UP Board Solutions for Class 10 Hindi छन्द
These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi छन्द.
छन्द
परिभाषा–छन्द का अर्थ है—बन्धन। जिस रचना में मात्रा, वर्ण, गति, विराम, तुक आदि के नियमों । का विचार रखकर शब्द-योजना की जाती है, उसे छन्द कहते हैं। इस प्रकार छन्द नियमों का एक बन्धन है। छन्द प्रयोग के कारण ही रचना पद्य कहलाती है और इसी से उसमें संगीतात्मकता उत्पन्न हो जाती है। यह काव्य को स्मरण योग्य बना देता है। हिन्दी साहित्य कोश के अनुसार, “अक्षर, अक्षरों की संख्या एवं क्रम, मात्रा, मात्रा-गणना तथा यति, गति से सम्बन्धित विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्य-रचना ‘छन्द’ कहलाती है।”
छन्द-ज्ञान के लिए इसके निम्नलिखित छ: अंगों का ज्ञान होना आवश्यक है-
(1) वर्ण-वर्ण दो प्रकार के होते हैं
- लघु-हस्व अक्षर (अ, इ, उ, ऋ) को लघु कहते हैं। इसे ” चिह्न से प्रकट किया जाता है।
- गुरु–दीर्घ अक्षर (आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ) को गुरु कहते हैं। इसे ‘5’ चिह्न से प्रकट किया जाता है।
(2) मात्रा—किसी वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे मात्रा कहते हैं। लघु की एक मात्रा ।’ तथा गुरु की दो मात्राएँ ‘5’ मानी जाती हैं। लघु वर्ण की अपेक्षा गुरु वर्ण के उच्चारण में दुगुना समय लगता है।
वर्गों की गणना करते समय वर्ण चाहे लघु हों अथवा गुरु उन्हें एक ही माना जाता है; यथा-‘रम’, ‘राम’, ‘रमा’, ‘रामा’। इन चारों शब्दों में वर्ण दो ही हैं, लेकिन मात्राएँ क्रमशः 1 + 1 = 2, 2 + 1 = 3, 1 + 2 = 3, 2 + 2 = 4 हैं। नीचे लिखे वर्ण गुरु माने जाते हैं
- अनुस्वारयुक्त वर्ण गुरु माना जाता है; जैसे-‘संत’ और ‘हंस’ शब्द के ‘सं’ और ‘हं’ गुरु हैं।
- विसर्ग ‘:’ से युक्त वर्ण गुरु माना जाता है; उदाहरण के लिए-‘अत:’ शब्द में ‘त:’ गुरु वर्ण है।
- चन्द्रबिन्दु से युक्त लघु वर्ण लघु ही रहता है; जैसे-हँसना’ का हैं लघु है।
- संयुक्ताक्षर से पूर्व का लघु वर्ण गुरु माना जाता है; जैसे-‘गन्ध’ शब्द में ‘ग’ लघु है लेकिन ‘न्ध’ संयुक्ताक्षर के पूर्व आने के कारण ‘ग’ गुरु वर्ण (अर्थात् दो मात्रा) माना जाएगा। जब संयुक्ताक्षर से पूर्व लघु वर्ण पर अधिक बल नहीं रहता, तब वह लघु ही माना जाता है; जैसे-‘तुम्हारे में ‘म्ह’ संयुक्ताक्षर के पूर्व होने पर भी ‘तु’ लघु ही रहेगा।
- कभी-कभी पाद या चरण की पूर्ति के लिए चरण के अन्त का लघु वर्ण भी विकल्प से गुरु या दीर्घ मान लिया जाता है।
- हलन्त वर्षों की गणना नहीं की जाती; किन्तु उनके पूर्व का वर्ण गुरु मान लिया जाता है। | कभी-कभी दीर्घ वर्ण भी पद्य की लय में पढ़ते समय लघु या ह्रस्व ही पढ़ा जाता है; जैसे-‘अवधेश के द्वारे सकारे गयी’ में ‘के’ दीर्घ होते हुए भी लघु ही पढ़ा जा रहा है। इसलिए यह लघु ही माना जाएगा। तात्पर्य यह है कि किसी भी वर्ण का लघु अथवा गुरु होना, उसके उच्चारण में लिये गये समय पर निर्भर करता है।
(3) गति (लय)–कविता के कर्णमधुर प्रवाह को गति कहते हैं।
