UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 6  मैथिलीशरण गुप्त (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 6  मैथिलीशरण गुप्त (काव्य-खण्ड)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 6  मैथिलीशरण गुप्त (काव्य-खण्ड).

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

(पंचवटी)

1. चारु चन्द्र की ……………………………………. झोंकों से।
शब्दार्थ- चारु = सुन्दर । अवनि = धरती। अम्बरतले = आकाश। पुलक = आनन्दमय रोमांचित । तृण = घास । झीम = झूमना ।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित खण्डकाव्य ‘पंचवटी’ से लिया गया है।
प्रसंग- यहाँ कवि ने पंचवटी के प्राकृतिक सौन्दर्य का सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या- गुप्त जी कहते हैं कि सुन्दर चन्द्रमा की किरणें जल और थल में फैली हुई हैं। पृथ्वी और आकाश में स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है। हरी-हरी घास की नोकें ऐसी लगती हैं मानो वे पृथ्वी के सुख से रोमांचित हो रही हैं। वहाँ के सभी वृक्ष मन्दमन्द वायु के झोंकों से झूमते प्रतीत होते हैं।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. भाषा- खड़ीबोली । चाँदनी रात का बड़ा सुन्दर शब्द-चित्र प्रस्तुत किया गया है।
  2. अलंकार- अनुप्रास, उत्प्रेक्षा एवं मानवीकरण । रस- श्रृंगार । गुण- माधुर्य ।

2. पंचवटी की छाया ……………………………………. दृष्टिगत होता है।
शब्दार्थ-  पर्णकुटीर = पत्तों की कुटिया। सम्मुख = सामने । स्वच्छ = साफ, निर्मल । शिला = पत्थर । निर्भीकमना = निर्भय मनवाला। धनुर्धर = धनुष धारण करनेवाला। भुवन-भर = सम्पूर्ण संसार। भोगी = भोग करनेवाला, राजा। कुसुमायुध = कामदेव।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘पंचवटी’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
प्रसंग- इसमें प्रहरी के रूप में लक्ष्मण को सुन्दर चित्रण किया गया है।
व्याख्या- कवि कहता है कि पंचवटी की घनी छाया में एक सुन्दर पत्तों की कुटिया बनी हुई है। उस कुटिया के सामने एक स्वच्छ विशाल पत्थर पड़ा हुआ है और उस पत्थर के ऊपर धैर्यशाली, निर्भय मनवाला वीर पुरुष बैठा हुआ है। सारा संसार सो रहा है परन्तु यह धनुषधारी इस समय भी जाग रहा है। यह वीर ऐसा दिखायी पड़ता है जैसे भोग करनेवाला कामदेव यहाँ योगी बनकर आ बैठा हो ।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. भाषा- खड़ीबोली । रस- शान्त । अलंकार- अनुप्रास अलंकार की छटा है, उपमा अलंकार की सुन्दर योजना है। प्रसाद गुण युक्त सरल साहित्यिक खड़ीबोली भाषा है। गुण- प्रसाद।

3. किस व्रत में ……………………………………. जीवन है।
शब्दार्थ-व्रती = व्रत धारण करनेवाला । विपिन = वन । विराग = वैराग्य, विरक्ति। प्रहरी = पहरेदार । कुटीर = कुटिया। रस = लगा हुआ। राज भोग्य = राज भोगने योग्य।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘पंचवटी’ खण्डकाव्य से अवतरित है।
प्रसंग- यहाँ राम और सीता की कुटी पर पहरा देते हुए लक्ष्मण की विशेषताओं का चित्रण किया गया है।
व्याख्या- इस वीर पुरुष ने यह कौन-सा व्रत धारण किया है, जिसके कारण इस प्रकार नींद का त्याग कर दिया है। यह तो राज्य के सुखों को भोगने योग्य है परन्तु किस कारण से यह वन में वैराग्य ग्रहण किये हुए बैठा है। पता नहीं इस कुटिया में ऐसा कौन-सा अमूल्य धन रखा हुआ है, जिसकी रक्षा में तन-मन और जीवन लगाते हुए लक्ष्मण प्रहरी बना हुआ है।
काव्यगत सौन्दर्य 

