UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 17 मानव अस्थि-संस्थान तथा सन्धियाँ
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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
अस्थि-संस्थान या अस्थि-तन्त्र से आप क्या समझती हैं? अस्थि-संस्थान (कंकाल) का क्या कार्य है? [2007, 09, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17]
या
मनुष्य के शरीर में अस्थि-संस्थान (कंकाल-तन्त्र) की क्या उपयोगिता है? [2007, 09, 10, 11, 13, 14, 15, 17, 18]
या
कंकाल-तन्त्र (अस्थि-संस्थान) या अस्थि-पंजर की हमारे शरीर में क्या उपयोगिता है? मानव शरीर में कुल कितनी अस्थियाँ होती हैं? [2008, 09, 10 ]
या
यदि शरीर में हड्डियाँ न होतीं तो क्या हानि होती? [2013]
उत्तर:
अस्थि-संस्थान का अर्थ एवं कार्य
यह सत्य है कि बाहर से देखने पर शरीर की हड्डियाँ या अस्थियाँ दिखाई नहीं देतीं, परन्तु यदि शरीर की त्वचा तथा मांसपेशियाँ आदि हटा दी जाएँ, तो अन्दर केवल अस्थियों का ढाँचा मात्र रह जाएगा। इसके अतिरिक्त यदि ऊपर से ही शरीर के किसी भाग को हाथ से टटोला जाए, तो त्वचा के नीचे मांस और मांस के नीचे एक प्रकार की कठोर रचना महसूस होती है। ये कठोर रचना अस्थियाँ ही हैं। शरीर में विभिन्न अस्थियाँ आपस में व्यवस्थित रूप से सम्बद्ध रहती हैं। शरीर की सभी अस्थियाँ परस्पर सम्बद्ध होकर ही कार्य करती हैं। शरीर में अस्थियों की इस व्यवस्था को ही अस्थि-संस्थान या कंकाल-तन्त्र (Skeletal system) कहते हैं। अस्थि-संस्थान ही शरीर को दृढ़ता, आकृति तथा गति प्रदान करता है। अस्थि-संस्थान में अनेक अस्थियाँ तथा अस्थि-सन्धियाँ पाई जाती हैं।
कंकाल अथवा अस्थि-संस्थान की उपयोगिता
हमारे शरीर में उपस्थित लगभग 206 अस्थियाँ सम्मिलित रूप से कंकाल अथवा अस्थि-संस्थान का निर्माण करती हैं। अस्थि-संस्थान हमारे शरीर का एक निश्चित ढाँचा है, जिसकी उपयोगिता निम्नवर्णित हैं
(1) निश्चित आकार प्रदान करना:
कंकाल अथवा अस्थि-संस्थाने हमारे शरीर को एक निश्चित आकार प्रदान करता है। अस्थियों के अभाव में मानव-शरीर मांस के एक लोथड़े के समान ही होता, जो न तो सीधा खड़ा हो सकता और न ही इसका कोई स्थिर आकार ही होता। वास्तव में अस्थि-संस्थान के द्वारा ही व्यक्ति के शरीर की लम्बाई एवं चौड़ाई का निर्धारण होता है।
(2) दृढता प्रदान करना:
अस्थि-संस्थान शरीर को भली-भाँति साधे रहता है। शरीर के लगभग सभी भागों को सुदृढ़ रखने में अस्थियों का भरपूर योगदान रहता है। अस्थि-संस्थान के ही कारण हमारा शरीर बाहरी आघातों को सहन कर लेता है। अस्थि-संस्थान के माध्यम से ही हम भारी-से-भारी बोझ को भी उठा लिया करते हैं।
(3) कोमल अंगों को सुरक्षा प्रदान करना:
भिन्न-भिन्न स्थानों पर अस्थियाँ कोमल अंगों को कवच प्रदान करती हैं; जैसे–पसलियाँ फेफड़ों व हृदय को, मेरुदण्ड सुषुम्ना नाड़ी को तथा कपाल मस्तिष्क को सुरक्षा प्रदान करता है।
(4) पेशियों को संयुक्त होने का स्थान प्रदान करना:
विभिन्न स्थानों पर पेशियाँ अस्थियों से जुड़ी रहती हैं। पेशियाँ अस्थियों को सबल एवं सचल बनाती हैं।
(5) शरीर को गतिशीलता प्रदान करना:
अस्थि-संस्थान में अनेक महत्त्वपूर्ण स्थानों पर सन्धियाँ होती हैं। अस्थियों, सन्धियों एवं पेशियों के पारस्परिक सहयोग से शरीर व इसके अन् गतिशील होते हैं।
(6) लाल एवं श्वेत रक्त कणिकाओं का निर्माण:
प्रत्येक अस्थि के मध्य भाग में अस्थि-मज्जा होती है। अस्थि-मज्जा में रुधिर की लाल एवं श्वेत कणिकाओं का निर्माण होता है।
(7) श्वसन में सहयोग देना:
ट्रैकिया अथवा वायुनलिका के छल्ले एवं पसलियाँ फेफड़ों को फूलने के संकुचन करने में सहायता प्रदान करती हैं।
(8) श्रवण में सहयोग देना:
कान की कॉर्टिलेज अस्थियाँ श्रवण क्रिया में सहयोग प्रदान करती हैं।
(9) नेत्रों को सहयोग देना:
हमारे नेत्र कपाल में बने अस्थि गड्ढों में सुरक्षित रहते हैं। इनमें उपस्थित पेशियाँ नेत्रों की गति को नियन्त्रित करती हैं।
(10) उत्तोलक का कार्य करना:
बोझा ढोते एवं सामान उठाते समय मेरुदण्ड एक उत्तम उत्तोलक का कार्य करता है।
अस्थियों (हड्डियों) की बनावट (रचना)
अस्थियाँ मानव शरीर का सबसे कठोर भाग होती हैं। मुख्य अस्थियों से भिन्न कुछ उपास्थियाँ मुलायम भी होती हैं जिन्हें कार्टिलेज कहते हैं। अस्थियों का निर्माण जीवित कोशिकाओं से होता है। अस्थियाँ सफेद रंग की तथा छूने में कठोर होती हैं। अस्थियाँ भीतर से खोखली होने के कारण कठोर होते हुए भी हल्की होती हैं। अस्थियों में एक नली होती है जिसके अन्दर एक गूदेदार पदार्थ भरा होता है, जिसे अस्थिमज्जा (Bone marrow) कहते हैं। जिस खोखले स्थान पर यह अस्थि-मज्जा होती है, उसे अस्थि-गुहा कहते हैं। अस्थि-मज्जा में लाल और श्वेत रक्त कण बनते हैं। नली के चारों ओर असंख्य अस्थि-कोशिकाएँ होती हैं। ये कोशिकाएँ टूटी हुई अस्थि को जोड़ने में भी सहायक होती हैं। अस्थि-नली में रक्तवाहिनी और नाड़ी सूत्र होते हैं। इसी कारण जीवित मनुष्य की अस्थि का रंग कुछ गुलाबीपन लिए होता है और मृत अवस्था में उसका रंग श्वेत हो जाता है। अस्थियां एक आवरण से ढकी रहती हैं, जिसे अस्थिच्छद कहते हैं। यह आवरण बहुत बड़ा होता है तथा मांसपेशियों से जुड़ा रहता है। अस्थियों का निर्माण विभिन्न खनिजों से होता है। इनमें मुख्य हैं-कैल्सियम फॉस्फेट, कैल्सियम कार्बोनेट तथा मैग्नीशियम फॉस्फेट। इनमें सर्वाधिक मात्रा कैल्सियम फॉस्फेट की ही होती है।