(4) यति (विराम)—पाठकों के साँस लेने, रुकने या ठहरने को यति कहते हैं।
(5) तुक-छन्दों के चरण के अन्त में समान वर्गों की आवृत्ति को तुक कहते हैं।
(6) चरण–प्रत्येक छन्द में प्रायः चार भाग होते हैं; जिन्हें चरण, पद या पाद कहते हैं। चरणों को अल्पविराम द्वारा अलग कर दिया जाता है। जिन छन्दों के चारों चरणों की मात्राएँ या वर्ण एक-से हों वे ‘सम’ कहलाते हैं; जैसे–चौपाई, इन्द्रवज्रा आदि। जिसमें पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे की मात्राओं या वर्षों से समता हो वे ‘अर्द्धसम’ कहलाते हैं; जैसे—दोहा, सोरठा आदि। जिन छन्दों में चार से अधिक (छ:) चरण हों और वे एक-से न हों ‘विषम’ कहलाते हैं; जैसे-छप्पय और कुण्डलिया।
गण-लघु-गुरु क्रम से तीन वर्गों के समुदाय को गण कहते हैं। गण आठ प्रकार के होते हैं। ‘यमाताराजभानसलगा’ से इसके वर्णरूप व्यक्त हो जाते हैं। इनका संकेत और उदाहरणसहित स्पष्टीकरण निम्नवत् है-
प्रकार–मात्रा और वर्ण के आधार पर छन्द मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं
(अ) मात्रिक छन्द-जिस छन्द में मात्राओं की गणना की जाती है, उसे मात्रिक छन्द कहते हैं। मात्रिक छन्दों में वर्गों के लघु और गुरु के क्रम का विशेष ध्यान नहीं रखा जाता। इन छन्दों के प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या निश्चित रहती है। ये तीन प्रकार के होते हैं-सम, अर्द्धसम और विषम।
(ब) वर्णिक छन्द–जिन छन्दों की रचना वर्गों की गिनती के अनुसार होती है, उन्हें वर्णिक छन्द कहते हैं। वर्णिक छन्दों के भी तीन भेद होते हैं-सम, अर्द्धसम तथा विषम। 21 वर्षों तक के वर्णिक छन्द ‘साधारण’, 22 से 26 वर्षों के वर्णिक छन्द ‘सवैया’ तथा 26 से अधिक वर्ण वाले छन्द ‘दण्डक’ कहलाते हैं। वर्णिक छन्द का एक क्रमबद्ध नियोजित और व्यवस्थित रूप वर्णिक वृत्त कहलाता है। वर्णिक वृत्तों के प्रत्येक चरण का निर्माण वर्गों की एक निश्चित संख्या एक लघु-गुरु के निश्चित क्रम के अनुसार होता है।
मुक्त छन्द–हिन्दी में आजकल लिखे जा रहे छन्द मुक्त छन्द हैं। इन छन्दों में वर्ण और मात्रा का कोई बन्धन नहीं होता। ये तुकान्त भी होते हैं और अतुकान्त भी।
[विशेष—पाठ्यक्रम में केवल सोरठा एवं रोला मात्रिक छन्द ही निर्धारित हैं।]
सोरठा [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
लक्षण-सोरठा अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 11-11 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। पहले और तीसरे चरण के अन्त में गुरु-लघु (SI) आते हैं और कहीं-कहीं तुक भी मिलती है। यह दोहे का उल्टा होता है;
उदाहरण-
अन्य उदाहरण—-
(1) सुनि केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे ।
बिहँसे करुना ऐन, चितई जानकी लखनु तन ।।
(2) रहिमन पुतरी स्याम, मनहु जलज मधुकर लसै ।
कैधों सालिगराम, रूपा के अरघा धरै ।।
(3) मैं समुझ्यौ निरधार, यह जगु काँचौं काँच सौ ।
एकै रूप अपार, प्रतिबिम्बित लखियतु जहाँ ।।
(4) नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन ।