  1. यहाँ एक निर्भीक और कर्तव्यनिष्ठ प्रहरी के रूप में लक्ष्मण का सजीव चित्रण हुआ है।
  2. भाषा- सरस व शुद्ध खड़ीबोली।
  3. शैली- वर्णनात्मक।
  4. अलंकार- अनुप्रास।
  5. गुण-ओज
  6. रस- अद्भुत ।

4. मर्त्यलोक-मालिन्य ……………………………………. माया ठहरी।
शब्दार्थ- मर्त्यलोक-मालिन्य =
संसार के पाप ।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘पंचवटी’ खण्डकाव्य से उद्धृत हैं।
प्रसंग- कवि ने उस अनुपम धन की महानता का वर्णन किया है, जिसकी रक्षा में वीर, व्रती लक्ष्मण एकाग्र मन से संलग्न हैं।
व्याख्या- वास्तव में इस कुटी के अन्दर ऐसा अनुपम धन है, जिसकी रक्षा एक वीर पुरुष ही कर सकता है। तीनों लोकों को साक्षात् लक्ष्मी सीताजी इस कुटी के अन्दर विद्यमान हैं। वे अपने पति राम के साथ इस कुटी में रह रही हैं। मनुष्य लोक की बुराइयों को दूर करने के लिए वे अपने पति राम के साथ आयी हैं; अतः इस कुटी में तीनों लोकों की लक्ष्मी स्वरूप सीताजी विराजमान हैं। वे वीरों के वंश की प्रतिष्ठा हैं। रघुवंश वीरों की वंश है। उनकी रक्षा से ही रघुवंश की प्रतिष्ठा हो सकती है। यदि सीताजी की प्रतिष्ठा में कोई आँच आती है तो रघुकुल की प्रतिष्ठा में धब्बा लगता है। इसीलिए लक्ष्मण जैसे प्रहरी को यहाँ नियुक्त किया गया है। वीर लक्ष्मण इस कुटी में उपस्थित सीताजी की रक्षा में अपना तन, मन और जीवन समर्पित किये हुए हैं।
                 यह वन निर्जन है। रात्रि काफी शेष है। यहाँ पर राक्षस लोग चारों ओर घूम रहे हैं। वे किसी माया के जाल में फंसाकर विपत्ति खड़ी कर सकते हैं। अतः रात्रि के समय निर्जन प्रदेश में राक्षसों की माया से बचने के लिए लक्ष्मण जैसा वीर ही उपयुक्त पहरेदार है।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. यहाँ कवि ने वीर लक्ष्मण को उपयुक्त पहरेदार के रूप में चित्रित किया है।
  2. सीता ‘वीर वंश की लाज’ हैं।
  3. भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली।
  4. शैली- चित्रात्मक एवं गीत ।
  5. रस- शान्त ।
  6. छन्द- मात्रिक।
  7. अलंकार- अनुप्रास, रूपक। गुण-माधुर्य ।

5. क्या ही स्वच्छ……………………………………. और चुपचाप।
शब्दार्थ- निस्तब्ध = सन्नाटे से भरी। स्वच्छन्द= स्वतन्त्र । सुमन्द = मन्द-मन्द। गन्धवह = हवा, वायु। निरानन्द = आनन्दरहित । नियति-नटी = नियतिरूपी । नटी = नर्तकी । नियति = भवितव्यता, भाग्य । कार्य-कलाप = क्रिया-कलाप, काम।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘पंचवटी’ पाठ से उधृत है।
प्रसंग- पंचवटी में दूर तक फैली चाँदनी का वर्णन करते हुए कवि कहता है
व्याख्या- पंचवटी में जो दूर-दूर तक चाँदनी फैली हुई है, वह बहुत ही साफ दिखायी दे रही है और रात सन्नाटे से भरी है। कोई शब्द नहीं हो रहा है। वायु स्वच्छन्द गति से, अपनी स्वतन्त्र चाल से मन्द-मन्द बह रही है। इस समय उत्तर-पश्चिम आदि सभी दिशाओं में आनन्द-ही-आनन्द व्याप्त है। कोई भी दिशा आनन्द-शून्य नहीं है। ऐसे समय में भी नियति नामक शक्ति-विशेष के समस्त कार्य सम्पन्न हो रहे हैं। कहीं कोई रुकावट नहीं। नियति-नटी अपने क्रिया-कलापों को बहुत ही शान्ति से सम्पन्न कर रही है। वह एकान्त भाव से अर्थात् अकेले-अकेले और चुपचाप अपने कर्तव्यों का निर्वाह किये जा रही है।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. नियति के क्रिया-कलाप निरन्तर चलते रहते हैं। उनमें दिन या रात का कोई व्यवधान नहीं आता।
  2. भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली।
  3. छन्द- मात्रिक।
  4. अलंकार- अनुप्रास, रूपक।
  5. रस- शान्त
  6. शैली- भावात्मक।

