहुत अधिक समय लगता है तथा इस प्रक्रिया में धन भी अधिक व्यय होता है और अनेक अन्य परेशानियाँ भी उठानी पड़ती हैं। ऐसी स्थिति में न्याय-प्रक्रिया को और सरल बनाने के उद्देश्य से एक प्रस्ताव द्वारा भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री पी० एन० भगवती की अध्यक्षता में कानूनी सहायता योजना कार्यान्वयन समिति’ की नियुक्ति की। इस समिति द्वारा प्रस्तावित कार्यक्रम के अन्तर्गत उत्तर प्रदेश राज्य के विभिन्न भागों और देश के अन्य राज्यों के विभिन्न भागों में शिविर’ (Camp) के रूप में लोक अदालतें लगायी जा रही हैं। इन लोक अदालतों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
-
- इन अदालतों में मुकदमों का निपटारा आपसी समझौतों के आधार पर किया जाता है और | समझौता ‘कोर्ट फाइल’ में दर्ज कर लिया जाता है।
- इनमें वादी और प्रतिवादी अपना वकील नहीं कर सकते वरन् दोनों पक्ष न्यायाधीश के सामने
आपस में बातचीत करते हैं।
- इनमें वैवाहिक, पारिवारिक व सामाजिक झगड़े, किराया, बेदखली, वाहनों का चालान, बीमा आदि के सामान्य मुकदमों पर दोनों पक्षों को समझाकर समझौता करा दिया जाता है।
- इन अदालतों में सेवानिवृत्त जज, राजपत्रित अधिकारी तथा समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति परामर्शदाता के रूप में बैठते हैं।
- ये अदालतें ऐसे किसी व्यक्ति को रिहा नहीं कर सकतीं, जिसे शासन ने बन्दी बनाया है। ये अदालतें केवल समझौता करा सकती हैं, जुर्माना कर सकती हैं या चेतावनी देकर छोड़ सकती हैं।
- लोक अदालत को सिविल कोर्ट के समकक्ष मान्यता प्राप्त है। इसके द्वारा दिया गया फैसला अन्तिम होता है, जिसे सभी पक्षों को मानना पड़ता है। इस फैसले के विरुद्ध किसी भी अदालत में अपील नहीं की जा सकती।
भारत में सर्वप्रथम लोक अदालतें 1982 ई० में गुजरात राज्य में लगायी गयीं। तब से लेकर दिसम्बर, 1999 ई० तक देश के विभिन्न भागों में 40,000 से अधिक लोक अदालतें लगायी गयीं, जिनमें 92 लाख से अधिक मामले निबटाये गये। इससे लोक अदालतों की लोकप्रियता का पता चलता है। अब केन्द्र तथा राज्य सरकारें स्थायी एवं निरन्तर लोक अदालतें स्थापित करने का विचार कर रही हैं। सरकार के विभिन्न विभागों एवं सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों के लिए अलग-अलग लोक अदालतें स्थापित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। लोक अदालतों को कानूनी रूप देने के लिए केन्द्र सरकार शीघ्र ही संसद में एक विधेयक पास करने जा रही है।
जनपदीय स्तर पर सरकार ने परिवार न्यायालयों, उपभोक्ता संरक्षण न्यायालयों तथा विशेष महिला अदालतों की भी स्थापना की है। उत्तर प्रदेश में 2 अक्टूबर, 1986 ई० से परिवार न्यायालय कानून लागू किया गया है। अब तक 10 परिवार न्यायालय उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड राज्यों में कार्यरत हैं। इन न्यायालयों का उद्देश्य पारिवारिक विवादों (विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, भरण-पोषण, सम्पत्ति आदि) को शीघ्रता के साथ हल करना है। विशेष महिला अदालत महिलाओं से सम्बन्धित विवादों की सुनवाई करती है। 10 फरवरी, 1996 ई० से इलाहाबाद में पहली विशेष महिला अदालत ने कार्य आरम्भ किया है। अब तक मथुरा, सहारनपुर आदि जनपदों में विशेष महिला अदालतें स्थापित हो चुकी हैं। इसी प्रकार जनपदों में उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय भी उपभोक्ताओं के हितों को संरक्षण देने के लिए सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं।
प्रश्न 4.
परिवार न्यायालय पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2011]
या
परिवार न्यायालय के पक्ष में अपने तर्क दीजिए। [2015, 17]
उत्तर :
जनपदीय स्तर पर सरकार द्वारा परिवार न्यायालयों की स्थापना की गयी है। उत्तर प्रदेश में 2 अक्टूबर, 1986 ई० से परिवार न्यायालय कानून लागू किया गया है। अब तक दस परिवार न्यायालय उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड राज्य में कार्य कर रहे हैं। इन न्यायालयों का उद्देश्य पारिवारिक विवादों (विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, भरण-पोषण, सम्पत्ति आदि) को शीघ्रता के साथ हल करना है। इस न्यायालय में मुकदमों का निपटारा आपसी समझौतों के आधार पर किया जाता है तथा दोनों पक्ष न्यायाधीश के सम्मुख आपस में बातचीत करते हैं। इन न्यायालयों की आज भारत में अत्यधिक आवश्यकता है। क्योंकि आज सामान्य न्यायालयों में करोड़ों की संख्या में वर्षों से लम्बित मुकदमे पड़े हैं। इसलिए अनेक पारिवारिक विवाद; जिन्हें शीघ्रातिशीघ्र हल हो जाना चाहिए था; वे भी वर्षों से लम्बित हैं। यही कारण है कि ऐसे न्यायालयों की हमारे देश में आवश्यकता है।
लघु उत्तरीय प्रा
प्रश्न 1.