करउ सो मम उर धाम, सदा छीरसागर संयन ।।
रोला [2012, 13, 14, 16, 17, 18]
लक्षण–यह चार पंक्तियों वाला एक सममात्रिक छन्द है। इसमें आठ चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 के विराम (यति) से 24 मात्राएँ होती हैं;
उदाहरण–
अन्य उदाहरण-
(1) उड़ति फुही की फाब, फबति फहरति छबि छाई ।।
ज्यौं परबत पर परत, झीन बादर दरसाई ।।
तेरनि-किरन तापर बिचित्र बहुरंग प्रकासै ।।
इंद्रधनुस की प्रभा, दिव्य दसहूँ दिसि भासै ।।
(2) इहिं बिधि धावति इँसंति, ढरति ढरकति सुख-देनी ।।
मनहुँ सँवारति सुंभ सुरपुर की सुगम निसेनी ।।
बिपुल बेग बंल बिक्रम कैं ओजनि उमगाई ।
हरहराति हरषाति संभु-सनमुख जब आई ।।
(3) भई थकित छबि चेकिंत हेरि हर-रूप मनोहर ।।
है आर्नहिं के प्रान रहे तन धरे धरोहर ।।
भयो कोप कौ लोप चोप औरै उमगाई।
चित चिकनाई चढ़ी कढ़ी सब रोष रुखाई ।।
अभ्यास
प्रश्न 1
निम्नलिखित में कौन-सा छन्द है; उसका लक्षण (परिभाषा) भी बताइए
(1) रहिमन मोहिं न सुहाय, अमी पियावत मान बिनु ।
बरु विष देय बुलाय, मान सहित मरिबो भलो ।। [2010]
(2) लिखकर लोहित लेख, डूब गया दिनमणि अहा।।
व्योम सिन्धु सखि देख, तारक बुदबुदे दे रहा ।।
(3) सुनत सुमंगल बैन, मन प्रमोद तन पुलक भर ।।
सरद सरोरुह नैन, तुलसी भरे सनेह जल ।।
(4) जो सुमिरत सिधि होइ, गननायक करिवर बदन ।
करहुँ अनुग्रह सोइ, बुद्धि रासि सुभ-गुन-सदन ।। [2010]
(5) भरत चरित कर नेम, तुलसी जे सादर सुनहिं ।
सियाराम पद प्रेम, अवसि होई मन रस विरति ।।
(6) सीय बिआहबि राम, गरब दूरि करि नृपन के।।
जीति को सके संग्राम, दसरथ के रनबॉकुरे ।।
(7) बन्दउँ गुरुपद-कंज, कृपा-सिंधु नर-रूप हरि ।
महामोह तम पुंज, जासु बचन रविकर-निकर ।। [2010]
उत्तर
(1) सोरठा,
(2) सोरठा,
(3) सोरठा,
(4) सोरठा,
(5) सोरठा,
(6) सोरठा,
(7) सोरठा।
[ संकेत–छन्द के लक्षण (परिभाषा) के लिए उनके दिये गये विवरण को पढ़िए।]
प्रश्न 2
सोरठा छन्द को लक्षण तथा उदाहरण दीजिए। [2012, 13, 14, 16]
या
सोरठा छन्द की परिभाषा लिखिए तथा उदाहरण दीजिए। [2009, 11, 13, 15]
उत्तर
[ संकेत–सोरठा छन्द में दिये गये विवरण को पढ़िए।]
प्रश्न 3
छन्द कितने प्रकार के होते हैं ? मात्रिक छन्द का कोई एक उदाहरण दीजिए।
या
छन्द कितने प्रकार के होते हैं ? इनमें से किसी एक का उदाहरण लिखिए।
उत्तर
मात्रा और वर्ण के आधार पर छन्द दो प्रकार के होते हैं—
(क) मात्रिक तथा
(ख) वर्णिक।
मात्रिक छन्द (दोहा) का उदाहरण
बर जीते सर मैन के, ऐसे देखे मैं न।
हरिनी के नैनानु हैं, हरि नीके ए नैन ॥
प्रश्न 4
सोरठा अथवा रोला छन्द की परिभाषा दीजिए तथा एक उदाहरण भी दीजिए। [2011, 12, 13, 14, 16]
या
रोला छन्द की परिभाषा (लक्षण) तथा उदाहरण भी दीजिए। [2011, 12, 13, 14, 16]
उत्तर
[ संकेत-छन्द में दिये गये विवरण के अन्तर्गत पढ़े ]
We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi छन्द help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi छन्द, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.