6. है बिखेर देती……………………………………. झलकाता है।
सन्दर्भ- प्रस्तुत अवतरण मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘पंचवटी’ नामक काव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संगृहीत किया गया है।
प्रसंग- वनवास के समय पंचवटी में निवास करते हुए लक्ष्मण एक पर्णकुटी में सीता की रक्षा करते हुए रात की प्राकृतिक शोभा का वर्णन करते हुए कहते हैं
व्याख्या- यह पृथ्वी सबके सो जाने पर नित्यप्रति आकाश में नक्षत्ररूपी मोतियों को फैला देती है और सूर्य सदा ही प्रातः काल हो जाने पर उनको बटोरकर रख लेता है। वह सूर्य.भी.नक्षत्ररूपी मोतियों को संध्यारूपी सुन्दरी को देकर अपने लोक चला जाता है। अतः नक्षत्ररूपी मोतियों को धारण करके उस सन्ध्यारूपी सुन्दरी का शून्य-सा श्यामल रूप झिलमिल करता हुआ अति दीप्त हो जाता है।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. प्रकृति वर्णन में मानवीकरण किया गया है।
  2. अलंकार-अतिशयोक्ति अलंकार । भाषा-शुद्ध परिमार्जित खड़ीबोली। गुण-प्रसाद, शैली-वर्णनात्मक। छन्द-मात्रिक।

7. सरल तरल जिन तुहिन ……………………………………. सदय भाव से सेती है।
शब्दार्थ- तुहिन = ओस, पाला। सेती है = रक्षा करती है। अदय = निर्दय।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित खण्डकाव्य ‘पंचवटी’ से लिया गया है।
प्रसंग- पंचवटी में लक्ष्मण शिला पर विराजमान हो प्रकृति के रूप और उनके व्यवहार के सम्बन्ध में सोच रहे हैं। वे कहते हैं
व्याख्या- कभी तो प्रकृति पृथ्वी पर जिन ओस के कणों से हँसती और प्रसन्न होती-सी प्रतीत होती है उन्हीं ओस के कणों के माध्यम से वह हमारे अत्यन्त ही निकट और आत्मीय हो कष्टों से व्यथित होकर रुदन करती-सी प्रतीत होती है अर्थात् कभी ओस की बूंदें मोती-सी चमकदार प्रकृति की प्रसन्नता को व्यक्त करती हैं और कभी आँख के आँसुओं के रूप में हमारे दुःखों से दुःखित हो रोती हुई-सी प्रतीत होती हैं। कभी तो यह इतनी निर्दय और निष्ठुर हो जाती हैं कि वह अनजाने में हमारे द्वारा की गयी भूलों के कारण हमें कठोर से कठोर दण्ड तक ने सकती हैं; जैसे-भूकम्प, अतिवृष्टि, बाढ़ आदि। कभी इतनी दयालु हो जाती हैं। कि बूढों की भी बच्चों की भाँति दया-भाव से सेवा करती हैं।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. इस पद में प्रकृति के शिव और अशिव दोनों रूपों का वर्णन है।
  2. यहाँ पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है जो छायावादी कविता का प्रभाव है।
  3. ‘हँती हरित होती है’, ‘अति आत्मीयता से सेती है’ अनुप्रास अलंकार है। छन्द- मात्रिक।भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली। रस- शृंगार । गुण- माधुर्य।