अस्थियों का विकास जीवन के आरम्भ से ही होना शुरू हो जाता है। भ्रूणावस्था में पूरा-का-पूरा कंकाल उपास्थि का ही होता है, परन्तु जन्म के उपरान्त इसका अधिकांश भाग हड्डी में परिवर्तित हो जाता है। यह परिवर्तन उपास्थि के मैट्रिक्स (Matrix) में चूने तथा फॉस्फोरस के लवणों के जमने या निक्षेपण (Deposition) से होता है और इस क्रिया को अस्थि-भवन कहते हैं।
अस्थि-संस्थान के भाग
मानव अस्थि-संस्थान को निम्नलिखित तीन मुख्य भागों में विभक्त किया जा सकता है
(1) सिर अथवा खोपड़ी:
खोपड़ी में कपाल (जिसमें मस्तिष्क सुरक्षित रहता है) तथा आनन (चेहरा) सम्मिलित रहते हैं।
(2) धड़:
वक्ष एवं उदर धड़ के दो भाग होते हैं। वक्ष में रीढ़ की अस्थि, उरोस्थि, हॅसली की अस्थियाँ, कन्धे की अस्थियाँ, पसलियाँ तथा नितम्ब की अस्थियाँ आदि होती हैं, जबकि उदर . अस्थिविहीन होता है।
(3) शाखाएँ:
शाखाओं में दो जोड़े होते हैं-ऊर्ध्व शाखाएँ (भुजाएँ) तथा अधोशाखाएँ (डाँगें)।
प्रश्न 2:
मानव कपाल की संरचना का सचित्र एवं संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
या
सिर की अस्थियों की बनावट और कार्य का चित्र सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सिर अथवा खोपड़ी
मानव खोपड़ी में कुल 22 अस्थियाँ होती हैं जिनमें से 14 चेहरे में तथा शेष ऊपरी भाग में स्थित होती हैं। खोपड़ी के दो प्रमुख भाग होते हैं
(1) कपाल (क्रेनियम) तथा
(2) चेहरा (फेस)
कपाल की अस्थियाँ
कपाल ब्रेन बॉक्स की तरह है। यह हमारे शरीर में सिर के ऊपरी भाग में स्थित होता है। यह अन्दर से खोखला तथा गुम्बद की तरह होता है। इसमें हमारा मस्तिष्क सुरक्षित रहता है। कपाल की रचना 8 चपटी हड्डियों के द्वारा होती है। ये हड्डियाँ आपस में मजबूती से तथा न हिलने-डुलने वाली
सन्धियों अर्थात् अचल सन्धियों से जुड़ी होती हैं। कपाल में निम्नलिखित 8 हड्डियाँ होती हैं
(क) ललाटास्थि (Frontal Bone):
यह माथा बनाती है और सामने वाले भाग में अकेली ही स्थित होती है। इसी में हमारी आँखों के दो गड्ढे भी होते हैं।
(ख) पार्शिवकास्थि (Parietal Bones):
ये संख्या में दो तथा ललाटास्थियों के ठीक नीचे मध्य में आपस में जुड़ी हुई अस्थियाँ होती हैं और कपाल का बीच का ऊपरी भाग बनाती हैं, जोकि गुम्बद की तरह होता है। ये दोनों कानों की तरफ फैली होती हैं तथा ये बड़ी हड्डियाँ होती हैं।
(ग) पाश्चादास्थि (Occipital Bones):
यह हड्डी भी पार्शिवकास्थि से जुड़ी हुई उसके ठीक पीछे स्थित होती है और खोपड़ी का पश्च भाग बनाती है। इस हड्डी में खोपड़ी का एक बड़ा छिद्र होता है, जिसे महाछिद्र कहते हैं। रीढ़ की हड्डी के अन्दर स्थित सुषुम्ना इसी छिद्र से होकर मस्तिष्क के साथ जुड़ी होती है। इसमें महाछिद्र के दोनों ओर इधर-उधर दो महत्त्वपूर्ण उभार होते हैं जो खोपड़ी को रीढ़ की हड्डी के साथ जोड़ने में सहायक होते हैं। वास्तव में इन्हीं उभारों पर खोपड़ी टिकी रहती है।
(घ) शंखास्थियाँ (Temporal Bones):
ये हड्डियाँ संख्या में दो होती हैं और सिर के दोनों ओर कनपटियों को बनाती हैं। कान भी इन्हीं अस्थियों पर स्थित होते हैं। प्रत्येक कान का छिद्र भी इन्हीं अस्थियों पर होता है।
(ङ) जतुकास्थि (Sphenoid Bones):
यह दोनों शंखास्थियों के बीच कपाल का निचला तल बनाती है। यह आगे की तरफ ललाट से जुड़ी होती है और पंख की तरह होती है। सम्पूर्ण रूप में इसका आकार एक तितली की तरह दिखाई पड़ता है।
(च) झरझरास्थि या बहु छिद्रिकास्थि (Ethmoid Bone):
यह संख्या में एक होती है और कपाल का निचला तल बनाती है। यह दोनों आँखों के कोटरों के बीच स्थित होती है। इस हड्डी में अनेक छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। इन छिद्रों से होकर मस्तिष्क से निकलने वाली तन्त्रिका-तन्त्र की नाड़ियाँ, रक्त की नलिकाएँ आदि निकलती हैं। इस हड्डी से नाक के अन्दर के भीतरी भाग की संरचना भी बनती है।
चेहरे की अस्थियाँ
मानव का चेहरा निम्नलिखित 14 हड्डियों से निर्मित होता है
(क) अधोहनु या निचले जबड़े की अस्थियाँ (Lower Jaw Bones):
यह जबड़ा चेहरे का सबसे निचला भाग हैं। यह अत्यधिक मजबूत तथा काफी बड़ी हड्डी का बना होता है। इसका आधार घोड़े की नाल की तरह होता है। इसको मेण्डिबल भी कहते हैं। ठोढ़ी भी इसी हड्डी के द्वारा बनती है। यह हड्डी निचले जबड़े को हिला-डुला सकती है; जिसके द्वारा भोजन का भक्षण, पीसना-चबाना इत्यादि कार्य होते हैं। इस हड्डी में ऊपर की ओर 16 गड्ढे होते हैं, जिनमें 16 दाँत फिट रहते हैं।।
(ख) ऊर्ध्व-हनु या ऊपरी जबड़े की अस्थियाँ (Upper Jaw Bones):
यह दो हड्डियों से मिलकर बनता है। दोनों हड्डियों में से एक दाहिनी तथा एक बाईं ओर होती है तथा नाक के ठीक नीचे मध्य में जुड़ी रहती है। इसी हड्डी के द्वारा मुँह के अन्दर तालु का अगला भाग भी बनता है। इन दोनों हड्डियों को मैक्सिलरी अस्थियाँ कहते हैं। प्रत्येक हड्डी में नीचे तथा आगे की ओर 8-8 गड्ढे होते हैं, जिनमें दाँत लगे रहते हैं।
(ग) कपालास्थि (Check Bones):
ये संख्या में दो होती हैं तथा कान से लेकर आँख के नीचे, नाक तक फैली रहती हैं और आकार में चपटी होती हैं। ये गाल के ऊपरी भाग का आकार बनाती हैं, इसलिए इन्हें कपोलास्थियाँ कहते हैं।
(घ) तालुकास्थियाँ (Palate Bones):
इनकी संख्या भी दो होती है। ये छोटी हड्डियाँ हैं और तालु के पिछले हिस्से में लगी होती हैं व आगे की ओर मैक्सिलरी हड्डी से जुड़ी रहती हैं अर्थात् तालु का अगला भाग मैक्सिलरी हड्डी से तथा पिछला भाग तालुकास्थि से बनता है।
(ङ) नासास्थियाँ (Nasal Bones):