जिले के फौजदारी न्यायालय की रचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
फौजदारी न्यायालय
सत्र (सेशन) न्यायालय- उच्च न्यायालय की अधीनता में फौजदारी न्यायालय का कार्य करने वाले सबसे बड़े न्यायालय को ‘सत्र न्यायालय’ कहते हैं। इसके मुख्य न्यायाधीश को सत्र न्यायाधीश कहते हैं। इसे फौजदारी के साथ ही दीवानी के मुकदमों के निर्णय का भी अधिकार प्राप्त है। जब यह फौजदारी के मुकदमे सुनता है तो सेशन जज कहलाता है और जब दीवानी के मुकदमे सुनता है तो जिला जज कहलाता है। इसकी नियुक्ति उच्च न्यायालय की सम्मति से राज्यपाल द्वारा की जाती है। इस पद पर प्रायः दो भिन्न कोटि के व्यक्ति नियुक्त किये जा सकते हैं-प्रथम तो वे जो राजकीय जुडीशियल सर्विस के सदस्य हों, इसके अलावा सात वर्ष तक अधिवक्ता (वकील) का कार्य करने वाला व्यक्ति भी न्यायाधीश बनाया जा सकता है। न्यायिक पदों के लिए लोक सेवा आयोग द्वारा खुली प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। इन प्रतियोगिताओं में पास होने वाले योग्य व्यक्ति सर्वप्रथम मुन्सिफ के पद पर नियुक्त किये जाते हैं। कुछ समय बाद अपनी योग्यता, कार्यक्षमता एवं निष्पक्षता के बल पर आगे उन्नति करते हुए वे सत्र न्यायाधीश के पद पर पहुँच जाते हैं।
सत्र न्यायाधीश को अपने अधीनस्थ मजिस्ट्रेटों द्वारा दिये गये निर्णय के विरुद्ध अपील भी सुनने का अधिकार है। ये न्यायालय मृत्यु-दण्ड दे सकते हैं, परन्तु मृत्युदण्ड पर उच्च न्यायालय की पुष्टि होनी आवश्यक है। यह जिले के अन्य न्यायाधीशों के कार्यों की देखभाल भी करता है। बड़े जिलों में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एवं सहायक सत्र न्यायाधीश होते हैं।
प्रश्न 2.
जिला न्यायालय पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2013]
उत्तर :
जनपदीय (जिला) न्यायालय
जनपदीय (जिला) न्यायालय राज्य के उच्च न्यायालय के अधीन होते हैं। प्रत्येक जनपद (जिले) में निम्नलिखित प्रकार के न्यायालय होते हैं
- दीवानी न्यायालय–विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 के अन्तर्गत देखें।
- फौजदारी न्यायालये-लघु उत्तरीय प्रश्न 1 का उत्तर देखें।
- न्याय पंचायत–फौजदारी क्षेत्र में सबसे निम्न स्तर पर न्याय पंचायतें होती हैं। न्याय पंचायतें है 250 तक जुर्माना कर सकती हैं, परन्तु वे कारावास का दण्ड नहीं दे सकतीं। 73वें संविधान संशोधन के बाद बनाए गए पंचायती राज अधिनियम में न्याय पंचायत की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
- राजस्व न्यायालय–वर्तमान में उच्च न्यायालय के अधीन राजस्व परिषद्, कमिश्नर, जिलाधीश, परगनाधिकारी (S.D.M.), तहसीलदार और नायब तहसीलदार की अदालतें होती हैं। इन अदालतों में लगान, मालगुजारी आदि के मुकदमों की सुनवाई की जाती है।
- अन्य न्यायालय-उपर्युक्त न्यायालयों के अतिरिक्त कुछ विशेष मुकदमों का फैसला विशेष न्यायालयों में होता है; जैसे—आयकर सम्बन्धी मुकदमों का फैसला आयकर अधिकारी ही कर सकता है। उसके निर्णय के विरुद्ध आयकर आयुक्त और आयकर अधिकरण (Income Tax Tribunal) में अपील की जाती है।
प्रश्न 3.