8. तेरह वर्ष ….………………………………….किस धन की?
शब्दार्थ- तात = पिताजी। आर्त = दु:ख से। इन जन को = मुझे।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘पंचवटी’ से उद्धृत है।
प्रसंग- कवि ने वनवास के 13 वर्ष व्यतीत हो जाने पर लक्ष्मण के घर लौटने की प्रसन्नता का वर्णन किया है।
व्याख्या- वनवास के समय यद्यपि तेरह वर्ष व्यतीत हो चुके हैं परन्तु सम्पूर्ण बात कल की बात की तरह हृदय पटल पर अंकित है, जबकि पिताजी हमको वन में आते देख दुःख से अचेत हो गये थे। वनवास की अवधि की समाप्ति निकट है परन्तु मुझे इसँ वनवास से बढ़कर और किस धन की प्राप्ति हो सकती है। काव्यगत सौन्दर्य

  1. भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली । रस- शान्त । गुण- प्रसाद । छन्द- मात्रिक। अलंकार- उत्प्रेक्षा, रूपक।

9. और आर्य को?…..………………………………….. यह नरलोक?
शब्दार्थ- प्रजार्थ = प्रजा के लिए। लोकोपकार = संसार की भलाई।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘पंचवटी’ से उद्धृत है।
प्रसंग- कवि कहता है कि लक्ष्मण कल्पना कर रहे हैं कि जब रामचन्द्र को राज्य मिल जायेगा तो वे अपने कर्तव्य में इतने व्यस्त हो जायेंगे कि हमें भूल जायेंगे। राम के जन कल्याण में लगे होने के कारण इसको हम बुरा नहीं मानेंगे।
व्याख्या- आर्य राम को इससे अधिक सुख और क्या हो सकता है? रामचन्द्र जी सिंहासन पर बैठकर प्रजा के सुख के लिए राज्य करेंगे। उस कार्य में व्यस्त होकर हमको भी भुला देने को विवश हो जायेंगे। परन्तु संसार की भलाई के विचार से हमको इसमें तनिक भी दुःख नहीं होगा, किन्तु क्या यह मनुष्य समाज राजा का आश्रय न लेकर अपनी भलाई स्वयं नहीं कर सकता।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. भाषा- खड़ीबोली है।
  2. रस- शान्त। गुण- माधुर्य । छन्द- मात्रिक। इसमें यह भाव दर्शाया गया है कि क्या मनुष्य बिना किसी के सहारे अपनी भलाई स्वयं नहीं कर सकता? अलंकार-उत्प्रेक्षा।

प्रश्न 2. मैथिलीशरण गुप्त की जीवनी एवं रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा मैथिलीशरण गुप्त की साहित्यिक सेवाओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
अथवा मैथिलीशरण गुप्त के साहित्य एवं जीवन-परिचय पर प्रकाश डालिए।

मैथिलीशरण गुप्त
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म- सन् 1886 ई०, चिरगाँव जिला झाँसी, (उ० प्र०)। मृत्यु- सन् 1964 ई०।
रचनाएँ- मौलिक काव्य-‘भारत-भारती’, ‘जयद्रथ-वध’, ‘पंचवटी’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘द्वापर’, ‘सिद्धराज’ आदि। 
अनूदित-‘मेघनाद-वध’, ‘वीरांगना’, ‘विरहिणी-ब्रजांगना’, ‘प्लासी का युद्ध’, ‘रुबाइयाँ’, ‘उमर-खैयाम’।
काव्यगत विशेषताएँ
वर्य-विषय- ‘राष्ट्रप्रेम’, ‘आर्य संस्कृति से प्रेम’, ‘प्रकृति-प्रेम’,’मानव हृदय चित्र’, ‘नारी महत्त्व’।
भाषा- शुद्ध तथा परिष्कृत खड़ीबोली।
शैली- प्रबन्धात्मक, उपदेशात्मक, गीतिनाट्य तथा भावात्मक।
रस तथा अलंकार- प्रायः सभी। विप्रलम्भ श्रृंगार में विशेष सफलता मिली है।