इनकी संख्या भी दो होती है। ये हड्डियों भी चपटी होती हैं। इनका आकार लगभग चौकोर होता है और ये नाक के ऊपरी भाग का कठोर कंकाल बनाती हैं।
(च) स्पंजी या टरबाइनल अस्थियाँ (Spongy Bones):
ये संख्या में दो होती हैं। ये हड्डियाँ विशेष सलवटदार तथा ऐठी हुई होती हैं जो नाक के भीतरी भाग में स्थित होती हैं। इसी मार्ग से होकर वायु आती-जाती है; अतः ये श्वसन मार्ग का निर्माण करती हैं। नाक के अन्दर इन्हें उँगलियों से टटोलकर देखा जा सकता है।
(छ) अश्रु अस्थियाँ (Lachrymal Bones):
इनकी संख्या भी दो होती है। ये हड्डियाँ छोटी तथा छिद्रयुक्त होती हैं। इनकी स्थिति नाक के ऊपरी भाग में नेत्र कोटरों के बीच में होती है। इन्हीं से होकर, छिद्र के द्वारा आँख से आँसू नाक के अन्दर पहुँचते हैं; इसीलिए इनको अश्रु अस्थियाँ भी कहते हैं।
(ज) सीरिकास्थि (Vomer Bone):
यह संख्या में एक होती है तथा नाके के अन्दर का परदा बनाती है और इसको दो भागों में बाँटती है।
प्रश्न 3:
मेरुदण्ड (रीढ़ की हड्डी) की रचना और उसके कार्य का वर्णन कीजिए। यो मेरुदण्ड दण्ड की क्या उपयोगिता है? [2013, 15]
उत्तर :
मेरुदण्ड की रचना और कार्य
मेरुदण्ड (Vertebral Column) पीठ की त्वचा के ठीक नीचे मांसपेशियों से घिरा हुआ पृष्ठ-मध्य रेखा पर स्थित होता है। यह गर्दन तथा धड़ दोनों को साधने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। इसे कशेरुक दण्ड भी कहते हैं। |
रचना:
मेरुदण्ड हमारी खोपड़ी के निचले भाग से लेकर शरीर के पिछले छोर तक स्थित छोटे-छोटे टुकड़ों के जुड़ने से बनी एक विशिष्ट रचना है। इन टुकड़ों या भागों को कशेरुकाएँ कहते हैं। छोटे बच्चे के मेरुदण्ड में कुल 33 कशेरुकाएँ होती हैं, युवावस्था में नीचे की नौ कशेरुकाओं में से पिछली पाँच मिलकर एक और अन्तिम चार मिलकर एक अस्थि बन जाती है। इस प्रकार कुल 26
कशेरुकाएँ रह जाती हैं। इनके मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं
(1) ग्रीवा कशेरुकाएँ (Cervical vertebrae):
इनकी संख्या 7 होती है और ये गर्दन के पिछले हिस्से में स्थित होती हैं। गर्दन को घुमाने, सीधा करने, झुकाने इत्यादि में ये कशेरुकाएँ मजबूती के साथ लचीलापन पैदा करती हैं, साथ-ही-साथ सम्पूर्ण कशेरुक दण्ड में स्थित सुषुम्ना का अग्रभाग इन्हीं कशेरुकाओं के अन्दर स्थित होता है।
(2) वक्षीय कशेरुकाएँ (Thoracic Vertebrae):
इनकी संख्या 12 होती है और ये वक्षीय प्रदेश में पृष्ठ भाग में ग्रीवा कशेरुकाएँ स्थित होती हैं। ये वक्षीय कंकालं का पिछला तथा मजबूत हिस्सा बनाती हैं। सामने की ओर अन्य हड्डियाँ स्थित होने के कारण वक्षीय स्थल बहुत अधिक लचीला नहीं होता है, फिर भी वक्ष कशेरुकाएँ आवश्यकतानुसार यह झुक सकता है।
(3) कटि कशेरुकाएँ (Lumber Vertebrae):
इनकी संख्या 5 होती है। ये प्रमुखत: उदर तथा कमर के भाग में स्थित कटि कशेरुकाएँ होती हैं। इस भाग में आगे सामने की ओर कोई हड्डी न होने के कारण, उदर का यह भाग प्रमुखतः अत्यन्त लचीला होता है। कूल्हे की कशेरुकाएँ
(4) त्रिक कशेरुकाएँ (Sacral Vertebrae):
इनकी । संख्या 5 होती है। कमर के निचले भाग में ये शरीर का लगभग निचला छोर बनाती हैं। 5 कशेरुकाएँ वयस्क होने तक आपस में पूर्णतः समेकित हो जाती हैं और त्रिभुजाकार हड्डी त्रिकास्थि करती हैं। त्रिकास्थि कूल्हे की हड्डी व श्रोणि- इसकी विभिन्न कशेरुकाएँ तथा सम्पूर्ण मेखला के मध्य में स्थित होती है। इसके कारण ही कुल्हे की कशेरुक दण्ड के झुकाव हड्डी के साथ मिलकर मनुष्य सीधा खड़ा हो सकता है।
(5) अनुत्रिक कशेरुकाएँ (Coccycal Vertebrae):
इनकी संख्या 4 होती है। यद्यपि मनुष्य में पूँछ दिखायी नहीं पड़ती, किन्तु पूँछ के अवशेष के रूप में यहाँ 4 कशेरुकाएँ उपस्थित होती हैं। ऐसा समझा जाता है कि मानव का विकास किसी पूंछ वाले जन्तु से हुआ है और उसके अवशेषों के रूप में कुछ कशेरुकाएँ रह गयी हैं। ये चार अस्थियाँ वयस्क अवस्था प्राप्त करते-करते आपस में समेकित होकर एक छोटी-सी संरचना अनुत्रिक बनाती हैं, जो श्रोणि-मेखला के मध्य से पीछे की ओर वास्तविक अन्तिम भाग बनाती है।
मेरुदण्ड के कार्य:
मेरुदण्ड मानव अस्थि-संस्थान का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
- मेरुदण्ड में फिसलने वाली सन्धि पाई जाती है, जिसके फलस्वरूप हम उठ-बैठ व चल पाते हैं।
- मेरुदण्ड की कशेरुकाओं के बीच में उपास्थि (Cartilage) की गद्दियाँ होती हैं, जिनके कारण कूदते समय मेरुदण्ड के टूटने का भय नहीं रहता है।
- मेरुदण्ड की प्रथम कशेरुका सिर के लिए आधारशिला का कार्य करती है।
- मेरुदण्ड के अन्दर सुषुम्ना नाड़ी सुरक्षित रहती है।
- मेरुदण्ड पीठ की ओर पसलियों को जुड़ने का स्थान प्रदान करती है।
- मेरुदण्ड सिर से धड़ तक सारे शरीर को साधे रखती है।
प्रश्न 4:
वक्ष-स्थल के अस्थि-संस्थान की संरचना का संक्षेप में परिचय दीजिए।
या
वक्ष तथा पसलियों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर :
वक्षीय कटहरा
गर्दन से लेकर जाँघ तक का भाग धड़ कहलाता है। मध्यपट द्वारा इसके दो स्पष्ट भाग हो जाते हैं
(1) वक्ष (Thorax) तथा
(2) उदर (Abdomen)
वक्षीय भाग में शरीर के अति कोमल एवं महत्त्वपूर्ण अंग (फेफड़े, हृदय आदि) स्थित होते हैं। कंकाल का वक्षीय भाग, जिसे वक्षीय कटहरा कहते हैं, इन अंगों को पूर्ण रूप से सुरक्षित रखता है। इसमें मेरुदण्ड, उरोस्थि तथा पसलियाँ आदि सम्मिलित हैं। इनका संक्षिप्त परिचय अग्रलिखित है
(1) रीढ़ की हड्डी या मेरुदण्ड (Vertebral Column):