लोक अदालतें क्यों महत्त्वपूर्ण हैं ? दो कारण बताइए। [2013]
या
लोक अदालतों की स्थापना के दो कारण बताइट। [2016]
उत्तर :
भारत की वर्तमान न्याय-व्यवस्था इस प्रकार की है कि उसमें न्याय प्राप्त करने में अधिक समय लगता है तथा धन की अधिक आवश्यकता होती है। वर्तमान में भारत के समस्त न्यायालयों में लाखों की संख्या में मुकदमे विचाराधीन पड़े हैं। इस समस्या का समाधान करने तथा शीघ्र न्याय प्राप्त करने के लिए लोक अदालतें महत्त्वपूर्ण हैं। ये अदालतें देश के विभिन्न भागों में शिविर के रूप में लगाई जाती हैं। इनकी महत्त्वता के दो कारण निम्नलिखित हैं
- न्यायिक व्यवस्था को सरल तथा सुविधाजनक बनाए जाने की आवश्यकता है। इसमें वकील करने की आवश्यकता नहीं है।
- मुकदमे का निर्णय उसी दिन हो जाता है जिस दिन यह अदालत लगाई जाती है। इसके निर्णय । सामान्यतया आर्थिक दण्ड के रूप में होते हैं।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जिले का सबसे बड़ा न्यायालय कौन-सा है ?
उत्तर :
जिले का सबसे बड़ा न्यायालय जनपद न्यायालय है।
प्रश्न 2.
न्याय पंचायत कितने रुपये तक का विवाद सुन सकती है ?
उत्तर :
न्याय पंचायत १ 500 तक के धन-विवाद को सुन सकती है।
प्रश्न 3.
सिविल जज (जूनियर डिवीजन) कितने रुपये तक का विवाद सुन सकता है ?
उत्तर : सिविल जज एक लाख रुपये मूल्य तक के मुकदमे सुन सकता है।
प्रश्न 4.
भारतीय जनता को सरल तथा सुविधाजनक न्याय प्रदान करने के लिए किस अदालत की स्थापना की गयी है ? [2009]
उत्तर :
भारतीय जनता को सरल तथा सुविधाजनक न्याय प्रदान करने के लिए लोक अदालत की स्थापना की गयी है।
प्रश्न 5.
लोक अदालत का एक लाभ एवं एक हानि लिखिए। [2009]
उत्तर :
लाभ-इन अदालतों में मुकदमों का निपटारा आपसी समझौते द्वारा किया जाता है। इन अदालतों में वकीलों की आवश्यकता नहीं होती, जिससे खर्चा बचता है और मुकदमे की सुनवाई शीघ्रतापूर्वक हो जाती है। हानि-इन अदालतों के द्वारा दिये गये फैसले के विरुद्ध किसी और अदालत में याचिका दायर नहीं की जा सकती।
प्रश्न 6.
जिले में राजस्व न्यायालय के रूप में सर्वोच्च अधिकारी कौन होता है ? उसके निर्णय के विरुद्ध अपील कहाँ की जा सकती है ? [2010]
उत्तर :
जिले में राजस्व न्यायालय का प्रमुख जिलाधिकारी होता है, जो जमीन, लगान आदि से सम्बन्धित मुकदमों की सुनवाई करता है। इसके नीचे परगनाधीश, तहसीलदार, नायब तहसीलदार होते हैं, जिनकी अलग-अलग अदालतें होती हैं। उसके निर्णय के विरुद्ध आयकर आयुक्त और आयकर (अधिकरण) ट्रिब्यूनल में अपील की जा सकती है।
बहुविकल्पीय
प्रश्न 1. जिले का सबसे बड़ा दीवानी न्यायालय कौन-सा है?
(क) जिला जज का न्यायालय
(ख) सिविल जज का न्यायालय
(ग) मुन्सिफ का न्यायालय
(घ) न्याय पंचायत
2. जिले का सबसे बड़ा फौजदारी न्यायालय है
(क) सेशन जज का न्यायालय
(ख) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट
(ग) मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ।
(घ) न्याय पंचायत
3. उत्तर प्रदेश में परिवार न्यायालय लागू किया गया
(क) 2 अक्टूबर, 1986 ई० को
(ख) 1988 ई० को
(ग) 1999 ई० को
(घ) 5 जनवरी, 2006 ई० को
4. जनपद न्यायालय का सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी कौन होता है?
(क) जिला न्यायाधीश
(ख) जिलाधिकारी
(ग) सिविल जज
(घ) मुन्सिफ मजिस्ट्रेट
5. लोक अदालतों के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य सही नहीं है?
(क) निर्णय आपसी सहमति के आधार पर होते हैं।
(ख) इसमें वकील मुदकमें की पैरवी कर सकते हैं।
(ग) इसमें निर्णय शीघ्र होते हैं।
(घ) ये अदालतें जन-कल्याण हेतु कार्य करती हैं।
6. दिल्ली में पहली लोक अदालत किस वर्ष गठित की गई थी?
(क) 1985
(ख) 1986
(ग) 1985
(घ) 1988
उत्तरमाला
1. (क), 2. (क), 3. (क), 4. (क), 5. (ख), 6. (ख)