  • जीवन-परिचय- राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म चिरगाँव जिला झाँसी में सन् 1886 ई० में हुआ था। गुप्तजी के पिता का नाम सेठ रामचरण जी था जो अत्यन्त ही सहृदय और काव्यानुरागी व्यक्ति थे। पिता के संस्कार पुत्र को पूर्णतः प्राप्त थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा प्रायः घर पर ही हुई थी । हिन्दी के अतिरिक्त इन्होंने संस्कृत, बंगला, मराठी आदि भाषाओं का अध्ययन किया था। आचार्य पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के सम्पर्क में आने से इनकी रचनाएँ सरस्वती में प्रकाशित होने लगीं। द्विवेदीजी की प्रेरणा से ही इनके काव्य में गम्भीरता एवं उत्कृष्टता का विकास हुआ। इनके काव्य में राष्ट्रीयता की छाप है। गाँधी दर्शन से आप विशेष प्रभावित हैं। इन्होंने असहयोग आन्दोलन में जेल यात्रा भी की है। आगरा विश्वविद्यालय ने इनकी हिन्दी सेवा पर सन् 1948 ई० में डी० लिट्० की सम्मानित उपाधि से विभूषित किया। ‘साकेत’ नामक प्रबन्ध काव्य पर इनको मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिल चुका है। आप स्वतन्त्र भारत के राज्यसभा में सर्वप्रथम सदस्य मनोनीत किये गये थे। आपकी मृत्यु सन् 1964 ई० में हो गयी।
  • रचनाएँ– गुप्तजी की रचनाएँ दो प्रकार की हैं- (1) मौलिक एवं (2) अनूदित ।
    1. मौलिक- जयद्रथ-वध, भारत-भारती, पंचवटी, नहुष आदि।
    2. अनूदित रचनाएँ- मेघनाद वध, वीरांगना, स्वप्नवासवदत्ता आदि।’साकेत’ आधुनिक युग का प्रसिद्ध महाकाव्य है। इसमें रामकथा को एक नये परिवेश में चित्रित कर उपेक्षित उर्मिला के चरित्र को उभारा गया है। यशोधरा में बुद्ध के चरित्र का चित्रण हुआ है। यह एक चम्पू काव्य है जिसमें गद्य और पद्य दोनों में रचना की गयी है। भारत-भारती गुप्त जी की सर्वप्रथम खड़ीबोली की राष्ट्रीय रचना है जिसमें देश की अधोगति को बड़ा ही मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी चित्रण किया गया है।