वक्षीय कंकाल का पृष्ठ भाग अर्थात् पीठ का भाग इसी हड्डी के द्वारा बनता है। यह हड्डी, जो कई छोटी-छोटी छल्ले जैसी हड्डियों के पास-पास लगी होने से बनती है, अन्य हड्डियों को साधने, उन्हें उरोस्थिका स्थान देने आदि का कार्य करने के साथ ही अनेक पेशियों को भी स्थान देती है। यह हड्डी इस कंकाल का मजबूत पृष्ठ बनाती है। बनाती है।
(2) उरोस्थि (Sternum):
यदि हम अपने वक्ष में मध्य रेखा पसलियाँ पर अपनी उँगलियों से टटोलकर देखें तो एक दबा हुआ स्थान महसूस होता है। इसके नीचे छाती की हड्डी या उरोस्थि होती है। यह हड्डी प्रमुख रूप से 3 महत्त्वपूर्ण भागों से मिलकर बनती है
(क) उग्र-उरोस्थि (Manubrium):
यह उरोस्थि का अगला, चौड़ा तथा चपटा भाग है, जिसका आधार लगभग तिकोना । चलायमान पसलियाँ तथा नीचे की ओर लगभग सँकरा होता जाता है। दोनों ओर की । त्रिविम दृश्य हँसली की हड्डी अर्थात् जत्रुकास्थि (Collar Bone) इन हड्डियों से जुड़ी होती है। पसलियों को पहला जोड़ भी इसी भाग से जुड़ा होता है।
(ख) मध्य-उरोस्थि (Mesosternum):
यह भाग काफी लम्बा और सँकरा होता है। यह भाग एक संयुक्त हड्डी के रूप में होता है, जिसमें भ्रूणावस्था में ही चार हड्डियों के टुकड़े पूरी तरह जुड़कर एक हो जाते हैं। पसलियों के छह जोड़े (दूसरी से सातवीं पसली तक) इसी भाग पर दोनों ओर जुड़े होते हैं।
(ग) पश्च-उरोस्थि या जिंफीस्टर्नम (Giphisternum):
यह छोटा भाग है। प्रारम्भिक अवस्था में तो बच्चों में यह उपास्थियों का बना होता है, किन्तु बाद में यह कड़ा हो जाता है। इस भाग में कोई पसली जुड़ी न होने के कारण यह भाग पसलियों से अलग रहता है।
पसलियाँ या पर्शकाएँ
इनकी कुल संख्या 12 जोड़े अर्थात् 24 होती है। ये विशेष रूप से धनुष-कमान की तरह झुककर वक्षीय कटहरा या पिंजरा बनाती हैं। सभी पसलियाँ पृष्ठ भाग में अपने क्रमांक से कशेरुकाओं से जुड़ी होती हैं। इस प्रकार प्रत्येक कशेरुका से दोनों ओर एक-एक पसली उसी क्रमांक में जुड़ी होती है। दूसरी ओर अर्थात् जन्तु के प्रतिपृष्ठ तल की ओर यह पसली उरोस्थि से जुड़ी रहती है, जिसमें से पहला जोड़ा उग्र उरोस्थि से तथा दूसरे से सातवें तक मध्य-उरोस्थि से जुड़े रहते हैं। आठवीं पसली अपनी ओर की सातवीं पसली से मध्य में जुड़ जाती है। नवीं व दसवीं पसली आपस में जुड़ी रहती हैं। इसके अतिरिक्त, ग्यारहवीं व बारहवीं पसली केवल कशेरुकाओं से जुड़ी रहती हैं, जिसके फलस्वरूप इनके दूसरे सिरे बिल्कुल स्वतन्त्र रहते हैं। इसलिए इन्हें मुक्त पर्शकाएँ या तैरती हुई पसलियाँ (Floating ribs) कहते हैं। इनमें से पहले से लेकर सातवें जोड़े तक तो सत्य पसलियाँ तथा शेष मिथ्या पसलियाँ होती हैं। पसलियाँ वक्षीय कटहरे का मुख्य भाग बनाती हैं तथा साथ ही ये कटहरे के भीतरी स्थान को घटा-बढ़ा भी सकती हैं। कटहरे के बीच की मांसपेशियाँ फैलकर पसलियों को झुकाती एवं सौंधा करती रहती हैं, जिससे कि कटहरे का भीतरी स्थान घटता-बढ़ता रहता है। इससे फेफड़ों की संकुचन व फैलने की गति में सहायता मिलती है।
प्रश्न 5:
पैर की हड्डियों का वर्णन कीजिए। [2015]
या
पैर की अस्थियों का चित्र बनाकर नामांकित कीजिए। [2008]
उत्तर:
प्रत्येक पश्च-पाद के
- जाँघ,
- टाँग,
- टखना,
- तलवा तथा
- उँगलियाँ; पाँच भाग होते हैं। इनका संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है
(1) जाँघ की हड्डी अथवा उर्विका (Femur):
यह एक लम्बी वे अत्यधिक मजबूत हड्डी होती है। इसका सिरा गोल एवं चिकना होता है तथा श्रोणि उलूखल में फंसा रहता है, जिससे कि यह सहज ही कई दिशाओं में घूम सकती है। इसका दूसरा सिरा घुटने का जोड़ बनाता है तथा अपेक्षाकृत चौड़ा होता है।
(2) पगदड़ या टाँग:
घुटने से आगे टखने तक यह श्रेणिफलक भाग दी हड्डियों से मिलकर बना होता है। इनमें से भीतरी त्रिकास्थि हड्डी, जिसे अन्त:जंघिका (Tibia) कहते हैं, मोटी तथा आसनास्थि अधिक लम्बी होती है; जबकि बाहरी हड्डी, जिसे उर्विका बहि:जंधिका (Fibula) कहते हैं, अपेक्षाकृत छोटी तथा सँकरी होती है। घुटने को मुख्य रूप से अन्त:जंघिका ही बनाती है। इस स्थान पर एक ओर अन्त:जंघिका तथा दूसरी ओर उर्विका के तल आपस में चिपके रहते हैं। बहि:जंघिका का इस ओर जानुका । का सिरा अन्त:जंघिका से जुड़ा होता है। घुटने पर सामने की क चपटी तिकोनी हड्डी और होती है, जिसे जानुका अन्तःजंघिको बहि:जंघिको (पटेला) कहते हैं। यह हड्डी घुटने को आगे की ओर मुड़ने से रोकती है, किन्तु पीछे की ओर मोड़ने में रुकावट नहीं डालती। गुल्फ की अस्थि
(3) टखना:
टखने में 7 हड्डियाँ होती हैं। ये कलाई की तरह स्थित होती हैं, किन्तु अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत और अंगुलास्थियाँ बड़ी भी होती हैं; अतः इनसे एड़ी को कुछ भाग भी बनता है। शरीर का सम्पूर्ण भार इन्हीं को सँभालना अस्थियों का आपसी सम्बन्ध तथा पड़ता है।
(4) तलवा या प्रपाद:
इस भाग को बनाने के लिए 5 लम्बी हड्डियाँ होती हैं। ये सीधी होती हैं। तथा लगभग सम्पूर्ण तलवे को बनाती हैं। इन्हें प्रपादास्थियाँ कहते हैं। पीछे की ओर ये टखने की हड्डी से जुड़ी होती हैं, जबकि आगे की ओर इनसे उँगलियों की अस्थियाँ जुड़ती हैं।
(5) उँगलियाँ:
प्रत्येक उँगली में 3 किन्तु अँगूठे में केवल 2 हड्डियाँ होती हैं। ये हड्डियाँ सीधी व हाथ की हड्डियों की अपेक्षा छोटी होती हैं। यहाँ अँगूठा भी उँगलियों की ही दिशा में लगा रहता है।
प्रश्न 6:
बाहु की अस्थियों का सचित्र वर्णन कीजिए।
या
बाहु की अस्थियों के नाम लिखिए। कोहनी में किस प्रकार का जोड़ पाया जाता है?