काव्यगत विशेषताएँ

  • (क) भाव-पक्ष-
    1. गुप्तजी की कविता के वर्ण्य-विषय मुख्यतः भक्ति, राष्ट्र-प्रेम, भारतीय संस्कृति और समाजसुधार हैं।
    2. इनकी धार्मिकता में संकीर्णता का आरोप नहीं किया जा सकता है।
    3. ये भारतीय संस्कृति के सच्चे पुजारी हैं।
    4. गुप्तजी लोक सेवा को सर्वोपरि मानते हैं।
    5. इनके हृदय में नारी जाति के प्रति अपार आदर और सहानुभूति है।
    6. राष्ट्रप्रेम तो गुप्तजी के शब्द-शब्द में भरा है।
    7. इनकी राष्ट्रीयता पर गाँधीवाद की पूरी छाप है।
    8. इनकी रचनाओं में समाज सुधारवादी दृष्टिकोण भी दिखलाई पड़ता है।
    9. गुप्तजी के प्रकृति-चित्रण में सरसता एवं सजीवता है।
    10. मनोभावों के चित्रण में गुप्तजी को विशेष दक्षता प्राप्त है।
    11. संवादों की अभिव्यक्ति अत्यन्त ही सरल तर्क-व्यंग्य से मुक्त है।
  • (ख) कला-पक्ष- भाषा और शैली- गुप्तजी की भाषा शुद्ध परिष्कृत खड़ीबोली है जिसका विकास धीरे-धीरे हुआ है। इनकी प्रारम्भिक काव्य रचनाओं में गद्य की भाँति शुष्कता है, किन्तु बाद की रचनाओं में सरसता और मधुरता अपने आप आ गयी है। इनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। शब्द-चयन में भी ये काफी कुशल हैं। उसमें मुहावरे और लोकोक्तियों के प्रयोग से चार चाँद लग गये हैं। भाषा में प्रसाद गुण की प्रधानता है। कहीं-कहीं तुक मिलाने के प्रयास में इन्हें शब्दों को विकृत भी करना पड़ा है जो कभी-कभी खटक जाता है।
    काव्य-रचना की दृष्टि से गुप्तजी की शैली चार प्रकार की है –
    भावात्मक शैली- झंकार तथा अन्य गीति काव्य। उपदेशात्मक शैली- भारत-भारती, गुरुकुल आदि। गीति-नाट्य शैली- यशोधरा, सिद्धराज, नहुष आदि। प्रबन्धात्मक शैली- साकेत, पंचवटी, जयद्रथ-वध आदि।
  • रस-छन्द-अलंकार- गुप्तजी के काव्य में वीर, रौद्र, हास्य आदि सभी रसों का सुन्दर परिपाक हुआ है। गुप्तजी ने नये और पुराने दोनों प्रकार के छन्द अपनाये हैं। हरिगीतिका गुप्तजी का अत्यन्त ही प्रिय छन्द है। गुप्तजी की कविता में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, विषयोक्ति, संदेह, यमक, श्लेष, अनुप्रास आदि अलंकारों की प्रधानता है। विशेषण-विपर्यय और मानवीकरण आदि नये ढंग के अलंकार भी इनकी रचनाओं में छायावाद प्रभाव के कारण आ गये हैं।
  • साहित्य में स्थान- गुप्तजी आधुनिक हिन्दी काव्य-जगत् के अनुपम रत्न हैं। ये सही अर्थों में राष्ट्रकवि थे। इन्होंने अपनी प्रेरणादायक और उद्बोधक कविताओं से राष्ट्रीय जीवन में चेतना का संचार किया है।

प्रश्न 3. ‘पंचवटी’ शीर्षक कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
         ‘पंचवटी’ कविता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘पंचवटी’ खण्डकाव्य से उधृत है। इसमें पंचवटी के प्राकृतिक सौन्दर्य का जीवन्त वर्णन है। प्रकृति-वर्णन के अतिरिक्त श्रीराम के विशाल व्यक्तित्व का भी इसमें सजीव चित्रण है। कविता का सारांश निम्न प्रकार है –
             सारांश- चन्द्रमा की स्वच्छ चाँदनी पृथ्वी तल पर तथा आकाश में फैली हुई है। पृथ्वी पर हरित-दूब उगी हुई है। मन्द पवन के झोंकों से वृक्ष मानो मस्त होकर झूम रहे हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण पंचवटी पर श्रीराम की कुटी बनी हुई है। इस कुटी के सामने श्वेत शिला पर कामदेव की भाँति धनुष धारण कर लक्ष्मण योगी रूप में कुटी की रक्षा में सम्पूर्ण राज्य-सुखों को त्याग कर लीन हैं। आज तीनों लोकों की रानी सीता ने इस कुटी को अपना लिया है। रानी सीता रघुवंश की लाज हैं। इसलिए लक्ष्मण इस कुटी का प्रहरी वीर-वेश धारण किये हुए हैं।
            प्रकृति-सुन्दरी यहाँ अपना नाटक पूरा करती है। इसलिए वह प्रतिदिन शाम को पृथ्वी पर सुन्दर मोती (ओस-कण) बिखेर देती है और सूर्य सबेरा होते ही उन्हें समेट लेता है।
इस प्रकार वन में राम, लक्ष्मण और सीता को रहते हुए तेरह वर्ष बीत चुके। श्रीराम प्रजा के हित के लिए अतिशीघ्र राज्य ग्रहण करेंगे और लोक का उपकार करेंगे। राज्यभार ग्रहण कर वे अति व्यस्त हो जायेंगे। व्यस्तता में वे हमें भी भूल जायेंगे परन्तु लोकोपकार की भावना में ऐसा होने पर हमें कोई दु:ख नहीं होगा। इसी समय लक्ष्ण के मन में विचार उठता है कि क्या संसार के लोग स्वयं अपना उपकार नहीं कर सकते?