या
चित्र की सहायता से अग्रबाह की अस्थियों का वर्णन कीजिए।
या
बाह में पाई जाने वाली अस्थियों के नाम लिखिए। [2011, 13, 14, 16]
उत्तर:
बाह की अस्थियाँ
सम्पूर्ण बाहु की अस्थियों को 5 भागों में बाँट सकते हैं; जैसे-ऊपर से क्रमशः ऊपरी बाहु, अध:बाह या अग्रबाहु, कलाई, हथेली तथा उँगलियाँ। प्रत्येक भाग को बनाने के लिए एक या कुछ अस्थियाँ होती हैं; जैसे
ऊपरी बाहु की अस्थियाँ:
यह केवल एक अस्थि से बनती है जिसे प्रगण्डिकास्थि (Humerus) कहते हैं। यह एक लम्बी अस्थि होती है जो काफी मजबूत व अन्दर से खोखली होती है। लम्बाई में यह पूर्ण ऊपरी बाहु में फैली रहती है। इसकी ऊपरी सिरा गेंद की तरह गोल होता है तथा अंस-फलक के अंसकूप में फँसा रहता है। यह अपने गोल तथा चिकनेपन के कारण कूट में आसानी से इधर-उधर या किसी भी दिशा में घूम सकता है। इसका दूसरा सिरा अग्रबाहु की अस्थि के साथ एक वि प्रकार की सन्धि बनाता है जो केवल एक ओर को खुलती या बन्द होती है। इस प्रकार की सन्धि
को कब्जा सन्धि कहते हैं। यह भाग कोहनी का जोड़ बनाता है।
अग्रबाहु की अस्थि:
अग्रबाहु या अध:बाहु में दो लम्बी मजबूत अस्थियाँ होती हैं। दोनों एक-दूसरे के पास-पास लगी रहती हैं। इन अस्थियों को बहिःप्रकोष्ठिकास्थि (Radius) तथा अन्तः प्रकोष्ठिकास्थि (UIna) कहते हैं। इनमें से रेडियस अँगूठे की ओर तथा अल्ना छोटी उँगली की ओर होती है। अल्ना अपेक्षाकृत लम्बी अस्थि है। यही अस्थि कोहनी के जत्रुकास्थि भाग में और लम्बी होकर कब्जा सन्धि बनाने में सहायक है। अंर,लङ रेडियस का ऊपरी सिरा सँकरा होता है जो प्रकोष्ठिका के साथ जुड़ा रहता है; किन्तु अगला सिरा, जो कलाई की अस्थि के पास होता है, प्रगण्डिकास्थि काफी चौड़ा होता है। इन दोनों लम्बी अस्थियों का लगाव अग्रबाहु में इस प्रकार होता है कि यदि हम हथेली को सीधा फैलाते हैं, तो ये एक-दूसरे के पास स्थित होती हैं, किन्तु हथेली को घुमाकर अन्दर अन्त:प्रकोष्ठिका की ओर ले जाएँ, तो ये एक-दूसरे के ऊपर स्थित होती हैं।
कलाई की अस्थियाँ:
कलाई में 8 काफी छोटी-छोटी मणिबन्धास्थयाँ अस्थियाँ होती हैं, जिन्हें मणिबन्धिकास्थियाँ (कार्पल्स) कहते हैं। ये मणिबन्ध 4-4 की दो पंक्तियों में स्थित होकर कलाई को बाँधती हैं। इन केर भास्थि अस्थियों के छोटी-छोटी और अलग-अलग होने के कारण कलाई पूरी 18- अँगुल्यास्थियाँ तरह लचकदार होती है तथा किसी भी दिशा में आसानी से घुमाई जा जासकती है।
हथेली की अस्थि:
हथेलीहथेली को 5 लम्बी और सँकरी अस्थियाँ, उनका आपसी सम्बन्ध व हड्डियाँ बनाती हैं। इन अस्थियों को करभिकाएँ या मेटा-कार्पल्स। अंसमेखला के साथ लगाव कहते हैं। कलाई की ओर ये मणिबन्ध से जुड़ी होती हैं। तथा आगे की ओर अँगुलियों की अस्थि से इनका सम्बन्ध मणिबन्धिकास्थियाँ होता है।
अँगुलियों की अस्थि:
प्रत्येक अँगुली में 3 अस्थियाँ होती हैं। अँगूठे में केवल दो अस्थियाँ होती हैं। ये अँगुलास्थियाँ कहलाती हैं तथा छोटी होती हैं। एक-दूसरे के साथ सपाट जोड़ एक-दूसरे के ऊपर फिसलने में मदद करता है। अँगूठा अन्य अँगुलियों के पीछे हथेली के साथ। समकोण बनाता है। इसकी ऐसी स्थिति के कारण ही हम । छोटी-से-छोटी वस्तु को भी आसानी से पकड़ पाते हैं।
प्रश्न 7:
सन्धि किसे कहते हैं? सन्धि कितने प्रकार की होती हैं? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। [2007, 08, 10, 12, 13, 15, 17, 18]
या
मनुष्य के शरीर में कितने प्रकार की सन्धियाँ होती हैं? किसी एक प्रकार की सन्धि का चित्र बनाइए। [2009, 10, 12]
या
अस्थि सन्धि से आप क्या समझती हैं? अस्थि सन्धि के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए उसके प्रकारों का उल्लेख कीजिए। [2007, 08, 9, 10, 16]
या
कन्दुक-खल्लिका सन्धि की रचना लिखिए व चित्र बनाइए [ 2014, 15, 16]
या
कोहनी में किस प्रकार की सन्धि पायी जाती है? चित्र सहित वर्णन कीजिए। [2013]
या
अस्थि सन्धि से आप क्या समझती हैं? अस्थि सन्धियाँ कितने प्रकार की होती हैं? चल सन्धियों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। [2008]
या
चल सन्धि क्या है ? चल सन्धि के प्रकार उदाहरण सहित लिखिए। [2009, 13]
या
सन्धियाँ कितने प्रकार की होती हैं? [2010, 13, 14, 16]
या
अस्थियों में ‘अचल सन्धि से आप क्या समझती हैं? [2018]
उत्तर:
अस्थि सन्धियाँ
शरार में दो या दो से अधिक अस्थियों के मिलने के स्थान को अस्थि-सन्धि कहते हैं। शरीर के भिन्न भिन्न अंगों की अस्थियाँ पररपा विद रहती हैं। प्रत्येक सन्धि ‘बन्धक तन्तुओं तथा ‘सौत्रिवः पनों की पट्टियों से बँधी रहती है। ये बन्धक सूत्र डोरे के समान होते हैं तथा अस्थियों को उचित स्थानों पर स्थित रखते हैं। जिन स्थानों पर दो अस्थियों की सन्धियाँ होती हैं, वहाँ पर अस्थियों में कोमल पदार्थ कार्टिलेज अधिक मात्रा में विद्यमान रहता है; अत: जोड़ पर इसके रहने से जोड़ में सुविधा रहती है। जोड़ पर अस्थियाँ एक-दूसरे पर घूमती हैं। इससे रगड़ होना स्वाभाविक है। इस रगड़ को बचाने के लिए प्रत्येक सन्धि पर ऐसी ग्रन्थियाँ होती हैं, जिनसे एक प्रकार का चिकना द्रव पदार्थ सदैव निकलता रहता है। यह पदार्थ सन्धि को उसी प्रकार से सुरक्षित रखता है, जिस प्रकार से कोई मशीन तेल दे देने से सुरक्षित रहती है।
क्रिया एवं महत्त्व:
सन्धियों पर ही अंगों की गति होती है। यदि हमारी बाहु की अस्थि स्केप्युता से अपने वर्तमान रूप में संयुक्त न होती तो हमारी बाँह बेकार निर्जीव अवस्था में लटकती रहती। हम उसे न तो घुमा-फिरा सकते थे और न ही ऊपर से नीचे उठा सकते थे। जब हम दौड़ते हैं, लड़ते हैं या किसी वस्तु को पकड़ते हैं, तो हमारे अंगु इन सन्धियों पर ही मुड़ते हैं। ये मुड़ने की क्रिया उत्पन्न करने वाली पेशियाँ होती हैं, जो एक सन्धि से उदय होकर दूसरी अस्थि पर एक लम्बी रस्सी के समान कण्डरा द्वारा लगती है। जब पेशी संकुचित होती है, तो जिस अस्थि पर वह लगी होती है, वह ऊपर यो सामने या पीछे की ओर उठ जाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सन्धियों के द्वारा ही हमारे शरीर की विभिन्न गतियाँ सम्भव होती हैं। यदि हमारे अस्थि-संस्थान में ये समस्त सन्धियाँ न होतीं, तो हमारा शरीर किसी भी प्रकार की गति न कर पाता तथा वह पूर्ण रूप से स्थिर ही रहता।