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ‘पंचवटी’ की प्रकृति का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर- गुप्तजी की कविताओं में प्रकृति का सजीव चित्रण देखने को मिलता है। उन्होंने प्रकृति के मोहक चित्र अपने काव्य में प्रस्तुत किये हैं। पंचवटी’ में तो प्रकृति-चित्रण साकार हो उठा है। वे चाँदनी रात का वर्णन करते हुए कहते हैं कि ”चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में स्वच्छ चाँदी बिछी हुई हैं, अवनि और अम्बर तल में।” पृथ्वी पर निकली हरी घास की नोकें हिल रही हैं, मानो पृथ्वी उन्हीं के द्वारा अपनी प्रसन्नता को प्रकट कर रही है। रात्रि के समय चारों ओर चाँदनी छिटकी हुई है और वातावरण शान्त है। प्रात:काल सूर्य के निकलने पर ओस की बूंदें गायब हो जाती हैं। सन्ध्या के समय तारे निकल आते हैं, जिससे उसको सौन्दर्य और अधिक बढ़ जाता है।

प्रश्न 2. ‘प्रहरी बना हुआ वह’ (लक्ष्मण) कुटीर के किस धन की रक्षा कर रहा है?
उत्तर- लक्ष्मण जी प्रहरी बनकर सीतारूपी महान् धन की रक्षा कर रहे हैं।

प्रश्न 3. लक्ष्मण संसार के मनुष्यों से क्या करने की आशा रखते हैं?
उत्तर- लक्ष्मण जी अपेक्षा करते हैं कि संसार के सभी व्यक्ति लोकोपकार में लगे रहें, अपने हित का चिन्तन करें और अपने हित के लिए दूसरों पर निर्भर न रहें।

प्रश्न 4. पंचवटी’ कविता में निहित मूल भाव से सम्बन्धित चार वाक्य लिखिए।
उत्तर- चन्द्रमा की स्वच्छ चाँदनी पृथ्वी तल और आकाश में छायी हुई है। पृथ्वी पर हरी-भरी दूब उगी हुई है। मन्द पवन के झोंकों से पेड़ मानो मस्त होकर झूम रहे हैं। इस प्रकार प्राकृतिक सौन्दर्य से भरी हुई पंचवटी में श्रीराम की कुटी बनी हुई है। कवि के मन में प्रश्न उठता है कि इस श्वेत शिला पर कामदेव की भाँति सुन्दर यह कौन धनुर्धारी योगी बैठा जाग रहा है? यह योगी सम्पूर्ण राज्य-सुखों को त्यागकर इस कुटी में कौन-से धन की रक्षा कर रहा है?

प्रश्न 5. मैथिलीशरण गुप्त की भाषा-शैली लिखिए।
उत्तर- गुप्तजी ने शुद्ध, साहित्यिक एवं परिमार्जित खड़ीबोली में रचनाएँ की हैं। इनकी भाषा सुगठित तथा ओज एवं प्रसाद गुण से युक्त है। इन्होंने अपने काव्य में संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू एवं प्रचलित विदेशी शब्दों के भी प्रयोग किये हैं। इनके द्वारा प्रयुक्त शैलियाँ हैं-प्रबन्धात्मक शैली, उपदेशात्मक शैली, विवरणात्मक शैली, गीति शैली तथा नाट्य शैली। वस्तुतः आधुनिक युग में प्रचलित अधिकांश शैलियों को गुप्तजी ने अपनाया है।

प्रश्न 6. सन्ध्या को सूर्य की विरामदायिनी क्यों कहा गया है?
उत्तर- सूर्य दिन भर आकाश मार्ग में चलता है। जब सन्ध्या होती है तब सूर्य की यात्रा रुकती है। कवि कल्पना के अनुसार सूर्य विश्राम करता है। इस कारण सन्ध्या को सूर्य की विरामदायिनी कहा गया है। सूर्य के अतिरिक्त सन्ध्या पक्षियों, किसान आदि के लिए भी विरामदायिनी है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मैथिलीशरण गुप्त किस युग के कवि हैं?
उत्तर- मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युग के कवि हैं।