सन्धियाँ दो प्रकार की होती हैं
(1) अचल तथा
(2) चलः
(1) अचल सन्धियाँ:
जब दो या दो से अधिक अस्थियाँ आपस में मिलकर इस प्रकार जुड़े जाएँ कि वे बिल्कुल हिल-डुल ही न सकें, तो उस सन्धि को अचल सन्धि कहते हैं। इस प्रकार की सन्धियाँ कपाल की अस्थियों में पाई जाती हैं। इस प्रकार के जोड़ के लिए अस्थियों के किनारे इस प्रकार के होने चाहिए कि वे एक-दूसरे में पूर्ण रूप से जमकर बैठ जाएँ।
(2) चल सन्धियाँ:
दो या दो से अधिक अस्थियाँ जब एक-दूसरे के पास इस प्रकार लगी रहती हैं कि वे किसी निश्चित या कई दिशाओं में आसानी से हिल-डुल सकती हों अर्थात् गति कर सकें, तो इस प्रकार के जोड़ को चल सन्धि कहते हैं।
चल सन्धियाँ शरीर में कई प्रकार की होती हैं, जिनसे शरीर के विभिन्न अंगों को मोड़ा, घुमाया या चलाया जा सकता है। हमारे शरीर के विभिन्न अंगों को विभिन्न प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं। ये सन्धियाँ निम्न प्रकार की होती हैं
(i) कन्दुक-खल्लिका या गेंद और प्यालेदार सन्धियाँ (Ball and Socket Joint):
यह जोड़ एक प्याले जैसे भाग में किसी दूसरी अस्थि का गोल सिरा फिट रहने से बनता है। ऐसी स्थिति में गेंद जैसा गोल सिरा प्याले जैसे गोल अस्थि में आसानी से चाहे जिधर घूम सकता है। ऐसी सन्धि को कन्दुक-खल्लिका सन्धि कहते हैं। शरीर में इस प्रकार की सन्धि कन्धे पर बाहु का जोड़ तथा कूल्हे पर टॉग का जोड़ है।
(ii) कब्जा सन्धि (Hinge Joint):
इस प्रकार की सन्धियों में दोनों अस्थियाँ अथवा एक अस्थि एक ही दिशा में खुल या बन्द हो सकती है। इस प्रकार के जोड़ में निश्चय ही कोई एक अस्थि या उसका कोई प्रवर्ध इस प्रकार बढ़ा रहता है कि वह एक निश्चित दिशा के अलावा अन्य दिशा की गति को पूर्णत: रोकता है। इस प्रकार का जोड़ कोहनी, घुटना तथा उँगलियों में मिलता है।
(iii) ख़ुटीदार सन्धि (Pivot Joint):
इसे धुराग्र सन्धि भी कहते हैं। इसमें एक अस्थि या उसके प्रवर्ध धुरे की भाँति अथवा बँटे की तरह सीधे होते हैं। इन धुरों पर दूसरी अस्थियाँ या धुरिया इस प्रकार टिकी रहती हैं कि इनको किधर भी घुमाया जा सके। इनमें केवल टिकी हुई अस्थि या अस्थियाँ ही गति करेंगी, बँटे वाली नहीं। रीढ़ की अस्थि की पहली-दूसरी कशेरुका खोपड़ी के साथ इस प्रकार का जोड़ बनाती हैं। वहीं पर इस कशेरुका का एक प्रवर्ध निकला रहता है, जिस पर खोपड़ी रखी रहती है। इस प्रकार खोपड़ी इस पर आसानी से घूमती है।
(iv) फिसलनदार सन्धि (Sliding Joint):
इसे विसप सन्धि भी कहते हैं। ऐसी सन्धि वास्तव में कोई जोड़ नहीं बनाती है, बल्कि इनकी अस्थियाँ एक-दूसरे के ऊपर अपने चपटे तल के पास-पास लगी रहती हैं। इन दोनों की चौड़ाई में कई उपास्थियाँ होती हैं जो इन अस्थियों को गति करने के लिए फिसलने में मदद करती हैं। कलाई की अस्थि के जोड तथा कशेरुका के जोड़ों में इसी प्रकार की सन्धि होती है। यद्यपि हमारी अँगुलियों में कब्जे की तरह के पोरुए होते हैं, जबकि इन अस्थियों का आपसी जोड़ भी फिसलने वाला ही होता है।
(v) पर्याण या सैडिल सन्धि (Saddle Joint):
इस प्रकार की अस्थि सन्धि हमारे हाथ के अँगूठे की मेटाकार्पल्स तथा कार्पल्स के मध्य पाई जाती है। इस सन्धि की विशिष्ट रचना के ही कारण. हाथ को अँगूठा अन्य अँगुलियों की अपेक्षा इधर-उधर अधिक घुमाया जा सकता है। सैडिल सन्धि की रचना कन्दुक-खल्लिका से मिलती-जुलती होती हैं, परन्तु इसे सन्धि में पाए जाने वाले बॉल तथा साकेट कम विकसित होते हैं।
अस्थियों की सन्धियाँ या जोड़ सदैव ही विशेष प्रकार की डोरियों या स्नायुओं (Ligaments) से बँधे रहते हैं। इन्हीं जोड़ों पर मांसपेशियाँ लगी रहती हैं। मांसपेशियाँ गति कराने में सहायक होती हैं, जबकि ये डोरियाँ इन्हें बाँधे रखने में। इस प्रकार के जोड़ों में उपास्थियाँ भी कई बार महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।
चल सन्धि की रचना
हमारे शरीर की चल-सन्धियों में इनमें कई प्रबन्ध होते हैं, ताकि अस्थियाँ आपस में रगड़ खाकर खराब न हों और वे इस प्रकार बँधी रहें कि वे अपने स्थान से हटें भी नहीं। इसके लिए श्वेत स्नायु की गोल या चौड़ी डोरियाँ होती हैं। ये इोरियाँ ही इन अस्थियों को एक-दूसरे के साथ निश्चित स्थान की ओर निश्चित दिशा में बॉधे रखती हैं। छोटी पेशियाँ इन्हें खींचकर किसी भी दिशा या गन्तव्य दिशा में हटाने की कोशिश करती हैं, किन्तु स्प्रिंग की तरह उल्टी दिशा में ये इन्हें पूर्व-निर्धारित स्थान पर खींच लेती हैं। अस्थियों को रगड़ से बचाने का विशेष प्रबन्ध होता है। इसके लिए दोनों अस्थियों के बीच एक थैली जैसी वस्तु होती है जिसके अन्दर एक गाढ़ा स्नेहयुक्त तरल पदार्थ होता है। इस तरल पदार्थ के कारण अस्थियों के सिरे सदैव चिकने रहते हैं। चिकने तरल पदार्थ वाले इन थैलों को स्नेहको यो स्राव-सम्पुट (Synovial capsules) कहते हैं। इनके अन्दर भरे चिकने पदार्थ को स्नेहक द्रव (Synovial fluid) कहते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
मानव शरीर में पाई जाने वाली अस्थियों के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि प्रायः सभी अस्थियों की आन्तरिक रचना एक समान ही होती है, परन्तु उनके बाहरी आकार में पर्याप्त भिन्नता पाई जाती है। आकार की भिन्नता के आधार पर मानव शरीर की समस्त अस्थियों को निम्नलिखित छ: प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है
- चपटी अस्थियाँ: कपाल की अस्थियाँ।
- लम्बी अस्थियाँ: बाँहों तथा टाँगों की अस्थियाँ।
- गोल अस्थियाँ: कलाई तथा टखने की अस्थियाँ।
- विषम अस्थियाँ: मेरुदण्ड की अस्थियाँ।
- छोटी अस्थियाँ: अँगुलियों की अस्थियाँ।
- कीलाकार अस्थियाँ: टखने की अस्थियों की दूसरी तह के भीतर की तीन अस्थियाँ।
प्रश्न 2:
सन्धि किसे कहते हैं? सन्धियों के प्रकार लिखिए। कन्धे में किस प्रकार की सन्धि पाई जाती है?
या
अस्थि सन्धियाँ किसे कहते हैं? कब्जेदार जोड़ के बारे में लिखिए। [2007, 16]
या
अस्थि-सन्धि किसे कहते हैं। सन्धियों के नाम उदाहरण सहित लिखिए। [2008]
उत्तर:
शरीर के कंकाल तन्त्र में दो या दो से अधिक अस्थियों के मिलने के स्थान को सन्धि कहते हैं। सन्धियाँ प्रमुखतः दो प्रकार की होती हैं
(1) चल सन्धि तथा
(2) अचल सन्धि।
चल सन्धियाँ पूर्ण या अपूर्ण प्रकार की हो सकती हैं। पूर्ण सन्धियाँ कई प्रकार की होती हैं; जैसे-कन्दुक-खल्लिका सन्धि, कब्जा सन्धि, धुराग्र या कीलक सन्धि, विसप सन्धि आदि। कन्धे के स्थान पर कन्दुक-खल्लिका सन्धि पाई जाती है।
प्रश्न 3:
हमारे मेरुदण्ड में पाई जाने वाली कशेरुकाओं की संख्या एवं स्थिति का उल्लेख कीजिए।
या
मेरुदण्ड में कितनी अस्थियाँ होती हैं?
उत्तर:
एक वयस्क व्यक्ति के मेरुदण्ड में कुल 26 कशेरुकाएँ होती हैं, जिनकी स्थिति के अनुसार संख्या निम्नलिखित है
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
अस्थि-संस्थान से क्या आशय है? [2003, 05]
उतर:
शरीर की समस्त अस्थियों की व्यवस्था को अस्थि-संस्थान या कंकाल-तन्त्र के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 2:
वयस्क मनुष्य में अस्थियों की कुल संख्या कितनी होती है?
या
शरीर में कुल कितनी अस्थियाँ होती है। [ 2011, 15]
उत्तर:
वयस्क मनुष्य के अस्थि-संस्थान में प्राय: 206 अस्थियाँ होती हैं।
प्रश्न 3:
मानव अस्थि-संस्थान को कितने भागों में विभक्त किया जा सकता है?
उत्तर:
मानव अस्थि-संस्थान को तीन मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है
(1) खोपड़ी,
(2) धड़
और
(3) ऊर्ध्व तथा अधोशाखाएँ।
प्रश्न 4:
अस्थियों के विकास के लिए कौन-कौन से पोषक तत्त्व आवश्यक हैं? [2009]
उत्तर:
कैल्सियम तथा फॉस्फोरस अस्थियों के विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व हैं।
प्रश्न 5:
अस्थियों के खोखले भाग को क्या कहते हैं? उसमें क्या भरा रहता है?
उत्तर:
अस्थियों के खोखले भाग को अस्थि-गुहा कहते हैं। उसमें अस्थिमज्जा नामक गूदेदार पदार्थ भरा रहता है।
प्रश्न 6:
लाल रक्त कणिकाओं का निर्माण कहाँ होता है?
उत्तर:
लाल रक्त कणिकाएँ अस्थियों के अस्थिमज्जा भाग में बनती हैं।
प्रश्न 7:
बाल्यावस्था में मेरुदण्ड में कशेरुकाओं की संख्या बताइए।
उत्तर:
बच्चों के मेरुदण्ड में 33 कशेरुकाएँ होती हैं।
प्रश्न 8:
वयस्क व्यक्ति के मेरुदण्ड में कितनी कशेरुकाएँ पाई जाती हैं? [2009]
उत्तर:
वयस्क व्यक्ति के मेरुदण्ड में 26 कशेरुकाएँ पाई जाती हैं।
प्रश्न 9:
सिर के मुख्य भाग कौन-से हैं?
उत्तर:
सिर के दो मुख्य भाग हैं
(1) कपाल तथा
(2) चेहरा।
प्रश्न 10:
हमारे शरीर में लम्बी अस्थियाँ कहाँ-कहाँ पाई जाती हैं?
उत्तर:
हमारे शरीर में बाँहों तथा टाँगों में लम्बी अस्थियाँ पाई जाती हैं।
प्रश्न 11:
मानव खोपड़ी में कुल कितनी अस्थियाँ होती हैं?
उत्तर:
मानव खोपड़ी में कुल 22 अस्थियाँ होती हैं, जिनमें से 8 कपाल में तथा 14 चेहरे में स्थित होती हैं।
प्रश्न 12:
मानव खोपड़ी में प्रायः किस प्रकार की सन्धियाँ पाई जाती हैं?
उत्तर:
मानव खोपड़ी में प्राय: अचल सन्धियाँ होती हैं।
प्रश्न 13:
अस्थि सन्धि किसे कहते हैं? सन्धियों के प्रकार लिखिए। [2008, 10, 15, 16]
उत्तर:
अस्थि-संस्थान में दो अथवा दो से अधिक अस्थियों के परस्पर सम्बद्ध होने की व्यवस्था एवं स्थल को अस्थि सन्धि कहते हैं। शरीर में चल तथा अचल दो प्रकार की अस्थि सन्धियाँ पायी जाती हैं।
प्रश्न 14:
शरीर में सन्धियों से क्या लाभ हैं?