प्रश्न 2. मैथिलीशरण गुप्त की दो प्रमुख रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर- साकेत और यशोधरा।।

प्रश्न 3. ‘साकेत’ रचना पर गुप्तजी को कौन-सा पुरस्कार प्राप्त हुआ है?
उत्तर- ‘साकेत’ रचना पर गुप्तजी को ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्राप्त हुआ।

प्रश्न 4. ‘साकेत’ की विषय-वस्तु क्या है?
उत्तर- ‘साकेत’ में लक्ष्मण और उर्मिला के त्याग को दर्शाया गया है।

प्रश्न 5. निम्नलिखित में से सही उत्तर के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाइए-
उत्तर-

(अ) पंचवटी में श्रीराम की कुटी बनी हुई है।                         (√)
(ब) सूर्य के निकलने पर ओस की बूंदें गायब हो जाती हैं।      (√)
(स) मैथिलीशरण गुप्त भारतेन्दु युग के कवि हैं।                    (×)
(द) ‘सखि, वे मुझसे कहकर जाते’ यह यशोधरा का कथन है। (√)

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
(अ) चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल-थल में।
(ब) जाग रहा ये कौन धनुर्धर जबकि भुवन-भर सोता है?
(स) मर्त्यलोक मालिन्य मेटने स्वामि संग जो आयी है।
उत्तर-

  • (अ) काव्यगत विशेषताएँ- 
    1. पंचवटी का सौन्दर्य वर्णित है।
    2. भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली।
    3. शैली- वर्णनात्मक।
    4. गुण- ओज।
    5. अलंकार- अनुप्रास, पुनरुक्ति।
  • (ब) काव्यगत विशेषताएँ-
    1. कवि ने लक्ष्मण की कर्तव्यनिष्ठा का वर्णन किया है।
    2. भाषा में तत्सम तथा तद्भव शब्दों का सुन्दर समन्वय हुआ है।
  • (स) काव्यगत विशेषताएँ- 
    1. यहाँ भारतीय नारी के महान् आदर्शों का चित्रण किया गया है कि वह सुख-दुःख में अपने पति को ही साथ देती है। सीताजी को तीन लोकों की ‘श्री’ कहा गया है।
    2. भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली।
    3. शैली- गीतात्मक एवं चित्रात्मक।
    4. अलंकार- अनुप्रास, रूपक।
    5. गुण- माधुर्य ।
    6. रस- शान्त।
    7. छन्द- मात्रिक।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में सन्धि-विच्छेद कीजिए तथा सन्धि का नाम बताइए-
प्रजार्थ, लोकोपकार, कुसुमायुध, निरानन्द।

उत्तर-
प्रजार्थ = प्रजा + अर्थ  = दीर्घ सन्धि
लोकोपकार = लोक + उपकार =  गुण सन्धि
कुसुमायुध = कुसम + आयुध =  
दीर्घ सन्धि
निरानन्द = निर + आनन्द = दीर्घ सन्धि

प्रश्न 3. निम्नलिखित पदों में समास विग्रह करके समास का नाम लिखिए-
पंचवटी, वीरवंश, सभय, कुसुमायुध, ध्वनि संकेत, नरलोक।
उत्तर-
पंचवटी = पाँच वटों का समाहार = बहुब्रीहि समास
वीरवंश = वीरों का वंश = 
सम्बन्ध तत्पुरुष
सभय = भय से युक्त  = अव्ययी भाव
कुसुमायुध = कुसुम है आयुध जिसके =  बहुब्रीहि समास
वह (कामदेव)
ध्वनि संकेत = ध्वनि का संकेत = षष्ठी तत्पुरुष समास
नरलोक  = नरों का लोक =तत्पुरुष समास

प्रश्न 4. ‘पंचवटी’ शीर्षक कविता से अनुप्रास अलंकार का कोई एक उदाहरण बताइए।
उत्तर- चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में।

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 6  मैथिलीशरण गुप्त (काव्य-खण्ड) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 6  मैथिलीशरण गुप्त (काव्य-खण्ड), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This is a free online math calculator together with a variety of other free math calculatorsMaths calculators
+