या
शरीर में कंकाल सन्धियों का क्या महत्त्व है? [2010, 12]
उत्तर:
शरीर की गतिशीलता में सन्धियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। इन्हीं के कारण हम अपने हाथ, पैर तथा गर्दन आदि को हिला-डुला पाते हैं। ।
प्रश्न 15:
शरीर में मूल रूप से कितने प्रकार की सन्धियाँ पाई जाती हैं? [2007, 10]
उत्तर:
हमारे शरीर में मूल रूप से दो प्रकार की सन्धि पाई जाती हैं। जिन्हें क्रमश: अचल सन्धि तथा चल सन्धि कहा जाता है।
प्रश्न 16:
अचल सन्धि का क्या अर्थ है? यह शरीर में कहाँ पायी जाती हैं?
उत्तर:
हमारे शरीर की उन अस्थि-सन्धियों को अचल सन्धि कहा जाता है, जिनमें किसी प्रकार की गति नहीं होती तथा सम्बन्धितं अस्थियाँ स्थिर होती हैं। अचल सन्धियाँ कपाल की अस्थियों में पाई : जाती हैं।
प्रश्न 17:
पूर्ण चल सन्धियाँ कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
पूर्ण चल सन्धियाँ पाँच प्रकार की होती हैं
- कब्जा सन्धि,
- कन्दुक-खल्लिका सन्धि,
- ख़ुटीदार सन्धि,
- फिसलनदार या प्रसर सन्धि तथा
- सैडिल या पर्याण सन्धि।
प्रश्न 18:
चल तथा अचल सन्धि में क्या अन्तर है? [2007, 13]
उत्तर:
चल सन्धियों में विभिन्न प्रकार की निर्धारित गतियाँ होती हैं, जबकि अचल सन्धियों में किसी प्रकार की गति नहीं होती।
प्रश्न 19:
गेंद-गड्ढा (कन्दुक-खल्लिका) सन्धि के दो उदाहरण बताइए।
उत्तर:
गेंद-गड्ढा या कन्दुक-खल्लिका सन्धि के उदाहरण हैं-कन्धे की अस्थि सन्धि तथा कूल्हे की अस्थि सन्धि।
प्रश्न 20:
कब्जा सन्धि तथा बँटीदार सन्धि का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर:
(1) कब्जा सन्धि: इस प्रकार की सन्धियों में दोनों अस्थियों अथवा एक अस्थि कब्जे की तरह एक ही दिशा में खुल या बन्द हो सकती है; जैसे–कुहनी या उँगली।
(2) ख़ुटीदार सन्धि: इसमें एक अस्थि या उसके प्रवर्ध धुरे की भाँति अथवा बँटे की तरह सीधी होती हैं। इन पर दूसरी अस्थि को किसी भी तरफ घुमाया जा सकता है; जैसे–कशेरुका के एक प्रवर्ध पर रखी खोपड़ी। इस प्रकार खोपड़ी दाएँ या बाएँ, किधर भी घूम सकती है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न-निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए
1. कंकाल-तन्त्र के मुख्य कार्य हैं
(क) शरीर को आकृति एवं दृढ़ता प्रदान करना
(ख) रक्त कणों का निर्माण करना
(ग) शरीर को गति प्रदान करना
(घ) ये सभी
2. हड्डी में कड़ापन किस तत्त्व के कारण होता है? [2008, 10, 11, 12, 15, 17]
(क) लौह तत्त्व
(ख) सोडियम
(ग) मैग्नीशियम
(घ) कैल्सियम
3. हड्डियाँ किस तत्त्व से मजबूत होती हैं? [2011]
(क) प्रोटीन
(ख) सोडियम
(ग) कैल्सियम
(घ) वसा
4. खोपड़ी में अस्थियों की कुल संख्या कितनी होती है?
(क) आठ
(ख) चौदह
(ग) बाईस
(घ) चौबीस
5. मानव कंकाल में कितनी अस्थियाँ होती हैं? [2007, 10, 13, 15, 18]
(क) 100
(ख) 206
(ग) 200
(घ) 106
6. बच्चों के मेरुदण्ड में कितनी अस्थियाँ होती हैं? [2013]
(क) 35
(ख) 33
(ग) 30
(घ) 36
7. कन्धे पर किस प्रकार की सन्धि होती है? [2014]
(क) अल्पचल सन्धि
(ख) कब्जेनुमा सन्धि
(ग) अचल सन्धि
(घ) गेंद-गड्ढा सन्धि
8. कोहनी का जोड़ कौन-सा जोड़ कहलाता है? [2015, 16, 17]
(क) धुराग्र
(ख) कब्जेदार
(ग) फिसलने वाला
(घ) ख़ुटीदार
9. चेहरे में कितनी अस्थियाँ पाई जाती हैं? [2007, 14, 17, 18]
(क) अठारह
(ख) बीस
(ग) चौदह
(घ) ये सभी
10. ऊपरी बाह की हडडी होती है
(क) लम्बी
(ख) मोटी
(ग) चपटी
(घ) कैसी भी
11. ऊपरी बाहु की अस्थि है [2018]
(क) अंसफलक
(ख) प्रगण्डिका
(ग) बहिः प्रकोण्ठिकास्थि
(घ) अन्त: प्रकोण्ठिकास्थि
12. गर्दन के भाग में ग्रीवा कशेरुकाओं की संख्या होती है
(क) 4
(ख) 5
(ग) 6
(घ) 7
13. घुटना किस प्रकार की सन्धि का उदाहरण है?
(क) कन्दुक-खल्लिका (गेंद-गड्ढा) जोड़
(ख) कब्जेदार जोड़
(ग) कीलदार जोड़
(घ) फिसलने वाला जोड़
14. रीढ़ की हड्डी में पाया जाता है
(क) कन्दुक-खल्लिका जोड़
(ख) चूलदार जोड़
(ग) कीलदार जोड़।
(घ) फिसलने वाला (विसप) जोड़
15. मानव शरीर में कितने प्रकार के जोड़ होते हैं? [2008, 10]
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
16. मानव शरीर में कितनी जोड़ी पसलियाँ पाई जाती हैं? [2008, 11, 12, 13, 14, 15]
(क) 5 जोड़ी
(ख) 10 जोड़ी
(ग) 12 जोड़ी
(घ) 20 जोड़ी
17. खूटी (धुराग्र) सन्धि पाई जाती है [2008, 14]
(क) कन्धे में
(ख) घुटने में
(ग) खोपड़ी में
(घ) कोहनी में
18. अचल सन्धि कहाँ पाई जाती है? [2009, 10, 11]
(क) खोपड़ी में
(ख) घुटने में
(ग) कलाई में
(घ) कोहनी में
19. आठ हड्डियाँ पायी जाती हैं [2009, 10, 11]
(क) रीढ़ में
(ख) पेट में
(ग) कपाल में
(घ) हथेली में
20. रीढ़ की हड्डी में कितनी कशेरुकाएँ पायी जाती हैं? [2014, 16]
या
एक वयस्क व्यक्ति के मेरुदण्ड में कितनी कशेरुकाएँ होती हैं? [2014]
(क) 28
(ख) 24
(ग) 26
(घ) 25
उत्तर:
1. (घ) ये सभी,
2. (घ) कैल्सियम,
3. (ग) कैल्सियम,
4. (क) आठ,
5. (ख) 206,
6. (ख) 33,
7. (घ) गेंद-गड्ढा सन्धि,
8. (ख) कब्जेदार,
9. (ग) चौदह,
10. (क) लम्बी,
11. (ख) प्रगण्डिका,
12. (घ) 7,
13. (ख) कब्जेदार जोड़,
14. (ग) कीलदार जोड़,
15. (क) दो,
16, (ग) 12 जोड़ी,
17. (ग) खोपड़ी में,
18. (क) खोपड़ी में,
19. (ग) कपाल में
20. (ग) 28
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